Sunday, September 18, 2011

नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 4

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आपके सहयोग से एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ, नायकत्व को पहचानने का। तीन कड़ियाँ हो चुकी हैं, पर बात अभी रहती है। भाग 1; भाग 2; भाग 3; अब आगे:

वीरांगना दुर्गा भाभी
नायकों को सुपर ह्यूमन दर्शाना मेरा उद्देश्य नहीं है। वे भी हमारे-आपके बीच से ही आते हैं लेकिन कुछ अंतर के साथ। जैसा कि हमने पहले देखा कि वे अपनी नहीं दूसरों की सोचते हैं। कार्य कितना भी कठिन हो वे अपनी सोच को कार्यरूप करने का साहस रखते हैं और बाधा कैसी भी आयें, सफल कार्य-निष्पादन की क्षमता और कुशलता रखते हैं। और यह सब काम वे सबको साथ लेकर करते हैं। नायक स्पूनफ़ीड नहीं करते बल्कि समाज को सक्षम बनाते हैं। वे विघ्नसंतोषी नहीं बल्कि सृजनकारी होते हैं। वे न्यायप्रिय होते हैं और सत्यनिष्ठा को अन्य निष्ठाओं के ऊपर रखते हैं। इन सबके साथ उनका चरित्र पारदर्शी होता है क्योंकि वे मन-वचन-कर्म से ईमानदार होते हैं। जो होते हैं, वही दिखते हैं, वही कहते हैं, वही करते हैं। उनका उद्देश्य सत्तारोहण नहीं बल्कि जनसेवा होता है। वे समाज पर अपनी विचारधारा और तानाशाही थोपते नहीं। खलनायकों को उनके चमचे भले ही विश्व का सबसे बड़ा विचारक बताते हों, नायकों का सम्मान जनता स्वयं करती है क्योंकि वे जनसामान्य के सपनों को साकार करने की राह बनाते हैं।
सूरा सोहि सराहिये जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे तऊँ न छाँड़े खेत ~संत कबीर

रानी लक्ष्मीबाई (ब्रिटिश लाइब्रेरी)
झांसी की रानी अबला नहीं थीं। आज़ाद हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठे। भारत के अधिसंख्य क्रांतिकारियों ने जीवन के तीन दशक भी नहीं छुए। हम सब जीवन भर सीखते हैं, फिर भी सर्वस्व न्योछावर करना नहीं सीख पाते। कुछ लोग तो मानो बात-बात पर आहत होने, शिकायत करने की कसम ही खाकर बैठे होते हैं। नायक घुलने वाली मिट्टी के नहीं बनते। वे अपने साथ दूसरों के जीवन को भी आकार देते हैं।  उम्र के साथ हम सभी के अनुभव बढते हैं, परंतु नायक ज्ञानपिपासु होते हैं। ज्ञान महत्वपूर्ण है इसलिये बहुत कुछ जानते हुए भी नायक जीवन भर सीखते हैं। वे हमसे बेहतर सीखते हैं क्योंकि वे परस्पर विरोधी विचारधाराओं में से भी जनोपयोगी बिन्दु चुन पाते हैं। उनके साहस और उदारता जैसे गुण उनसे असम्भव कार्य निष्पादित करा पाते हैं। साहस को पूर्ण करने के लिये नायकों के पास धैर्य भी बहुतायत में होता है और उन्हें इन गुणों का संतुलन भी आता है। नायकों की आँकलन क्षमता उनकी एक विशेषता है। वे अपनी क्षमता का सही आँकलन कर पाते हैं और साथ ही अपने सामने रखी चुनौतियों का भी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ नायक के कर्म का फल उसके जीवनकाल में समाज को नहीं मिल पाता है। इससे उनका आँकलन ग़लत सिद्ध नहीं होता। वे जानते हैं कि कार्यसिद्धि में समय लगेगा परंतु यदि वे आरम्भिक आहुति न दें तो शायद वह कार्य असम्भव ही रह जाये। कुल मिलाकर नायक असम्भव को सम्भव बनाने की प्रक्रिया जानते हैं।
अष्टादशपुराणानां सारं व्यासेन कीर्तितम् परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़नम्।।
(परोपकार पुण्य है और परपीड़ा पाप है)

