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न्यू यॉर्क अग्निशमन दस्ता |
11 सितम्बर के आतंकवादी आक्रमण की दशाब्दी निकट है। इसी दिन 2001 में हम धारणा, धर्म और विचारधारा के नाम पर निर्दोष हत्याओं के एक दानवी कृत्य के गवाह बने थे। इसी दिन खलनायकों ने अपना रंग दिखाकर साढे तीन हज़ार निर्दोष नागरिकों की जान ली थी, वहीं दूसरी ओर नायकों की भी कमी नहीं थी। न्यूयॉर्क प्रशासन, विशेषकर पुलिस व अग्निशमन विभाग ने उस दिन जो अदम्य साहस दिखाया था वह आज भी प्रेरणा देता है। 11 सितम्बर 2001 को जिस प्रकार अमेरिका की जनता ने एकजुट होकर अपनी अदम्य इच्छा-शक्ति का प्रदर्शन किया था वह अनुकरणीय है। साढे तीन हज़ार निर्दोष लोगों की हत्या, लेकिन बदले की कोई कार्यवाही नहीं। न दंगे न हिंसा, न किसी समुदाय के विरुद्ध दुष्प्रचार। लोग चुपचाप सहायता कार्यों में जुट गये। लगभग सभी नगरों में रक्तदाता, चिकित्सक ऐवम स्वयंसेवक आदेश के इंतज़ार के लिये तैयार खडे थे। वह एक घटना संसार में बहुत से बदलाव लाई। आज न ओसामा न सद्दाम है, न तालेबान और न ही पाकिस्तान का सैनिक तानाशाह। भारत और अमेरिका के सम्बन्ध भी अब वैसे हैं जैसे कि विश्व के दो महानतम और स्वतंत्र लोकतन्त्रों के आरम्भ से ही होने चाहिए थे। मानवता पर 9-11 जैसे संकट आते रहे हैं परंतु हमने सदा ही सिर ऊंचा करके कठिन समयों का सामना किया है। 9-11-2001 के शहीदों को मेरा नमन।
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खतरे रहेंगे और सामना करने वाले नायक भी |
अग्निशमन दस्ते की बात पर याद आया कि अमेरिका में अधिकांश नगरों के अग्निशमन दस्ते कर्मचारियों से नहीं बल्कि समाजसेवकों से संचालित होते हैं। अपने जीवनयापन के लिये कोई नौकरा या व्यवसाय करने वाले स्वयंसेवी आवश्यकता के समय फ़ायरट्रक लेकर चल पड़ते हैं। वास्तव में यहाँ जनसेवा का कार्य काफी व्यवस्थित और संगठित है। लोकोपकार की आर्थिक व्यवस्था तो सुदृढ़ है ही, जनसेवा के अन्य भी अनेक रूप हैं। यथा मरीज़ों की शारीरिक अंगों की आवश्यकता और उसे प्रकार दाताओं की राष्ट्रीय सूचियाँ उपलब्ध रहती हैं। अंगदान को सहमत वयस्कों के ड्राइवर्स लाइसेंस पर यह बात अंकित होती है ताकि दुर्घटना की स्थिति में अंगों को इंतज़ार करते मरीजों तक यथासंभव शीघ्रता से पहुचाया जा सके और अंग प्रत्यारोपण का कार्य आवश्यकतानुसार सुचारु रूप से चलता रहे। यह व्यवस्था दो-चार दिन में तो नहीं बनी होगी। पीढियाँ लगी हैं। आज कुछ
कुंठित लोग भले ही अमेरिका को विश्व का दादा कहकर हल्ला मचा लें लेकिन कोई भी यह नकार नहीं सकता कि इस राष्ट्र के पीछे शताब्दियों का चरित्र निर्माण छिपा है। चरित्र निर्माण की यह प्रक्रिया बचपन से ही अमेरिकी जीवन का अंग बन जाता है। जहाँ जीवन में नैतिकता का स्तर ही ऊँचा हो वहाँ सम्भावनायें प्रबल होंगी ही।
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लॉक्स ऑफ़ लव - बच्चों द्वारा केशदान |
अमेरिका से तुलना करता हूँ तो भारत में बच्चों में समाजकार्य की चेतना की कमी दिखती है। अमेरिका में छोटे-छोटे बच्चे भी अपनी शैक्षिक या धार्मिक संस्थाओं के सहारे सेवाकार्य से जुडे रहते हैं जिनमें अनाथालयों में समय देने से लेकर वृद्धगृहों में एकाकी लोगों से जाकर मिलना और सांस्कृतिक कार्यक्रम करने जैसे कार्य शामिल हैं। वृक्षारोपण, रक्तदान, पक्षियों को दाना देना जैसी बातें तो यहाँ सामान्य जीवन का भाग ही लगती हैं। छोटे बच्चे कुछ और नहीं तो अपने सिर के बाल ही लम्बे करके फिर दान दे देते हैं ताकि उनसे कैंसर पीड़ितों के विग बन सकें। पुरानी पुस्तकों से लेकर नये खिलौनों तक, दान की प्रवृत्ति बचपन से ही प्रोत्साहित की जाती है।
