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क्या कहा? आपको नई पोस्ट लिखने का आइडिया नहीं मिल रहा? हमें भी नहीं मिल रहा। आइये ब्लॉग भ्रमण पदयात्रा पर निकलते हैं एक से एक नायाब आइडिया लेने। यह पोस्ट "अपोस्ट से आगे - कुपोस्ट तक" का विस्तार ही है। किसी भी ब्लॉग, ब्लॉगर, बेनामी, अनामी, पोस्ट, प्रविष्टि, टिप्पणी, व्यवहार, लक्षण, बीमारी, कविता, कहानी, व्यंग्य आदि से समानता संयोग मात्र है। आलोचनाओं और आपत्तियों का स्वागत है। हाँ, सोते समय मैं टिप्पणियाँ मॉडरेट नहीं कर सकूंगा। मेरे जागने तक कृपया धैर्य रखें। जो पाठक "सैंस ओफ़ ह्यूमर" को साँप की जाति का प्राणी समझते हों, वे "अपोस्ट से कुपोस्ट तक" के इस सफ़र को न पढें तो उनकी अगली "प्रतिक्रियात्मक" पोस्ट के पाठकों का बहुमूल्य समय नष्ट होने से बच जायेगा।
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[रश्मि जी, शिल्पा जी के सुझाव और सद्भावना का आदर करते हुए इस पोस्ट पर टिप्पणी का प्रावधान बन्द कर दिया गया है। आपकी असुविधा के लिये खेद है।]
- आज फिर पत्नी ने हमें बेलन से पीटा। हमने भी कह दिया कि अगर एक बार भी और मारा तो हम ... ... ... ... प्यार से फिर पिट लेंगे पर ब्लॉगिंग नहीं छोड़ेंगे।
- हम पागल नहीं हैं। आप लोग हमें पागल न समझें। हमारी नौकरी हमारे पागलपन के कारण नहीं छूटी है। काम-धाम तो हम अपनी मर्ज़ी से नहीं करते हैं ताकि कीबोर्ड-सेवा कर सकें। वर्ना हम तो पीएचडी हैं, डॉ फ़ुर्सत लाल, ... "आवारा" तो हमारा तखल्लुस है यूँ ही धोखा देने के लिये। कहावत भी है, भूत के लात, लगाने के और, चलाने के और।
- आज हमारी पत्नी ने पूछा, "आज भी खाना खायेंगे क्या?" हमने जवाब नहीं दिया और उनके विरोध में यह पोस्ट लिख दी। आखिर हम अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी तो नहीं छोड़ सकते न!
- आज एक पत्नी ने पति से पूछा, "सुनते हो! आज साड़ी धुला लूँ क्या? मैली हो गयी है।"
- आज एक पति ने पत्नी से पूछा, "सुनती हो! आज दाढी बना लूँ क्या? नाई की दुकान बन्द है।"
- आज एक फलवाले ने ग्राहक से पूछा, "दीदी जी? आखिरी बचा है, मुफ़्त में दे दूंगा। क्या कहती हैं जी?"
- आज एक बिना नहाये गन्धाते टिप्पणीकार ने एक ओवर-पर्फ़्यूम्ड ब्लॉगर से कहा, "कब तक अपना रोना रोते रहोगे? आखिरी टिप्पणी दे तो दी, फिर भी कहते हो, सुधरने का मौका नहीं मिला।"
- एक बोगस साइट ने हमारे ब्लॉग का मूल्य एक मिलियन डॉलर आंका है। अफ़सोस कि अमेरिकी संस्था के प्लैटफॉर्म/सर्वर पर बने इस ब्लॉगर का पैसा भी अमेरिका ही जाता है। क्या हमारे स्विस खाते में नहीं जा सकता?
- यह हमारी सांख्यिकीय पोस्ट है। हमने दो साल में अपने ब्लॉग पर 20 लोगों को 2000 गालियाँ दीं और 200 को बैन किया।
- हिन्दी ब्लॉगिंग में काफ़ी गुटबन्दी है। कुछ सीनियर डॉक्टर ब्लॉगर ऐसा कहते हैं कि हमारा क्लिनिकल डिप्रैशन और बाइपोलर डिसऑर्डर इलाज के बिना ठीक नहीं हो सकता है। हमने भी दृढ प्रतिज्ञा कर ली है कि हम अपनी बीमारियाँ ब्लॉगिंग से ही ठीक करके दिखायेंगे। एक पाठक ने अपना स्कीज़ोफ़्रीनिया भी ऐसे ही ठीक किया था। और फिर हम तो आत्माकल्प वाली मृत-संजीवनी बूटी भी पीते हैं।
- पिछले 250 आलेखों की तरह इस आलेख को भी हमारा अंतिम आलेख समझा जाये। पिछले सौ हफ़्तों की तरह इस हफ़्ते फ़िर हम टंकी पर उछलेंगे। आप मनायेंगे तो हम उतर आयेंगे। किसी ने नहीं मनाया तो हम अपनी बेनामी पहचानों का प्रयोग कर लेंगे।
- ज़िन्दगी और मौत से लड़ते एक ब्लॉगर से जब हमने हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी न करने के लिये कई बार शिकायत की तो उन्होंने यह बात एक पोस्ट में लगा दी। हमेशा की तरह हम यहाँ भी बुरा मान गये। हमने उन्हें कह दिया कि हमारे लिये आप जीते जी मर चुके। वैसे बुज़ुर्गों के लिये हमारे दिल में बड़ा सम्मान है। अगर कभी हम अपनी गुस्से की बीमारी के कारण उनका अपमान करते भी हैं तो दवा खाने पर सामान्य होते ही उनके सम्मान में एक पोस्ट लिखकर माफ़ी भी मांग लेते हैं। दवा का असर निकलते ही फिर से उन्हें बुरी-भली कह देते हैं।
- हम एक लिस्ट बना रहे हैं जिसमें उन लोगों का नाम लिखेंगे जो कहते हैं कि हम जल्दी और बेबात भड़क जाते हैं। जो हमें गुस्सैल कहते हैं उन सब के खिलाफ़ हम पाँच-पाँच पोस्ट लिखेंगे। इससे हमारी पोस्ट संख्या भी बढ़ जायेगी।
- किस-किस को बैन करें हम?! हर ब्लॉगर हमसे जलता है? जिसने हमें ब्लॉगिंग सिखाई वह भी, जो हमें अपनी शिक्षा का सदुपयोग करने को कहता है वह भी, और जिसका ईमेल खाता हमने खुलाया वह भी।
- समाज सेवा के लिये हम अपने ऐक्स मित्र के सम्मान में "गप्पू पसीना खास हो गया" शीर्षक से एक नई पोस्ट लिखेंगे।
