सिनसिनाटी डाउनटाउन की एक इमारत पर भित्तिकला का नमूना |
अपनी लावण्या दीदी के घर अनुराग शर्मा |
लावण्या जी एक कलाकार की कूची से |
लावण्या जी को बिल्कुल वैसा ही पाया जैसा उनके बारे में सोचा था। उनके पति, बेटी, दामाद और सबका प्यारा नन्हा नोआ, इन सबके बारे में सुनते रहे थे, फ़ेसबुक पर उनसे मुलाकात भी होती रहती थी पर आमने-सामने मिलने की बात ही और है। बहुत खुशी हुई। बच्चे और दामादजी मिलकर मोनोपली खेलते रहे और बड़े लोगों की बातों का सिलसिला बैठक से शुरू होकर लावण्या जी के बनाये शुद्ध शाकाहारी भारतीय भोजन के साथ भी जारी रहा। सभी बहुत अच्छा था। उत्तर प्रदेश के अन्दाज़ में बनी दाल की खुशबू से ही माँ और मामियों की रसोई की याद आ गई।
सिनसिनाटी की यह घोड़ागाड़ी मानो किसी परीकथा से निकली है |
पहली भेंट थी मगर ऐसा लग रहा था मानो हम लोगों की पहचान बहुत पुरानी हो। न जाने कितनी बातें थीं मगर समय तो सीमित ही था। शाम के कार्यक्रम में भाग लेने से पहले हमें होटल में चैक इन भी करना था। बातों-बातों में पता लगा कि कार्यक्रम के आयोजक लावण्या जी के परिचित हैं और वे स्वयं भी सपरिवार इस समारोह में आ रही हैं इसलिये उस समय उनसे विदा लेना बहुत भारी नहीं लगा। शाम को अत्यधिक भीड़ और अलग-अलग सीटिंग व्यवस्था बिना मिले ही ऑडिटोरियम से बाहर निकलने का सबब बनी। मगर लावण्या जी का आमंत्रण भी था और हम सब का मन भी, सो अगले दिन घर-वापसी के समय हम फिर उनके घर होते हुए आये। चाय नाश्ते के साथ उनकी रचनायें, माता-पिता से सम्बन्धित स्मृतियाँ, चित्र, कला आदि के दर्शन किये। पंडित जी की हस्तलिपि भी देखने को मिली। सभी परिजनों से विदा लेकर आते समय बड़े भाई, बहनों के घर से वापस आते समय की तरह ही वापसी में हमारे पास बहुत से उपहार थे। लेकिन सबसे बड़ा उपहार था एक बड़ी बहन का स्नेहसिक्त आशीर्वाद!
* सम्बन्धित कड़ियाँ ** इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* पण्डित नरेन्द्र शर्मा - कविता कोश
* रथवान का पाठ - लावण्या जी द्वारा
* लावण्या शाह - वेबसाइट
आपको बधाईयाँ - बड़ी बहन का आशीर्वाद मिलने का सौभाग्य है आपका :)
ReplyDeleteआभार इसे साझा करने के लिए, और उनके चित्र भी :)
शुक्रिया शिल्पा जी!
Deleteयह सब पढकर अच्छा लगा। आपकी प्रस्तुति इतनी जीवन्त है कि लगा मैं आप दोनों को बातें करता देख रहा हूँ।
ReplyDeleteकिन्तु वर्णन से (कम से कम मेरा तो) पेट नहीं भरा।
जी, वह इंटेंशनल है। :)
Deleteघर से दूर घर का सा प्यार मिले तो अच्छा लगना स्वाभाविक ही है। अभी विकीपीडिया पर देखा, खुर्जा से संबंध रखते थे पंडित नरेन्द्र शर्मा जी, वाह।
ReplyDeleteदूर-देश में कोई अपना और बुजुर्ग मिल जाए तो उस आनंद की सीमा ही नहीं है,लावण्याजी तो फिर भी अपने आप में एक अनोखी पहचान लिए हैं !