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वह दिन याद रहे |
यहाँ शारीरिक श्रम का भी बहुत महत्व है। लोग अपने घर के अधिकांश कार्य स्वयं ही करते हैं। मज़दूरों को अच्छी दिहाड़ी भी मिलती है और श्रम को सम्मान भी। हमारे देश में भी त्याग, साहस, करुणा, प्रेरणा और प्रेम की कोई कमी नहीं है। बल्कि भारत की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के कारण यह बहुत आसान है। लेकिन हमें ऐसी व्यवस्था का निर्माण तो करना होगा जहाँ बच्चे आरम्भ से ही समाज के प्रति सकारात्मक दायित्वों से जुड़ सकें।
दूसरी बात जो देखने को मिलती वह है नेतृत्व की दृढ इच्छाशक्ति. हमारा जहाज़ कंधार में खड़ा था। तालेबान के पास कोई वायुसेना नहीं थी। पाकिस्तान के अलावा उसे किसी राष्ट्र की मान्यता भी प्राप्त नहीं थी परन्तु हमने कमांडो कार्यवाही करने के बजाय उन खूंख्वार आतंकवादियों को छोड़ा जिन्होंने बाद में और अधिक नृशंस कार्यवाहियाँ कीं। इसके विपरीत अमेरिका को 9-11 के बाद निर्णय लेने में एक मिनट भी नहीं लगा। हमें भी अपने नेताओं में नेतृत्व क्षमता और दृढनिश्चय की मांग करनी चाहिए।
[चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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911 स्मारक
अच्छी चीज़ें हर ओर से सीखने की कोशिश सतत होती रहनी चाहिए |
ReplyDeleteशहीदों, निस्वार्थ सेवकों, को नमन
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव आया है. 1. शहरों में शिक्षा अब दुकान की तरह एक धंधा भर है जिसमें लाला मास्टरों को भी दुहता है. 2. खाली बैठी बड़े अफ़सरों की बीवियां भी इस कमाई में आ रही हैं. 3. मास्टरी के धंधे में अब मजबूरी में जाते हैं लोग क्योंकि दूसरी अच्छी नौकरी हाथ नहीं लगी 4.सरकारी मास्टरी सोने पे सुहागा है. 5.मास्टर लोग पढ़ाने का शौक लेकर पढ़ाने के पेशे में नहीं आते हैं अब.
ReplyDeleteइन सब बातों के चलते आने वाली पीढ़ी कैसी होगी अंदाज़ा लगाया जा सकता है...
अमेरिका की लाख बुराई होती हो कि वहां दूसरे देशों के गणमान्य लोगों को भी चेकिंग से बख्शा नहीं जाता...लेकिन इसी सख्ती का नतीज़ा है कि दस साल में आतंक की एक भी बड़ी वारदात नहीं हुई...
ReplyDeleteरही बच्चों में परोपकार की बात तो अमेरिका की तर्ज़ पर इस तरह के छोटे छोटे प्रोजेक्ट भारत में शुरू करने में आप जैसे भारतवंशियों का अनुभव बहुत काम आ सकता है...लेकिन हमारी सरकार सुध ले तब न...
जय हिंद...
बहुत सार्थक संदेश दिया है आपने !
ReplyDeleteहमारे देश में महिलायें(महिलाओं की बात जान बूझ कर, कर रही हूँ)किटी पार्टी और ऐसे ही दूसरे दिखावटी आयोजनों में व्यर्थ समय और पैसा खर्च करती हैं केवल अपनी शान दिखाने की होड़. अमेरिका में मैंने देखा वे अस्पतालों में जाकर मरीज़ों की सहायता करती हैं ,स्कूलों में तथा अन्य आयोजनों में सहयोग भी करती हैं और शारीरिक श्रम करने में कोई कुंठा नहीं . - हाँ, जीवन को इंज्वाय भी मुक्त भाव से करती हैं !
