माँ बाप कई प्रकार के होते हैं। एक वे जो बच्चों की उद्दंडता को प्रोत्साहित करते हैं जबकि एक प्रकार वह भी है जो अपने बच्चे की ग़लती होने पर खुद भी शर्मिन्दा होकर क्षमायाचना करते हैं। एक माता पिता बच्चों के पढाई में ध्यान न देने पर उन्हें डराते हैं कि पढोगे नहीं तो घास काटनी पड़ेगी। हमारे यहाँ गर्मी का मौसम रहने तक लगभग प्रत्येक गृहस्वामी/स्वामिनी हफ़्ता दस दिन में अपने लॉन में घास काटता ही नज़र आता है। बेशक, हम भी शनिवार की कई दोपहरी यही महान कार्य करते बिताते हैं। मन में यह भी ख्याल आता है कि कहीं ज़्यादा पढ लेते तो शायद इस काम के भी न रहते। :(
एक दिन घास काटते-काटते देखा कि मेपल का एक छोटा वृक्ष बिजली, केबल, फ़ोन आदि के तारों तक पहुँचने लगा है। सोचा कि समय रहते छाँट दिया जाये तो बेहतर रहेगा। फिर भी मन में दुविधा थी। एक तो यह कि बोनसाई तो सैकड़ों बनाई थीं लेकिन बड़ा पेड़ काटने का कोई अनुभव नहीं था। दूसरी बात यह कि भरे पूरे वृक्ष पर चिड़ियों के घोंसले होने की पूरी सम्भावना थी। सर्दियों में ताम्बई लाल पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं। हर तरफ़ प्रकृति के शांत रंगों की बहार सी छा जाती है। ठंड अधिक बढने पर काले कौवों व छोटी गौरय्या के अलावा कोई चिड़िया यहाँ नहीं दिखती है। पेड़ काटने के लिये वही समय उपयुक्त लगा।
मौसम बदलने का इंतज़ार किया। पतझड़ आने पर जब चिड़ियाँ दक्षिण दिशा को और पत्ते रसातल को चले गये तब एक दिन परशुराम जी की जय बोलकर एक आधुनिक परशु, मेरा मतलब है कि एक चेन वाली आरी (चेनसॉ) खरीदी गई। लेकिन सिर मुंडाते ओले पड़ने वाली कहावत का पालन करते हुए जब आरी आई तो बर्फ़ गिरनी शुरू हो गयी। लेकिन अल्लाह के फ़ज़ल से इस बार सर्दियाँ हल्की रहीं और ऐसे कई सप्ताहांत आये जब बर्फ़ का नामोनिशाँ न था। जब कभी मौसम ठीक था तब या तो हम शहर में नहीं थे या घर पर नहीं थे। एक दिन जब पेड़ पूर्णतया पर्णहीन था, आसमान साफ़ था और हम भी ठलुआ थे, सोचा काग़ज़ी कविताई करने के बजाय कुछ ठोस काम किया जाये।
उस शुभ दिन हमने अपने लॉन के सबसे छोटे मेपल पर हाथ आज़मा लिया। आरी वाकई बहुत सशक्त है। पच्चीस फ़िट ऊँचे पेड़ का मुख्य तना काटने में कुछ सेकंड ही लगे। यद्यपि बाद में तने और शाखाओं को छोटे टुकड़ों में काटने में अधिक समय लगा और फिर हमारे आलस के चलते उन्हें हटाने में और भी समय लगा। कुल मिलाकर एक नया अनुभव। कुछ समय तक तो पेड़ का ठूंठ अजीब सा दिखता रहा। वसंत में सब वृक्षों पर नई पत्तियाँ आईं तो यह मेपल भी फिर से खिलखिलाने लगा है।
मेपल के नवपल्लव |
मेपल छाँटने से पहले के इस आकाशीय परिदृश्य में वह छोटा मेपल और अन्य सारे वृक्ष दिख रहे हैं। इस मेपल के अलावा तीन अन्य मेपल हैं जो कि खासे बड़े हैं और उनके तने की परिधि 4-5 फ़ुट की होगी यद्यपि इस चित्र में उनमें से बड़े वाले दो अपने से कहीं बड़े ओक वृक्षों से ढंके होने के कारण पूरे दिखाई नहीं दे रहे। यह चित्र अभय जी और दराल जी की टिप्पणियों के बाद प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के अंतर्गत जोड़ा गया है।
... और यह है हमारा तड़ित-परशु मौका-ए-वारदात पर। सात किलो वज़न, डेढ फ़ुट का फल और कड़ी से कड़ी लकड़ी को मक्खन की तरह काटने में सक्षम।
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
बिजली की गति वाला से अब बिजली से गति वाला।
ReplyDeleteसंतुलित सुन्दर टिप्पणी.