- कुछेक ब्लॉगर मन्दिरों और ऐतिहासिक बिल्डिंगों के अरोचक लेख लिखते हैं। हमने उन्हें आगाह करके वहाँ जाना बन्द कर दिया है। आशा है कि वे अपना अन्दाज़ बदलेंगे।
- पोस्ट ग्रेजुएट हकीम तो हम पहले से हैं, अब तो नीम चढ़ा करेला भी खाते हैं।
- एक ब्लॉगर ने "अपने कुत्ते कैसे चरायें" शीर्षक से एक पोस्ट लिखी है। हमें लगता है कि यह हमारे खिलाफ़ एक साज़िश है। इससे पहले हम "अपना ड्रैगन ट्रेन कैसे करें" फ़िल्म पर भी अपनी आपत्ति दर्ज़ करा चुके हैं।
- मेरे ब्लॉग पर हिन्दी की बात न करें, अच्छी हिन्दी पढनी है तो किसी हिन्दी पीएचडी के ब्लॉग पर तशरीफ़ ले जायें। आप भी यहाँ बैन किये जाते हैं। और आप भी ... और आप भी।
- और कोई ब्लॉगर होता तो आपकी टिप्पणी मॉडरेट करके तलने के लिये छोड़ देता लेकिन हम उसका उपयोग रॉंग-इंटरप्रिटेशन करके अपने अति-उत्साही पाठकों को आपके खिलाफ़ भड़काने के लिये करेंगे।
- आजकल हम भाषा की शालीनता पर आलेख लिख रहे हैं, इसी शृंखला में दूसरे गुटों के बदतमीज़, बेहया, बेशर्म, बेग़ैरत, नालायक, नामाकूल, नामुराद ब्लॉगर की शान में मेरा विनम्र आलेख पढिये।
- " विरोधीपक्ष के प्राणियों को बार्कीकरण करने दीजिये। आप तो अपने आँख-कान बन्द करके हमारी भाषा की तारीफ़ कीजिये वरना ... एक और बैन।
- क्या कहा? आप राइट थे? तो लैफ़्ट टर्न लेकर निकल लीजिये और अपनी ऊर्जा इस ब्लॉग पर बर्बाद मत कीजिये।
- हमारे भेजे में बचपन से मियादी डाइबिटीज़ है। हमारे कड़वे लेख पर आयी टिप्पणियों में इतनी मिठास थी कि हमारे बर्दाश्त की क्षमता के बाहर थी। आज हमें इंसुलिन की अतिरिक्त डोज़ लेनी पड़ी। अगली पोस्ट पर हम कमेंट ऑप्शन बन्द करने पर विचार करेंगे।
- बहुत कम ब्लॉगर हैं जो हमारी तरह सीरियस ब्लॉगिंग करते हैं। हम तो हर टिप्पणी पढकर सीरियस हो जाते हैं और एक जवाबी पोस्ट लिख कर कान के नीचे "झन्नाट" मारते हैं ताकि हिन्दी ब्लॉगिंग का स्तर इसी प्रकार ऊँचा उठता रहे।
- सारा ब्लॉग जगत सैडिस्टिक हो गया है। जिन्हें हमने रोज़ अपशब्द कहे उनमें से कुछ की हिम्मत बढती जा रही है। सब लोग हमारी व्यथा और अपमान पर व्यंग्यात्मक प्रविष्टियाँ लिखते हैं। उनकी कक्षा शीघ्र ही ली जायेगी।
- हम ब्लॉगिंग का तूफ़ान हैं, कहीं आप भी खुद को आंधी तो नहीं समझ रहे?
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* कहें खेत की सुनैं खलिहान की
* हिन्दी ब्लॉगिंग में विश्वसनीयता का संकट
* अंतर्राष्ट्रीय निर्गुट अद्रोही सर्व-ब्लॉगर संस्था
* अपोस्ट से आगे - कुपोस्ट तक
क्या कहा? आपको नई पोस्ट लिखने का आइडिया नहीं मिल रहा? हमें भी नहीं मिल रहा। आइये ब्लॉग भ्रमण पदयात्रा पर निकलते हैं एक से एक नायाब आइडिया लेने। यह पोस्ट "अपोस्ट से आगे - कुपोस्ट तक" का विस्तार ही है। किसी भी ब्लॉग, ब्लॉगर, बेनामी, अनामी, पोस्ट, प्रविष्टि, टिप्पणी, व्यवहार, लक्षण, बीमारी, कविता, कहानी, व्यंग्य आदि से समानता संयोग मात्र है। आलोचनाओं और आपत्तियों का स्वागत है। हाँ, सोते समय मैं टिप्पणियाँ मॉडरेट नहीं कर सकूंगा। मेरे जागने तक कृपया धैर्य रखें। जो पाठक "सैंस ओफ़ ह्यूमर" को साँप की जाति का प्राणी समझते हों, वे "अपोस्ट से कुपोस्ट तक" के इस सफ़र को न पढें तो उनकी अगली "प्रतिक्रियात्मक" पोस्ट के पाठकों का बहुमूल्य समय नष्ट होने से बच जायेगा।
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[रश्मि जी, शिल्पा जी के सुझाव और सद्भावना का आदर करते हुए इस पोस्ट पर टिप्पणी का प्रावधान बन्द कर दिया गया है। आपकी असुविधा के लिये खेद है।]
- आज फिर पत्नी ने हमें बेलन से पीटा। हमने भी कह दिया कि अगर एक बार भी और मारा तो हम ... ... ... ... प्यार से फिर पिट लेंगे पर ब्लॉगिंग नहीं छोड़ेंगे।
- हम पागल नहीं हैं। आप लोग हमें पागल न समझें। हमारी नौकरी हमारे पागलपन के कारण नहीं छूटी है। काम-धाम तो हम अपनी मर्ज़ी से नहीं करते हैं ताकि कीबोर्ड-सेवा कर सकें। वर्ना हम तो पीएचडी हैं, डॉ फ़ुर्सत लाल, ... "आवारा" तो हमारा तखल्लुस है यूँ ही धोखा देने के लिये। कहावत भी है, भूत के लात, लगाने के और, चलाने के और।
- आज हमारी पत्नी ने पूछा, "आज भी खाना खायेंगे क्या?" हमने जवाब नहीं दिया और उनके विरोध में यह पोस्ट लिख दी। आखिर हम अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी तो नहीं छोड़ सकते न!
- आज एक पत्नी ने पति से पूछा, "सुनते हो! आज साड़ी धुला लूँ क्या? मैली हो गयी है।"
- आज एक पति ने पत्नी से पूछा, "सुनती हो! आज दाढी बना लूँ क्या? नाई की दुकान बन्द है।"
- आज एक फलवाले ने ग्राहक से पूछा, "दीदी जी? आखिरी बचा है, मुफ़्त में दे दूंगा। क्या कहती हैं जी?"
