स्वातंत्र्य-वीर नेताजी व राष्ट्रपिता |
पूरी कहानी तो शायद आप सबको पता ही होगी। फिर भी आगे बढने से पहले पूरे किस्से पर फिर से एक सरसरी नज़र मार लेना ठीक ही है। लखनऊ में पांचवीं क्लास में पढने वाली बच्ची ऐश्वर्या पाराशर ने यह जानना चाहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता कब बने? पाँचवीं कक्षा की छात्रा है, शायद बच्ची ने सोचा हो कि राष्ट्रपिता कोई सरकारी उपाधि है। घर में, स्कूल में और अन्य सम्भावित स्थानों में भी जब उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो मामला सूचनाधिकार कानून तक पहुँचा। सरकार से एक आवेदन किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने पत्र को गृहमंत्रालय के पास भेजा। गृहमंत्रालय ने कहा कि इस पत्र का उत्तर देना उनका काम नहीं है। अंत में यह सवाल राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास पहुँचा और जवाब मिला कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दिये जाने के बारे में उनके पास कोई दस्तावेज़ या आधिकारिक जानकारी नहीं है।
नमक सत्याग्रह (6-4-1930) |
अपने समय के अनेक नवयुवकों की तरह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत गांधीजी की छत्रछाया में की थी। समय कुछ ऐसा चला कि दोनों के उद्देश्य समान होते हुए भी उनके मार्ग जुदा हो गये। फिर भी नेताजी के हृदय में गांधीजी के लिये सम्मान अंतपर्यंत बना रहा। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गांधीजी को नज़रबन्द करके पुणे के आग़ाखाँ महल में रखा गया था। उसी नज़रबन्दी के दौरान 22 फ़रवरी 1944 को कस्तूरबा गांधी का देहावसान हो गया। यह समाचार मिलने के कुछ समय बाद 4 जून 1944 को रंगून से आज़ाद हिन्द रेडियो के प्रसारण में नेताजी ने भारत छोड़ो का सन्दर्भ देते हुए भारत में किये जा रहे (अहिंसक) आन्दोलन के आज़ादी दिलाने में कारगर होने के बारे में आशंका व्यक्त करते हुए गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर उनके आशीर्वाद से आज़ाद हिंद फ़ौज़ का कार्यक्रम जारी रखने की बात की।
"Father of our Nation in this holy war for India's liberation, we ask for your blessings and good wishes." ~ नेताजी सुभाष चन्द्र बोसउल्लेखनीय है कि इस प्रसारण से लगभग दो वर्ष पहले गांधीजी ने नेताजी को देशभक्तों के राजकुमार ("Prince among the Patriots) नाम से सम्बोधित किया था। एक बच्ची के मासूम प्रश्न ने राष्ट्र के दो महानायकों की याद और उनके बीच के भावनात्मक सम्बन्धों की याद ताज़ा करा दी, उसके लिये ऐश्वर्या का आभार!
संयोग से आज डांडी मार्च की वर्षगांठ भी है। जी हाँ, 6 अप्रैल 1930 को प्रातः 6:30 पर गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा था और तभी पहली बार भारत में एक बड़ा जन समुदाय स्वाधीनता संग्राम के पक्ष में खुलकर सामने आया था।
अमर हो स्वतंत्रता!
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
बहुत अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteto much abhar for this post.....
ReplyDeletepranam.
पांचवीं क्लास में पढने वाली बच्ची ऐश्वर्या पाराशर ने यह जानना चाहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता कब बने? प्रश्न जायज है, और भी कई जवलंत प्रश्न है जिनका जवाब आज नहीं तो कल कोई और ऐश्वर्या जानना चाहेगी ......
ReplyDeleteउपरोक्त बेहतरीन प्रस्तुति हेतु आपका आभार...............
दोनों का है अपना मान ,
ReplyDeleteदोनों भारत की संतान !
aabhaar
ReplyDeleteएक बेहतरीन लेख के लिए आभार आपका !
ReplyDeleteवे अमर रहेंगे !
बढ़िया लेख.....
ReplyDeleteलोगों को फुर्सत कहाँ है देश के विषय में जानने की.. ना ही कोई दिलचस्पी है .......
जयंती/पुण्यतिथियों पर माल्यार्पण करके याद करने की रस्म निभा देते हैं यही बहुत है.
सार्थक लेख
आभार.
अति-उत्तम ।
ReplyDeleteआभार सर ।।
साधु साधु साधु साधु ...
ReplyDeleteआपने बेहद खूबसूरत तरीके से इतिहास के इस पहलू से पर्दा उठाया है ... बहुत बहुत आभार आपका !
अमर हो स्वतंत्रता!
