ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और अंग्रेज़ों के खिलाफ़ भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक रामचन्द्र पांडुरंग राव योलेकर से शायद ही कोई अपरिचित हो। जी हाँ, अपनी वीरता और रणनीति के लिये विख्यात महानायक कमांडर तात्या टोपे का वास्तविक नाम यही था।
1814 में योले (या यवले/यउले/यवला) ग्राम में एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे तात्या अपने माता-पिता श्रीमती रुक्मिणी बाई व पाण्डुरंग त्र्यम्बक राव भट्ट़ मावलेकर की एकमात्र संतति थे। तात्या का परिवार सन 1818 में नाना साहब पेशवा के साथ ही बिठूर आ गया था। अंग्रेज़ों द्वारा हर कदम पर भारत और भारतीयों के विरुद्ध खेली जा रही चालों के विरुद्ध एक देशव्यापी अभियान संगठित रूप से चलाने में नाना के साथ तात्या का एक बड़ा योगदान था। यह अभियान 1857 के संग्राम से काफ़ी पहले से आरम्भ होकर तात्या टोपे की मृत्यु तक निर्बाध चलता रहा।
तात्या टोपे के परिवार की वर्तमान पीढी के श्री पराग टोपे ने कुनबे के अन्य सदस्यों व इतिहासकारों के सहयोग से 1857 के संग्राम के कुछ छिपे हुए पन्नों को रोशन करने का प्रयास किया है। उनके अध्ययन और परिवार में चल रही कथाओं के अनुसार 1857 के संग्राम के तयशुदा आरम्भ से कहीं पहले ही तात्या ने ब्रिटिश सेना के भारतीय प्लाटूनों को कमल भेजकर उनकी भागीदारी, संख्या और सैन्यबल सुनिश्चित करना आरम्भ कर दिया था। भागीदारी में सहमति देने वाले सैनिकों द्वारा कमल की पंखुड़ियाँ रखी जाने के बाद खाली डंडियाँ गिनकर सेना का आगत गमनागमन तय किया गया। डंडियों से निकले कमलगट्टों के मखाने के साथ रोटियों को ग्रामप्रधानों में बाँटकर सेना के संचलन के समय उनके सम्भावित मार्ग पर रसद की आपूर्ति सुनिश्चित करने का काम किया गया। रोटियाँ और कमल बँटने की घटनाओं का ज़िक्र कई इतिहास ग्रंथों में मिलता है परंतु उसका विस्तृत स्पष्टीकरण अन्यत्र नहीं दिखता।
अंग्रेज़ों के लिये सबसे आश्चर्य की बात थी तात्या के दस्तों का संचलन। छापामार युद्ध के माहिर तात्या हर जगह मौजूद थे। खासकर वहाँ, जहाँ अंग्रेज़ों की गणना के अनुसार उतने कम समय में पहुँचा ही न जा सकता हो। उस समय में चम्बल या नर्मदा नदी के एक ओर की सेना का पलक झपकते दूसरी ओर पहुँच जाना किसी आश्चर्य से कम न था। एक बार भारी ब्रिटिश गोलीबारी के बीच भी उनके दस्ते नर्मदा पार करके सलामत निकल गये थे। तात्या टोपे और उनके सिपाहियों के बारे में दंतकथाओं का अम्बार है, विशेषकर मध्य भारत में।
तात्या के विरोधी भी तात्या के सैन्य-संचलन के क़ायल थे। कई ब्रिटिश इतिहासकारों का विश्वास है कि यदि सिन्धिया सरीखे कुछ राजा अंग्रेज़ों के पक्ष में न आये होते तो 1857 में भारत से गोरों का सफ़ाया निश्चित था। ऐतिहासिक कथा यह है कि 7 अप्रैल 1859 को अपने शिविर में सोते हुए तात्या को उनके साथी नरवर के राजा मानसिंह के विश्वासघात की सहायता से अंग्रेज़ों ने बन्दी बना लिया गया। 8 अप्रैल को वे शिवपुरी में जनरल मीड के शिविर में एक युद्धबन्दी थे। 