जब मैं पहली बार अमेरिका आया तो नयी जगह पर सब कुछ नया सा लगा। मेरे एक सहकर्मी बॉब ने मुझे बहुत सहायता की। उनकी सहायता से ही मैंने पहला अपार्टमेन्ट ढूँढा और उन्होंने ही अपनी कार से मुझे एक स्टोर से दूसरे स्टोर तक ले जाकर सारा ज़रूरी सामान और फर्नीचर खरीदने में मदद की। हम लोग हर शाम को दफ्तर से सीधे बाज़ार जाते और जितना सामान उनकी कार में फिट हो जाता ले आते थे।
एक दिन मैं उनके साथ जाकर परदे और चादरें आदि लेकर आया। बहुत सारे पैकेट थे। घर आकर जब समान देखना शुरू किया तो पाया कि बेडशीट का एक पैकेट नहीं था। जब रसीद चेक की तो पाया कि भुगतान में वह पैकेट भी जोड़ा गया था मगर किसी तरह मेरे पास नहीं आया। मुझे ध्यान आया कि सेल्सगर्ल मेरा भुगतान कराने के बीच में कई बार फ़ोन भी अटेंड कर रही थी। हो न हो उसी में उसका ध्यान बंटा होगा और वह भूल कर बैठी होगी। मैंने रसीद पर छपे फ़ोन नंबर से स्टोर को फ़ोन किया। सारी बात बताई तो स्टोर प्रतिनिधि ने स्टोर में आकर अपना छूटा हुआ पैकेट ले जाने को कहा। अगले दिन मैं फिर से बॉब के साथ वहाँ गया। स्टोर प्रतिनिधि ने मेरा पैकेट देने के बजाय मुझे स्टोर में जाकर वैसी ही दूसरी बेडशीट लाने को कहा। मैं ले आया तो उसने क्षमा मांगते हुए उसे पैक करके मुझे दे दिया।
मैं अमरीकी व्यवसायी की इस ग्राहक-सेवा से अति-प्रसन्न हुआ और हम दोनों राजी खुशी वापस आ गए। भारत में अगर किसी कमी की वजह से भी बदलना पड़ता तो भी वह कभी आसान अनुभव नहीं था, गलती से दूकान में ही छूट गए सामान का तो कहना ही क्या।
मगर बात यहाँ पर ख़त्म नहीं हुई। करीब सात-आठ महीने बाद बॉब ने एक नयी कार ख़रीदी और अपनी पुरानी कार को ट्रेड-इन किया। जब उसने पुरानी कार देने से पहले उसके ट्रंक में से अपना सामान निकाला तो पाया कि मेरा खोया हुआ बेडशीट का पैकेट उसमें पड़ा था। मतलब यह कि स्टोर ने पहली बार में ही हमें पूरा सामान दिया था।
ग्राहक के कथन का आदर और दूसरों पर विश्वास यहाँ एक आम बात है। बहुत से राज्यों में इसके लिए विशेष क़ानून भी हैं। मसलन मेरे राज्य में अगर आपको नयी ख़रीदी हुई कार किसी भी कारण से पसंद नहीं आती है तो आप पहले हफ्ते में उसे "बिना किसी सवाल के" वापस कर सकते हैं।
एक बार मेरी पत्नी का बटुआ कहीं गिर गया। अगले दिन किसी का फ़ोन आया और उन्होंने बुलाकर सब सामान चेक कराकर बटुआ हमारे सुपुर्द कर दिया। जब हमने यह बात एक भारतीय बुजुर्ग को बताई तो उन्होंने अपना किस्सा सुनाया। जब वे पहली बार अमेरिका आए तो एअरपोर्ट आकर उन्होंने टेलीफोन बूथ से कुछ फ़ोन किए और फिर अपने मेजबान मित्र के साथ उनके घर चले गए। जाते ही सो गए अगले दिन कहीं जाकर उन्हें याद आया कि उन्होंने अपना बटुआ फ़ोन-बूथ पर ही छोड़ दिया था। उन्होंने तो सोचा कि अब तो गया। मित्र के अनुग्रह पर वे वापस हवाई अड्डे आए और बटुआ वहीं वैसे का वैसा ही रखा हुआ पाया।
ईमानदारी यहाँ के आम जीवन का हिस्सा है। आम तौर पर लोग किसी दूसरे के सामान, संपत्ति आदि पर कब्ज़ा करने के बारे में नहीं सोचते हैं। भारत में अक्सर दुकानों पर "ग्राहक मेरा देवता है" जैसे कथन लिखे हुए दिख जाते हैं मगर ग्राहक की सेवा उतनी अच्छी तरह नहीं की जाती है। ग्राहक को रसीद देना हो या क्रेडिट कार्ड के द्वारा भुगतान लेना हो, सामान बदलना हो या वापस करना हो - आज भी ग्राहक को ही परेशान होना पड़ता है। काश हम ग्राहक-सेवा का संदेश दिखावे के कागज़ पर लिखने के बजाय आचरण में लाते।
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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[यह लेख दो वर्ष पहले सृजनगाथा में प्रकाशित हो चुका है।]
ओह सुबह, सुबह यह लेख पढ़ा! मन खुश हो गया और उदास भी। अपने सामाजिक जीवन में ईमानदारी
ReplyDeleteबरतना हम लोग न जाने कब सीख पायेंगे।
ईमानदारी यहाँ के आम जीवन का हिस्सा है- निश्चित तौर पर यह बात सीखने योग्य है इनसे.