जय हिन्द !
पढ़ा था यह समाचार और प्रथमदृष्ट्या अपने को यही लगा था कि इस आर.टी.आई. का उद्देश्य सरकारी कार्यशैली को उजागर करना ही रहा होगा और यह बखूबी हुआ भी।
ReplyDeleteगांधीजी एक ऐसा माईलस्टोन थे, उसमें कोई शक नहीं। गरम दल के अधिकतर सदस्यों ने जब अपनी सक्रियता शुरू की होगी तो गांधी रूपी महावृक्ष के साये में ही उनकी शुरुआत हुई होगी जोकि एक स्वाभाविक बात भी है अगर ये भी ध्यान दिया जाये कि उनका जन्म सन 1869 में हो चुका था।
गांधीजी के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता, मुझे लगता है लोगों को ज्यादा दिक्कत इस बात से है कि गांधी और नेहरू का बहुत ज्यादा बखान दूसरे बहुत से डिज़र्विंग क्रांतिकारियों के योगदान\बलिदान को अंडरमाईन कर देता है। ये सब एक तरह की कंडीशनिंग या ब्रेन वाशिंग नहीं लगती? वो भी सरकार द्वारा प्रायोजित।
शिवम मिश्रा की पिछली पोस्ट पर एक पंक्ति इसी बारे में थी कि ’नेताजी’ कहलाने का अधिकार तो हर ऐरे गैरे को और ’महात्मा’ सिर्फ़ एक। बहुत सामान्य सी बात दिखती है लेकिन प्रभाव बहुत गहरा है।
एक पूरे साम्राज्य के सामने खड़ा होकर गांधीजी ने बहुत बड़ा काम किया है लेकिन उसी साम्राज्य के विरुद्ध जाकर भरी जवानी में प्राण दे देने वालों का योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।
कोई ऐश्वर्या पाराशर तक ये पोस्ट हमारे आभार सहित पहुँचा सकता है? बहुत से सवालों के जवाब आपके माध्यम से मिले हैं, एक जवाब ’राष्ट्रपिता’ वाला और जुड़ गया। आपका फ़िर से आभार,
प्रासंगिक और बढिया जानकारी।
ReplyDeleteऐश्वर्या का मासूम सवाल अपनी जगह वाजिब है और इस पर सरकार का ढुलमुल जवाब भी सरकारी तौर तरीका ही है।
नेताजी ने ही सबसे पहले गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा था, इस तथ्य के बाद भी कहना चाहूंगा कि गांधी जी के विरोध के बाद भी नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे और इसके बाद उन्होंने ईस्तीफा दे दिया था(यह भी एक तथ्य है) यानि ये कहा जा सकता है कि दोनों में वैचारिक मतभेद था।
किसी की लाईन छोटी करने के बजाय अपनी लाईन बडी करने का काम होना चाहिए...... मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि मेरे राष्ट्रपिता सुभाष जी।
वो दौर विराट शख्सियतों का था,जहाँ तमाम मतभेदों
ReplyDeleteके बावजूद परस्पर अपार सम्मान भाव दिखाई देता
है।भारत देश की महान संभावनाओं से बेखबर 'चर्चिल' ने
आजादी के बाद सत्ता बदमाशों और लुटेरों के पास चले जाने
की भविष्यवाणी की थी,जो गलत साबित हुई।अमर हो स्वतंत्रता।
ऐश्वर्या के प्रश्न के उत्त्तर के न मिलने को सरकार से जोडना मुझे उचित नहीं लगता।
ReplyDeleteगॉंधीजी को 'राष्ट्रपिता' की पदवी सरकारी स्तर पर नहीं दी गई थी। इसलिए, सरकारी स्तर पर इसका उत्तर पाने की अपेक्षा ही अपने आप में बेमानी है। सरकार के पास तो अपने किए के ही ब्यौरे नहीं हैं। नेताजी की इस आदराजंलि के ब्यौरे वह भला क्योंकर रखेगी? (वह भी ऐसे समय में जबकि गॉंधी उसके लिए 'आफत' और ऐसा 'फिजूल का वजन' बन गए हैं जिससे मुक्ति पाने के लिए वह छटपटा रही है।)
हॉं, यह निस्सन्देह हमारी 'लोक विफलता' है कि हमें अपने नायकों के बारे में जानकारी नहीं है और इससे अधिक चिन्ता और शर्म की बात यह कि ऐसी जानकारी पाने की कोई उत्सुकता भी नहीं और आवश्यकता भी अनुभव नहीं हो रही।
लगभग दो वर्ष पूर्व एक आर.टी.आई प्रश्न के उत्तर में भारत सरकार ने कहा था कि उसके पास नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के स्वतन्त्रता आंदोलन में योगदान की कोई जानकारी नहीं है।
Deleteराजेन्द्र गुप्ता जी, किसी कारणवश आपका ब्लॉग "DNA of Words शब्दों का डीएनए" पढ नहीं पा रहा हूँ। जब भी वहाँ किल करता हूँ तो वह एक और ब्लॉग पर रिडायरेक्ट हो जाता है। क्या आपको इसका कारण पता है?
