बोनसाई के चित्रों की मेरी पिछली पोस्ट पर अपेक्षित प्रतिक्रियाएँ आयीं. कुछ लोगों को चित्र पसंद आये. सुलभ जायसवाल और भारतीय नागरिक ने बोनसाई कैसे बनाए जाते हैं यह जानना चाहा. रंजना जी को एक उड़िया फिल्म की याद आयी. मैं उनकी दया भावना की कद्र करता हूँ इसलिए कोई सफाई देने की गुस्ताखी नहीं करूंगा. भूतदया एक दुर्लभ सदगुण है और जिनके मन में भी है उनके लिए मेरे मन में बड़ा आदर है.
याद रखिये कि सच्चे बोनसाई पौधे नहीं वृक्ष हैं इसलिए उस जाति के पौधे चुनिए जो वृक्ष बन सकते हैं. मध्यम ऊंचाई के वृक्ष या झाडी आदर्श हैं. फाइकस जाति (अंज़ीर, वट, पीपल, गूलर, पाकड़ आदि) के वृक्षों की जड़ें प्राकृतिक रूप से उथली होती हैं इसलिए वे बोनसाई के लिए अच्छे प्रत्याशी हैं. मैंने बहुत से पेड़ जैसे चीड, कटहल, मौलश्री आदि दिल्ली में सफलता से उगाये थे - यह सभी वृक्ष भारत के मैदानी क्षेत्रों में आराम से रह जाते हैं. अमरुद, आम, अनार, स्ट्राबेरी आदि की प्राकृतिक रूप से छोटी नस्लें आसानी से मिल जाते हैं, उन्हें लगाएँ. लखनऊ में बौटेनिकल गार्डन के बाहर बहुत से पौधे मिलते हैं. अन्य नगरों में भी पौधशालाएँ मिल ही जायेंगी.
मृदा:
किताबों में अक्सर मिट्टी को कृमिरहित करने की बात कही गयी होती है मगर मैंने हमेशा बाग़ की मिट्टी का प्रयोग पत्तों और गोबर की खाद के साथ किया है. इतना ध्यान रहे कि पत्ते और गोबर की सड़न प्रक्रिया गमले में रखने से पहले ही पूरी हो चुकी हो. भारत में नीम के पत्तों की खाद मिलती है. उसका प्रयोग भी किया जा सकता है.
ध्यान रहे:
जड़ों पर ज़रा सी धूप या हवा लगने भर से एक छोटा पौधा मर सकता है. जब भी मिट्टी बदलें, जड़ें काटें या पहली बार बर्तन में लगाएँ तो पौधे की जड़ों पर मिट्टी जमी रहने दें और या तो उसे गीले कपड़े में या पानी की बाल्टी/कनस्तर में रखें. ऐसे सारे काम शाम को ही करें ताकि बदलने के तुरंत बाद कड़ी धूप या गर्मी से बचाव हो सके. मिट्टी को मॉस घास या सूखी साधारण घास से ढंके रहने से मिट्टी की नमी देर तक रहती है. जड़ों में पानी कभी न ठहरने दें. शुरूआत में अधिकाँश पौधे जड़ें गलने से मरते हैं न कि मिट्टी सूखने से.
पात्र:
ऐसा हो कि उसमें कुछ पानी डालने पर मिट्टी इस तरह न बहने पाए कि जड़ें खुल जाएँ. शुरूआत बड़े बर्तन या गमले से से करें. अपना अनुभव और पौधे की दृढ़ता बढ़ने के बाद बर्तन छोटा कर सकते हैं. कहावत भी है पेड़ बड़ा और बर्तन छोटे.
श्रीगणेश:
अब आते हैं सबसे ख़ास मुद्दे पर, यानी बोनसाई का पुंसवन संस्कार. एक बोनसाई की शुरुआत आप बीज से भी कर सकते हैं. खासकर जिस तरह गर्मियों के दिनों में इधर-उधर बिखरी आम की गुठलियों में से बिरवे निकलते रहते हैं या दीवारों की दरारों में पीपल आदि उगते हैं - वे इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं. मैं बोनसाई के लिए गुठली का प्रयोग तभी करता हूँ जब तैयार पौध मिलना असंभव सा हो. जैसे दिल्ली में हमने चीड़ एवं कटहल तथा पिट्सबर्ग में लीची बीजों से उगाई थी. अगर बीज से उगाने की मजबूरी हो तो पहले पौधे को ज़मीन पर पनपने दीजिये क्योंकि छोटे बर्तन में वर्षों तक वे पौधे जैसे ही रह जाते हैं और वृक्ष सरीखे नहीं दिखते हैं.