1857 के डेढ वर्ष बाद अभी भी यत्र-तत्र संघर्षरत भारतीय सैनिकों का मनोबल तोड़ने के लिये तात्या टोपे को फ़ांसी देना तो तय था, तो भी शिवपुरी में सैनिक अदालत की काग़ज़ी कार्यवाही पूरी की गयी। फ़ांसी देने से पहले बन्दी तात्या से लिखवाये गये बयानों में उनका नाम तात्या टोपे (नाना साहेब के कार्यकर्ता) लिखा गया है। स्वाधीनता संग्राम में अपनी भागीदारी स्वीकार करते हुए उन्होंने लिखा कि वे अपने देश के महाराज नाना साहेब की ओर से अपनी देशरक्षा के लिये लड़े हैं और वे किसी अन्य सत्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं। न ही उन्होंने अपने जीवन में किसी असैनिक को चोट पहुँचाई है। 15 अप्रैल 1859 को उन्हें मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गयी और आज ही के दिन ... 18 अप्रैल 1859 को उन्हें शिवपुरी जेल की चार नम्बर बैरक में फांसी दी गयी थी। कहा जाता है कि उन्हें दो बार फ़ांसी पर लटकाकर अंग्रेज़ों ने अपनी संतुष्टि की थी।
इसके बाद बदला लेने के उद्देश्य से अंग्रेज़ सेना के साथ नरवर और ग्वालियर के शासक भी तात्या के परिवारजनों को ढूंढने में लग गये। लम्बे समय तक इस स्वाभिमानी परिवार के सदस्य अपने नाम और वेशभूषा बदलकर अनेक ग़ैर-पारम्परिक पेशों को चुनकर देशभर में भटकते रहे। गर्व की बात यह है कि वर्षों के उत्पीड़न के बावजूद भी स्वस्थ परम्पराओं का सम्मान करने वाला यह परिवार आज सुशिक्षित और समृद्ध हैं। तात्या टोपेज़ ऑपरेशन रेड लोटस के लेखक पराग टोपे अमेरिका में रहते हैं। डॉ राजेश टोपे आयरलैंड में रहे हैं परंतु अधिकांश टोपे परिवारजन भारत में ही रहते हैं।
पराग टोपे के अनुसार तात्या को कभी पकड़ा नहीं जा सका था और वे दरअसल एक छापामार युद्ध में शहीद हुए थे। उनकी शहादत के बाद युद्ध की शैली, सैन्य संचलन आदि में अचानक एक बड़ा अंतर आया। उनकी प्रतीकात्मक फ़ांसी अंग्रेज़ों की एक ज़रूरत थी जिसके बिना स्वतंत्रता संग्राम का पूर्ण पटाक्षेप कठिन था। इस प्रक्रिया के नाट्य रूपांतर में नरवर के राजा ने एक नरबलि देकर अपने गौर प्रभुओं की सहायता की। फ़ांसी लगे व्यक्ति ने अपनी आयु 55 वर्ष बताई थी जबकि उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार उस समय तात्या की आयु 45-46 वर्ष की होनी थी। सत्य जो भी हो, जन्मभूमि की ओर आँख उठाने वालों के छक्के छुड़ा देने वाले तात्या जैसे वीर संसार भर के स्वतंत्रताप्रिय देशभक्तों की नज़र में सदा अमर रहेंगे।
अमर हो स्वतंत्रता!
* तात्या टोपे - हिन्दी विकीपीडिया
* तात्या टोपे प्रशंसक पृष्ठ - फ़ेसबुक
* फाँसी नहीं दी गई थी तात्या टोपे को
* प्रेरणादायक जीवन-चरित्र
1814 में योले (या यवले/यउले/यवला) ग्राम में एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे तात्या अपने माता-पिता श्रीमती रुक्मिणी बाई व पाण्डुरंग त्र्यम्बक राव भट्ट़ मावलेकर की एकमात्र संतति थे। तात्या का परिवार सन 1818 में नाना साहब पेशवा के साथ ही बिठूर आ गया था। अंग्रेज़ों द्वारा हर कदम पर भारत और भारतीयों के विरुद्ध खेली जा रही चालों के विरुद्ध एक देशव्यापी अभियान संगठित रूप से चलाने में नाना के साथ तात्या का एक बड़ा योगदान था। यह अभियान 1857 के संग्राम से काफ़ी पहले से आरम्भ होकर तात्या टोपे की मृत्यु तक निर्बाध चलता रहा।
लाल कमल अभियान 1857 |
अंग्रेज़ों के लिये सबसे आश्चर्य की बात थी तात्या के दस्तों का संचलन। छापामार युद्ध के माहिर तात्या हर जगह मौजूद थे। खासकर वहाँ, जहाँ अंग्रेज़ों की गणना के अनुसार उतने कम समय में पहुँचा ही न जा सकता हो। उस समय में चम्बल या नर्मदा नदी के एक ओर की सेना का पलक झपकते दूसरी ओर पहुँच जाना किसी आश्चर्य से कम न था। एक बार भारी ब्रिटिश गोलीबारी के बीच भी उनके दस्ते नर्मदा पार करके सलामत निकल गये थे। तात्या टोपे और उनके सिपाहियों के बारे में दंतकथाओं का अम्बार है, विशेषकर मध्य भारत में।