कठिन समय = नायक की पहचान
कठिन समय नायक उत्पन्न तो नहीं करता परंतु कठिन समय में एक नायक की परीक्षा आसानी से हो जाती है। भारत का स्वाधीनता संग्राम हो, विभाजन या देश पर कम्युनिस्ट चीन का अक्रमण, जीवन में कठिन समय आते ही हैं। सभ्य समाज को खलनायक अपना ऐसा निकृष्टतम रूप दिखाते हैं कि आम आदमी बेबसी महसूस करता है। ऐसे समय पर नायकों की पहचान आसानी से हो जाती है। जिनकी तैयारी है, जो सक्षम भी हैं और इच्छुक भी, वे ऐसे समय पर स्वतः ही आगे आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं जब नायक अपना समय चुनते हैं। वे धैर्य और संयम के साथ सही समय की प्रतीक्षा करते हैं। वे जोश से नहीं होश से संचालित होते हैं। नायक प्रकाश-दाता भी हैं और पथ-निर्माता भी। नायकों के विभिन्न स्तर हो सकते हैं और नायकों के अपने नायक भी होते हैं। हम चाहें तो उनकी इस व्यक्तिगत रुचि में उनसे असहमत भी हो सकते हैं। रामायण से उदाहरण लें तो हनुमान जी अपने आप में एक नायक भी हैं पर उनके नायक श्रीराम हैं। इसी प्रकार गांधी को नायक न मानने वाला कोई व्यक्ति विनोबा भावे या नेताजी सुभाष को अपना नायक मानता रह सकता है, भले ही वे दोनों ही गांधीजी को जीवनपर्यंत अपना नायक मानते रहे।

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति: परेषां परिपीडनाय खलस्य साधोर्विपरीतमेतज्ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।
(साधु का ज्ञान, धन व शक्ति जनसामान्य के विकास, समृद्धि व रक्षा के लिये होती है)

जगप्रसिद्ध जननायक महात्मा गांधी
जहाँ खलनायकों के बहुत से गुण आनुवंशिक हो सकते हैं वहीं नायकों के गुणों के पीछे अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं है। तो भी स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन हमें अपनी छोटी-मोटी चिंताओं से ऊपर उठने का अवसर देता है। जो व्यक्ति हर बात को अपने ऊपर आक्षेप समझेगा, जिसकी दुनिया "मैं" से आगे नहीं हो वह एक साधारण मानव भी बन पाये तो ग़नीमत है। नायक जन-गण के हित के बारे में सोचते हैं । पिछली कडी में हमने देखा कि जब नेताजी अपनी बेटी को छोडकर गये तब वह मात्र चार सप्ताह की थी। अनिता ने अपने पिता को नहीं देखा लेकिन उन्होंने अपने को भाग्यशाली बताते हुए अन्य भारतीयों की पीडा को बड़ा बताया। भगत सिंह के परिवार में उनसे पहले कई क्रांतिकारी हो चुके थे। चन्द्रशेखर आज़ाद का परिवार भूखे रहकर भी अपनी ईमानदारी से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हुआ। गांधी जी अपनी जमी-जमाई प्रैक्टिस छोडकर आये परंतु आज़ादी के बाद अपनी संतति के लिये भी कोई पद लेने की आवश्यकता नहीं समझी। इन सब उदाहरणों से नायक के विकास में उसके परिवेश की भूमिका दिखाई देती है।
नाक्षरं मंत्ररहितं नमूलंनौषधिम् अयोग्य पुरूषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभ:।।
(नायक हर व्यक्ति में छिपी सम्भावना देख सकते हैं)

चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊँ
दूसरों का नायकत्व स्वीकार पाना भी सबके बस की बात नहीं है। नायकों में कमी ढूंढना बडा आसान है। वे भी इंसान हैं। वक्र दृष्टि फेंकिये कोई न कोई कमी नज़र आ जायेगी। नायकों को हममें कमी नहीं दिखती, तभी तो वे हमें अंगीकार कर पाते हैं। जहाँ खलनायक अक्सर भेदवादी होते हैं और समाज को बाँटने के लिये नये-नये "वाद" उत्पन्न करते हैं वहीं नायक समन्वय में विश्वास करते हैं। उनके लिये समाज के एक अंग के विकास का अर्थ दूसरे अंग का ह्रास नहीं होता। नायक की क्रांति में नरसंहार नहीं होता है बल्कि उसका उद्देश्य नरसंहार जैसे दानवी कृत्यों को यथासम्भव रोकना होता है। परशुराम ने निरंकुश और निर्दय शासकों की हिंसा को रोका और चन्द्रशेखर आज़ाद और रामप्रसाद बिस्मिल ने ब्रिटिश राज की हिंसा को रोका। गांधी का मार्ग भले ही भगतसिंह से भिन्न रहा हो परंतु अहिंसा के प्रति उनके विचार एकसमान थे। एक आस्तिक के शब्दों में कहूँ तो खलनायक समाज को विभक्त करते हैं जबकि नायक भक्त होते हैं। वे अपने को समाज का अभिन्न अंग मानकर समाज में रहते हुए, उसकी अच्छाइयों का विस्तार करते हुए उसके उत्थान की बात करते हैं। खलनायक असंतोष और विद्वेष भड़काते हैं जबकि नायक दूसरे पक्ष को समझने की दृष्टि प्रदान करते हैं। खलनायक संकीर्ण होते हैं जबकि नायक "सर्वे भवंतु सुखिनः ..." के मार्ग पर चलते हैं।
वीर सावरकर - प्रथम दिवस आवरण

ऐसा लगता है कि नायकों में परोपकार की प्रवृत्ति होती है। लेकिन यह प्रवृत्ति एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। अनुकूल वातावरण उत्पन्न करके हम इसे बढावा दे सकते हैं। इसी प्रकार विभिन्न कौशल सीखकर और बच्चों को सिखाकर हम अपनी और उनकी क्षमतायें और आत्मविश्वास बढा सकते हैं।  मुझे लगता है कि नायकत्व के निम्न गुण सीखे जा सकते हैं और उनकी उन्नति और प्रसार के लिये हमें वातावरण बनाना ही चाहिये: स्वास्थ्य, साहस, करुणा, परोपकार, दान, उदारता, समन्वय, सामाजिक ज़िम्मेदारी, विभिन्न कौशल।

इस विषय पर विमर्श के लिये इतना कुछ है कि कभी पूरा न हो परंतु अपनी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए मैं अगली दो कड़ियों में इस शृंखला के समापन का वायदा करके यहाँ से विदा लेता हूँ। चलते-चलते बस एक प्रश्न: क्या आपने अपने आस-पास बिखरे नायकत्व को पहचाना है?

[क्रमशः]
[सभी चित्र/स्कैन अनुराग शर्मा द्वारा :: Snapshots by Anurag Sharma]

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* प्रेरणादायक जीवन-चरित्र
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 1
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 2
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 3
* डॉक्टर रैंडी पौष (Randy Pausch)
* महानता के मानक

38 comments:

  1. अभी आपकी पोस्ट नहीं पढ़ी। भारत में भूकंप की खबर है।

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  2. जो व्यक्ति हर बात को अपने ऊपर आक्षेप समझेगा, जिसकी दुनिया "मैं" से आगे नहीं हो वह एक साधारण मानव भी बन पाये तो ग़नीमत है। नायक जन-गण के हित के बारे में सोचते हैं ।

    बहुत ही उत्कॄष्ट श्रंखला चल रही है, जिसके माध्यम से बीते समय के नायकों के बारे में तो जानकारी मिल ही रही है और उनके कार्यों की स्मॄति से नव पीढी को एक उत्तम मार्ग दर्शन प्राप्त हो रहा है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. लेकिन यह भी तो सही है कि जो जीतता है इतिहास में वही नायक के तौर पर प्रक्षेपित/प्रस्तुत किया जाता है.