त्वरित-बोनसाई:
पौधशाला से एक-दो इंच मोटे व्यास के तने का पौधा गमले (या जड़ की थैली) सहित लाइये. उस पर अच्छी तरह जल का छिडकाव करें. बड़ी डंडियाँ सफाई से काटकर (कुतरकर नहीं - छाल न छिले) कुछेक डंडियाँ रहने दीजिये. जड़ को मिट्टी समेत निकालकर सबसे दूर वाली जड़ों को उँगलियों से कंघी जैसी करके तेज़ कैंची से काट दें. छाया में रहें और जितनी जल्दी संभव हो नए बर्तन में लगाकर जड़ों को मिट्टी से पूर्णतया ढँक दें. ध्यान रहे कि बची हुई जड़ें इस प्रक्रिया में मुड़ें या टूटें नहीं.
देखरेख:
उसी प्रजाति के किसी बड़े वृक्ष की तरह ही उसके छोटे रूप को भी पूरी धूप चाहिए यानी जैसा पौधा वैसी धूप. खाद और जल की मात्रा पौधे और बर्तन के आकार के अनुपात में ही हो, कुछ कम चल जायेगी मगर ज़्यादा उसे मार सकती है. आवश्यकतानुसार अतिरिक्त डंडियों की छंटाई समय-समय पर करते रहें. पत्तों की धूल गीले और साफ़ रुमाल से हटा सकते हैं परन्तु ध्यान रहे कि पत्तों पर किसी तरह की चिकनाई न लगे, आपकी त्वचा की भी नहीं. हर एकाध साल में पौधे को गमले से निकालकर अतिरिक्त जड़ों को सफाई से काट दें और इस प्रकार खाली हुए स्थान को खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर दें.
गुरु की सीख:
बलरामपुर में रहने वाले हमारे गुरुजी किसी का किस्सा सुनाते हैं जो न बढ़ने वाले, या बीमार हो रहे पौधों को फटकार देते थे, "दो दिन में ठीक नहीं हुए तो उखाड़ फेंकेंगे." अधिकाँश पौधे डर के मारे सुधर जाते थे.
शुभस्य शीघ्रम:
बस शुरू हो जाइए, और अपनी प्रगति बताइये. हाँ यदि जामुन की बोनसाई (और वृक्ष भी) लगाते हैं तो मुझे बड़ी खुशी होगी. यहाँ आने के बाद जामुन देखने को आँखें तरस गयी हैं.
स्ट्राबेरी का चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Strawberry photo by Anurag Sharma
बोनसाई पर एक क्विक ट्यूटोरियल(भारतीय नागरिक के अनुरोध पर त्वरित कुंजी)पौधे:
याद रखिये कि सच्चे बोनसाई पौधे नहीं वृक्ष हैं इसलिए उस जाति के पौधे चुनिए जो वृक्ष बन सकते हैं. मध्यम ऊंचाई के वृक्ष या झाडी आदर्श हैं. फाइकस जाति (अंज़ीर, वट, पीपल, गूलर, पाकड़ आदि) के वृक्षों की जड़ें प्राकृतिक रूप से उथली होती हैं इसलिए वे बोनसाई के लिए अच्छे प्रत्याशी हैं. मैंने बहुत से पेड़ जैसे चीड, कटहल, मौलश्री आदि दिल्ली में सफलता से उगाये थे - यह सभी वृक्ष भारत के मैदानी क्षेत्रों में आराम से रह जाते हैं. अमरुद, आम, अनार, स्ट्राबेरी आदि की प्राकृतिक रूप से छोटी नस्लें आसानी से मिल जाते हैं, उन्हें लगाएँ. लखनऊ में बौटेनिकल गार्डन के बाहर बहुत से पौधे मिलते हैं. अन्य नगरों में भी पौधशालाएँ मिल ही जायेंगी.
