नेपाल के राष्ट्रीय चिह्न में बुरांश |
फलाहार का नाम तो हम सब ने सुना होगा। भारतीय उपवास पद्धति में सात्विक भोजन और उस पर भी फलाहार का विशेष महत्व है। फलाहार से एक कदम आगे पुष्पाहार भारत की पुरानी पाककला का एक भूला-बिसरा सा भाग है। गोभी के फूल तो शायद हम सभी ने खाये होंगे मगर बचपन में बरेली, बदायूँ, रामपुर में मैंने सेमल (सेमरगुल्ले) और करौन्दे के फूल भी बहुत खाये हैं। रुहेलखंड में तोरई, कद्दू, लौकी आदि के फूलों की सब्ज़ी भी बनती है। पश्चिम में भी विशेषकर इटैलियन खाने में पुष्पाहार अभी भी शामिल है जबकि भारत में पुष्पाहार के नाम पर शायद गुलकन्द या केतकी का रस (केवडा) जैसे खाद्य पदार्थ ही बचे होंगे।
निवास के बाहर लाल अज़लीया |
नीला बुरांश |
इस ब्लॉग पर पहले आयी टिप्पणियों और अन्य ब्लॉग पर हिमालयी क्षेत्रों के लोगों द्वारा बुरांश के शर्बत का सन्दर्भ बार-बार आया है। मैंने काफी प्रयास किया कि किसी को सताये बिना ही अंतर्जाल पर बुरांश के शर्बत की प्रमाणिक विधि ढूंढी जा सके मगर असफल रहा।
हाँ, अंतर्जाल पर ही बुरांश की चाय की विधि मिली है - शायद यही बुरांश का शर्बत हो। जो है आपके सामने है:
बुरांश के फूल (30 ग्राम) को चीनी (50 ग्राम) में मिलाकर एक दिन के लिये रख दीजिये। फिर रोज़ उसमें से लगभग 10 ग्राम का मिश्रण लेकर खौलते पानी में करीब 15 मिनट तक पकाइये। चाय की तरह पीजिये और चुक जाने पर नया मिश्रण तैयार कर लीजिये। (स्रोत: lonlu.com)
रोडोडैंड्रोन सदर्न इंडिका और मैं |
और हाँ, मदर्स डे की बधाई!
[जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी]
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सम्बंधित कड़ियाँ
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* बुरुंश के फूल
* बोनसाई बनाएं - क्विक ट्यूटोरियल
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उपसंहार
खोजते-खोजते इतना पता चल पाया है कि यह सारी जानकारी अभी भी विरोधाभासी है। एक तरफ इंटरनैट पर रोडोडेंड्रॉन शहद खुलेआम बिक रहा है दूसरी ओर उपलब्ध जानकारी के अनुसार रोडोडेंड्रॉन की समस्त प्रजातियाँ ज़हरीली होती हैं और उसके पुष्प से बना शहद भी।
* रोडोडैंड्रॉन शहद यहाँ बिक रहा है
* इनके अनुसार रोडोडैंड्रॉन का शहद ऐंटिऑक्सिडैंट होता है
* रोडोडेंड्रॉन की समस्त प्रजातियाँ ज़हरीली हैं। इसकी पत्तियों का ज़हरीला रस खटमल मारने के लिये प्रयुक्त होता है। इनके पुष्प भी अधिक मात्रा में लेने पर नशा या विष का प्रभाव उत्पन्न करते हैं। (स्रोत: प्लांट्स फॉर अ फ्यूचर) शायद शर्बत/चाय में कम मात्रा में लेने से उतना असर नहीं होता होगा।
* रोडोडेंड्रोन के पुष्परस से बने शहद में ग्रेयानोटोक्सिन (Grayanotoxin) नामक विष होने की सम्भावना रहती है जिसके सेवन से होने वाली बीमारी को "मैड" हनी डिज़ीज़ कहा गया है। तुर्की और ऑस्ट्रिया में 1980 के दशक में यह बीमारी देखी गयी थी और इसके सम्भावित प्रभावित क्षेत्रों की सूची में नेपाल का नाम भी दिया है। (स्रोत: "मैड" हनी डिज़ीज़)
* संक्रमक आतंकवाद - ऐटलांटिक मंथली, मई 1991 का एक अंग्रेज़ी आलेख
* ६ अप्रैल वर्ष 2010 के इस समाचार के अनुसार भारत तिब्बत सीमा सीमा पुलिस बटालियन ४ के जन कार्यवाही योजना की पहल एवं सहयोग एवं अन्य निजी व सरकारी संस्थाओं के सहयोग से अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के सक्प्रेट ग्राम में बुरांश पुष्प के रस, जम आदि का सहकारी कारखाना स्थापित किया गया है।
... और अंततः
निम्न लिंक स्पष्ट रूप से कहा रहा है कि जहां विश्व के अधिकाँश रोडोडेंड्रॉन विषैले होते हैं वहीँ हिमालय के लाल पुष्प वाली प्रजाति (बुरुंश, बुरांश, लाली गुरांस, रोडोडैंड्रोन आर्बोरियम, या Rhododendron arboreum) भोज्य होती है। मुझे लगता है कि इस कड़ी के साथ इस खोज को संपन्न समझा जाए।
* Keys to India - Rhododendron Yum
इसी बीच नेपाल से श्री प्रेम बल्लभ पांडे जी ने लाली गुराँस के फूलों के चित्र ईमेल से भेजने की कृपा की। मैं उनका आभारी हूँ। आप सभी के सहयोग और जानकारी के लिए धन्यवाद।
बिल्कुल नयी और अच्छी सी जानकरी..... आभार
ReplyDeleteधन्यवाद मदर्स डे की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
नयी जानकारी आभार
ReplyDeleteआपके लेख से अच्छी जानकारी मिली.बुरांश के ऊपर वैज्ञानिक शोध तो होना ही चाहिये.आभार.