ReplyDeleteआप सौभाग्यशाली हैं जो उनके दर्शन कर पाए !
घर से दूर घर सा ही लगता है जब अपने मिलते हैं. अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteघर से दूर घर सा ही लगता है जब अपने मिलते हैं. अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteओहायो में लावण्या जी जैसी शख्सियत से मुलाकात होना शौभाग्य ही तो है.......
ReplyDeleteउपरोक्त पोस्ट हेतु आभार...........
सौ. सूर्या , अनुज अनुराग भाई व चि. अपराजिता बिटिया
ReplyDeleteॐ
माँ सरस्वती के हम सब पर आशीर्वाद बने रहें ये मैं भी प्रार्थना करती हूँ
मेरे पापाजी पंडित नरेद्र शर्मा अवश्य माता सरस्वती के वरद पुत्र हैं .
हम सब, आप व मैं , माता की कृपा के आकांक्षी ही हैं ! :)
आप सब को मिलकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई है और
भविष्य में, हम लोग मिलते रहेंगें ये भी विश्वास है .
आपने बहुत स्नेहपूर्ण वर्णन किया है उस के लिए भी
स्नेह सिक्त आशिष भेज रही हूँ ..सदा खुश रहीये
मंगल कामनाओं सहित ,
- लावण्या
ॐ
ReplyDeleteमाँ सरस्वती के हम सब पर आशीर्वाद बने रहें ये मैं भी प्रार्थना करती हूँ
मेरे पापाजी पंडित नरेद्र शर्मा अवश्य माता सरस्वती के वरद पुत्र हैं .
See the Link :
http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE
हम सब, आप व मैं , माता की कृपा के आकांक्षी ही हैं ! :)
सौ. सूर्या , अनुज अनुराग भाई व चि. अपराजिता बिटिया
आप सब को मिलकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई है और
भविष्य में हम लोग मिलते रहेंगें ये भी विश्वास है .
आपने बहुत स्नेहपूर्ण वर्णन किया है उस के लिए भी
स्नेह सिक्त आशिष भेज रही हूँ ..सदा खुश रहीये
मंगल कामनाओं सहित ,
- लावण्या
आभार लावण्या जी। यह लिंक मैने पोस्ट के अंत में भी लगा दिया है।
Deleteयह वृतांत अच्छा लगा।
ReplyDeletedikh raha hai kitni achhi mulakaat rahi hogi :)
ReplyDeletedikh raha hai kitni achhi mulakaat rahi hogi :)
ReplyDeleteसच में वे ममतामयी लग रही हैं.... अच्छा लगा इस स्नेहभरी मुलाकात से बारे में जानकर
ReplyDeleteलावण्या जी से मिल सचमुच आपने वाग्देवी से ही मुलाक़ात कर ली !
ReplyDeletemai bhi Abhi ke saath hi dekh rahi hu ,balki mahasus rahi hu...
ReplyDeleteवर्णन पढ़ कर लगा जैसे साक्षात् कर लिया हो !
ReplyDeleteoh! mera comment ???kaha gaya ??
ReplyDeleteप्रतिभा जी की टिप्पणी से पहले देखिये, वहीं है जहाँ छोड़ा था। :)
Deleteoh! sorry...lagta hai chashma badlana padega ..:-) :-)
Deleteअच्छा लगता है अपनी कोई सुखद अनुभूति सांझा करना....
ReplyDeleteआपको पढ़ना और लावण्या जी से मिलना भला लगा.......
सादर.
अनु
एक अपेक्षित मुलाकात , अनापेक्षित रूप से हो जाए तो आनंद दुगना हो जाता है ।
ReplyDeleteलावण्या जी से मिलना सुखद रहा ।
पंडित जी की वन्दना, दीदी को परनाम ।
ReplyDeleteमन को रोमांचित करें, ये दृष्टांत तमाम ।
ये दृष्टांत तमाम, राग-अनुराग भरे हैं ।
सिनसिनाटी आसन्न, लगे प्रत्यक्ष धरे है ।
बढे सनातन धर्म, विश्व में महिमा-मंडित ।
पर्वों का सन्देश, सुनाएँ ज्ञानी पंडित ।।
वाकई, बहुत बड़े सौभाग्य की बात है लावण्या जी से मिलना. आपके साथ हम लोगों की भी मुलाकात हो गई इस लेख के द्वारा...