Deleteहर विषय में महारथ ।
ReplyDeleteखतरनाक औजार है ...
ReplyDeleteइस बहाने अच्छी भली कसरत हो जाती होगी !
शुभकामनायें आपको !
sundar post.....manmohak chitra sanyojan......
ReplyDeletemoka-e-vardat pe parshu liye aap bilkul kisi history channel ke documentry se lag rahe hain???
pranam.
nice post .pratikatmak shaili.
ReplyDeleteजय हो परशुराम सौरी परशुराग शर्मा जीवन की!!
ReplyDelete:) आभार! आपकी एक सहकर्मी तो बाकी अक्षर हटाकर केवल "आग" कहती थीं। लगता है तब से अब तक आग से राग तक का सफ़र अच्छी तरह तय हुआ है।
Deleteमैं नहीं पूछूंगा कि वो सहकर्मी अब कहाँ हैं!!
Deleteजी मुझे पता भी नहीं है। आखिरी बार बात किये 14 वर्ष हो गये।
Deleteअपनी एक पोस्ट का अंश लगा रहा हूं-
ReplyDelete''इतिहास में डेढ़ सौ साल पहले बंदोबस्त अधिकारी मि. चीजम ने दर्ज किया है कि अंचल में लगभग निषिद्ध आरे का प्रचलन मराठा शासक बिंबाजी भोंसले के काल से हुआ और तब तक की पुरानी इमारतों में लकड़ी की धरन, बसूले से चौपहल कर इस्तेमाल हुई है। परम्परा में अब तक बस्तर के प्रसिद्ध दशहरे के लिए रथ के निर्माण में केवल बसूले का प्रयोग किया जाता है। अंचल में आरे के प्रयोग और आरा चलाने वाले पेशेवर 'अरकंसहा' को निकट अतीत तक महत्व मिलने के बाद भी अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था।''
धन्यवाद राहुल जी!
Delete@ एक दिन जब पेड़ पूर्णतया वृक्षहीन था, .कहीं आपका आशय पत्तों से तो नहीं .?
Deleteरोचक प्रस्तुति.............
भाकुनी जी, आप सही हैं. पर्णहीन लिखना चाहता था - अब ठीक कर दिया है.
Deleteआप तो हथियार पकडे एकदम किसी सोल्जर के जैसे लग रहे हैं...वैसे ही मुस्तैद और कड़क टाईप्स :P
ReplyDelete:)
Deleteकमाल है , यहाँ तो पेड़ काटने पर जुर्माना या जेल भी हो सकती है . इसीलिए पेड़ भले ही बिल्डिंग को तोड़ दे , या रास्ता बंद कर दे , पर क्या किसी की मजाल , बिना परमिशन काट दिया जाए .
ReplyDeleteआपने बेधड़क काट दिया . औए एक ठुल्ला भी नहीं आया , रात की दारू के लिए कुछ लेने देने . :)
बाकी सब तो अच्छा है ही मगर पूरे साल आपके कैमरे की नज़र उस पेड़ पर थी....ये काबिले गौर और काबिले तारीफ़ भी है...
ReplyDeleteमेपल हर रूप में सुंदर है...बचपन से मेरा प्रिय पेड़ है (हमारे हिन्दुस्तानी हरसिंगार के बाद )
सादर.
जी, आभार। आपने सही पहचाना। इस पोस्ट का मुख्य उद्देश्य ही मेपल के विभिन्न रूप दिखलाना था - मेपल तेरे कितने रूप!
Deleteबढ़िया अनुभव रहा आपका इस प्राणघाती विद्युत-चालक के साथ ! खतरनाक चीज़ें होशियार रहें आपके फरसे से !
ReplyDeleteबात जब मेपल की होती है तो न जाने क्यों मेरा मन मयूर की तरह नाचने लगता है
ReplyDeleteपीपल के देश का हू पर मेपल से न जाने क्यों प्यार करता हूँ ,और जब उसके काटने की बात चलती है तो मेरे दिल पर आरियाँ चलती है |सुनो और देखो
http://awnimapleleaf.blogspot.in/
http://awnimapleleaf.blogspot.in/2012/02/why-maple.html
अभय जी, कटा नहीं केवल छँटा है। इस छँटे हुए के अलावा तीन छाये हुए भी हैं। बैकयार्ड में केवल पेड़ ही पेड़ हैं, कुछ फल-फूल धारी और बाकी मेपल, ओक आदि।
Deleteजेवी पटेल की कविता "ओं किलिंग अ ट्री" याद आती है
ReplyDeleteआभार!