मृदा:
किताबों में अक्सर मिट्टी को कृमिरहित करने की बात कही गयी होती है मगर मैंने हमेशा बाग़ की मिट्टी का प्रयोग पत्तों और गोबर की खाद के साथ किया है. इतना ध्यान रहे कि पत्ते और गोबर की सड़न प्रक्रिया गमले में रखने से पहले ही पूरी हो चुकी हो. भारत में नीम के पत्तों की खाद मिलती है. उसका प्रयोग भी किया जा सकता है.
1995 - पिताजी तीन बोनसाई के साथ - फलित अनार, पाकड़, जूनिपर
ध्यान रहे:
जड़ों पर ज़रा सी धूप या हवा लगने भर से एक छोटा पौधा मर सकता है. जब भी मिट्टी बदलें, जड़ें काटें या पहली बार बर्तन में लगाएँ तो पौधे की जड़ों पर मिट्टी जमी रहने दें और या तो उसे गीले कपड़े में या पानी की बाल्टी/कनस्तर में रखें. ऐसे सारे काम शाम को ही करें ताकि बदलने के तुरंत बाद कड़ी धूप या गर्मी से बचाव हो सके. मिट्टी को मॉस घास या सूखी साधारण घास से ढंके रहने से मिट्टी की नमी देर तक रहती है. जड़ों में पानी कभी न ठहरने दें. शुरूआत में अधिकाँश पौधे जड़ें गलने से मरते हैं न कि मिट्टी सूखने से.
पात्र:
ऐसा हो कि उसमें कुछ पानी डालने पर मिट्टी इस तरह न बहने पाए कि जड़ें खुल जाएँ. शुरूआत बड़े बर्तन या गमले से से करें. अपना अनुभव और पौधे की दृढ़ता बढ़ने के बाद बर्तन छोटा कर सकते हैं. कहावत भी है पेड़ बड़ा और बर्तन छोटे.
श्रीगणेश:
अब आते हैं सबसे ख़ास मुद्दे पर, यानी बोनसाई का पुंसवन संस्कार. एक बोनसाई की शुरुआत आप बीज से भी कर सकते हैं. खासकर जिस तरह गर्मियों के दिनों में इधर-उधर बिखरी आम की गुठलियों में से बिरवे निकलते रहते हैं या दीवारों की दरारों में पीपल आदि उगते हैं - वे इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं. मैं बोनसाई के लिए गुठली का प्रयोग तभी करता हूँ जब तैयार पौध मिलना असंभव सा हो. जैसे दिल्ली में हमने चीड़ एवं कटहल तथा पिट्सबर्ग में लीची बीजों से उगाई थी. अगर बीज से उगाने की मजबूरी हो तो पहले पौधे को ज़मीन पर पनपने दीजिये क्योंकि छोटे बर्तन में वर्षों तक वे पौधे जैसे ही रह जाते हैं और वृक्ष सरीखे नहीं दिखते हैं.
त्वरित-बोनसाई:
पौधशाला से एक-दो इंच मोटे व्यास के तने का पौधा गमले (या जड़ की थैली) सहित लाइये. उस पर अच्छी तरह जल का छिडकाव करें. बड़ी डंडियाँ सफाई से काटकर (कुतरकर नहीं - छाल न छिले) कुछेक डंडियाँ रहने दीजिये. जड़ को मिट्टी समेत निकालकर सबसे दूर वाली जड़ों को उँगलियों से कंघी जैसी करके तेज़ कैंची से काट दें. छाया में रहें और जितनी जल्दी संभव हो नए बर्तन में लगाकर जड़ों को मिट्टी से पूर्णतया ढँक दें. ध्यान रहे कि बची हुई जड़ें इस प्रक्रिया में मुड़ें या टूटें नहीं.
देखरेख:
उसी प्रजाति के किसी बड़े वृक्ष की तरह ही उसके छोटे रूप को भी पूरी धूप चाहिए यानी जैसा पौधा वैसी धूप. खाद और जल की मात्रा पौधे और बर्तन के आकार के अनुपात में ही हो, कुछ कम चल जायेगी मगर ज़्यादा उसे मार सकती है. आवश्यकतानुसार अतिरिक्त डंडियों की छंटाई समय-समय पर करते रहें. पत्तों की धूल गीले और साफ़ रुमाल से हटा सकते हैं परन्तु ध्यान रहे कि पत्तों पर किसी तरह की चिकनाई न लगे, आपकी त्वचा की भी नहीं. हर एकाध साल में पौधे को गमले से निकालकर अतिरिक्त जड़ों को सफाई से काट दें और इस प्रकार खाली हुए स्थान को खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर दें.