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  4. आपकी प्रस्तुति से बहुत कुछ जानने को मिल रहा है.मेरी समझ से नायक में श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित 'क्षत्रिय'के निम्न गुण होने चाहियें.

    शूरवीरता,तेज,धर्य,चतुरता,युद्ध में न भागना(संघर्ष का सामना करना)ईश्वरीय या स्वामी भाव का होना
    यानि शरणागत की रक्षा करना आदि.

    ताऊ रामपुरियाजी की बात से मैं सहमत हूँ.

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  5. "परोपकार पुण्य है" ....
    "परपीड़ा पाप है" ....
    "साधु का ज्ञान, धन व शक्ति जनसामान्य के विकास, समृद्धि व रक्षा के लिये होती है" ...

    true ...

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  6. बहुत मेहनत से लिख रहे हैं आप,संग्रहणीय पोस्ट,आभार.

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  7. आज का होमवर्क मुश्किल है सरजी।

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  8. बहुत से बिम्ब मन में उभर रहे हैं ...आप समापन करेगें तो मैं भी उपसंहार -टिप्पणी करूंगा !

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  9. सचमुच ऐसे नायकों को याद करते रहना जरूरी है। आपका सवाल मौजूं है और यह भी कि हम अपने आसपास के नायकों को नजरअंदाज करते रहते हैं।

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  10. sunder likha hai aaj bahut kuchh jyada jana .aapki mehnat ko naman
    rachana

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  11. खलनायकों के चमचे उन्हें विश्व का सबसे बड़ा विचारक भले ही बताते हों, नायकों का सम्मान जनता स्वयं करती है क्योंकि वे जनसामान्य के सपनों को साकार करने की राह बनाते हैं...

    सार्थक विश्लेषण!

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  12. महानता के मानक पर ४ पोस्टें लिखी थी, आपको पढ़कर और ज्ञान बढ़ रहा है।

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  13. प्रवीण पाण्डेय जी,
    अच्छी तरह याद है मुझे। मैंने वह श्रेष्ठ शृंखला पढी थी और "साहस" के बारे में एक टिप्पणी की थी। उस प्रकार के आलेखों की आवश्यकता को शिद्दत से महसूस करता हूँ और आपका आभारी भी हूँ।

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  14. जबरदस्त ||

    बहुत-बहुत बधाई ||

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  15. अच्छा शोधपरक लेख ! कभी-कभी आप 'गलती' से अच्छा लिखते हैं और हाँ ,'सुपोस्ट' भी लिखते हैं !

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  16. बेहतरीन पोस्ट है!!

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  17. सूरा सोहि सराहिये जो लड़े दीन के हेत,
    पुरजा-पुरजा कट मरे तऊँ न छाँड़े खेत

    संत कबीर ने लिखा है..
    आज पता चला..
    आभार.

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  18. सराहनीय पोस्टें. देश के लिए अभी ऐसे नायकों की सख्त जरूरत है.

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  19. नायक के आरम्भिक आहुति देने के गुण के लिए
    खुद अपनी ही सोजे-बातिनी से,निकाल इक शम्मे-गैर फ़ानी
    चिराग़े-दैरों -हरम तो ऐ दिल,जला करेंगे बुझा करेंगे। -अली सिकंदर जिगर मुरादाबादी
    (सोजे-बातिनी=भीतर की आग,गैर फ़ानी =अमिट, दैरों -हरम= मंदिर-मस्जिद)
    दुर्लभ सुरुचिपूर्ण चित्रों के लिए आभार।

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  20. क्या प्रवीण पाण्डेय जी की उस पोस्ट शृंखला का लिंक मिल सकेगा ?