Deleteऐसा लगता है कि भारत सरकार द्वारा दिये उत्तरों पर तो एक व्यंग्य-संकलन लिखा जा सकता है।
jankari ke liye dhanywad
ReplyDeleteनाम उपनाम सम्मान उपाधि पद कुछ भी रहे, इससे महानायकों का योगदान कम नहीं हो जाता।
ReplyDeleteऐश्वर्या के बहाने इस प्रश्न का संतोषप्रद जवाब आपने आम जनता के साथ हमारे प्रशासन को भी दिया!
ReplyDeleteआभार !
एश्वर्या के बहाने कुछ तो अपने अतीत के तथ्य खुले.आभार.
ReplyDeleteबात यह है कि आसानी से मिली चीज का मोल कोई नहीं समझता और आजादी बहुत आसानी से मिल गयी. सत्य यही है. जिनके लिए आजादी का मोल पता था वे फांसी पर झूल गए और मौज उड़ा गए बाकी लोग. जिसका नतीजा हमारे सामने है. कोई सोच नहीं, कोई चरित्र नहीं, कोई विजन नहीं.
ReplyDeleteकभी कभी बड़ी बड़ी बातों को छोटा समझकर हम इग्नोर कर जाते हैं । यह उसी का उदाहरण है ।
ReplyDeleteभारतीय परिवेश में एक आदमी ,अध्यात्म की आड़ में जब भगवान बन सकता है ,तो गाँधी जी ,राष्ट्र -पिता क्यों नहीं ? जिस देश में आज भी अशिक्षा ,गरीबी भुखमरी ,भ्रष्टाचार, धार्मिक उन्माद ,का प्रतिशत सरकारी आंकड़ों में शर्मनाक है तो वास्तविकता का अंदाजा लगाया जा सकता है /यह देश कितना आजाद है ? और किसी एक नें अकेले करा लिया ? क्या गाँधी के पूर्व आजादी का भाव तिरोहित हो गया था ? क्या जन-मानस में स्वतंत्रता के ध्वजवाहक नहीं थे ? कदापि नहीं / जिस भूमि के बलिदानियों ने मुगलों के जोर जुल्मों को नहीं सहा, मिटा दिया अपना वजूद , सर कटा दिया , पर वतन का वजूद कायम रहा ,किसी गाँधी का मुहताज कैसे हो सकता है ? गाँधी जी का सम्मान प्रमुख नायकों तक तो समझ आता है ,देश के उन सपूतों ,का जो गुमनाम ही रहे ,किसी उपाधि ,पद के लिए नहीं जिए ,जिनका सम्पूर्ण आजादी का सपना था ,किसी तरह कमतर नहीं हो सकते , फिर यह आत्म- मुग्धता क्यों ? हाँ यह स्वीकार किया जा सकता है की ,उन स्वाभिमानियों ,सरफरोशों के पास ग्लैमर ,प्रचार,सौदेबाजी नहीं थी .../ वीरता थी समानता थी शक्ति व आत्मबल था / कोई क्रांति इसके बिना संपन्न नहीं हुयी ,तारीखें गवाह हैं / आज की परिस्थिति बयां करती है हम कितने आजाद हैं/ क्या फिर कोई राष्ट्र -पिता होगा ? .......ज्वलंत लेख का आदर ,सम्मान /
ReplyDeletebeatiful post with nice new knowledge.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी।आभार।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी .उठे हुये प्रश्नों पर विचार होना चाहिये !
ReplyDeleteएश्वर्या के बहाने शासन की कार्यप्रणाली उजागर हुई यह बात सही है... उससे भी अधिक महतवपूर्ण है की लोग अपने महापुरुषों के बारे में ठीक जानकारी नहीं रखते, उन्हें यह भी नहीं पता की जानकारी कहाँ मिल सकती है... वरना एश्वर्या को आरटीआई नहीं लगनी पड़ती... बच्चों को ठीक जानकारी मिले इसकी पहली जिम्मेदारी परिवार की है....