गुरु की सीख:
बलरामपुर में रहने वाले हमारे गुरुजी किसी का किस्सा सुनाते हैं जो न बढ़ने वाले, या बीमार हो रहे पौधों को फटकार देते थे, "दो दिन में ठीक नहीं हुए तो उखाड़ फेंकेंगे." अधिकाँश पौधे डर के मारे सुधर जाते थे.
शुभस्य शीघ्रम:
बस शुरू हो जाइए, और अपनी प्रगति बताइये. हाँ यदि जामुन की बोनसाई (और वृक्ष भी) लगाते हैं तो मुझे बड़ी खुशी होगी. यहाँ आने के बाद जामुन देखने को आँखें तरस गयी हैं.
स्ट्राबेरी का चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Strawberry photo by Anurag Sharma
ye aapne bahut hi accha kiya hai..
ReplyDeletelogon ko is shauk ki taraf jaane ki prerna bhi milegi aur ek naye hunar se do-chaar bhi ho jaayenge...
aapka aabhaar...
विचारणीय आलेख
ReplyDeleteआभार
ब्लाग4 वार्ता प्रिंट मीडिया पर प्रति सोमवार
बड़े काम की जानकारी देने के लिए ...आभार
ReplyDeleteये सही सीख दी..बढ़िया क्लास!!
ReplyDeleteमैं इलाहाबाद मण्डल के डीआरएम के पीए से तकाजा करता रह गया कि वह कहीं से एक दो बोंसाई ला कर दे दे। अब लगता है आपकी पोस्टों से प्रेरणा ले स्वयम तैयार करने होंगे।
ReplyDeleteपत्नीजी को मोटीवेट करता हूं!
बोनसाई में रुचि रखनेवालों के लिए यह जानकारी तो मानो अनमोल निधि है।
ReplyDeleteबोन्साई मैं पहले घर में रख चुका हूँ। अभी नहीं है। चलिए आप कहते हैं तो जामुन से ही आरंभ करते हैं। वैसे अदालत परिसर में कुछ जामुन के वृक्ष हैं और इन दिनों बिना पके जामुनों से लदे हुए हैं। सप्ताहांत के बाद उन के चित्र आप के लिए सहेजने का प्रयत्न करता हूँ।
ReplyDeleteछोटा था तब बोनसाई बनाने में मेरी रूचि थी .गमले में उग रहे वृक्ष बहुत आकर्षित करते थे. तब बहुत बार कोशिश की थी बोनसाई बनाने की. आज मेरा बेटा भी जब भी कोई फल खाता है तो उसका बीज गमले में उगा अता है. उसके प्रयास से गमलों में मेरे पास लीची, चीकू और आम के, बीज से उगे हुए पोंधे है. जब से वास्तुशास्त्र में रूचि हुई तो पता चला की बोनसाई को घर में लगाना शुभ नहीं होता. पर फिर भी आपके पिछले और वर्तमान लेख ने मुझे मेरे पुराने शौक की याद दिला दी और लगा की ये आदमी अपनी तरह का ही है.
ReplyDeletethanks for sharing
ReplyDeleteregards
ऐसे लेख हिन्दी को समृद्ध करते हैं। बहुत आवश्यकता है ऐसे विविध विषयी लेखों की।
ReplyDelete@बलरामपुर में रहने वाले हमारे गुरुजी किसी का किस्सा सुनाते हैं जो न बढ़ने वाले, या बीमार हो रहे पौधों को फटकार देते थे, "दो दिन में ठीक नहीं हुए तो उखाड़ फेंकेंगे." अधिकाँश पौधे डर के मारे सुधर जाते थे.
घर के बाहर लगाए गए हरसिंगार और अमलतास के पौधों को डाँट लगाता हूँ। बढ़ ही नहीं रहे, जमीन में लगे हैं लेकिन बोनसाई हो रहे हैं :)
पिछली पोस्ट से सबक मिली - बोनसाई न लगाओ। लहलहाते कनैल को कोई पतित तीन दिनों तक लगातार तोड़ तोड़ कर कुंठित कर गया। क्रोध को सँभाल पाया कि जहाँ कोई बस न हो वहाँ क्यों दु:खी होना लेकिन बोनसाई मरेंगे तो अपने को समझा भी नहीं पाऊँगा।
श्रीमतीजी को पढ़ाते हैं, उन्हें शौक है ।
ReplyDelete@ गिरिजेश राव
ReplyDeleteहरसिंगार और अमलतास...
