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सैय्यद चाभीरमानी के परिचय की आवश्यकता नहीं है। आप उनसे पहले भी मिल चुके हैं। मैं तो उनकी बातों से इतना पक चुका हूँ कि घर से बाहर निकलने से पहले चुपचाप इधर-उधर झाँक कर इत्मीनान कर लेता हूँ कि वे मेरी ताक में बाहर तो नहीं खड़े हैं। हमने तो उनके डर से सुबह की सैर पर जाना भी बन्द कर दिया। उसके बाद वे शाम की चाय पे हमारे घर आने लगे तो आखिरकार हम घर बेचकर शहर के बाहर चले गये। लेकिन जब भाग्य खराब हो तो सारी सतर्कता धरी की धरी रह जाती है। अपनी माँ के जन्मदिन पर बच्चों ने ज़िद की अपनी माँ के लिये कुछ उपहार खुद चुनकर लायेंगे तो उनकी ज़िद पर हम चल दिये नगर के सबसे बडे मॉल में। बच्चे मूर्तिकला और हस्तशिल्प खण्ड में खोजबीन करने में लग गये तभी अचानक एक भारी-भरकम मूर्ति हमारे ऊपर गिरी। हम भी चौकन्ने थे सो हमने अपना कंधा टूटने से पहले ही मूर्ति को पकड़कर रोक लिया। यह क्या, मूर्ति तो "भाईजान, भाईजान" चिल्लाने लगी। देखा तो सैय्यद सामने मौजूद थे। दाढी तो उन्होंने पाकिस्तान छोड़ते ही कटा ली थी। इस बार मूँछ भी गायब थी।
इससे पहले कि वे हमें बोर करें, इस बार हमने आक्रामक नीति अपना ली जिससे वे खुद ही बोर होकर निकल लें और हमें बख्श दें।
"मूँछ क्या हुई? क्या भाभी ने उखाड़ दी गुस्से में?"
"उसकी यह मज़ाल, काट नहीं डालूंगा उसे।"
"इत्ता आसान है क्या? पकड़े नहीं जाओगे? कानून का कोई खौफ़ है कि नहीं?"
"क्यों दुखती रग़ पर हाथ रख रहे हो? पुराना टाइम होता तो पाकिस्तान ले जाकर काट देता। अब तो वहाँ भी पहुँच गये ये जान के दुश्मन। ओसामा जी को समन्दर में दफ़ना दिया। मगर एक बात बडे मज़े की पता लगी मियाँ ..."
"क्या?"
"येई कि तुमारे हिन्दुस्तान में भी एक शेर मौज़ूद है अभी भी।"
"एक? अजी हिन्दुस्तान तो शेरो-शायरी की जन्नत हैं, असंख्य शायर हैं वहाँ।"
"अमाँ, जेई बात खराब लगती है आपकी हमें, हर बात का उल्टा मतलब निकाल्लेते हो। हम बात कर रहे हैं, शेर जैसे बहादुर आदमी की।"
"अच्छा, अच्छा! अन्ना हज़ारे की खबर पहुँच गयी तुम तक?"
"हज़ार नहीं, एक की बात कर रहे हैं हम, अरे वोई जिसको जूते मारने की कै रहे थे कुछ हिन्दुत्वा वाले, विग्दीजे सींग टाइप कोई नाम था उसका। लगता चुगद सा है मगर बात बडी हिम्मत की कर रिया था ओसामा 'जी' कह के।"
जब तक हम पूछ्ते कि सैयद किसके सींग की बात कर रहे हैं, वे खुद ही ऐसे ग़ायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग। हमने भी भगवान का धन्यवाद दिया कि बला टली।
आगे चलते हुए जब स्टोर के हैलोवीन खण्ड पहुँचे तो सैयद से फ़िर मुलाक़ात हो गयी। इस बार वे एक यांत्रिक दानव को बड़े ग़ौर से देख रहे थे। जैसी कि अपनी आदत है मैने भी चुटकी ली, "लड़का ढूंढ रहे हैं क्या भाभीजान के लिये?"
हमेशा की तरह कहने के बाद लगा कि शायद नहीं कहना चाहिये था पर ज़बान का तीर कोई ब्लॉग-पोस्ट तो है नहीं कि छोड़ने के बाद हवा में ही दिशा बदल डालो। सैयद ने अपनी चारों आँखें हम पर गढाईं। हम कुछ असहज हुए। फिर अचानक से वे ठठाकर हँस पड़े और बोले, "अरे मैं न पड़ता इन झमेलों में। 20 खरीदने पडेंगे।"
"बीस क्यों भई?" अब चौंकने की बारी हमारी थी, "भाभी तो एक ही हैं?"