ReplyDeleteकिस थाने के अंतर्गत आती है लोकतंत्र की लाश ?दो पुलिस चौकियों में जिरह ज़ारी है यह मामला हमारे इलाके का नहीं है .फिर भी ढौ रहें हैं हम यह ज़िंदा लाश गत ६४ सालों से
ReplyDeleteआपका आभार जो आप इतना श्रम कर ऐसी बातें साझा करते हैं।
ReplyDeletehere comes the reality
ReplyDeleteनेताजी निष्कलंक और पवित्र,
गांधीजी लांछनों से परिपूर्ण और विचित्र।
नेताजी निर्मल हृदय और उदार,
गांधीजी ईर्ष्यालु और अनुदार।
नेताजी निर्भय और निर्भीक,
गांधीजी कायरता प्रतीक।
नेताजी ने गांधीजी को कभी अस्वीकार नहीं किया,
गांधीजी ने किसी क्रांतिकारी को कभी स्वीकार नहीं किया।
नेताजी का अर्थ है देशभक्ति और क्रांति,
गांधीजी का अर्थ है कनफ्यूजन और भ्रांति।
नेताजी सभी स्तरों पर स्पष्ट हैं,
गांधीजी स्वयं संशयग्रस्त हैं।
नेताजी का जीवन निरंतर संघर्ष,
गांधीजी के लिए पलायन ही आदर्श।
नेताजी टूट गए पर झुके नहीं,
गांधीजी किसी चुनौती के सामने कभी टिके नहीं।
नेताजी की वीरता से भारत छोड़ गए अंग्रेज़,
गांधीजी की कायरता से देश को तोड़ गए अंग्रेज़।
नेताजी की देन है गौरव और स्वाभिमान,
गांधीजी की देन है नेहरू और पाकिस्तान।
2 अक्तूबार धोखा है छलना है,
23 जनवरी की भी कहीं कोई तुलना है? ??
नेताजी की भावना उत्तरोत्तर प्रचंड हो,
नेताजी की भारत माता फिर से अखंड हो।
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आचार्य श्री धर्मेन्द्र जी महाराज द्वारा रचित
इन संदर्भों में प्रश्न निश्चय ही विचारणीय हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी एवं विचारणीय आलेख ..... आभार
ReplyDeleteमुझे लगता है कि यह सवाल ही सरासर गलत है.. “गांधी जी राष्ट्रपिता कब बने!” यह तो वही बात हो गयी कि अपने पिता को पापा जी क्यों कहते हैं माँ का पति क्यों नहीं. राष्ट्रपिता कोई उपाधि या डिग्री नहीं जो कब मिली. मुझे ये भी कोई स्टंट लगता है कि एक पाँच साल की बच्ची ने गांधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं की बजाये यह पूछा कि कब बने.
ReplyDeleteबाकी तो इमोशनल हंगामा बनाने के लिए मसाला काफी है यह हमारे देश में. बाकी की कसर हमारे ब्यूरोक्रेट्स ने पूरी कर दी.. कौवा कान लेकर भगा जा रहा है, इसकी पुष्टि के लिए आप क्या करेंगे.. मैं न तो कान टटोलूंगा, न कौवे के पीछे भागूंगा. मैं कहूँगा बकवास है! कौवा कान लेकर भाग ही नहीं सकता. और ये आर्काइव्स वाले भी लगे अभिलेखागार खंगालने.
राष्ट्रपिता एक सम्मान देने का प्रतीक है और इसी नज़रिए से देखना चाहिए. यहाँ तो नेहरु, सुभाष और गांधी का बखेडा शुरू हो गया.. मेरे लिए सब सम्मानित हैं! और आपका आलेख भी इसे संतुलित ढंग से बता रहा है..
इस विषय पर मुझे भी आर.टी.आई. दाखिल करनी है, कहाँ करूँ, पता नहीं चल रहा.. मदद करें भाई लोग, प्लीज़!! ये एडम स्मिथ को आधुनिक अर्थशास्त्र का और टेलर को प्रबंधन का जनक किसने, कब और कहाँ बनाया??? कौटिल्य का अर्थशास्त्र होते हुए उसे क्यों नहीं??? यह वेदेशियों की साज़िश है!!
अनुराग जी, बहुत संतुलित और तर्कयुक्त आलेख है आपका.. बिना किसी पूराग्रह के!! आभार!!
ये भावनात्मक सम्बन्ध उस समय के अधिकतर सेनानियों के बीच में रहे होंगे ... क्योंकि सबका मकसद एक ही था ... आज भी सत्ता प्राप्त करना मकसद है इसलिए उन संबंधों को नकारा जाता है और सुनियोजित तरीके से हटाया जा रहा है ...
ReplyDeleteबेहतरीन लेख के लिए आभार |
ReplyDeletebahut achcha lekh, vicharniy aur gyanvardhak-----aabhar
ReplyDeleteaaj netaji ka janmdin hai - unhe saadar naman
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