Saturday, April 21, 2012

ओहायो में सरस्वती दर्शन - इस्पात नगरी से [56]

सिनसिनाटी डाउनटाउन की एक इमारत पर भित्तिकला का नमूना
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या भले ही कम हो, भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। होली, दीवाली, रामनवमी हो, चाहे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या गान्धी जयंती, भारत से सम्बन्धित समारोह लगभग हर नगर में होते हैं। उत्सव भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। इन समारोहों में अन्य कार्यक्रमों के साथ साहित्य, संगीत, नृत्य आदि के कार्यक्रम भी चलते हैं। ऐसा नहीं कि यह सब बुज़ुर्गों द्वारा ही संचालित होता हो, नई पीढी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहने में गर्व का अनुभव करती है। इस सांस्कृतिक गंगा से छलकती बून्दें अक्सर हमें भी भिगोती रहती हैं। इस रामनवमी पर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम के सिलसिले में ओहायो राज्य के सिनसिनाटी नगर में जाना हुआ। चार-पाँच सौ मील की दूरी को सड़क मार्ग से तय करना अमेरिका में सामान्य सी बात है। सिनसिनाटी मैं पहले भी जा चुका हूँ इसलिये कोई खास बात नहीं थी, मगर फिर भी एक खास बात तो थी। प्रसिद्ध कवयित्री और ब्लॉगर लावण्या जी से परिचय के बाद यह पहली सिनसिनाटी यात्रा थी।

अपनी लावण्या दीदी के घर अनुराग शर्मा
लावण्या जी की ममतामयी आवाज़ फ़ोन पर तो सुनता ही रहा हूँ। उनके साक्षात्कार का मौका छोड़ना नहीं चाहता था। उनकी कवितायें हों या प्रसिद्ध टीवी सीरियल महाभारत के लिये लिखे हुए दोहे, सभी अप्रतिम हैं। लेकिन एक कवयित्री से कहीं आगे वे एक उदार हृदय और महान व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं। सुबह जल्दी उठकर घर से निकल पड़े और कुछ घंटों की ड्राइविंग के बाद महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी पण्डित नरेन्द्र शर्मा की इस बिटिया के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

लावण्या जी एक कलाकार की कूची से

लावण्या जी को बिल्कुल वैसा ही पाया जैसा उनके बारे में सोचा था। उनके पति, बेटी, दामाद और सबका प्यारा नन्हा नोआ, इन सबके बारे में सुनते रहे थे, फ़ेसबुक पर उनसे मुलाकात भी होती रहती थी पर आमने-सामने मिलने की बात ही और है। बहुत खुशी हुई। बच्चे और दामादजी मिलकर मोनोपली खेलते रहे और बड़े लोगों की बातों का सिलसिला बैठक से शुरू होकर लावण्या जी के बनाये शुद्ध शाकाहारी भारतीय भोजन के साथ भी जारी रहा। सभी बहुत अच्छा था। उत्तर प्रदेश के अन्दाज़ में बनी दाल की खुशबू से ही माँ और मामियों की रसोई की याद आ गई।

सिनसिनाटी की यह घोड़ागाड़ी मानो किसी परीकथा से निकली है
पहली भेंट थी मगर ऐसा लग रहा था मानो हम लोगों की पहचान बहुत पुरानी हो। न जाने कितनी बातें थीं मगर समय तो सीमित ही था। शाम के कार्यक्रम में भाग लेने से पहले हमें होटल में चैक इन भी करना था। बातों-बातों में पता लगा कि कार्यक्रम के आयोजक लावण्या जी के परिचित हैं और वे स्वयं भी सपरिवार इस समारोह में आ रही हैं इसलिये उस समय उनसे विदा लेना बहुत भारी नहीं लगा। शाम को अत्यधिक भीड़ और अलग-अलग सीटिंग व्यवस्था बिना मिले ही ऑडिटोरियम से बाहर निकलने का सबब बनी। मगर लावण्या जी का आमंत्रण भी था और हम सब का मन भी, सो अगले दिन घर-वापसी के समय हम फिर उनके घर होते हुए आये। चाय नाश्ते के साथ उनकी रचनायें, माता-पिता से सम्बन्धित स्मृतियाँ, चित्र, कला आदि के दर्शन किये। पंडित जी की हस्तलिपि भी देखने को मिली। सभी परिजनों से विदा लेकर आते समय बड़े भाई, बहनों के घर से वापस आते समय की तरह ही वापसी में हमारे पास बहुत से उपहार थे। लेकिन सबसे बड़ा उपहार था एक बड़ी बहन का स्नेहसिक्त आशीर्वाद!
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* पण्डित नरेन्द्र शर्मा - कविता कोश
* रथवान का पाठ - लावण्या जी द्वारा
* लावण्या शाह - वेबसाइट

46 comments:

  1. आपको बधाईयाँ - बड़ी बहन का आशीर्वाद मिलने का सौभाग्य है आपका :)
    आभार इसे साझा करने के लिए, और उनके चित्र भी :)

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    1. शुक्रिया शिल्पा जी!