"तुम्हें पता ही नहीं, अपनी चार बीवियाँ हैं। एक यहाँ है, बड़ी तीन पाकिस्तान में ही रहती हैं।"
"तो भी चार ही हुए न?" यह नया पाकिस्तानी गणित हमें समझ नहीं आया।
"हरेक की चार अम्माँ भी तो हैं, 16 उनके लिये 16 जमा 4, कुल बीस हुए कि नहीं?"
हम कुछ समझते इससे पहले ही सैयद चाभीरमानी फिर से ग़ायब हो चुके थे।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* सैय्यद चाभीरमानी और हिंदुत्वा एजेंडा
* सैय्यद चाभीरमानी और शाहरुख़ खान
सैय्यद चाभीरमानी के परिचय की आवश्यकता नहीं है। आप उनसे पहले भी मिल चुके हैं। मैं तो उनकी बातों से इतना पक चुका हूँ कि घर से बाहर निकलने से पहले चुपचाप इधर-उधर झाँक कर इत्मीनान कर लेता हूँ कि वे मेरी ताक में बाहर तो नहीं खड़े हैं। हमने तो उनके डर से सुबह की सैर पर जाना भी बन्द कर दिया। उसके बाद वे शाम की चाय पे हमारे घर आने लगे तो आखिरकार हम घर बेचकर शहर के बाहर चले गये। लेकिन जब भाग्य खराब हो तो सारी सतर्कता धरी की धरी रह जाती है। अपनी माँ के जन्मदिन पर बच्चों ने ज़िद की अपनी माँ के लिये कुछ उपहार खुद चुनकर लायेंगे तो उनकी ज़िद पर हम चल दिये नगर के सबसे बडे मॉल में। बच्चे मूर्तिकला और हस्तशिल्प खण्ड में खोजबीन करने में लग गये तभी अचानक एक भारी-भरकम मूर्ति हमारे ऊपर गिरी। हम भी चौकन्ने थे सो हमने अपना कंधा टूटने से पहले ही मूर्ति को पकड़कर रोक लिया। यह क्या, मूर्ति तो "भाईजान, भाईजान" चिल्लाने लगी। देखा तो सैय्यद सामने मौजूद थे। दाढी तो उन्होंने पाकिस्तान छोड़ते ही कटा ली थी। इस बार मूँछ भी गायब थी।
इससे पहले कि वे हमें बोर करें, इस बार हमने आक्रामक नीति अपना ली जिससे वे खुद ही बोर होकर निकल लें और हमें बख्श दें।
"मूँछ क्या हुई? क्या भाभी ने उखाड़ दी गुस्से में?"
"उसकी यह मज़ाल, काट नहीं डालूंगा उसे।"
"इत्ता आसान है क्या? पकड़े नहीं जाओगे? कानून का कोई खौफ़ है कि नहीं?"
"क्यों दुखती रग़ पर हाथ रख रहे हो? पुराना टाइम होता तो पाकिस्तान ले जाकर काट देता। अब तो वहाँ भी पहुँच गये ये जान के दुश्मन। ओसामा जी को समन्दर में दफ़ना दिया। मगर एक बात बडे मज़े की पता लगी मियाँ ..."
"क्या?"
"येई कि तुमारे हिन्दुस्तान में भी एक शेर मौज़ूद है अभी भी।"
"एक? अजी हिन्दुस्तान तो शेरो-शायरी की जन्नत हैं, असंख्य शायर हैं वहाँ।"
"अमाँ, जेई बात खराब लगती है आपकी हमें, हर बात का उल्टा मतलब निकाल्लेते हो। हम बात कर रहे हैं, शेर जैसे बहादुर आदमी की।"
"अच्छा, अच्छा! अन्ना हज़ारे की खबर पहुँच गयी तुम तक?"
"हज़ार नहीं, एक की बात कर रहे हैं हम, अरे वोई जिसको जूते मारने की कै रहे थे कुछ हिन्दुत्वा वाले, विग्दीजे सींग टाइप कोई नाम था उसका। लगता चुगद सा है मगर बात बडी हिम्मत की कर रिया था ओसामा 'जी' कह के।"
जब तक हम पूछ्ते कि सैयद किसके सींग की बात कर रहे हैं, वे खुद ही ऐसे ग़ायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग। हमने भी भगवान का धन्यवाद दिया कि बला टली।
आगे चलते हुए जब स्टोर के हैलोवीन खण्ड पहुँचे तो सैयद से फ़िर मुलाक़ात हो गयी। इस बार वे एक यांत्रिक दानव को बड़े ग़ौर से देख रहे थे। जैसी कि अपनी आदत है मैने भी चुटकी ली, "लड़का ढूंढ रहे हैं क्या भाभीजान के लिये?"