ReplyDeleteSome species of rhododendron are poisonous to grazing animals because of a toxin called grayanotoxin in their pollen and nectar. People have been known to become ill from eating honey made by bees feeding on rhododendron and azalea flowers. Xenophon described the odd behavior of Greek soldiers after having consumed honey in a village surrounded by Rhododendron ponticum during the march of the Ten Thousand in 401 BC. Pompey's soldiers reportedly suffered lethal casualties following the consumption of honey made from Rhododendron deliberately left behind by Pontic forces in 67 BC during the Third Mithridatic War. Later, it was recognized that honey resulting from these plants have a slightly hallucinogenic and laxative effect.[19] The suspect rhododendrons are Rhododendron ponticum and Rhododendron luteum (formerly Azalea pontica), both found in northern Asia Minor. Eleven similar cases have been documented in Istanbul, Turkey during the 1980s.[20] Rhododendron is extremely toxic to horses, with some animals dying within a few hours of ingesting the plant, although most horses tend to avoid it if they have access to good forage. The effects of Rhododendron ponticum was mentioned in the 2009 film Sherlock Holmes as a purposed way to arrange a fake execution.[21]
ReplyDeletehttp://en.wikipedia.org/wiki/Rhododendron
बिल्कुल ही नया और रोचक तथ्य।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ...
ReplyDeleteकिन्तु बुरांश यहां बुंदेलखंड में नहीं मिलता.
मौसम के अनुकूल बहुत सुन्दर पोस्ट!
ReplyDelete--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
"नन्हें सुमन"
इसके जहरीले होने के बारे में पहली बार पढ़ रहा हूँ। इतना खूबसूरत फूल और वो भी जहरीला! यकीन नहीं होता।
ReplyDeleteमैने तो इस आहार के बारे में सुना भी नही था..पुष्पहार के बारे में इतने विधिवत जानकारी देने के लिए धन्यवाद..
ReplyDeleteइस नयी जानकारी के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteइस बारे में तो हमें पता ही नही ... पता नही ये दुबई में होता भी है या नही ...
ReplyDeleteपिछले साल मायावती अद्वैत आश्रम स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित (उतराखंड )जो की लौह्घट से ९ किलोमीटर है वहां जाना हुआ था वहां बुरांश के फूलो को इतनी मात्रा में देखकर आश्चर्य हुआ था |वाही पर आश्रम में इन फूलो का जम भी खाया जो हमारे सामने ही बनाया गया था |लौह्घटके बाजार में इसका शरबत और जेम खूब बिकता है |
ReplyDeleteये लिंक है
http://en.wikipedia.org/wiki/Advaita_Ashrama
मेरे लिए तो बिलकुल नई जानकारी है-अच्छी लगी.
ReplyDeleteइसके बारे में और जानने की उत्सुकता है.
जो प्रश्न आपने उठाए हैं उसकी जानकारी मिले तो फिर हम सब से भी साझा करिये .
आभार.
पता नहीं मैंने बुरांश देखा भी है या नहीं,सुना बहुत है -नयी जानकारी !
ReplyDeleteनाम एक बार कहीं सूना था इस फूल का,सन्दर्भ याद नहीं.. वनस्पति शास्त्र का विद्यार्थी नहीं हूँ, अतः कोइ ज्ञान नहीं.. सीखने को मिला यहाँ इस फूल के बारे में..
ReplyDeleteबुरांस के शर्बत/पेय अब अन्य शर्बतों की भाँति बॉटल बंद और टैट्रापैक में भी मिलते है।
ReplyDeleteअल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जैसे बड़े पहाड़ी शहरों में इसका बड़ा कारोबार है।
आपने जो जानकारी उसके लिए आपका आभार
ReplyDeleteये हमारे पहाड़ का बुरांश तो नहीं है|
ReplyDeletebahut mehanat ki hogi jaankari sankalit karne me....
ReplyDeletegreat effort!!!
नाम भी पहली बार ही सुना मैंने तो !
ReplyDelete.