- आज एक बिना नहाये गन्धाते टिप्पणीकार ने एक ओवर-पर्फ़्यूम्ड ब्लॉगर से कहा, "कब तक अपना रोना रोते रहोगे? आखिरी टिप्पणी दे तो दी, फिर भी कहते हो, सुधरने का मौका नहीं मिला।"
- एक बोगस साइट ने हमारे ब्लॉग का मूल्य एक मिलियन डॉलर आंका है। अफ़सोस कि अमेरिकी संस्था के प्लैटफॉर्म/सर्वर पर बने इस ब्लॉगर का पैसा भी अमेरिका ही जाता है। क्या हमारे स्विस खाते में नहीं जा सकता?
- यह हमारी सांख्यिकीय पोस्ट है। हमने दो साल में अपने ब्लॉग पर 20 लोगों को 2000 गालियाँ दीं और 200 को बैन किया।
- हिन्दी ब्लॉगिंग में काफ़ी गुटबन्दी है। कुछ सीनियर डॉक्टर ब्लॉगर ऐसा कहते हैं कि हमारा क्लिनिकल डिप्रैशन और बाइपोलर डिसऑर्डर इलाज के बिना ठीक नहीं हो सकता है। हमने भी दृढ प्रतिज्ञा कर ली है कि हम अपनी बीमारियाँ ब्लॉगिंग से ही ठीक करके दिखायेंगे। एक पाठक ने अपना स्कीज़ोफ़्रीनिया भी ऐसे ही ठीक किया था। और फिर हम तो आत्माकल्प वाली मृत-संजीवनी बूटी भी पीते हैं।
- पिछले 250 आलेखों की तरह इस आलेख को भी हमारा अंतिम आलेख समझा जाये। पिछले सौ हफ़्तों की तरह इस हफ़्ते फ़िर हम टंकी पर उछलेंगे। आप मनायेंगे तो हम उतर आयेंगे। किसी ने नहीं मनाया तो हम अपनी बेनामी पहचानों का प्रयोग कर लेंगे।
- ज़िन्दगी और मौत से लड़ते एक ब्लॉगर से जब हमने हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी न करने के लिये कई बार शिकायत की तो उन्होंने यह बात एक पोस्ट में लगा दी। हमेशा की तरह हम यहाँ भी बुरा मान गये। हमने उन्हें कह दिया कि हमारे लिये आप जीते जी मर चुके। वैसे बुज़ुर्गों के लिये हमारे दिल में बड़ा सम्मान है। अगर कभी हम अपनी गुस्से की बीमारी के कारण उनका अपमान करते भी हैं तो दवा खाने पर सामान्य होते ही उनके सम्मान में एक पोस्ट लिखकर माफ़ी भी मांग लेते हैं। दवा का असर निकलते ही फिर से उन्हें बुरी-भली कह देते हैं।
- हम एक लिस्ट बना रहे हैं जिसमें उन लोगों का नाम लिखेंगे जो कहते हैं कि हम जल्दी और बेबात भड़क जाते हैं। जो हमें गुस्सैल कहते हैं उन सब के खिलाफ़ हम पाँच-पाँच पोस्ट लिखेंगे। इससे हमारी पोस्ट संख्या भी बढ़ जायेगी।
- किस-किस को बैन करें हम?! हर ब्लॉगर हमसे जलता है? जिसने हमें ब्लॉगिंग सिखाई वह भी, जो हमें अपनी शिक्षा का सदुपयोग करने को कहता है वह भी, और जिसका ईमेल खाता हमने खुलाया वह भी।
- समाज सेवा के लिये हम अपने ऐक्स मित्र के सम्मान में "गप्पू पसीना खास हो गया" शीर्षक से एक नई पोस्ट लिखेंगे।
- कुछेक ब्लॉगर मन्दिरों और ऐतिहासिक बिल्डिंगों के अरोचक लेख लिखते हैं। हमने उन्हें आगाह करके वहाँ जाना बन्द कर दिया है। आशा है कि वे अपना अन्दाज़ बदलेंगे।
- पोस्ट ग्रेजुएट हकीम तो हम पहले से हैं, अब तो नीम चढ़ा करेला भी खाते हैं।
कुत्ता-पालकों की सहायतार्थ |
- मेरे ब्लॉग पर हिन्दी की बात न करें, अच्छी हिन्दी पढनी है तो किसी हिन्दी पीएचडी के ब्लॉग पर तशरीफ़ ले जायें। आप भी यहाँ बैन किये जाते हैं। और आप भी ... और आप भी।
- और कोई ब्लॉगर होता तो आपकी टिप्पणी मॉडरेट करके तलने के लिये छोड़ देता लेकिन हम उसका उपयोग रॉंग-इंटरप्रिटेशन करके अपने अति-उत्साही पाठकों को आपके खिलाफ़ भड़काने के लिये करेंगे।
- आजकल हम भाषा की शालीनता पर आलेख लिख रहे हैं, इसी शृंखला में दूसरे गुटों के बदतमीज़, बेहया, बेशर्म, बेग़ैरत, नालायक, नामाकूल, नामुराद ब्लॉगर की शान में मेरा विनम्र आलेख पढिये।
- " विरोधीपक्ष के प्राणियों को बार्कीकरण करने दीजिये। आप तो अपने आँख-कान बन्द करके हमारी भाषा की तारीफ़ कीजिये वरना ... एक और बैन।
- क्या कहा? आप राइट थे? तो लैफ़्ट टर्न लेकर निकल लीजिये और अपनी ऊर्जा इस ब्लॉग पर बर्बाद मत कीजिये।
- हमारे भेजे में बचपन से मियादी डाइबिटीज़ है। हमारे कड़वे लेख पर आयी टिप्पणियों में इतनी मिठास थी कि हमारे बर्दाश्त की क्षमता के बाहर थी। आज हमें इंसुलिन की अतिरिक्त डोज़ लेनी पड़ी। अगली पोस्ट पर हम कमेंट ऑप्शन बन्द करने पर विचार करेंगे।
- बहुत कम ब्लॉगर हैं जो हमारी तरह सीरियस ब्लॉगिंग करते हैं। हम तो हर टिप्पणी पढकर सीरियस हो जाते हैं और एक जवाबी पोस्ट लिख कर कान के नीचे "झन्नाट" मारते हैं ताकि हिन्दी ब्लॉगिंग का स्तर इसी प्रकार ऊँचा उठता रहे।
- सारा ब्लॉग जगत सैडिस्टिक हो गया है। जिन्हें हमने रोज़ अपशब्द कहे उनमें से कुछ की हिम्मत बढती जा रही है। सब लोग हमारी व्यथा और अपमान पर व्यंग्यात्मक प्रविष्टियाँ लिखते हैं। उनकी कक्षा शीघ्र ही ली जायेगी।
- हम ब्लॉगिंग का तूफ़ान हैं, कहीं आप भी खुद को आंधी तो नहीं समझ रहे?