ReplyDeleteवो सब तो ठीक है, ये बताइए अाप ने चादर वापस की कि नहीं? ;)
ReplyDeleteभारत अाने का कार्यक्रम कब बन रहा है?
कभी कभी लगता है की हम कितने गए गुजरे हो गए ....
ReplyDeleteभाई, इतने कठिन सवाल क्यों पूछते हो? फिर भी, पूछा है तो जवाब हाज़िर है -
ReplyDelete1. वह चादर मैंने देखी ही नहीं, डॉ. साहब स्वयं ही गुडविल नामक स्वयंसेवी संस्था में अपने कुछ अन्य कपड़ों के साथ दान कर आये.
2. ठीक से पता नहीं मगर आयेंगे तो लखनऊ ज़रूर आयेंगे, यह तय है. लसोड़े, सेमरगुल्ले, करौंदे, हरी मिर्च आदि की सब्जी बनवा लेना.
हर कोई अक्सर ये कहते पाया जाता है कि हम पश्चिम की नकल करते हैं इस लिये हमारी संस्कृ्ति का क्षय हुया है मगर वहाँ जा कर और वहाँ की संस्क्र्ति को देख कर कुछएक बातों के सिवा मुझे लगा उन लोगों मे ेअभी बहुत कुछ हम से अच्छा और सीखने योग्य है। मगर हम बुरी बातें तो सीख लेते हैं अच्छी बातें भूल जाते हैं सार्थक पोस्ट। शुभकामनायें
ReplyDeleteऔर तो सब सही है, पर चादर को दान में देना बिलकुल नहीं भाया। चादर क्षमा याचना सहित वापस दुकानदार को वापस लौटानी चाहिए थी। आश्चर्य भी हुआ कि अमरीका में चादर दान में प्राप्त करने वाली स्थिति वाले लोग भी हैं।
ReplyDeleteअरे हमारे यहा भी ईमानदारी है ....... किताबो में.
ReplyDelete.
ReplyDeleteThanks for sharing your experiences.
I have many similar experiences in my own country -Indian.
I will always be grateful to India and Indians.
I cannot become Gandhi or Bhagat Singh still--Ye mohhabbat kabhi kam na hogi..
Ye purab hai purab wale...'Har jaan ki keemat jaante hain..'
A Proud Indian,
Divya
मैं एक भारतीय हूं।
ReplyDeleteऔर मुझे भारतीय होने पर गर्व है।
भारत में जितनी भी बुराइयां हैं वे सभी मेरे ही कारण हैं, क्योंकि यह मेरी संस्कृति है।
"बेहतरीन पोस्ट अनुराग जी अब हिन्दुस्तान में भी बदलाव आ रहा है जो नैतिकता खो चुकी थी वह अब दोबारा से जन्म ले रही है......"
ReplyDeleteईमानदारी यहाँ के आम जीवन का हिस्सा है। आम तौर पर लोग किसी दूसरे के सामान, संपत्ति आदि पर कब्ज़ा करने के बारे में नहीं सोचते हैं।
ReplyDelete- बहुत अच्छा लगा यह सुन कर. विदेश में रह रहे ब्लोगर बन्धु अपने अपने देशों की अच्छाइयों, बुराइयों से अवगत कराते रहे तो भारतीयों को भी प्रेरणा मिल सकती है.
हमारी सबसे बड़ी समस्या बढती हुई आबादी और बेरोजगारी है. आपके इस सुखद अनुभव के इए बधाई.
ReplyDeleteएक घटना याद आ रही है पता नहीं सच है या झूठ. कहीं पढ़ा था कि गांधी जी अफ्रीका में कहीं दूध लेने जाते थे, एक दिन दूध कम पड़ गया तो उन्होंने डेरी मालकिन से कहा कि आप इसमें पानी क्यों नहीं मिला लेतीं. इस पर उस महिला ने जबाव दिया कि तुम भारतीय अपने ही लोगों को धोखा देने के कारण ही इतने वर्षों से गुलाम हो. मैं अपने भाईयों को धोखा नहीं दे सकती. यहां लाला खराब चीज पहले टिकायेगा. वारण्टी में होगी तब भी नहीं ठीक करायेगा.. भारत दुर्दशा का यही कारण है कि हर आदमी दूसरे को धोखा दे रहा है.
