[अनुराग शर्मा]
कागज़ी खानापूरी से
दिमागी हिसाब-किताब से
या वाक्चातुर्य से
परिवर्तन नहीं आता
क्योंकि
क्रांति का खाजा है
त्याग, साहस
इच्छा-शक्ति, पसीना
और मानव रक्त
कफन बांधकर
निकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकांक्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोड़ते हैं
ठलुआ शायर
जान जाती है
बयार आती है
क्रांति हो जाती है
युग परिवर्तन होता है
खेत रहते हैं वीर
बिसर जाते हैं
वीर, त्यागी और हुतात्मा
कर्म विस्मृत हो जाते हैं
लिखा अमिट रहता है
अलंकरण पाते हैं
डरपोक कवि
क्योंकि
अक्षर अक्षर है।
.
कागज़ी खानापूरी से
दिमागी हिसाब-किताब से
या वाक्चातुर्य से
परिवर्तन नहीं आता
क्योंकि
क्रांति का खाजा है
त्याग, साहस
इच्छा-शक्ति, पसीना
और मानव रक्त
कफन बांधकर
निकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकांक्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोड़ते हैं
ठलुआ शायर
जान जाती है
बयार आती है
क्रांति हो जाती है
युग परिवर्तन होता है
खेत रहते हैं वीर
बिसर जाते हैं
वीर, त्यागी और हुतात्मा
कर्म विस्मृत हो जाते हैं
लिखा अमिट रहता है
अलंकरण पाते हैं
डरपोक कवि
क्योंकि
अक्षर अक्षर है।
.
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने।
ReplyDeleteहैप्पी होली!
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
ReplyDeleteसर जी, होली के मौके पर ऐसी धीर गंभीर कविता...
ReplyDeleteनमन
सही कहते हैं आप। वैसे हर कोई हर काम नहीं कर सकता, लेकिन ये जरूरी है कि सबको उनके किये गये काम का श्रेय मिलना ही चाहिये।
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत शुभकामनायें।
बकलोल और ठलुवा शायरों के नज़रिये से देखूं तो आपकी बात में दम है पर...
ReplyDeleteइन निखट्टुओं को छोड़ दूं तो अक्षर अक्षर की महिमा भी कम नहीं है !
रंग पर्व की अशेष शुभकामनायें !
शहादत देने वालों के पास समय ही कहां होता है खीसें निपोरने का...उनके ध्येय तो कहीं बड़े होते हैं, पुरूस्कार देने वालों से भी कहीं बड़े.
ReplyDeleteहोली की शुभकामना....
ReplyDeleteसुन्दर कविता।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ।
अक्षरों का क्षरण नहीं होता है, वे इतिहास के अध्यायों पर विद्यमान रहते हैं, सदा के लिये। बहुत ही सुन्दर कविता। होली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteकफन बान्धकर
ReplyDeleteनिकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकान्क्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोडते हैं
ठलुआ शायर ...
जो क्रांति के शायर होते हैं वो कलम को तलवार बना देते हैं .. फिर अक्षर नही खून से इबारत लिखते हैं ...
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
होली की शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपकी बात सौ टक्के सही है !
बहुत ही सशक्त रचना, होली पर्व की घणी रामराम.
ReplyDeleteकफन बान्धकर
ReplyDeleteनिकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकान्क्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोडते हैं
ठलुआ शायर....
सही कहा है आपने.....
बहुत सही सन्देश दिया है इस पोस्ट में ...
होली की हार्दिक शुभकामनायें .
कई बार आते हैं ऐसे ही विचार मन में ...
ReplyDeleteमगर उन शहादतों को यादगार बनाने में ये अक्षर ही तो काम आते हैं !
सही कहा आपने। जान देते हैं जवान और पदक पाते हैं कप्तान।
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी...
ReplyDeleteखेत रहते हैं वीर
ReplyDeleteबिसर जाते हैं
वीरता, त्याग और शहादत
कर्म विस्मृत हो जाते हैं
लिखा अमिट रहता है
अलंकरण पाते हैं
डरपोक कवि
क्योंकि
अक्षर अक्षर है।
Khoob kha aapne...Gahan abhivykti.... behtreen rachna hai....
कागज़ी खानापूरी से
ReplyDeleteदिमागी हिसाब-किताब से
या वाक्चातुर्य से
परिवर्तन नहीं आता
क्योंकि
क्रांति का खाजा है
त्याग, साहस
इच्छा-शक्ति, पसीना
और मानव रक्त............