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सम्बन्धित कड़ियाँ
===========================
* कहें खेत की सुनैं खलिहान की
* हिन्दी ब्लॉगिंग में विश्वसनीयता का संकट
* अंतर्राष्ट्रीय निर्गुट अद्रोही सर्व-ब्लॉगर संस्था
* अपोस्ट से आगे - कुपोस्ट तक
:)
ReplyDeleteआपने तो बहुत कुछ कह दिया है अपनी इस पोस्ट के
ReplyDeleteमाध्यम से.समझने वालो को इशारा ही काफी है.
सुन्दर सार्थक सुपोस्ट के लिए आभार.
होगा से क्या मतलब है ...ये तो हो चुका!
ReplyDeleteअब तो इससे आगे का लिखें :)
क्या लिखा जाए इसी समस्या से जूझ रही थी कि आपकी पोस्ट दिखायी दे गयी। मन की मुराद पूरी हो गयी। अब तो कई विषय निकल-निकलकर पहले मैं पहले मैं कर रहे हैं। फिर भी लग रहा है कि कहीं ये आपस में ही उलझकर नहीं रह जाएं। बहुत आनन्द आया इस पोस्ट से।
ReplyDeleteपर अवलोकन तो दमदार हैं।
ReplyDeleteइन्टरनेट एक असीमित चिंतन सागर है जहाँ विश्व के बेहतरीन लोग अपने विचार व्यक्त करते हैं!
ReplyDeleteलाखों विद्वजनों की उपस्थिति महसूस करते हुए आत्म विवेचन करें तो अपनी ढपली, बेसुरी और फटी हुई लगने लगती है !
मगर आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण के लिए बड़े कलेजे के साथ साथ, ईमानदारी चाहिए जिसमें से हम अपनी विद्रूपता खोज सकें !
ईश्वर से दुआ मनाता हूँ कि मुझे कभी गर्व न दे और अगर भूल हो जाए तो अहसास करादे !
राह दिखाने के लिए आभार अनुराग भाई !
यह भी खूब रही,आभार.
ReplyDeleteअनुराग भाई!
ReplyDeleteअनेकानेक आइडियाज़ हैं छिपे इस पोस्ट में.. कितनों ने तो अमल शुरू भी कर दिया होगा!
लिखने की कला तो कोई आपसे सीखे ..सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे ....
ReplyDeleteकोई वह पढ़े जो लक्षित हो तो गति सांप छछूदर सी हो आये -न निगलते बने न उगलते...
यह व्यंग विधा में वर्गीकृत होगी न? व्यंग भी ऐसा गरिमायुक्त कि टिप्पणीकार को भी अदब में बनाए रखे ...
इसलिए ही कहा गया है कि कलम में ताकत है ...
एक और बात पता चली ..असली इतिहासकार तो आप ही हैं इस वायवीय दुनिया के, अभी तक मैं अली भाई को मान रहा था ..
उनका इन्द्रासन छिनने का समय आ गया क्या ? ई कौन सा कल्प चल रहा है ? :) हम तन्द्रा से अभी अभी जागे हैं और अली भाई को सावधान करने जाते हैं! आप सोये रहिये .....
कुछ परम हैं,कुछ नरम हैं, सभी के अपने धरम हैं
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़कर लगा कि डा0 साहब ब्लॉगिंग बुखार नामक बिमारी का पर शोध कर रहे हैं। दवा की प्रतीक्षा है।
अच्छा विश्लेषण किया है आपने...
ReplyDeleteआप राइट थे?
ReplyDeleteहा ..हा ..हा... बेजोड़ ....अनुपम
ReplyDelete:)
ReplyDelete'आज आप खाने में क्या-क्या लेंगे,आलू,गोभी या फिर बैगन ? ', आज सुबह से मेरा मूड ठीक नहीं है,सरदर्द हो रहा है दबाऊँ क्या?, रुको इसके पहले कि मैं सब्जी बनाऊँ या सर दबाऊँ, इस बारे में एकठो पोस्ट लिख के राय ले लेते हैं तब तक तुम पेट और सर दाबे रहो !'
ReplyDeleteहा..हा..हा...भई पोस्टों के विषय ऐसे हों जो 'एकता-कपूर' के सीरियल की तरह ख़त्म होने का नाम न लें,रोज़-रोज़ स्टोरी ढूँढने में एनर्जी भी क्यों जाया की जाए ?और हाँ ,जिसे जीते जी हमने चैन से जीने न दिया, उसे 'मरणोपरांत' कोई सम्मानित करे तो उसका जीना हराम हो जाए ! !
मान गए...आप सबसे स्मार्ट हो...उससे भी जो 'मचान' या टंकी में चढ़कर 'नौटंकी' कर ले !
राइट हमेशा राइट |
ReplyDeleteअभी कल ही तो एक फोन पर जानकारी मिलने के बाद इस वातावरण को देखा ,,,,,,,,,,,,,, अपने दो साला ब्लॉग सफ़र में ऐसा वाहियाताना धतकरम लेखन के नाम पर तो नहीं देखा ................... आपकी पोस्ट को पढने के बाद काफी हल्का महसूस कर रहा हूँ , जैसे की यह गुब्बार मैंने ही निकाला हो :)
ReplyDelete~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वैसे बनारसी बाबा मिसरजी के हाथों ऐसा हाहाकारी आविष्कार होगा सोचा ना था :))))
:-) tipanni jaroori to nahi naa
ReplyDelete:)
ReplyDelete"...जो पाठक "सैंस ओफ़ ह्यूमर" को साँप की जाति का प्राणी समझते हों,"
पूरब लिखे गए को पश्चिम समझने वालों से तो भगवान बचाए!
आज लगता है मेड०इन-जर्मन से सामना हो ही गया और ऊपर से ताऊत्व सवार हो गया?:)
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही रोचक विश्लेषण...कुछ भी नहीं छूटा :)
ReplyDeleteवाह वाह - क्या मानसिक हलचल है! गज़ब!
ReplyDeleteविकृतियों पर बहुत करीने से आपने व्यंग्य-विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteजब किसी व्यक्ति की विकृतियों को लोग अंधा होकर समर्थन करने लगें, तो वे व्यक्ति नहीं समूह की विकृतियाँ हो जाती हैं, ऐसी स्थिति में इनके विरोध के सामूहिक प्रयास होने चाहिये। इस बार ऐसी पहल हुई है, इसके लिये मैं तहे-दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ।
"बहुत कम ब्लॉगर हैं जो हमारी तरह सीरियस ब्लॉगिंग ..." -
ReplyDeleteहमें बहुमत के साथ समझा जाये, हम एकदम नॉन-सीरियस टाईप के प्राणी हैं।
पोस्ट्स में जो लिंक्स दिये गये हैं, वे बहुत उपयोगी हैं। आपसे अनुरोध है कि लेबल्स में एडिट करके ’स्कीज़ोफ़्रीनिया’ लेबल जोड़ दें, हमें इसकी स्पैलिंग ही नहीं आई थी, कब से ढूँढ रहे थे वाईकी पर।
ब्लॉग्गिंग के FAQs . दमदार. हाँ आपने हमें आगाह तो नहीं ही किया है!