DeleteOn Killing A Tree (Gieve Patel)
It takes much time to kill a tree,
Not a simple jab of the knife
Will do it.
It has grown
Slowly consuming the earth,
Rising out if it, feeding
Upon its crust, absorbing
Years of sunlight, air, water,
And out of its leprous hide
Sprouting leaves.
So hack and chop
But this alone won't do it.
Not so much pain will do it.
The bleeding bark will heal
And from close to the ground
Will rise curled green twigs,
Miniature boughs
Which if unchecked will expand again
To former size.
No,
The root is to be pulled out
Out of the anchoring earth;
It is to be roped, tied,
And pulled out-snapped out
Or pulled out entirely,
Out from the earth-cave,
And the strength of the tree exposed,
The source, white and wet,
The most sensitive, hidden
For years inside the earth.
Then the matter
Of scorching and choking
In sun and air,
Browning, hardening,
Twisting, withering,
And then it is done.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWhat if I like Maple
ReplyDeletedid I ask ever,
Why you worship Peepal?
No never.
Every body knows
both are trees
and related to emotion
Peepal is to n religion
and Maple is to affection
And both are part of nature.gives oxygen for all creature
that is needed for world's life
but Maple is something differ
for my life.--------
सुन्दर कविता है अभय जी। आपके ब्लॉग पर भी पढी! मंगलकामनायें!
Deleteहाँ यहाँ पढ़े लिखे हों न हो घास तो काटनी ही पड़ती है :)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteabhunik avtar hain - to topi, jacket, gloves aadi to apekshit hi hain :)
आरी, सर्दी और पेड़ से सुरक्षा के लिये भी वह सब चाहिये। यदि न हो तो कटती लकड़ी की तेज़ी से गिरती खपच्चियों और बुरादे से बचना भी कठिन है।
Deletesach hai - koi bhi kaary karte hue aavashyak saavdhaaniyan to baratni hi chaahiye :)
Deleteलगता है टिप्पणी सन्दूक भी नाराज़ हो गया, दुबारा लिखना पड़ रहा है ..
ReplyDelete@ एक वे जो बच्चों की उद्दंडता को प्रोत्साहित करते हैं
इसका उत्तर अभी थोड़ी देर पहले मेल से दे दिया है।
@ एक दिन जब पेड़ पूर्णतया वृक्षहीन था,
वृक्षहीन को पर्णहीन कर लीजिये।
यदि तना थोड़ा और मोटा होता तो उसे थोड़ा सा शेप देकर बैठने का सुन्दर आसन बनाया जा सकता था। मेपल के कटे हुये स्टम्प पर पेंट कर दीजिये ताकि वहाँ कोई फर्दर ग्रोथ न हो। साइड ग्रोथ होने दीजिये, आगे चलकर इसे आसन का रूप देदीजियेगा। मैं आऊँगा बैठने के लिये।
कोई भी पेंट चलेगा या कोई विशिष्ट लेप होता है? आपका हार्दिक स्वागत है, आप आइये तो सही। चित्र में छोटा लग रहा है परंतु बैठने के हिसाब से यह तना काफ़ी ऊँचा है। आसन के योग्य कई बड़े टुकड़े सुरक्षित रखे हैं जोकि आवश्यकता पड़ने पर ज़मीन में गाढे जा सकते हैं।
Deleteक्या बात है आपने एक अपने द्वारा किये गए कार्य को एक ऐसे अनोखे ढंग से लिखा है की मानो एह सभी हमारे आँखों के सामने हो रहे हो.
ReplyDeleteआपके आने का शुक्रिया, इस बहाने आपका ब्लॉग भी देखने को मिला।
Deleteयह काटने कूटने की बात हिंसा है, फिर अनायस आपकी २ वर्ष पहले की पोस्ट पर ध्यान गया, वहाँ अहिंसा की अति को अनुचित ठहराया गया था। अब भगवान परशुराम के नव अवतार चेनसॉ राम से कौन पंगा ले :) सलिल जी नें बडा अच्छा नामकरण किया 'परशुराग':) मेपल से विराग है यह।
ReplyDeleteनवपल्ल्वित मेपल देखकर भगवान परशुराम का दर्शन समझने का अवसर मिला।
आभार सुज्ञ जी! हिंसा महापाप है। अति भी बुरी बात है। नवपल्लव सचमुच बहुत सुन्दर हैं।
Deleteछांटने के नाम पर मेपल की दुर्गति हो गयी लगती है.
