एक पार्क का दृश्य |
याद इतनी तुम्हें दिलाते जायें,
पान कल के लिये लगाते जायें,
देख लो आज हमको जी भर के
जापान में भी कुछ समय पहले सकूरा का समय था। मुनीश भाई ने इस विषय पर तोक्यो से बहुत सुन्दर चित्रालेख लगाये थे। उनके शब्दों को दोहराऊँ तो सकूरा में जापानी संस्कृति का रहस्य छिपा है। भले ही कुछ देर के लिये खिलो, लेकिन ऐसे खिलो कि संसार वाह कर उठे। सकूरा का समय तो अब पूरा हुआ। मेरे आंगन का सकूरा (क्वांज़न चेरी ब्लॉसम) भी अपने सारे पुष्पों की वर्षा कर के अब हरे पत्तों से लदा हुआ है। लेकिन अन्य बहुत से पेड़ प्रकृति का सौन्दर्य संतुलन बनाने में जी-जान से लगे हुए हैं। प्रकृति में कहाँ से आते हैं इतने रंग? कौन भरता है जीवन में उल्लास। हम भारतीय तो उत्सव-प्रिय लोग हैं मगर वसंत उत्सव पर हमारा एकाधिकार नहीं है। सर्दी में सोई पड़ी प्रकृति के एक अंगड़ाई लेते ही संसार भर में वसंत की खुशबू बिखर जाती है और लोग निकल पड़ते हैं उत्सव मनाने।
अमेरिका की विशेषता है यहाँ की विविधता। भारतीय संस्कृति अपने उत्कर्ष पर थी तब जिस प्रकार कभी भारत में संसार भर से लोग आया करते थे उसी प्रकार आज अमेरिका विश्व का चुम्बक है। इस महान लोकतंत्र में आज आपको हर देश, जाति, संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले मिल जायेंगे। बेशक, इस विविधता ने अमेरिका को वह ऊँचाई प्रदान की है जिसे पाने के लिये संसार के अन्य राष्ट्र ललक रहे हैं। अनेकता में एकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अमेरिका की निरपेक्ष संस्कृति ने हर राष्ट्रीयता को अपनी विशेषतायें बनाये रखने और उनकी उन्नति करने का अवसर दिया है।
यहाँ आपको तिब्बती या अफ़ग़ान ढाबा भी आराम से मिल जायेगा और योग प्रशिक्षण केन्द्र भी। मन्दिर, मस्ज़िद तो हैं ही, विभिन्न भाषा-भाषियों और राष्ट्रीयता वाले अनेक चर्च भी मिल जायेंगे। अगर कोई भारतीय समूह अपने देवता या बाबा की प्रतिष्ठा में हर सप्ताह जगह किसी चर्च से किराये पर लेता हो तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मैंने खुद कई सरकारी स्कूलों में न जाने कितने रविवार को उपनिषदों पर प्रवचन सुने हैं। प्राचीन भारत और आधुनिक अमेरिका इस बात के सशक्त उदाहरण हैं कि सहिष्णुता और उदारता किसी राष्ट्र के उत्थान में कितनी आवश्यक है।
जब विविध राष्ट्रीयतायें और विभिन्न समुदाय हैं तो उनके अपने सांस्कृतिक उत्सव होना स्वाभाविक है। इस सप्ताहांत कुछ मित्रों ने बॉस्टन का जापानी वसंत महोत्सव देखने बुलाया। मेरे पास भी उस दिन कुछ खास काम नहीं था। नियत समय पर पहुँच गया नगर के एक प्राचीन चर्च के मैदान में। जाते ही नज़र पड़ी किमोनो स्टाल पर जहाँ बड़ी महिलाओं से लेकर नन्हीं बच्चियाँ तक सभी के ट्राय करने के लिये जापानी परिधान किमोनो उपलब्ध थे। ये दो स्त्रियाँ एक बच्ची को किमोनो पहना रही हैं जिससे हम आगे मिलेंगे।
इस स्टाल पर ये लोग अखबार और पुराने पत्र-पत्रिकाओं के कागज़ से विभिन्न वस्तुयें बनाकर आगंतुकों को दे रहे थे, साथ ही जापानी हिरागाना लिपि में उनके नामपट्ट और बुकमार्क भी बना रहे थे। कुछ बूथ पर कैलिग्राफ़ी और चित्रकला का प्रदर्शन भी था। बच्चे मगन होकर रंगों को मनचाहे रूप प्रदान कर रहे थे।
जापानी परिधान और नीली छतरी में पोज़ देती यह षोडषी निश्चित रूप से जापानी नहीं है। मगर विविधता का यही सौन्दर्य है। जहाँ आप न केवल विभिन्न संस्कृतियों को देखते हैं बल्कि उन्हें महसूस करते हैं और उनका भाग बनने में खुशी का अनुभव करते हैं। भिन्नता से भय नहीं बल्कि मानवता के एक होने का अहसास उपजता है। अफ़्रीकी मूल की युवती को जापानी परिधान में देखना मुझे अच्छा लगा। और भी बहुत से लोग थे जो जापानी वेशभूषा में थे। मौसम अच्छा था शायद इसलिये भीड़ बहुत थी। इतनी भीड़ कि किसी भारतीय मेले की याद आ जाये। किसी भी चित्र का बड़ा रूप देखने के लिये उस पर क्लिक कर सकते हैं।