ReplyDeleteकुटीप:
ReplyDeleteइन दिनों आम्रपाली और उमरावजान की आत्मकथाओं वाले घटिया पेपरबैक संस्करण पढ़ने में व्यस्त हूं :)
अरविन्द जी को समझाइये कि समय रहते इन्द्रत्व को बुद्धत्व की ओर निकल लेना चाहिए :)
बेजोड़ है ये पोस्ट तो..... :)
ReplyDeleteक्या आप जाग रहे है? टिप्पणी पोस्ट करूं? :)
ReplyDeleteअपोस्ट से कुपोस्ट तक - लेख के साथ टिप्पणियों का प्रवाह भी लेख के साथ ही उतना सतत और प्रवाहयुक्त दिखाई दिया.
ReplyDeleteएक अच्छे प्लेटफार्म को अच्छा बनाये रखा जाये तो बेहतर हो, अन्यथा कोई लाभ नहीं इस सुविधा का.
छील कर रख दिया!
ReplyDeleteअनुराग जी,
ReplyDeleteआप गजब का विश्लेषण करते हैं ः-)
कुपोस्ट के आगे की भी पोस्ट आ गयी है --:)
ReplyDeleteभाव देने वाले आज कल बेभाव होगये हैं
ReplyDeleteकुछ झुकाव/अनुराग एक तरफ़ा नहीं होगया ?/
"एकतरफ़ा अनुराग" फ़्रेज़ अच्छा लगा। सत्यनिष्ठा ही है एकतरफ़ा अनुराग - कुछ लोग किसी गुट/वाद/विचारधारा में बन्धते नहीं।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteब्लॉगिंग की शुद्धि के लिए उपवास रखने की सोच रहा हूं...बस एक वातानुकूलित कंवेंशन सेंटर की दरकार है...
ReplyDeleteजय हिंद...
मेरी टिप्पणी 'डबल डिप' दिख रही है .....वो भी आधी अधूरी....आखिर मेरा मोबाइल भी रजनीकांत ठहरा.... ...कम्बख्त रजनीकांत की तरह 'येक बोला' तो 'दो टिप्पणी' करता है :)
ReplyDelete------------
दुबारा पढा ....आनंदम्.......आनेदम्....... पता नहीं लोगों को व्यंग्य से इतनी चिढ़ क्यों है। अरे भई व्यंग्य तो होता ही है 'करने के लिये', ताकि जहां गाली गुफ्तार से बचना हो तो वहां व्यंग्य कर दो। जिसे समझना होगा समझ जायेगा न समझा तो भी कौन सा ताजमहल ढहने जा रहा है :)
हां, शर्त यही है कि व्यंग्य करने 'आना भी चाहिये' वरना जिसे व्यंग्य कहकर प्रस्तुत किया जायगा पता चला वह व्यक्तिगत आक्षेप जैसा ही कुछ 'गुजगुजा' दिया गया और लोग हैं कि तीन-चार किलो की गफ़लत पाल लें :)
पोस्ट राप्चिक अंदाज में लिखी गई है। मस्त :)
एक भारतीय कहीं और बैठकर सबको जो जी में आया कहता रहता है। और कुछ भारतीय उसकी हां में हां मिलाते रहते हैं।
ReplyDeleteपर यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि एक और भारतीय है जो पिटसबर्ग में बैठकर इस सबको ध्यान से देखता है और फिर ऐसा विश्लेषण करता है, कि सिवाय अगल-बगल झांकने के कुछ और नहीं सूझता।
बधाई हो। ऐसी कुपोस्ट या कि कम्पोस्ट की बहुत जरूरत है इस हिन्दी ब्लाग जगत में।
*
पर यह देखकर आश्चर्य ही हुआ कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वहां भी हां में हां मिलाते हैं और यहां भी। इन्हें सद्बुबुद्धि कब आएगी।
पर यह देखकर आश्चर्य ही हुआ कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वहां भी हां में हां मिलाते हैं और यहां भी। इन्हें सद्बुबुद्धि कब आएगी।
ReplyDeletewell said
:|.... :) ....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete:):) इन्ने सारे आइडिया ....
ReplyDeleteसुपोस्ट और कुपोस्ट की कम्पोस्ट ब्लॉगजगत को उर्जावान बनाएगी. बधाई.
ReplyDeleteअनुराग जी,
ReplyDeleteआपका व्यंग्य लेखन ....... काफी दमदार है...
एक बात कहता हूँ ... जब नयी कविता का आरम्भ हुआ था तो कई पुराने साहित्यकार उसे पचा नहीं पाये... लेकिन नयी कविता के साधकों ने उसे स्थापित करके ही दम लिया.
प्रसिद्ध व्यंगकार शरद जोशी ने व्यंग्य विधा को काव्यात्मक पुट दिया इसलिये उन्हें कवि-सम्मेलनों में एक कवि के रूप में सुना जाने लगा... मैंने भी उनके 'व्यंग्य-पाठों' को कवियों के बीच सुना और पूरा आनंद लिया.
मैंने घर-परिवारों में कुछ लोग ऐसे भी देखे जो भले ही लेखन विधा में सिद्धहस्त नहीं होते...फिर भी वे बतरस विधा के धुरंदर होते हैं... उनकी संवाद शैली गज़ब की होती है.. वे अपनी मुहावरेदार और लच्छेदार भाषा से अपने श्रोता वर्ग को बाँधकर रखते हैं... सोचता हूँ क्या वे साहित्यकारों की पंगत में खड़े होने योग्य नहीं?
एक बात कहकर कुछ पूछना चाहता हूँ :
दस वर्ष पहले जौनपुर में एक 'आल्हा' गायक व्यक्ति से मेरी भेंट हुई थी... वे बड़े ही साहित्यिक संस्मरण सुनाया करते थे... और उनके द्वारा किस्से-कहानियों के तो क्या कहने... लेकिन उनके किस्से-कहानियों को यदि कोई लिख मारे और स्थापित साहित्यकार हो जाये .......... तब क्या उन 'आल्हा गायक सज्जन' को साहित्यकार श्रेणी से महरूम रखा जाना चाहिये... मुझे तो वे किसी साहित्यकार से कमतर नहीं लगे थे.