ReplyDeleteआपकी मुलाकात पढ़कर ऐसा लगा हम भी साथ थे। यादगार क्षण।
ReplyDeleteपंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री से अनुराग शर्मा जी के मार्फ़त मिलना बड़ा सुखद लगा.. ऐसी ममतामयी व्यक्तित्व से मिलकर वास्तव में ह्रदय श्रद्धा से भर जाता है!!
ReplyDeleteघोडागाडी देखकर सिंड्रेला की याद आ गयी!! बहुत सुन्दर अनुराग जी!
वावण्या जी के ब्लॉग की हर पोस्ट किसी अनूठे विषय की विस्तृत पड़ताल करती हुई होती है। उनकी तश्वीर लगाने और उनके बारे में इतनी जानकारी देने के लिए आभार।
ReplyDeleteआप तो साक्षात सरस्वती के दर्शन कर आए और मधुर लम्हों कों समेट आए ...
ReplyDeleteआपका पूरा वृतांत पढ़ के बहुत अच्छा लगा ...
घर से दूर घर का सा प्यार शायद भारतीय ही दे सकता है .....यही है हमारी संस्कृति ..अच्छा लगा पढ़कर ,शुक्रिया जी
ReplyDeleteलावण्या जी से साक्षात होने के संस्मरण को आपकी कलम ने मधुरम बना दिया है। आपको मिले इस अवसर से ईर्ष्या का वेग महसुस हुआ!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर यात्रा वर्णन, लावण्या जी से परिचय हुआ, आभार !
ReplyDeleteसिनसिनाटी में उत्तर प्रदेश के दाल की महक, आनन्द आ गया होगा। आत्मीयता भरी यात्रा बड़ी अच्छी लगी।
ReplyDeleteबड़े सस्ते में निपटा दिये अनुराग जी! कुछ और भी लिखन था ना...
ReplyDeleteसार्थक यात्रा विवरण पसंद आया सर जी............लावण्य जी के बारे में जानकर खुशी हुई।
ReplyDeleteब्लॉगिंग का सोपान है ये घटना । ब्लॉग ना होता तो कैसे हम जानते आपसे इतनी प्यारी बातें । कभी कोई चैनल ना बताता ये आपकी-हमारी बातें । क्या कहा जाए मैं तो पंडित जी को नमन करता हूँ और उनका परिवार खुश रहे ये कामना करता हूँ ।
ReplyDeleteज्योति कलश छलके ने पं. नरेन्द्र शर्मा जी को अमर कर दिया। साहित्य की वह परम्परा आगे के गीतकार भले कायम न रख सके,पर पंडितजी की पीढ़ी आज भी साहित्य-सेवा में लगी है,जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteइस रोचक, मनोरंजक और स्नेहमय मुलाकात के लिए आपका शुक्रिया।
ReplyDeleteसहज, सरल व्यक्तित्व से मिलकर अपनापन सा ही लगता है... लगता है जैसे हम बरसों से उन्हें जानते हैं....
ReplyDeleteएक विदुषी वात्सल्य की प्रतिमूर्ति से परिचय!! आभार
ReplyDeletespeechless .very very nice post with APANE .
ReplyDeleteस्नेहमयी लावण्या जी से मुलाकात यादगार तो होनी ही थी...इस मिलन के चित्र तो फेसबुक पर बहुत पहले ही देख चुकी थी...आज इस आत्मीय मुलाकात का विवरण भी पढ़ने को मिला..,,अच्छा लगा,पढ़ कर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी और लावण्या जी की मुलाक़ात पढकर अच्छा लगा.
बहुत अच्छा लगा ऐसी स्नेहमयी यात्रा का विवरण पढना!
ReplyDeleteवाह !
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