टोपे परिवार, परम्परागत वेशभूषा में (ऑपरेशन रेड लोटस से साभार) |
डॉ. राजेश टोपे से एक अविस्मरणीय मुलाकात |
पराग टोपे के अनुसार तात्या को कभी पकड़ा नहीं जा सका था और वे दरअसल एक छापामार युद्ध में शहीद हुए थे। उनकी शहादत के बाद युद्ध की शैली, सैन्य संचलन आदि में अचानक एक बड़ा अंतर आया। उनकी प्रतीकात्मक फ़ांसी अंग्रेज़ों की एक ज़रूरत थी जिसके बिना स्वतंत्रता संग्राम का पूर्ण पटाक्षेप कठिन था। इस प्रक्रिया के नाट्य रूपांतर में नरवर के राजा ने एक नरबलि देकर अपने गौर प्रभुओं की सहायता की। फ़ांसी लगे व्यक्ति ने अपनी आयु 55 वर्ष बताई थी जबकि उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार उस समय तात्या की आयु 45-46 वर्ष की होनी थी। सत्य जो भी हो, जन्मभूमि की ओर आँख उठाने वालों के छक्के छुड़ा देने वाले तात्या जैसे वीर संसार भर के स्वतंत्रताप्रिय देशभक्तों की नज़र में सदा अमर रहेंगे।
अमर हो स्वतंत्रता!
सम्बन्धित कड़ियाँ* तात्या टोपे - अधिकारिक वैब साइट
* तात्या टोपे - हिन्दी विकीपीडिया
* तात्या टोपे प्रशंसक पृष्ठ - फ़ेसबुक
* फाँसी नहीं दी गई थी तात्या टोपे को
* प्रेरणादायक जीवन-चरित्र
इतिहास के इस अविस्मरनीय पृष्ठ को साझा करने के लिए आभार !
ReplyDeleteभारत के स्वर्णिम इतिहास के पन्ने पलटना सदा ही अच्छा लगता है......
ReplyDeleteशुक्रिया इस नायाब, जानकारी युक्त लेख के लिए...
अनु
वीर शहीद तात्या टोपे को उनके पुण्यदिवस पर श्रद्धांजलि!!
ReplyDeleteअमर शहीद की जीवनी की कईं विस्मृत जानकारियां मिली। आभार आपका!!
इतिहास इतना मुग्ध हो कभी नहीं पढ़ा।...आभार।
ReplyDeleteस्कूल की किताबों से इतर इस तरह इतिहास के पन्नों को पढ़ना सचमुच रोचक लगता है।
ReplyDeleteसहेजने योग्य है यह ऐतिहासिक जानकारी लिए पोस्ट....... वीर शहीद तात्या टोपे को विनम्र नमन
ReplyDeleteआभार , शुक्रिया !!
ReplyDelete.... विनम्र नमन
itihas ke bahut saare panne yaad gaar hain, par fir bhi pata nahi.... aapke batane ke liye shukriya:)
ReplyDeletea b h a r - n a m a n
ReplyDeletepranam.
समस्त तात्या परिवार को सादर नमन ।
ReplyDeleteपरम वीरों में हमेशा गिनती होती रहेगी तात्या टोपे की ।
तात्या अमर हैं ।।
भारत माता के सच्चे सपूत,भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक, वीर शहीद रामचन्द्र पांडुरंग राव योलेकर (तात्या टोपे)को हमारा भी शत शत नमन !
ReplyDeleteतात्या टोपे के तथ्यों पर आपने जिस सुगमता से प्रकाश डाला है वह वन्दनीय है !
ReplyDeleteआप के लेख संग्रहणीय तो होते ही हैं !
सादर
संग्रहणीय पोस्ट!
ReplyDeleteआभार!
ओजपूर्ण ...महत्वपूर्ण जानकारी .....!!उन परिवार वालों का भी अभिनन्दन जहाँ तात्या जी जैसे शूरवीर जन्मे ....तात्या टोपे को ह्रदय से नमन ...!!
ReplyDeleteबहुत आभार अनुराग जी इस पोस्ट के लिए ....!!
इतिहास से जुड़ी एक रोचक प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteजहाँ कई लोग सपनों और कल्पना की दुनिया में विचार रहे हैं,ऐसे में एक ऐतिहासिक चरित्र पर प्रकाश डालना अच्छा एवं सराहनीय है !