अब बात करता हूँ आज के ब्लोगर्स की :
कई ब्लोगर ऐसे हैं जो लेखन विधा से बहुत पहले से जुड़े हैं... इंटरनेट युग से भी पुराने हैं... वे साहित्य की तमाम विधाओं से परिचित भी हैं.. किस्से-कहानियाँ कहना जानते हैं. कविता के पंडित हैं.. आलोचना-समीक्षा-निबंध-रिपोर्ताज-संस्मरण-रेखाचित्र-आत्मकथा-लघुकथा-उपन्यास ही नहीं चम्पू तक से पहचान रखते हैं... अब कई ऐसे हैं जिन्हें केवल पढ़ने में ही आनंद है, जो यदा-कदा पसंद-नापसंद की टिप्पणी भी करते हैं.
कई ऐसे भी हैं जिन्हें लिखने को कुछ सूझता ही नहीं, जिनके पास विषयों का अकाल होने से वे परेशान रहा करते हैं ... कई ऐसे हैं जिन्हें मुक्तिबोध की कविता से प्रेरणा मिलती है..."मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बाँह फैलाये, एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटीं."
कई ऐसे हैं जो फणीश्वरनाथ रेणु की भाँति कहने में गालीगलौज से भी परहेज नहीं करते ... वे भी सीधे-सीधे कहकर स्थापित होना चाहते हैं.
कइयों की दशा काफी निरीह है.. क्योंकि वे खाली हो चुके हैं..... या फिर उनके पास समय नहीं... वे अपनी ही किसी उलझन में फँसे हैं.
हमें सभी से सहानुभूति रखनी चाहिए.... चाहे कोई अनशन करके हॉस्पिटल में एडमिट हो या फिर नोट-कांड के बाद कानूनी फरमान के भय से एम्स में भरती हो, खूनी उल्टियां कर रहा हो ... अमिताभ बच्चन की तरह बड़े लोगों को मित्र-धर्म निभाना ही चाहिए.
जब ब्लोगर के रूप में मैंने सञ्जय अनेजा जी की पोस्टें पढ़ना शुरू किया तो मैंने अपने मित्र दीपचंद से कहा था कि सच्चे अर्थों में ब्लॉग-साहित्य यह है [मतलब 'मो-सम-कौन' वाला ब्लॉग]... जिसका लेखन विधा से दूर-दूर तक का वास्ता नहीं रहा फिर भी निराले अंदाज़ में बात कहते हैं... ठीक उसी तरह एक अन्य ब्लोगर हैं जो अपने मन को दर्पण बनाकर ब्लोगिंग करते हैं. 'कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण हैं'... क्या ब्लॉग-साहित्य को मन का दर्पण नहीं बनना चाहिए... क्या ब्लॉग-साहित्य की कुछ अन्य विशेषताएँ नहीं होनी चाहियें?
अनुराग , ग़ज़ब का लिखते हो यार !
ReplyDeleteकमाल की बात तो यह है --लिंक भी मिला तो कहाँ से !
ReplyDeleteअब अनुराग उर्फ़ स्मार्ट इंडियन, कैसे मर्द हैं? एक स्त्री से ऐसा घबरा गए जैसे इसने इनकी नाक में दम कर रखा हो| बड़ी मर्दानगी समझ रहे हैं अपनी|
ReplyDeleteस्मार्ट इंडियन ने ऐसी कौनसी स्मार्टनेस दिखाई है ऐसी घटिया पोस्ट लगाकर| क्यों इंडियंस को बदनाम कर रहे हो भाई? क्या स्मार्ट इंडियंस ऐसे ही होते हैं? क्या इसीलिए स्मार्ट इनियंस नाम का ब्लॉग बनाया था कि एक महिला का अपमान करेंगे और अपनी स्मार्टनेस (?) दिखाएंगे|
क्या स्मार्ट इंडियंस के उद्देश्य इतने क्षुद्र होते हैं?
शर्म आनी चाहिए|
किसको फुद्दू बना रहे है ऐसी पोस्ट लिखकर?
.
ReplyDelete.
.
कुछ सीनियर डॉक्टर ब्लॉगर ऐसा कहते हैं कि हमारा क्लिनिकल डिप्रैशन और बाइपोलर डिसऑर्डर इलाज के बिना ठीक नहीं हो सकता है। हमने भी दृढ प्रतिज्ञा कर ली है कि हम अपनी बीमारियाँ ब्लॉगिंग से ही ठीक करके दिखायेंगे।
खरा व दमदार डायग्नोसिस और झंझोड़ती असरदार पोस्ट !
आभार!
...
@एक स्त्री से ऐसा घबरा गए जैसे इसने इनकी नाक में दम कर रखा हो|
ReplyDeleteदिवस बेटा,
मुझे नहीं पता कि तुम किस स्त्री और किस नाक की बात कर रहे हो। पहेलियाँ बुझाने के बजाय स्पष्ट हिन्दी भाषा में पूरी बात बताओ तो पता लगे कि तुम किस बात पर खफ़ा हो और फिर आगे कुछ बातचीत हो - तब तक के लिये शुभकामनायें!
@प्रतुल भाई,
ReplyDeleteआप सरीखे साहित्य के विद्वान तारीफ़ करते हैं तो दिल को वाकई बहुत प्रसन्नता होती है। आपका अवलोकन 16 आने सच है। तकनीक जब भी नये रास्ते बनाती है, तब नये आयाम खुलते हैं और नई विधाओं का जन्म भी होता है। आभार!
राजेश जी,
ReplyDeleteहर किसी की भावनाओं को झिंझोड़ने वाले दबंग/बुली अक्सर अपने आस-पास देखने को मिल जाते हैं आभासी जगत के पर्दे में उन्हें अपनी भडास निकालने के मौके अधिक हैं। कभी न कभी, किसी न किसी को तो खड़े होकर कहना ही पड़ेगा, "इनफ़ इज़ इनफ़"
@ आपने हमें आगाह तो नहीं ही किया है!
ReplyDeleteसुब्रमणियन जी, आप भी बस कमाल करते हैं। बड़े भाई साहब किधर हैं?
सतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteछोटे भाई को क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं। हम तो आप बड़ों के चरण चिन्हों से मार्ग ढूंढते हैं। अगर अनजाने कोई गुस्ताखी हुई हो तो बेझिझक बताइये और डांट भी लगाइये।
बहुत सटीक....इसकी जरुरत थी.....:)
ReplyDelete:)))
ReplyDelete"इनफ़ इज़ इनफ़"
ReplyDeleteनहीं अनुराग जी "बस अब बहुत हुआ " कहना गलत और एक तरफ़ा हैं .