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  21. अनुराग जी ,
    सादर प्रणाम ,आपका प्रयास सार्थक और सराहनीय ही नहीं पूरी तरह से प्रभावी और दिलकश है .
    सर्वश्रेष्ट हिंदी ब्लॉग सूची में अपने ब्लॉग का नाम देखकर हम तो धन्य हुए आपने तो ख़ाकसार को आफ़ताब कर दिया ..आभार

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  22. http://hastaakhshar.blogspot.com/2010/07/blog-post_02.html
    if and when you have time do read this as well

    nice post

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  23. बढि़या पोस्ट

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  24. महानता के ऊपर प्रवीण पाण्डेय की पोस्ट का लिंक:

    महानता के मानक

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  25. thanks for the link anurag ji - कृपया मेरी बधाई और धन्यवाद ज्ञानदत्त जी और प्रवीण जी तक पहुंचाएं - वहां टिप्पणी सिर्फ टीम मेम्बर्स कर सकते हैं | बहुत अच्छा आलेख है |

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  26. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक एवं शोधपरक श्रृंखला है. इस उत्कॄष्ट लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.

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  27. बढ़िया श्रृंखला। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।

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  28. जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख....

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  29. इतना गहन कवरेज देखकर यह सोचना मुश्किल हो रहा है कि क्या कहूँ!! बस आभार स्वीकार करें, इन सारी जानकारियों के लिए!!

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  30. बेहतरीन विश्लेषणात्मक पोस्ट ... अपने आस पास बिखरे नायकत्व को पहचान पाना शायद कठिन हो ... पर नायकत्व वाले कुछ गुण खुद में विक्सित कर ले तो शायद जीवन थोडा बेहतर बने ... क्यूँ ?

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  31. @सैल,
    आपकी बात सही है।

    @ रोहित,
    बहुत सुन्दर और सटीक

    @रचना जी, प्रवीण पाण्डेय
    लिंक्स के लिये आपका आभार!

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  32. @ लेकिन यह भी तो सही है कि जो जीतता है इतिहास में वही नायक के तौर पर प्रक्षेपित/प्रस्तुत किया जाता है.

    ऐसा होता तो नेताजी, राणा प्रताप आदि आज हमारे नायक कहाँ हो पाते? नायक का व्यक्तित्व हार जीत से कहीं ऊपर होता है। नायक की बात आने पर मैं गीता का अपना प्रिय श्लोक अवश्य उद्धृत करना चाहूंगा:
    सुखदुखे समेकृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
    ततो युद्धाय युज्वस्व नैवं पापंअवाप्स्यसि

    सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय से ऊपर उठकर किया हुआ युद्ध पापहीन होता है (बाकी सब लड़ाइयों में पाप है)

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  33. जबर्दस्त ज्ञानवर्धक पोस्ट.

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  34. आपकी कड़ी दस्तावेज है किसी भी रिसर्च के विद्यार्थी के लिए ... गहन चिंतन के बाद लिखी जाती हैं ऐसी पोस्ट ...

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  35. सत्य !
    नायक जनभावना को समझते हैं. या ऐसी सोच रखते हैं जिससे समाज का एक बड़ा वर्ग अपने आपको जोड़ पाता है. उसे अपनी बात लगती है. और वो स्वतः उस नायक के झंडे तले खिंचा चला जाता है.

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  36. बेहतरीन श्रंखला रही यह .....मानव जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण, इस विषय का इतना गहन विश्लेषण देख आपके प्रति एक अलग ही श्रद्धा जन्म लेती है जो अन्यों के लिए दुर्लभ है अनुराग भाई !
    मैं आपमें एक गंभीर और आदर्श नायक देखता हूँ !
    नमन इस नायकत्व को !
    आदर सहित शुभकामनायें !

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  37. आनंद आ रहा है इस श्रृंखला में ........एक और बेहतरीन विश्लेषणात्मक पोस्ट के लिए आभार आपका ...

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  38. एक एक शब्द अमृत तुल्य लगा...माँ शारदे को नमन जो आपसे यह सब लिखवा रही हैं...

    प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास....

    साधुवाद आपका....

    नमन !!!

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