हमेशा की तरह कहने के बाद लगा कि शायद नहीं कहना चाहिये था पर ज़बान का तीर कोई ब्लॉग-पोस्ट तो है नहीं कि छोड़ने के बाद हवा में ही दिशा बदल डालो। सैयद ने अपनी चारों आँखें हम पर गढाईं। हम कुछ असहज हुए। फिर अचानक से वे ठठाकर हँस पड़े और बोले, "अरे मैं न पड़ता इन झमेलों में। 20 खरीदने पडेंगे।"
"बीस क्यों भई?" अब चौंकने की बारी हमारी थी, "भाभी तो एक ही हैं?"
"तुम्हें पता ही नहीं, अपनी चार बीवियाँ हैं। एक यहाँ है, बड़ी तीन पाकिस्तान में ही रहती हैं।"
"तो भी चार ही हुए न?" यह नया पाकिस्तानी गणित हमें समझ नहीं आया।
"हरेक की चार अम्माँ भी तो हैं, 16 उनके लिये 16 जमा 4, कुल बीस हुए कि नहीं?"
हम कुछ समझते इससे पहले ही सैयद चाभीरमानी फिर से ग़ायब हो चुके थे।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* सैय्यद चाभीरमानी और हिंदुत्वा एजेंडा
* सैय्यद चाभीरमानी और शाहरुख़ खान
फ़िर आयेंगे, जरूर आयेंगे। आदत लग चुकी है उन्हें आपकी या कहिये आप जैसों की।
ReplyDeleteये भी अजब गजब कैरेक्टर हैं
ReplyDeleteबीबियों का गणित तो बड़ा पेचीदा है।
ReplyDeleteसैय्यद चाभीरमानी का गणित तो आइन्स्टाइन को भी परेशान करनेवाला लगता है :)
ReplyDeleteबढ़िया चरित्र है यह, जिसका हट लेना सबसे माकूल जवाब होता है।
ReplyDeleteपहली बार पढ़ा इस चरित्र को। आपकी मूड और चाभरानी के मिलने के बीच गहरा संबंध तो नहीं है? कहने का मतलब जब उखड़ा हो, तभी मिलते हों..!
ReplyDeleteHmmm Rochak !
ReplyDeleteआज ही मिले आपके इस चाभिरामानीजी से ...
ReplyDeleteमुझे लगता है अब वे आपसे छिपते फिर रहे होंगे!
कभी-कभी काल्पनिक चरित्रों के बहाने हम वह कह जाते हैं जो ऐसे नहीं कह सकते....सींग गायब होने का सीन ज़ोरदार रहा !
ReplyDeleteजबरदस्त हैं ये चाभीरमानी जी!!
ReplyDeleteसच में मज़ा आया इनसे मिल के।
मैंने पहली बार पढ़ा और पीछे के लिनक्स भी देख आया।
@मुझे लगता है अब वे आपसे छिपते फिर रहे होंगे!
ReplyDeleteनहीं जी, ऐसी मिरी तक़दीर कहाँ, बच तो अभी भी हम ही रहे हैं जब तक सम्भव हो, दयालु हैं न!
@ आपकी मूड और चाभरानी के मिलने के बीच गहरा संबंध तो नहीं है? कहने का मतलब जब उखड़ा हो, तभी मिलते हों..!
ReplyDeleteअजी आपने अभी हमें ठीक से पहचाना नहीं है। अपना मूड कंसिस्टैंटली गुड है।
@फ़िर आयेंगे, जरूर आयेंगे। आदत लग चुकी है उन्हें आपकी या कहिये आप जैसों की।
ReplyDeleteसोच रिया हूँ कि इस बार आपका पता थमा दूंगा, फ़त्तू से मिला देना।
Excellent.....
ReplyDeleteचाभीरमानी से मिले शायद दो साल होने को आये, बहुत याद आ रही थी इन सांई की, मैं सोचता हुं कि चाभीरमानी को फ़त्तु भाई जान से मिलवा दिया जाये तो क्या सीन उपस्थित होगा?:)
ReplyDeleteरामराम.
यह भी उम्दा है.
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