ReplyDeleteअनुराग जी , आपने ज़वाब नहीं दिया । क्या वहां बिना अनुमति पेड़ काटे जा सकते हैं ?
ReplyDeleteजी दराल साहब। संकटग्रस्त प्रजाति की बात छोड़ दी जाये तो अवश्य काटे जा सकते हैं। बल्कि चक्रवातों, बर्फ़ीले तूफ़ानों आदि से होने वाली जान-माल की हानि से बचने के लिये पेड़ भी वैसे ही नियमित रूप से काटे और तराशे जाते हैं जैसे बाग के अन्य पौधे या घास। वैसे भी अमेरिका में घर का दर्ज़ा लगभग वैसा ही है जैसे किसी स्वतंत्र देश का। अपने घर में आप चाहें तो शेर-चीते-अजगर पालें चाहे बन्दूक-कलाश्निकोव रखें, कोई कानून आपकी स्वतंत्रता नहीं हरता।
Deleteआपने तो पूरा तना ही काट दिया जबकि छटाई की जानी थी -हमारे पड़ोसी इसी तरह अशोक का वृक्ष काट डाले फिर वह सूख गया
ReplyDelete:) महाराज, नवपल्लव का चित्र पोस्ट में इसीलिये लगाया था ताकि आपको पड़ोसी का शोकग्रस्त अशोक न याद आये।
Deleteमेपल के नवपल्लव बहुत ख़ूबसूरत लग रहे हैं...
ReplyDeleteजल्द ही फिर पत्तियां छा जाये मेपल पे....
ReplyDeleteयही तो मुश्किल है कि घास काटने का काम, जैसे शान घट रही हो.लिखाई-पढ़ाई के साथ ये सब काम भी होते चलें तो संतुलन बढिया रहे .परिवेश सँवारते रहिये :अच्छे लग रहे हैं !
ReplyDeleteसचमुच आपने कुछ ज्यादा ही काट दिया.. पर अब नए पत्ते आ गए हैं... रोचक पोस्ट!
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति....
ReplyDeleteहम तो डर गए हैं जी, कुछ तो सहिष्णुता रखनी चाहिए थी आपको|
ReplyDeleteआपकी भी जय और तड़ित-परशु की भी जय क्योंकि भय बिन होए न प्रीत|
सुज्ञ जी द्वारा इंगित भगवान परशुराम का दर्शन इस पोस्ट का बेस्ट बाय प्रोडक्ट लगा, so far.
मेपल पर नई पत्तियां खिल गयी हैं, नया अवतार देखेंगे आपकी अगली तस्वीरों में !
ReplyDeleteतड़ित- परशु कमाल की चीज है , तस्वीर में किसी जासूसी संस्था के एजेंट लग रहे हैं :)
तड़ित- परशु के बारे में तफसील से लिखने और उसे पोस्ट के रूप प्रस्तुत करने का आभार..... ! तस्वीर अच्छी है !
ReplyDeleteachchhi rachna... !
ReplyDeleteमेपल की कटाई छंटाई और काटने का औज़ार ...रोचक प्रस्तुति .... घोंसलों का भी ध्यान रखा ... संवेद्नशीलता की पहचान
ReplyDeletejab nayi pattiyan aati hai to bahut achcha lagta hai :)
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद -A post for all bloggers
वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
यह औजार खतरनाक नहीं संतुलित है
ReplyDeleteआपको इतने सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद
रोचक व आकर्षक...
ReplyDeleteधन्यवाद मैंने भी घुमाई कर ली.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteपहले पैरे के बाद तो अपुन थोड़ी देर तक हँसते रहे... रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह! बहुत अच्छा लगा तडित परसु का कारनामा
ReplyDeleteपढकर और दर्शन करके.रोचक,धाराप्रवाह और जानकारीपूर्ण
सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति के लिए आभार.
हम तो जो नहीं कटा, हरी दूब, निरभ्र अंबर, सोने जैसे पीट पर्ण देख कर मुग्ध है....साथ ही कटे हुए मेपल पर फिर बहार की संभावनाओं से गदगद भी! बहरहाल आपने बहुत हौसले और हुनर के काम को अंजाम दिया।
ReplyDeleteसुन्दर रहा यह परशु पुराण! चित्र भी बहुत अच्छे हैं, नव-पल्लव अत्यंत मोहक!
ReplyDeleteयह तड़ित-परशु तो बड़े काम का औजार है। लेखक इतना कर्म वीर हो तो क्या कहने! सुखद आश्चर्य।
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteजरा संभाल के :)
ReplyDelete:) अब क्या फ़ायदा, होनी तो हो के रही ...
Deleteआभार!
ReplyDelete