ReplyDeleteस्वतंत्र संग्राम में तात्या टोपे की अहम भूमिका की रोचक जानकारी ...
ReplyDeleteसही मायनों में श्रद्धांजली आप ही दे रहे हैं !
आभार !
अंग्रेजों को भारत में बनाये रखने में हम भारतीयों का भी बहुत योगदान है, नहीं तो अंग्रेज कब के चले गये होते।
ReplyDeleteसहजने योग्य पोस्ट है यह ..आभार आपका इसे साझा करने का.
ReplyDeleteडॉ. राजेश टोपे से मुलाकात सच में अविस्मरणीय रही होगी, इसमें तो कोई शक नहीं..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा आलेख!!
भारत के इस वीर सपूत को नमन, आपने बहुत रोचक शैली में इतिहास को प्रस्तुत किया है, आभार!
ReplyDeleteसही समय पर अच्छी जनकारी मिली . आभार .
ReplyDeleteपारंपरिक इतिहास से अलग एक नया इतिहास सुनने को मिला और सचमुच यह विधि कमल के प्रयोग की, सचमुच अद्भुत लग रही है.. और आपकी तस्वीर जिसमें आप भी इतिहास की एक कड़ी प्रतीत हो रहे हैं.. उस महान सेनानी को सादर स्मरण और श्रद्धांजलि!!
ReplyDeleteउस महानायक को नमन और इतिहास के इन पन्नों से सामना कराने के लिये आपका आभार !
ReplyDeleteमहानायक तात्या टोपे को नमन!
ReplyDeleteआपका आभार जो ऐसी रोचक जानकारी इतने श्रम से इकट्ठा कर के साझा करते हैं आप।
ऐसे ही अनेकानेक देश-भक्तों के कारण आज हम आजाद हैं. नमन वीर तात्या टोपे को..
ReplyDeleteऐसे महान भारतीयों के वंशजों मिलना वास्तव में ही सुखानुभूति देता है
ReplyDeleteरोचक जानकारी तात्या टोपे के बारे में ... नमन है भारत माता के इस सपूत कों ...
ReplyDeleteआपने बहुत रोचक शैली में इतिहास को प्रस्तुत किया है, इसे साझा करने का. आभार!
ReplyDeleteअमर सेनानी तांत्या टोपे के बारे में यह तथ्य अब तक अनजाने ही थे। यही बात पहले भी आप से कह चुका हूँ कि हमें सही इतिहास पढ़ाया ही नहीं गया।
ReplyDeleteभारत माता के इस वीर सपूत को हमारा नमन और आपका कोटिश: आभार कि इन तथ्यों को हम जान सके।
इतिहास के इस अविस्मरनीय जानकारी को साझा करने के लिए आभार !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा तात्या टोपे के बारे में विस्तार जानकर। आभार।
ReplyDeletesarthak huaa aapke blog par aana.betarin post .meri nai post par aapka svagat hae.
ReplyDeleteअद्भुत! पढ़ कर सहेजने वाली प्रविष्टियाँ!
ReplyDeleteवाह.
ReplyDeleteतात्या का तो मैं बचपन से मुरीद रहा हूँ... वे एक श्रेष्ठ योद्धा थे, उन्हें नमन... उनकी वीरता के तेज से मेरे शहर ग्वालियर की ज़मीन अभी भी दमकती है...
ReplyDeleteसच है! तात्या जैसे निस्वार्थ नायकों ने भारत के तेज को अमर रखा है। आप सबका आभार!
ReplyDeleteWhen one is cremated, reminder of bones are collected to give to any river. It symbolises continuity of life and meeting of lesser life with eternity. A person from Maharashtra visited Awadh to collect memories of unknown Heroes of 1857. For him it was a journey as if he was searching for bones of his ancestors who gave themselves to fire of rebellion against foreign rule. Can you trace and find his travelogue?
ReplyDeleteअली सिना जी,
Deleteनिसन्देह 1857 में परतंत्रता और दमन के विरुद्ध लड़ने वाले भारतीय हुतात्मा पूर्वज हमारे आदरणीय हैं।
When one is cremated, reminder of bones are collected to give to any river. It symbolises continuity of life and meeting of lesser life with eternity. A person from Maharashtra visited Awadh to collect memories of unknown Heroes of 1857. For him it was a journey as if he was searching for bones of his ancestors who gave themselves to fire of rebellion against foreign rule. Can you trace and find his travelogue?
ReplyDeleteनमन !
ReplyDeleteस्वागत है!
Deleteआज तात्या टोपेजी की पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि - भोपाल का ह्रदय स्थल TT (तात्या टोपे) नगर कहलाता है
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