भारत में भले ही कुछ नगरों के प्रशासन को रिक्शे और रिक्शा चालक अपनी शान में गुस्ताखी लग रहे हों परन्तु अमेरिका के कुछ शहरों में रिक्शा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहाँ प्रस्तुत हैं दो बड़े नगरों न्यू योर्क व वाशिंगटन डीसी से रिक्शा के चित्र:
श्री रत्न सिंह शेखावत जी ने बैट्री चलित रिक्शा के बारे में सुन्दर आलेख लिखा है, ज़रूर देखिये.
सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा
[Rickshaw in USA: Photos of by Anurag Sharma]
सही कहा आपने
ReplyDeleteआईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
ReplyDeleteबढियां -क्या शान है ?
ReplyDeleteभारत, इस क्षेत्र में अमरीका की ऐसी मदद कर सकता है कि वह भी क्या याद करेगा... रिक्शों और रिक्शेवालों का एक बार आयात चालू कर के तो देखे.. न चार दिन में ही पूरे अमरीका को चांदनी चौक न बना दिया तो :)
ReplyDelete@काजल कुमार
ReplyDeleteक्या बात कही है - ऐसे ही कोई कार्तूनिस्त नही बन जाता है.
हम जिस अच्छाई को बुराई जान छोड़ देते हैं उसे बाकी दुनिया उचित सम्मान देती है..
ReplyDeleteमनोरंजन और मजबूरी...कितना अंतर है...मजा आया देखकर.
ReplyDeleteरिक्षा भारत की मजबूरी और जरूरत है, अमरीका के लिए मौज का सामान।
ReplyDelete@ काजल कुमार
ReplyDeleteक्या खूब कही !
इस टिप्पणी के विषय को ले कर एक हास्य व्यंग्य लिखा जा सकता है। अपना मूड आजकल दूसरा है, सतीश पंचम को कोंचता हूँ।
भारत में तो रिक्शा आवागमन का एक साधन है. अमेरिका में संभवतः यह मनोरंजन का साधन होगा. जैसे भारत के अनेक शहरों में अब तांगा मनोरंजन का साधन है.
ReplyDeleteBahot umda lekh.......
ReplyDeleteVastav me Bharat ke pas vo sab tarike hai jisse wah sukhi rah sake kintu dekha-dekhi galat kar baithta hai......ab dekhiyega ricsa ko USA ne achha kaha hai to bhart wale bhi sochna suru karenge..
सही बात है मैने भी सैन्फ्राँसिसको मे देखे थे। वहाँ कई लोग बस मौज मस्ती और शौक के लिये ही इन पर घूमते हैं। चित्र बहुत अच्छे लगे
ReplyDeleteसर जी, इको फ़्रेंडली होने के कारण, सस्ता और सुलभ होने के कारण रिक्शा आकर्षित तो बहुत करता है, पर अपन बहुत अवायड करते हैं इस पर सवारी करना। आदमी का आदमी को ढोना रुचता नहीं है, हां जब कभी जाना पड़े तो मोल भाव नहीं करते, बस।
ReplyDeleteप्रदूषण रहित तो है ही, मानव के ऊपर सवारी और गति की बात छोड़ दी जाये तो.
ReplyDelete
ReplyDeleteजो यहाँ पेट पालने की मज़बूरी है,
वो वहाँ दिखावे का भोगविलास ?
यहाँ के गरीब तबके की आजीविका..
वहाँ महज़ एक पर्यटन आकर्षण !
अब तो हमारे बच्चे भी फटी जीन्स पहनने को ’इट्ज़ ऍ हैपेनिंग थिं’ में शुमार करने लगे हैं ।
मॉडरेशन है ?
सादर वन्दे !
ReplyDeleteकाजल कुमार जी से सहमत ! अमेरिका एक बार मौका दे रिक्शा ही बदल देगा भारत अमरीका के सम्बन्ध को फिर सारे समझौतों पर हम हस्ताक्षर करवाएंगे वह भी अपनी शर्तों पर ..........
मजा आया इस जानकारी को पढ़कर |
रत्नेश त्रिपाठी
'मजबूरी' और 'मस्ती' का कारण जनसंख्श तो नहीं?
ReplyDeleteचित्रो के मामले मे तो आप 'प्रोफेशनल' हैं।
चलिये इसी में खुश रहते हैं कुछ दिन ।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक!
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteप्रदूषण रहित तो है ही, मानव के ऊपर सवारी और गति की बात छोड़ दी जाये तो.
ReplyDelete@ हमारे यहाँ तो आजकल बेटरी से चलने वाले रिक्शा आ गए जो प्रदूषण मुक्त तो है ही साथ इन पर सवारी कर मानव के ऊपर सवारी के पाप से भी बचा जा सकता है गति भी ठीक ठाक है |
बैटरी से चलने वाले रिक्शा
haha ...
ReplyDeleteये सही चीज सामने लायी आपने
अब तांगे का नंबर कब है :-)
वाकई अंतर्राष्ट्रीय है... पर हमारे राष्ट्रीय लोग समझ पायें तब ना ....
ReplyDelete@Ratan Singh Shekhawat
ReplyDeleteधन्यवाद! आपके आलेख का लिंक मैने पोस्ट में जोड दिया है.
@ गिरिजेश राव
ReplyDeleteलंडन में रह्ने वाले भारतीयों पर अबू का एक बहुत पुराना कार्टून रखा था मेरे पास. शायद अभी भी दिल्ली में हो.
@मो सम कौन ? said...
ReplyDeleteसर जी, इको फ़्रेंडली होने के कारण, सस्ता और सुलभ होने के कारण रिक्शा आकर्षित तो बहुत करता है, पर अपन बहुत अवायड करते हैं इस पर सवारी करना। आदमी का आदमी को ढोना रुचता नहीं है,
मुझे इस मेहनत मे कोई बुराई नही दिखती है. मैं विकल्प न होने की दशा मे इसे सपोर्ट ही करूंगा.
अमेरिका में रिक्शा आ जाए तो मजा ही आ जाए। अभी घर में कैद होकर रह जाते हैं फिर तो चमन से बाते होंगी।
ReplyDeleteमैं बर्लिन गया था। वहां भी कुछ जगहों को घूमने के लिये रिक्शे चलते हैं। लेकिन वे अपने देश या अमेरिका में चलने वाले रिक्शों से फर्क हैं।
ReplyDeleteकई देश हैं जहाँ अधिकतर लोग साईकिल से ही आते जाते हैं जिससे वहां प्रदूषण कम हो। भारत में भी ऐसे कदम उठाने की सख्त जरुरत है। खासकर की दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में तो पास के लिए साइकल हे से जाना चाहिए। वैसे अच्छा लेख है सर आपका।
ReplyDeleteहम भी लिखने का शौक रखते हैं हमारे लेख पड़ने के लिए आप नीचे लिंक पर क्लिक सकते हैं।
https://www.jhakas.com/seasons-in-hindi/
https://jhakas.com/maut-shayari/