ReplyDeleteओह लगता है यह किसी दूसरी दुनिया की बात हो रही है......
ReplyDeleteसुखद भी लगा और दुखद भी...अभी भी ऐसे स्थान हैं धरती पर,यह सुखी कर गया और अपने भारत में ऐसा कभी नहीं होगा,यह निश्चित ही अफसोसनाक है...
ईमानदारी दिखाना और सामने वाले को ईमानदार मानना, दोनों ही पक्षों में मजबूत दिखा वहाँ का समाज ।
ReplyDeleteआप की एक एक बात से सहमत हुं, मेरा पर्स एक दो बार खोया ओर मेने उसे दोबारा पाया. इस बार मेरा मोबाईल जिस पर लिखा था कि ३७० घंटे स्टेंड वाई रहे गा, उस की बेटरी ४० घंटे से ज्यादा नही चलती मेरे फ़ोन मात्र करने से वो मेरा फ़ोन घर से ले गये ओर कुछ दिनो बाद नया फ़ोन दे गये,
ReplyDeleteहम कब इन बातो मै इन की नकल करेगे
क्या कभी हम खुद ऐसी ईमानदारी आपने जीवन में ला पाएंगे? मेरा मत है कभी नहीं. बस यूँ ही दुसरे देशों की कहानियां सुन सुन कर अपना दिल ख़राब करते रहेंगे जैसा की वहां के समुद्र तटीय इलाकों की तस्वीरें देख कर अपना मन ख़राब करते रहते हैं.
ReplyDeleteईमानदारी वहाँ के जीवन का एक आम हिस्सा है, अनुकरणीय है।
ReplyDeleteवैसे हम इतनी ईमानदारी से अपनी बेईमानी स्वीकार कर लेते हैं, यह भी तो ईमानदारी ही है, वो भी उच्च स्तर की :)
निश्तित तौर पर ये सही बात है कि हम भारतियों को practically भी कुछ सीखना होगा. मेरे भी कई किस्से है जो में जरूर आपसे प्रेरित होकर लिखूंगा किसी दिन ....में तो घर कि चाबी ही २ -३ बार दरवाजे में लगी छोड़ दिया, दूसरे दिन सुबह जब घर से बाहर गए और चाबी खोजी तो पता चला कि बाहर ही लगी पड़ी है :)
ReplyDeleteसरस, रोचक और एक सांस में पठनीय रचना के लिए बधाई।
ReplyDelete@दिनेशराय द्विवेदी
ReplyDeleteआश्चर्य को नमस्कार!
@ Divya
वेरी फनी!
@ Amitraghat
आपके मुँह में घी शक्कर!
@ Anurag ji-
ReplyDeleteIt's not funny. I am just an 'odd person' here, who's view on this topic is not in consonance with yours.
But if you want me appease you...then let me say--
Indians are all 'chor-uchhake'
Videsh Jindabaad !
इसीलिए तो कहते है १०० मे से नब्बे बैईमान फिर भी मेरा भारत महान
ReplyDeleteइसीलिए तो कहते है १०० मे से नब्बे बैईमान फिर भी मेरा भारत महान जे हिंद
ReplyDeleteये और ऐसी कुछ बातें, फुटकर रूप में पढी हैं किन्तु इतनी सारी अच्छी बातें एक साथ पढना सुखकर लगता है।
ReplyDeleteहम आदर्श अनुप्रेरति समाज हैं। हम खुद 'राम' नहीं हो सकते किन्तु हमें एक राम चाहिए।
बीमा एजेण्ट होने के कारण 'अर्श से फर्श' तक के स्तर के लोगों से मिलना होता है। मेरा अनुभव है कि भारत का गरीब, भारत के अमीर की तुलना में बहुत-बहुत अधिक ईमानदार है। किन्तु भारत के गरीबों की ईमानदारी के किस्से छापने के लिए हमारे अखबारों के पास न तो फुरसत है और न ही जगह।
मेरे दोस्त जापान गए थे कुछ दिनों पहले... टैक्सी वाले ने होटल के पिछले दरवाजे पर उतार दिया. जब उन्होंने वापस आकर टैक्सी वाले से कहा कि इंट्री दूसरी तरफ से है और मुझे इतना सारा सामान लेकर जाना पड़ेगा तो ड्राईवर ने उन्हें पहुचाया भी और आधे पैसे वापस करने लगा. कई बार सॉरी बोला... वेल... मेरे दोस्त के बहुत समझाने पर ही उसने पूरे पैसे लिए... जापान पहुचते ही हुई इस एक घटना ने उन्हें इतना प्रभावित किया... वो सबसे ये किस्सा सुनाते रहते हैं.
ReplyDeleteहम लोग बेमतलब अपनी इमानदारी की कसमें खाते हैं.:)
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