पढ़-लिख कर समाज-कल्याण के प्रति सचेत हो जायें तो कितना अच्छा रहे.
वहाँ की और बातों की नकल खूब की जाती है,उपयोगी बातों को यों ही उड़ा देते हैं लोग .
प्रेरक, अनुकरणीय.
ReplyDeleteअपने यहाँ तो सांपों को दूध पिलाने वाली बात लागू होती है.
ReplyDeleteकेंचुओं और नाग में बहुत बड़ा अन्तर है.
ReplyDeleteकभी नैतिक शिक्षा के लिये ग्रेडिंग होती थी, हांलाकि वह भी नाम मात्र की ही थी, किन्तु अब वह भी गायब.
हम नैतिकता का नारा लगाने में उस्ताद हो गये हैं और नैतिकता नाम की चिडिया को सालम चबा गये हैं.
सही कहते हैं आप। काश हम सभी ये स्वीकार करते।
ReplyDeleteअमेरिका ने एक मिसाल पेश की है और आज की जरूरत है की भारत औए भारतवासी अपने खुद के खातिर खड़े होए और शशक्त रास्त्र की तरह उठें ...
ReplyDeleteअनुराग जी!
ReplyDeleteएक ऐसी घटना जो मानवता के चेहरे पर एक बदनुमा दाग़ है... मगर लोगों का जुझारूपन इस आतंकवाद के चेहरे पर तमाचा है.. ये आपने सच कहा कि हमारे यहाँ वैसी अपब्रिन्गिंग नहीं होती! अब वक्त आ गया है इसे भी आजमाने का!
नमन उन शहीदों को और सैल्यूट उन रियल लाइफ हीरोज को..
बहुत ही सार्थक पोस्ट!!
कल से ट्राई मार रहे हैं, तब कहीं जाकर नंबर मिला है। हम क्लिक करते थे तो गूगल जी झिड़के दे रहे थे। पार्ट फ़ोर की जगह आज ये पोस्ट दिखी है।
ReplyDeleteदृढ़ इच्छाशक्ति कुशल प्रशासन, नेतृत्व के लिये बहुत जरूरी गुण है, लेकिन साथ ही उद्देश्य भी अच्छा होना चाहिये। उद्देश्य क्या है, कैसा है यही निर्धारक तत्व है। मुझे तो लगता है कि हमारे नेताओं के पास दृढ़ इच्छाशक्ति है, हाँ, उद्देश्य के बारे में हमारे और उनके विचार अलग हो सकते हैं।
कहते है उत्तम बात कहीं भी हो ग्रहण करनी चाहिए।
ReplyDeleteआज आवश्यकता है अमेरिकी प्रजा की इस जिजीविषा संघर्ष सहायता और सद्भावना के जीवनमूल्यों को भारत में भी अपनाने की।
कर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सार्थक संदेश ||
ReplyDeleteअमेरिकी समाज के नैतिक व्यवहार के संबंध में नई जानकारियां मिलीं।
ReplyDeleteआपने सही कहा, इस संस्कार को निर्मित होने में सदियां लगी होंगी।
वो देश जिसे आकंठ भौतिकवादी,भोगवादी, जीवनशैली का प्रतिनिधि कह कर कोसा जाता है,वहां जनसेवा की इतनी सुन्दर व्यवस्था ....।
ReplyDeleteबरबस लबों पर बोल आते हैं-"वाह अमेरिका"।
सोचने पर मजबूर कर दिया इस लेख ने .. सचमुच
ReplyDeleteअब से जब भी मित्रों से इस बारे में कोई चर्चा होगी आपकी बताई बातों का उल्लेख अवश्य करूँगा
धन्यवाद इस लेख के लिए
@वहाँ की और बातों की नकल खूब की जाती है,उपयोगी बातों को यों ही उड़ा देते हैं लोग।
ReplyDeleteकटु हो सकता है लेकिन इससे पूर्ण सहमति बनती है।
दादा बनना सरल नहीं है। सद गुणों से पूरे जीवन को तपाना पड़ता है। हमें बहुत कुछ सीखना है। सिर्फ कुछ प्रतिशत लोगों के सुधर जाने से नहीं होगा। संपूर्ण व्यवस्था में ही सुधार की आवश्यकता है। एक दूसरे को कोसना सरल है.. "पहले खुद को तो सुधार लो..!" मगर सिर्फ ऐसे कोसने से नहीं चलेगा।
ReplyDelete..आत्म चिंतन के लिए प्रेरित करती बढ़िया पोस्ट।
अमरीका भले ही अपने आपदा-प्रबंधन में निपुण और सिद्धहस्त हो,पर दूसरों को ज़ख्म देने में वह इससे भी कहीं आगे है !