तभी सोच रहा था कांग्रेस के राज में नित नया घोटाला उजागर होने के बाद भी क्रांति क्यों नहीं भड़क रही.....
इतिहासों की धूर सच्चाई आलोकित करती रचना!!
ReplyDeleteयुग परिवर्तन होता है
खेत रहते हैं वीर
बिसर जाते हैं
वीरता, त्याग और शहादत
कर्म विस्मृत हो जाते हैं
लिखा अमिट रहता है
अलंकरण पाते हैं
डरपोक कवि।
और यहां भी है कुछ्…।
अस्थिर आस्थाओं के ठग
अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर। होली तो जमकर मनायी ही होगी। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकफन बान्धकर
ReplyDeleteनिकल पडते हैं
प्रयाण पर
शुभाकान्क्षी वीर
जबकि
सुरक्षित घर में
छिपकर
कलम तोडते हैं
ठलुआ शायर
आइना दिखा दिया इस कविता ने... बहुत ही सटीक
अनुराग जी!
ReplyDeleteएक सार्थक चिंतन.. किन्तु वन्दे मातरम जैसे अक्षरों को जोड़कर बनी रचना आज भी नसों में उबाल पैदा कर देती है या फिर " तू चिंगारी बनाकर उड़ री, जाग जाग मैं ज्वाल बनूँ. तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ." जैसी रचना.. लेकिन ये भी सच्चाई की आजकल कई ऐसे अक्षरों को जोड़ने वाले राजमिस्त्री दिखते हैं, जिनपर आपकी बात सटीक बैठती है!!
महापुरुषों के बारे में आप लोगों के विचारों से सहमत हूँ। यह शब्द तो उन्हीं अहंकारी मौकापरस्तों के बारे में हैं जो कविर्मनीषी समुदाय के नाम पर बट्टा लगाते हैं। अभी आलसी मोड में हूँ, बाद में इस आशय का डिस्क्लेमर लगा दूंगा पोस्ट पर।
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिये आप सब का धन्यवाद!
देर से आने का अफसोस।
ReplyDeleteकारण होली की मस्ती प्रथम वरीयता।
विचारोत्तेजक कविता। भाव से पूर्णतया असहमत।
कवि कुछ हो न हो ..वाक्चातुर्य कहें , ठलुआ कहें, कायर कहें पर एक बात तो सत्य है न कि वह आश्रय दाता है अक्षरों का जिनसे बनते हैं शब्द। शब्द, जो निर्मित करते हैं भाव। भाव, जिसके बिना निष्प्राण होते हैं वीर। कवि न होता तो कौन पूछता इन अक्षरों को!
तू धन्य है कवि!
जो घुलता है रात दिन पीता है जहर
सहता है कुछ न कर पाने की पीड़ा
भरता है मुर्झाये मन में आशा की किरण
करता है वीरों की जय जयकार
सोता है भूखा
सहता है आत्मीय जनों की उपेक्षा, दुत्कार
आजन्म सहता है ठलुआ होने की पीड़ा
होती है तेरी जय जयकार
तेरे मरने के बाद
पाता है सम्मान
वक्त गुजर जाने के बाद
कभी तुलसी, कभी गालिब, कभी निराला
अब तो और भी पीनी पड़ेगी हाला
क्योंकि अब तो तेरे सामने है
विश्वसनीयता का घोर संकट भी।
बहुत सही कहा है ...
ReplyDeletebut anurag sir - a garden cannot be made of roses alone ... u need all colors to make this world beautiful |
यदि कवि न लिखते - तो उन सभी जवानों में जज्बा शायद न जागा होता ? कुछ में - हाँ - किन्तु सब में ?
मुझे लगता है कि वीरों के आदर के साथ ही कवियों के आदर का भी बराबर महत्व है |
@ बराबरी
ReplyDeleteबराबरी तो नहीं - किन्तु महत्व तो उनका भी है न ?
मैं सिर्फ time pass या नाम कमाने के लिए लिखने वाले कवियों की नहीं बात कर रही हूँ - मैं उनकी बात कर रही हूँ जो अपनी कविताओं से दिलों में आग पैदा करते हैं |
बराबरी - नहीं है - गलत लिखा मैंने :)