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  2. यह सब पढकर अच्‍छा लगा। आपकी प्रस्‍तुति इतनी जीवन्‍त है कि लगा मैं आप दोनों को बातें करता देख रहा हूँ।

    किन्‍तु वर्णन से (कम से कम मेरा तो) पेट नहीं भरा।

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    1. जी, वह इंटेंशनल है। :)

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  3. घर से दूर घर का सा प्यार मिले तो अच्छा लगना स्वाभाविक ही है। अभी विकीपीडिया पर देखा, खुर्जा से संबंध रखते थे पंडित नरेन्द्र शर्मा जी, वाह।

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  4. दूर-देश में कोई अपना और बुजुर्ग मिल जाए तो उस आनंद की सीमा ही नहीं है,लावण्याजी तो फिर भी अपने आप में एक अनोखी पहचान लिए हैं !

    आप सौभाग्यशाली हैं जो उनके दर्शन कर पाए !

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  5. घर से दूर घर सा ही लगता है जब अपने मि‍लते हैं. अच्‍छा लगा पढ़कर.

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  6. घर से दूर घर सा ही लगता है जब अपने मि‍लते हैं. अच्‍छा लगा पढ़कर.

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  7. ओहायो में लावण्या जी जैसी शख्सियत से मुलाकात होना शौभाग्य ही तो है.......
    उपरोक्त पोस्ट हेतु आभार...........

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  8. सौ. सूर्या , अनुज अनुराग भाई व चि. अपराजिता बिटिया

    माँ सरस्वती के हम सब पर आशीर्वाद बने रहें ये मैं भी प्रार्थना करती हूँ
    मेरे पापाजी पंडित नरेद्र शर्मा अवश्य माता सरस्वती के वरद पुत्र हैं .
    हम सब, आप व मैं , माता की कृपा के आकांक्षी ही हैं ! :)
    आप सब को मिलकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई है और
    भविष्य में, हम लोग मिलते रहेंगें ये भी विश्वास है .
    आपने बहुत स्नेहपूर्ण वर्णन किया है उस के लिए भी
    स्नेह सिक्त आशिष भेज रही हूँ ..सदा खुश रहीये
    मंगल कामनाओं सहित ,
    - लावण्या

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  9. माँ सरस्वती के हम सब पर आशीर्वाद बने रहें ये मैं भी प्रार्थना करती हूँ
    मेरे पापाजी पंडित नरेद्र शर्मा अवश्य माता सरस्वती के वरद पुत्र हैं .
    See the Link :
    http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE
    हम सब, आप व मैं , माता की कृपा के आकांक्षी ही हैं ! :)
    सौ. सूर्या , अनुज अनुराग भाई व चि. अपराजिता बिटिया
    आप सब को मिलकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई है और
    भविष्य में हम लोग मिलते रहेंगें ये भी विश्वास है .
    आपने बहुत स्नेहपूर्ण वर्णन किया है उस के लिए भी
    स्नेह सिक्त आशिष भेज रही हूँ ..सदा खुश रहीये
    मंगल कामनाओं सहित ,
    - लावण्या

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    1. आभार लावण्या जी। यह लिंक मैने पोस्ट के अंत में भी लगा दिया है।

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  10. यह वृतांत अच्छा लगा।

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  11. dikh raha hai kitni achhi mulakaat rahi hogi :)

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  12. dikh raha hai kitni achhi mulakaat rahi hogi :)

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  13. सच में वे ममतामयी लग रही हैं.... अच्छा लगा इस स्नेहभरी मुलाकात से बारे में जानकर

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  14. लावण्या जी से मिल सचमुच आपने वाग्देवी से ही मुलाक़ात कर ली !

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  15. mai bhi Abhi ke saath hi dekh rahi hu ,balki mahasus rahi hu...

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  16. वर्णन पढ़ कर लगा जैसे साक्षात् कर लिया हो !

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  17. Replies
    1. प्रतिभा जी की टिप्पणी से पहले देखिये, वहीं है जहाँ छोड़ा था। :)

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    2. oh! sorry...lagta hai chashma badlana padega ..:-) :-)

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  18. अच्छा लगता है अपनी कोई सुखद अनुभूति सांझा करना....
    आपको पढ़ना और लावण्या जी से मिलना भला लगा.......