ReplyDeleteजहाँ तक मैं समझती हूँ , यह एक ornamental plant है , और बाग़ में hedge की तरह ज्यादा खूबसूरत लगता है । इसकी medicinal value से ज्यादा इसकी toxicity पर ध्यान देना ज्यादा ज़रूरी है। इसका उपयोग किसी जानकार अथवा चिकित्सकीय परामर्श पर ही करें तभी बेहतर है। अन्यथा इसकी विषाक्तता घातक साबित हो सकती है।
चित्र में आप भी rhododendron की ही तरह मोहक लग रहे हैं।
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बुरांश के सम्बन्ध में तो कुछ नहीं जानती,लेकिन एक सत्य घटना सांझा करना चाहूंगी...
ReplyDeleteएक परिचित हैं....गंभीर रूप से कैंसर से पीड़ित थे..एलोपैथ ने स्टेज थ्री बताया था और जिस तेजी से स्थिति बिगडती जा रही थी बचने की सम्भावना क्षीण होती जा रही थी...उन्हें एक पंडित ने बताया कि तीन माह तक लगातार शिव आराधना करें और जब काफी सारे लोग मंदिर में पूजा कर चुके हों तो शिव लिंग पर जलाभिषेक कर कम से कम आधा लोटा अभिषिक्त जल का पान कर लें...उन्होंने यह किया और उनकी दशा में अभूतपूर्व सुधार होने लगा..तीन माह उपरान्त जब वे पुनः पंडित जी के पास पहुंचे तो पंडित जी ने सलाह दी कि अब वे जाकर अपने कैंसर की जांच कराएँ..
उन्होंने जाकर करवाया और पता चला कि रोग लगभग समाप्तप्राय है..अचंभित मन जब उन्होंने पंडित जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में कैंसर एक जहरीला घाव है और उन्होंने जो उपाय उन्हें बताया था वस्तुतः वह जहर को जहर से मारने का प्रयास था..
भगवान् शंकर पर जितने भी पुष्प आदि चढ़ाए जाते हैं,लगभग सभी जहरीले होते हैं और अभिसिंचित जल में उसकी मात्रा बहुत्तायत में होती है..तो इस प्रकार इस उपाय ने उनकी जान बचाई...
रंजना जी,
ReplyDeleteयदि जनहित में आप उपरोक्त घटना के बारे में कुछ और जानकारी (यथा कैंसर का प्रकार, शिवालय का स्थान और चित्र) दे सकें तो कृपा होगी। हो सके तो एक पूरी पोस्ट ही लिखिये परिचित की व्यक्तिगत जानकारी बताने की आवश्यकता नहीं है जब तक वे खुद इसके पक्ष में न हों।
मेरे लिए तो सब कुछ 'पहली ही बार' है। बुरांश के फूल अब तक नहीं देखे। चित्रों से न तो बात बनती है न ही मन भरता है। आपने ज्ञान वृध्दि की।
ReplyDeletepahalee baar is sharbat kaa naam sunaa hai| meree maaMM ghar me bahut se sharbat banaayaa karatee thee kyoMki pitaa jee hakeem the to dukaan ke liye banaaye jaate they. lekin isake baare me jaanakaaree nahin hai| aapako pataa cale to agalee posT me aur janakari den| dhanyavaad|
ReplyDeleteपुष्पाहार पढ़ा, धन्यवाद. मै भी बाराबंकी के ग्रामीण परिवेश में जा पहुंचा. आपको पढ़कर पढने की अच्छी आदत एक बार फिर पड़ रही है. पुनः धन्यवाद
ReplyDeleteis sharbat ke baare me pahli baar jaana ,tasvir bahut hi lubhavani hai ,happy mothers day
ReplyDeleteएसा पेड और एसा फूल मेरे देखने में नहीं आया नाम भी पहली बार सुना ।
ReplyDeleteज्ञान वर्धन तो हमारा हुआ। वैसे ’घुघूती जी’ और विचारशून्य ब्लॉग वाले ’दीप पाण्डेय’ जी की टिप्पणी से कुछ प्रकाश डल सकता था। और अपेक्षा भी थी।
ReplyDeleteयह लेख बहुत बढ़िया रहा। काश, कोई वनस्पतिशास्त्री या पहाड़ में रहने वाला इस विषय पर अधिक बता पाता। हमसे पहले की पीढ़ी भी इस विषय पर जानकारी रखती रही होगी। अब भी बाहुत से लोग होंगे जो विभिन्न वनस्पतियों के गुण दोष जानते होंगे। समय रहते यह ज्ञान संजो लिया जाना चाहिए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Patali-The-Village जी सही कह रही हैं, ये अपने पहाड़ का बुरांश नहीं लगता
ReplyDeleteअनुराग भाई , आजकल उत्तर अमरीका मे ,
ReplyDeleteफूलों की बहार आयी हुई है और पास पडौस मे , खिले हुए पुष्प ध्यान खेंच रहे हैं तब आप की
इतनी विशद जानकारी भरी सुंदर पोस्ट अभी पढ़ पायी हूँ वह बहुत सामयिक लग रही है
स स्नेह,
- लावण्या
इस नाम की एक दवाई भी है होमियोपैथिक....
ReplyDeleteइससे पहले मतलब नयी पोस्ट में खूबसूरत चित्र देखे. मनमोहक हैं...
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