किसी का चिल्लाना लोग को सुनाई देता हैं पर किसी का चुटकी काटना लोगो को कभी तो दिखता नहीं और कभी लोग उस चुटकी को इग्नोर भी करते हैं
जो हो रहा हैं यहाँ केवल उसका एक तरफ़ा नज़रिया हैं उसकी शुरुवात कौन करता हैं और सूत्रधार कौन हैं एक पोस्ट उस पर भी बननी चाहिये
इस प्रकरण के सूत्रधार कितना भी गंगा नहा ले पाप मुक्त नहीं होगे
रचना जी, वह ज़िम्मेदारी ट्रांस्फ़रेबल-ऐट-विल तो नहीं है न! 'अ' ने 'ब' को चुटकी काटी और 'ब' भीड़ ले जाकर 'क', 'ख', 'ग' के घरों में पत्थर फेंकने लगे, यह तो सही बात नहीं हुई।
ReplyDeleteहम ब्लॉग पोस्ट लिखते हैं, टिप्पणियों की ऑप्शन खुली रखते हैं, अपने विचार देते हैं, दूसरों के विचार मंगाते हैं और उसके बाद हर टिप्पणी पर आहत हो जाते हैं, और टिप्पणी करने वाले के साथ बदज़ुबानी करने लगते हैं तो यह कदापि न्यायोचित नहीं है - सामान्य भी नहीं है।
बजाय इसके अगर चिकोटी काटने वाले के विरुद्ध मोर्चा खोला जाये तो बात न्यायोचित होगी और समर्थन भी मिलेगा।
तब तो आप को हर उस ब्लोगर को कटघरे में लाना होगा जो टिपण्णी में अपने टिपण्णीकारो को गलियाँ देते हैं
ReplyDeleteबड़े बड़े हैं और जाने माने भी आप आहत हैं और आप आहत करके वही कर रहे हैं जिस को आप करना गलत कह रहे हैं
'अ' ने 'ब' को चुटकी काटी और 'ब' भीड़ ले जाकर 'क', 'ख', 'ग' के घरों में पत्थर फेंकने लगे, यह तो सही बात नहीं हुई।
इस ब्लॉग जगत में २००७ से हूँ और यही देख रही हूँ इस मै कुछ नया नहीं हैं नया इतना हैं की अब ये किसी एक जेंडर का हथियार नहीं रह गया हैं
तब तो आप को हर उस ब्लोगर को कटघरे में लाना होगा जो टिपण्णी में अपने टिपण्णीकारो को गलियाँ देते हैं
बड़े बड़े हैं और जाने माने भी आप आहत हैं और आप आहत करके वही कर रहे हैं जिस को आप करना गलत कह रहे हैं
इस ब्लॉग जगत में २००७ से हूँ और यही देख रही हूँ इस मै कुछ नया नहीं हैं नया इतना हैं की अब ये किसी एक जेंडर का हथियार नहीं रह गया हैं
एक नहीं हजारो लिंक दिखा सकती हूँ मेरे तो माता पिता तक के खिलाफ एक प्रबुद्ध ब्लोग्गर ने जो कभी सक्रिय थे टिपण्णी दी हैं जब मैने ज्ञान दत्त जी की पोस्ट के खिलाफ लिखा था और मैने उसके बाद गाली और अपशब्द ही वापस किये हैं
एक दूसरे हैं जिन्होने मेरे और सुजाता के खिलाफ एक नयी महिला ब्लोग्गर को कहा की इनसे बात मत करना ये अच्छी औरते नहीं हैं
एक और हैं जिन्होने सुजाता को कहा "रेड लाईट एरिया खोल ले "
और इन सब को जवाब अपशब्द से ही दिये गए हैं
लेकिन इस का असर बहुत दूर तक हुआ हैं और कुछ अन्य भी इस चपेट में आये हैं
हा यहाँ समीर की टिपण्णी पर मुझे हंसी आ रही हैं क्युकी उन्हे क्यों लगा ये जरुरी पोस्ट हैं जबकि वो विवाद पर आँख मूंद कर ही रहते हैं
कहो अनुराग हैं हिम्मत मेरे दिये हुए लिनक्स से पोस्ट बनाने की
तुम इस सब में बेवजह खीच गये हो
सर जी, आप तो स्मार्ट हैं, क्या इतना भी नहीं जानते कि आपकी इस पोस्ट का सन्दर्भ क्या है?
ReplyDeleteसाफ़ साफ़ सब कुछ दिखाई दे रहा है|
मैं आपकी बहुत इज्ज़त करता था, किन्तु इस पोस्ट के बाद आपने वह खो दी| ब्लॉग जगत में नैतिक मूल्यों को खो देने वाले तो बहुत देखें हैं, किन्तु आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी| मैंने कभी नहीं सोचा था कि आप भी उसी ज़मात में शामिल हैं|
केवल देश भक्ति पर चार पंक्तियाँ लिख डालने से कोई व्यक्ति पाक साफ नहीं हो जाता| जब तक नैतिक मूल्यों का ही अभाव हो तो कैसी देश भक्ति? और जिस देश के लिए लड़ने का ढोंग आप लोग करते हैं, उसी देश की संस्कृति के साथ घात भी करते हैं| उसी देश के जीवन मूल्यों को नष्ट करते हैं|
ऐसे देशभक्तों (?) से भारत देश का कुछ भला नहीं होने वाला|
पहले इस देश के नैतिक मूल्यों को तो जाने, फिर देशभक्ति पर बात करना|
मेरा ब्लॉग भी आप नियमित पढ़ते हैं| देशभक्ति पर ही लिखता हूँ| ब्लॉगजगत के किसी भी व्यक्ति से कितना भी द्वेष क्यों न हो, कभी उसको अपमानित करती ऐसी घटिया पोस्ट कभी नहीं लिखी| मेरे ब्लॉग के उद्देश्य इतने क्षुद्र नहीं हैं|
मैंने तो सोचा था कि स्मार्ट इन्डियन नाम का ब्लॉग ज़रूर कोई बड़ा उद्देश्य लेकर काम कर रहा है| किन्तु आज सारे भ्रम टूट गए| आपकी इस पोस्ट की एक एक पंक्ति स्मार्ट कहलाने के कतई योग्य नहीं है| आपकी इस पोस्ट से कम से कम मेरी नज़र में तो आपकी सारी स्मार्टनेस धुल गयी|
जिसकी तरफ आप इशारा कर रहे हैं, वह आप भी जानते हैं, मैं भी जानता हूँ और आपकी इस पोस्ट पर टिप्पणियाँ करने वाले ये सभी लोग भी जानते हैं| आपको चाहिए कि आप उनसे क्षमा मांगे|
आपकी व्यक्तिगत इच्छा कुछ भी हो किन्तु नैतिकता के चलते आपको ऐसा करना चाहिए|
आगे आपकी मर्जी|
आइना दिखना हो तो सब को दिखाओ ब्लॉग जगत में क़ोई भी दूध का धुला नहीं मिलेगा देखने की जरुरत ये हैं की शुरुवात कौन करता हैं जो हम कभी देखना ही नहीं चाहते . हम आवाजो को बंद करना चाहते हैं क्युकी शोर हमे अच्छा नहीं लगता . शोर से परहेज हैं जिनको वो ब्लॉग में आते ही क्यूँ हैं किसी साउंड प्रूफ घर में रहे लेकिन नहीं यहाँ की रीत है हैं की हम करे तो ठीक क्युकी हम जहीन हैं , बड़े हैं , और पुराने हैं और उस से भी ज्यादा हम पुरुष हैं इस लिये गाली हम दे तो ठीक पर अगर स्त्री दे दे को कुलटा हैं , छिनाल हैं , मानसिक रोगी हैं