चर्च के बाहर बने स्टेज पर गीत, संगीत और नृत्य के विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे थे। मज़े की बात ये थी कि यहाँ भी भाग लेने वालों में जापानी मूल के लोगों के साथ बहुत से लोग अन्य जातियों, राष्ट्रीयताओं वाले थे। समूह गान और ढोल के प्रदर्शनों में भी स्थानीय प्रशिक्षण केन्द्र और स्थानीय छात्रों की कई लाजवाब प्रस्तुतियाँ थीं। दर्शकों की संख्या इतनी अधिक होने की मुझे कतई उम्मीद नहीं थी। ग़नीमत यह थी कि अधिकांश लोग जापानी मूल के थे इसलिये उनकी अद्वितीय विनम्रता के दर्शन हर ओर हो रहे थे।
किस्म-किस्म के स्टाल हैं। जापानी कलाकृतियाँ और चित्रों की बहुतायत है। जापान की यात्रा और जापानी शिक्षा देने वालों की भी कोई कमी नहीं दिखती। बच्चों के लिये बहुत से खेल और मुखौटे भी। यह देखिये जापानी परिधान में एक भारतीय ढोल। यह किसी महिला मंडल का स्टाल था जिसमें अधिकांश जापानी महिलाओं के साथ यह भारतीय युवती मगन होकर ढोल बजाने में व्यस्त थीं। आगे कुछ और झलकियाँ।
जैसे भारत में धार्मिक-सांस्कृतिक समारोहों में देवी-देवता की रथयात्रा या झांकियाँ निकालने की रीति है वैसे ही जापान में भी पालकी पर किसी मन्दिर के अधिष्ठाता देव की यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा जापानी उत्सवों का एक अभिन्न अंग है। इस पालकी को मिकोशी कहते हैं। बॉस्टन का यह जापानी वसंतोत्सव भी मिकोशी के बिना कैसे सम्पन्न होता। सो यहाँ भी एक मिकोशी सजाई गयी और फिर शाम को उसकी यात्रा निकाली गयी।
जाने कहाँ से आ रही थी इतनी भीड़। कार्यक्रम शुरू होने के दो घंटे बाद भी लोग कम होने के बजाय बढते ही जा रहे थे। कुछ ही देर में भोजन समाप्त हो गया। जापान एयर लाइंस वाले तोक्यो तक के मुफ़्त टिकट के लिये रैफ़ल निकाल रहे थे, न जाने कितने लोग उसके लिये भी किस्मत आज़माने में लगे थे। स्टेज पर इस समय जापानी ड्रम ताइको वादन का प्रदर्शन शुरू होने वाला है जिसके लिये मैं विशेषतौर पर यहाँ आया था। आप मेला देखिये मैं तब तक ताइको पर यागीबुशी का आनन्द लेता हूँ।
विशालकाय ढोलों पर गज़ब का अधिकार प्रदर्शित करती हुई छोटी लड़कियाँ। मधुर स्वरलहरी के साथ-साथ हमारे डांडिया का अहसास कराती नृत्य गतियाँ भी। बीच-बीच में जापानी में कुछ उद्घोष सा भी जो सुनने में सॉरे जैसा लगता है। उस समय अपने जापानी मित्रों से पूछने का याद नहीं रहा। बाद में कभी पूछकर सही शब्द लिख दूंगा। लेकिन उस सबके बारे में फिर कभी। अभी तो आपके लिये एक चित्र और है ...
यह हैं इस समारोह के सबसे आकर्षक व्यक्ति का खिताब जीतने वाली प्यारी सी गुड़िया। जय हो!
अब देखिये एक झलकी जापानी ढोलवाद्य की। यह क्लिप यूट्यूब से ली है, जापान के नरिता में हुए एक प्रदर्शन से
* सम्बन्धित कड़ियाँ ** इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* झलकियाँ जापान की - श्रृंखला
सांस्कृतिक विविधता और परस्पर सहिष्णुता ही उन्नति का सबल आधार है, ऐसे उत्सव आत्मीयता को और उत्प्ररित करते हैं।
ReplyDeleteजापान और अमेरिका अपनी संस्कृतियों के प्रति सचेत होते हुए आर्थिक-क्षेत्र में भी अग्रणी हैं.किसी भी देश का विकास सबको साथ लेकर चलने और सम्मान देने में है.यहाँ हमने अपनी अवनति की है.पहले कभी हम भी शीर्ष पर थे !
ReplyDeleteसामाजिक संबधों को जीवंत बनाते ये उत्सव , मानवीय व्यवहार को बेहतरी की ओर ले जाते है..... सभी चित्र मनोहारी है....