नाम पढ़ते ही हारसिंगार की दैवी सुवास मानो आसपास भर गयी...
पतितों की समस्या काफी जटिल है.
@ पाण्डेय जी, (द्वय)
ज़रूर - नेकी और पूछ-पूछ!
@ द्विवेदी जी
हार्दिक आभार! चित्रों की प्रतीक्षा रहेगी.
@ VICHAAR SHOONYA
ReplyDeleteबीज से लीची उगाकर आपने तो कमाल कर दिया. लीची के बीज अगर फल से निकलने के तुरंत बाद (गीली) मिट्टी में दबा दिए जाएँ तो उग आते हैं. देर होने पर या सूख जाने पर नहीं पनपते.
यह शंकालु नव-वास्तु कब आया पता नहीं मगर बोन-साई (पात्र में पौधा) भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है.
आपकी "नर्क से स्वर्ग" पोस्ट पर टिप्पणी नहीं हो पा रही थी इसलिए यहाँ लिख रहा हूँ - नर्क का एक अर्थ नीची ज़मीन (पहाड़ का विलोम?) भी होता है.
बागवानी का तो बड़ा शौक है. जानकारी के आभाव में बोनसाई कभी ट्राय नहीं कर पाया. .... अब आपके मार्गदर्शन में कोशिश करते हैं.
ReplyDeleteबेहतरीन ब्लॉग और बढ़िया पोस्ट.
धन्यवाद !
इतना अंदाजा तो था कि बोनसाई पौधे बनाना बड़ा श्रमसाध्य होगा, पर विवरण पढ़ आज इसकी पुष्टि हो गयी ...
ReplyDeleteयह भी स्पष्ट हुआ कि आप को पेड़ पौधों से बड़ा लगाव होगा...बड़ा सुखद लगा यह जानना...
आपसे एक अनुरोध है...यदि हो सके तो अपने जीवन में फलों (पूर्ण विकसित हो सकने योग्य) तथा नीम इत्यादि के कुछ पेड़ अवश्य लगायें...स्वयं भी लगायें तथा औरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें...हम प्रकृति से जितना कुछ लेते हैं , अपने जीवन में उसका एक क्षीण अंश भी यदि चुका सकें ,तो बड़ा अच्छा रहेगा ...नहीं ?
वड़े परिश्रम का काम है...मेरे जैसों के बूते का नहीं
ReplyDeleteबहुत अच्छा किया आपने मेरे अनुरोध को मानकर. धन्यवाद. एक तो जरूर बनाकर देखता हूं...
ReplyDeleteरंजना जी, फलधारी वृक्ष लगाने की आपकी सलाह बहुत अच्छी है. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. साथ ही वृक्ष फल के साथ-साथ पक्षियों को आश्रय भी देते हैं. भविष्य पुराण के अनुसार एक वृक्ष कई सुकर्मा बेटों से अधिक पुण्यशाली है.
ReplyDeleteशुक्रिया 'इंडियन' जी .
ReplyDeleteआज आपका ये ब्लॉग देखा ,कुछ नया और अलग जानने को मिला तो अच्छा लगा और सबसे अच्छी
लगी ''आपके गुरु की सीख ''.
शुक्रिया ...हम भी ये प्रयोग करेंगे
ReplyDeleteham paakad,peepal ka bonsai taiyaar karne me lage hain, aapki baato se jaankari mili ki Jamun aur aam bhi upukt hai bonsai ke liye, hamare gamle me jamun aur aam bhi hain, unki bhi bonsai banaane ka ab prayaas karoonga, Margdarshan k liye Dhanyavaad. prashant
ReplyDeleteशुक्रिया ...हम भी ये प्रयोग करेंगे
ReplyDeletebde bhaiya ne blog dhoondha aur poochha 'inhe pahchanti hai?' maine kahaa'wow! ye to hmare Anurag ji ka blog hai. aapko kaise mila?" unhone btaya ki wo bonsais ke baare me search kr rhe the' aur.....pahunch gaye hm dono bhai behen. ha ha ha jio jio mere bhai!
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