ReplyDeleteचलते चलते याद आया मेरे लिये एक सज्जन पुरुष जो ब्लॉग जगत में दादा हैं हर जगह जा कर लिखते रहे हैं की अपना तो घर बसाया नहीं नारी ब्लॉग बना कर दूसरो का उजाडती हैं . और जब भी लिखा हैं उन्होने मैने अपशब्द से ही वापस किया हैं
ज्यादा होगया हैं पर मै यहाँ किसी को खुश करना नहीं आई हूँ मै यहाँ खुश होने आई हूँ और वो मै हूँ
हाँ कायर वो भी नहीं हैं वक्त ख़राब चल रहा हैं बदलेगा इंतज़ार हैं मुझे उसकी वापसी का जो जैसा हैं उसको वैसा ही स्वीकारने की ताकत हैं मुझ मै
रचना जी,
ReplyDeleteआपने ऐसे लोग देखे होंगे जो बेवजह खींचे गये हों और खिंच गये हों। कई लोगों पर वाकई बहुत फ़ुर्सत है। आपके अपने अनुभव और धारणायें हो सकती है, और अपनी लडाइयाँ भी।
लोग ऐसे भी हैं जो कोई भी नारा सुनते ही दूसरों की बस्तियाँ जलाने निकल पडते हैं क्योंकि उनके अन्दर आग सुलग़ रही है - मगर इस सब से किसी की भी ग़लती सही नहीं हो जाती। एक न्यायप्रिय समाज में हर किसी को अपने करने की कीमत खुद चुकानी होती है और वह नॉन-ट्रांसफ़रेबल है। कोई भी यह अधिकार नहीं रखता कि वह मेरे पीछे लट्ठ लेकर इसलिये पड जाये क्योंकि उसने पास्ट में कई बेवकूफ़ियाँ की हैं जिनमें उसे घाटा हुआ। आपके रिश्ते आपके साथ हैं, मेरे मेरे साथ। समाज में हम लोग एक दूसरे के लिये खडे हो सकते हैं, मगर वह साथ अन्याय रोकने के लिये होना चाहिये न कि अन्याय को महामारी बनाने के लिये।
कलम तलवार भी बन सकती है, ऐसे लेखन ही चरितार्थ करते रहते हैं ...आपने बड़ी संजीदगी से अपना काम किया ..यहाँ सारी असहमतियां बौनी लग रही हैं ,बल्कि निस्तेज और अप्रासंगिक ......हम अपने साझा उत्तरदायित्वों से मुंह नहीं मोड़ सकते -सच और गलत पर आवाज उठनी ही चाहिए ....अगर जरा भी नैतिकता बची हुयी है -और इसके लिए दृढ़ता और और तटस्थता चाहिए जो यहाँ पूरे वजूद में है !
ReplyDeleteबाकी तो समय एक बड़ा निर्णायक खुद है ......
तभी तो इस बकवास पोस्ट पर ६२+१ =६३ टिप्पणियाँ आई हैं |
ReplyDelete@डॉ.श्याम गुप्ता.
ReplyDeleteअंकगणित कमजोर है शायद -६४+१=६५ हैं !
Please everyone - stop this cruel bickering ...
ReplyDeleteयह सब किसी को आहत कर रहा है - क्या हम ब्लॉग्गिंग इसी उद्देश्य से कर रहे हैं ? एक चौपाल पर बैठ कर एक दूसरे की कमियां point out करें ? एक दूसरे को चोट पहुंचाए ? किसी के इमोशनल होने का और hasty decisions का मज़ाक उड़ायें ? क्या हमें (- हम सभी को) और कोई काम नहीं हैं? lets all turn positive and stop this negativity ..... and please dont waste your precious energies taunting me now - because i won't get hurt if i am called a lot of names :) .. because those words will not reach me at all .
Anurag ji - please - i request you here to please switch off the comment option
मै भी शिल्पा की बात से सहमत हूँ...
ReplyDeleteमैने जब पहली बार पोस्ट पढ़ी तो मुझे ये ब्लॉगजगत को लक्ष्य करके लिखी गयी लगी...और मैने उसी आशय की टिप्पणीकार दी.
कुछ व्यस्तताओं ने ब्लॉगजगत से दूर रखा...और बाद में पता चला कि इस पोस्ट से कोई बहुत आहत है. उनकी बातों से भी लोग आहत होते रहे हैं.,...लेकिन ऐसा नहीं कि किसी ने उन्हें जबाब नहीं दिया या फिर बख्श दिया हो...उन्हें हर बार समुचित उत्तर दिया गया है...पोस्ट भी लिखी गयी है...
अब कोई नई पोस्ट डालिए और यहाँ अब टिप्पणियाँ बंद कर दीजिये..जैसा शिल्पा ने सुझाया है.
प्रिय महोदय ,
ReplyDeleteसिर्फ तीन शब्दों ‘छीलकर रख दिया’ की ऐसी प्रतिध्वनि!
वैश्विक ब्लाग संसार को अवश्य ही इन शब्दों के साथ यथोचित व्यवहार करना चाहिये अन्यथा क्या ब्लाग जगत में घुईया छीलने के लिये आये थे?
दूसरों को आहत करने के लिए "एक्स्ट्रा माइल" चलने वाले जब एक एक शिष्ट टिप्पणी को "बदबूदार" बताकर भड़काऊ व अशिष्ट पोस्टें व टिप्पणियाँ लिखते हैं उस समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी खुद की बर्दाश्त कितनी है. खुद डॉक्टर होकर भी कैंसर से जूझते (अब स्वर्गीय) और ज़िंदगी और म्रत्यु से लड़ते (अब रिकवर्ड) दो बुज़ुर्ग ब्लोगरों पर लगातार वाक्-प्रहार करके आहत करने वालों को व्यंग्य विधा को समझने की बुद्धि तो रखनी ही चाहिए. (इन दो उदाहरणों के अलावा भी बदतमीजी के बहुत से कीर्तिमान स्थापित किये गए हैं). जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकने से बचें इसी में सबकी भलाई है.
ReplyDeleteरश्मि जी, शिल्पा जी,
आपके सुझाव और सद्भावना का आदर करते हुए मैंने इस पोस्ट पर कमेन्ट ऑप्शन बंद कर दी है. जिन्होंने भी इस एपिसोड में संयम, ज़िम्मेदारी और गरिमा का परिचय दिया है उनका आभार!