ReplyDeleteअमेरिकी नागरिकों के प्रति हार्दिक सहानुभूति, जो उस कायर-कार्रवाई का शिकार हुए !
यही तो दुर्भाग्य है उन्नत देशों से हम वह नहीं सीखते जो सीखना चाहिए , हम बस उनके द्वारा छोड़ा कूड़ा करकट ही अपनाते हैं और वे हमारे गुण !
ReplyDeleteशब्दशः सहमति है आपसे..
ReplyDeleteसामाजिक उत्तरदायित्व चित्त में रोपने के प्रयास की सोचता कौन है यहाँ??????
एक और जहाँ अध्यात्म से कटने में (जो कि कहीं न कहीं स्वाभाविक ही इन चीजों से लोगों को जोडती है)लोग फैशन मानने लगे हैं, वहीँ यह आग्रह भी नहीं कि विश्व के किसी भी कोने से सामाजिक धार्मिक व्यवस्था में से सकारात्मक /सृजनात्मक ग्रहण करें...
जिला स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है-
ReplyDelete'घर के दैनिक कामकाज में माता-पिता दोनों की भूमिका समान होनी चाहिए'
ब्लॉग जगत के माननीय लेखकों,पाठकों से आग्रह है कि यदि उपर्युक्त विषय आपको तनिक भी संवेदनशील प्रतीत हो तो अपनी मूल्यवान विवेचना,प्रतिक्रिया से लाभान्वित कर विचार-फलक को नवीन आयाम
प्रदान करें।
भारत में निजी स्वार्थ के उदाहरण तो आपको दिखेगें सामाजिक और समूह चेतना अभी तक लुप्त सी ही रही है -इधर कुछ सुगबुगाहट दिख रही है -एक आशा की किरण !
ReplyDeleteशहीदों, निस्वार्थ सेवकों, को नमन|
ReplyDeleteमन को उद्वेलित करने वाला लेख...
ReplyDeleteHey there, u r really a smart Indian.
ReplyDeleteKeep it up!!
सुन्दर जानकारी ! हम अमेरिका के हर चीज की नक़ल करते है , किन्तु इन अच्छी चीजो से दूर रहते है आखिर क्यों ? सोंचने वाली बात है !
ReplyDeleteढेर सारी प्रेरक जानकारियॉं मिलीं। किन्तु पोस्ट के इस भाग ने विशेष रूप से ध्यानाकर्षित किया -
ReplyDelete'यह व्यवस्था दो-चार दिन में तो नहीं बनी होगी। पीढियाँ लगी हैं। आज कुछ कुंठित लोग भले ही अमेरिका को विश्व का दादा कहकर हल्ला मचा लें लेकिन कोई भी यह नकार नहीं सकता कि इस राष्ट्र के पीछे शताब्दियों का चरित्र निर्माण छिपा है। चरित्र निर्माण की यह प्रक्रिया बचपन से ही अमेरिकी जीवन का अंग बन जाता है। जहाँ जीवन में नैतिकता का स्तर ही ऊँचा हो वहाँ सम्भावनायें प्रबल होंगी।'
अमरीका के स्थापित वैश्विक आचरण के सन्दर्भ में अमरीका और अमरीकियों के प्रति आपका उपरोक्त मन्तव्य केवल अमरीका तक ही सीमित लगता है। अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए दुनिया में वितण्डावाद फैलाने में अमरीका न तो देर करता है न ही कंजूसी।
आपकी इतनी विस्तृत समझाइश के बाद भी मेरी नजर में अमरीका दुनिया का सबसे बडा खलनायक ही है।
विष्णु जी,
ReplyDeleteपोस्ट में अभीष्ट परिवर्तन कर दिया है। आभार!
उत्कृष्ट लेखन, शब्दो के इस ताना बाना को इतनी सहजता से बुनने के लिए साधुवाद
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