    सादर.

    अनु

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  19. एक अपेक्षित मुलाकात , अनापेक्षित रूप से हो जाए तो आनंद दुगना हो जाता है ।
    लावण्या जी से मिलना सुखद रहा ।

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  20. पंडित जी की वन्दना, दीदी को परनाम ।
    मन को रोमांचित करें, ये दृष्टांत तमाम ।

    ये दृष्टांत तमाम, राग-अनुराग भरे हैं ।
    सिनसिनाटी आसन्न, लगे प्रत्यक्ष धरे है ।

    बढे सनातन धर्म, विश्व में महिमा-मंडित ।
    पर्वों का सन्देश, सुनाएँ ज्ञानी पंडित ।।

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  21. वाकई, बहुत बड़े सौभाग्य की बात है लावण्या जी से मिलना. आपके साथ हम लोगों की भी मुलाकात हो गई इस लेख के द्वारा...

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  22. आपकी मुलाकात पढ़कर ऐसा लगा हम भी साथ थे। यादगार क्षण।

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  23. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री से अनुराग शर्मा जी के मार्फ़त मिलना बड़ा सुखद लगा.. ऐसी ममतामयी व्यक्तित्व से मिलकर वास्तव में ह्रदय श्रद्धा से भर जाता है!!
    घोडागाडी देखकर सिंड्रेला की याद आ गयी!! बहुत सुन्दर अनुराग जी!

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  24. वावण्या जी के ब्लॉग की हर पोस्ट किसी अनूठे विषय की विस्तृत पड़ताल करती हुई होती है। उनकी तश्वीर लगाने और उनके बारे में इतनी जानकारी देने के लिए आभार।

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  25. आप तो साक्षात सरस्वती के दर्शन कर आए और मधुर लम्हों कों समेट आए ...
    आपका पूरा वृतांत पढ़ के बहुत अच्छा लगा ...

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  26. घर से दूर घर का सा प्यार शायद भारतीय ही दे सकता है .....यही है हमारी संस्कृति ..अच्छा लगा पढ़कर ,शुक्रिया जी

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  27. लावण्या जी से साक्षात होने के संस्मरण को आपकी कलम ने मधुरम बना दिया है। आपको मिले इस अवसर से ईर्ष्या का वेग महसुस हुआ!!

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  28. बहुत सुंदर यात्रा वर्णन, लावण्या जी से परिचय हुआ, आभार !

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  29. सिनसिनाटी में उत्तर प्रदेश के दाल की महक, आनन्द आ गया होगा। आत्मीयता भरी यात्रा बड़ी अच्छी लगी।

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  30. बड़े सस्ते में निपटा दिये अनुराग जी! कुछ और भी लिखन था ना...

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  31. सार्थक यात्रा विवरण पसंद आया सर जी............लावण्य जी के बारे में जानकर खुशी हुई।

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  32. ब्लॉगिंग का सोपान है ये घटना । ब्लॉग ना होता तो कैसे हम जानते आपसे इतनी प्यारी बातें । कभी कोई चैनल ना बताता ये आपकी-हमारी बातें । क्या कहा जाए मैं तो पंडित जी को नमन करता हूँ और उनका परिवार खुश रहे ये कामना करता हूँ ।

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  33. ज्योति कलश छलके ने पं. नरेन्द्र शर्मा जी को अमर कर दिया। साहित्य की वह परम्परा आगे के गीतकार भले कायम न रख सके,पर पंडितजी की पीढ़ी आज भी साहित्य-सेवा में लगी है,जानकर अच्छा लगा।

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  34. इस रोचक, मनोरंजक और स्‍नेहमय मुलाकात के लिए आपका शुक्रिया।

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  35. सहज, सरल व्यक्तित्व से मिलकर अपनापन सा ही लगता है... लगता है जैसे हम बरसों से उन्हें जानते हैं....

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  36. एक विदुषी वात्सल्य की प्रतिमूर्ति से परिचय!! आभार

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  37. speechless .very very nice post with APANE .

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  38. स्नेहमयी लावण्या जी से मुलाकात यादगार तो होनी ही थी...इस मिलन के चित्र तो फेसबुक पर बहुत पहले ही देख चुकी थी...आज इस आत्मीय मुलाकात का विवरण भी पढ़ने को मिला..,,अच्छा लगा,पढ़ कर

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  39. सुन्दर प्रस्तुति.
    आपकी और लावण्या जी की मुलाक़ात पढकर अच्छा लगा.

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  40. बहुत अच्छा लगा ऐसी स्नेहमयी यात्रा का विवरण पढना!

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