ReplyDeleteसचमुच बसंत और पतझड़ थोड़ी देर ठहर कर फुर्सत से देखे-समझे जाने की चीज हैं, इससे जीवन के उतार-चढ़ाव को समझना आसान हो जाता है।
ReplyDeleteइतनी तस्वीरें और विडियो और इतना सुन्दर आलेख :)
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
रविकर जी, इस आलेख को चर्चा मंच पर रखने के लिए आभार!
Deleteउत्सव जीवन में उत्साह भरते हैं...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
आनन्दम... आनन्दम....
ReplyDeleteअमेरिका पुरानाभारत हो रहा है और भारत ? ....वैचारिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता से उन्नति और हर्ष के मार्ग खुलते हैं। अब हमें अमेरिका से वह सीखना होगा जो कभी लोग भारत से सीखते थे। अमेरिका का वसंत मेला ..वह भी जापानी स्टाइल में ....आनन्दम ही आनन्दम ....। लगता है यायावरी में माहिर हो गये हैं अनुज।
जापानी संस्कृति भी हमारी तरह प्राचीन है.... सुंदर आलेख.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीर हैं | वसंत सबका मन मोह लेता है और सामाजिक उत्सव हमारे संबधों को मजबूत करते हैं|
ReplyDeleteमनोहारी है सबकुछ.
ReplyDeleteअमेरिका में जापानी मेला और मेले में विश्व भर के लोग ! पारस्परिक सौहार्द का अच्छा उदाहरण .
ReplyDeleteये बैठ के, ठहर के तसल्ली से जुगाली करते हुए पढने की पोस्ट है।
ReplyDeleteसुख देते मनभावन चित्र और उनका वर्णन।
आभार आपका, जो इन्हें साझा किया।
मौसमी फूलों से सन्देश लेकर कि "ज़िंदगी फूलों की नहीं/फूलों की तरह मंहकी रहे",फूल से बच्चों के बाद एक अलग राष्ट्र में एक तीसरे राष्ट्र की सांस्कृतिक गतिविधियों को समेटना और हमारे साथ साझा करना, बस आप ही के बस की बात है!!
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और जानकारीपूर्ण!!
प्राचीन भारत और आधुनिक अमेरिका इस बात के सशक्त उदाहरण हैं कि सहिष्णुता और उदारता किसी राष्ट्र के उत्थान में कितनी आवश्यक है।
ReplyDeleteबहुत sahi कहा aapne....
bada ही achcha laga japani sanskriti के vishay में jankar...
aabhar आपका...
जापानी संस्कृति भी हमारी तरह प्राचीन उन्नति और हर्ष सहिष्णुता और उदारता को प्ररित करते हैं।
ReplyDeleteयह पोस्ट अलग हट कर और बहुत अच्छी लगी भाई जी !
ReplyDeleteइस प्रकार के उत्सवों की जानकारी आनंदमय है साथ में कलरफुल फोटो जान हैं इस उत्सव के !
आभार आपका !
र्ंगीली छटा मनमोहक है..
ReplyDeleteवसंत और पतझड़ के आलोक में संस्कृतियों की वैविध्यातापूर्ण जानकारी ...सिर्फ अपनी संस्कृति पर ही अभिमान ना करते रहन , बल्कि अन्य उन्नत संस्कृतियों के उज्जवल पक्ष को देखना , समझना भी एक कला है !
ReplyDeleteरोचक !
संस्कृतियों को लेकर उदार संस्कृति!!
ReplyDeleteयही सार्थक विकास का सूत्र है।
अमेरिका में जापान वसंत उत्सव की झलकियाँ बहुत आकर्षक हैं..बहुत आभार इस रोचक पोस्ट के लिये !
ReplyDeletecostum,tradition,and social realation must be always part of such festival.if it there in real way than we should proud of this part.
ReplyDeletenice post i like it, beautiful pictures. thanks sir.
अमेरिका में रह कर सुदूर देशों के उत्सव देखने को मिल जाते हैं - आनन्दमग्न होने के अपनेअपने ढंग !
ReplyDeleteप्रकृति अपने रँग भरे समारोह आयोजित करती है साल में दो बार. -कितना कुछ मिला है ,फिर भी तो इंसान को चैन नहीं पड़ता.
my comment?
ReplyDeleteतस्वीरें सभी जानदार हैं, आपके चैरी ब्लोस्सम को काला टीका लगा छोडिये, अपना दिल उस पर कम से कम तीसरी बार आया है:)
ReplyDeleteआपने तो हमें भी इस उत्सव में शरीक कर दिया। आपके परिश्रम को नमन और इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteढोल वादन ने आनन्द ही ला दिया।
जापान अमेरिका ही नहीं विश्व के कई देश अपने संस्कृत और रीति रिवाजों कों बचा के रखने के प्रयासों में रत हैं ... आपके द्वारा लाजवाब चित्रों और शब्दों के माध्यम से हम भी शामिल हो जाते हैं ऐसे समारोहों में ...
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