Wednesday, October 28, 2009
प्रेतों का उत्सव [इस्पात नगरी से - १९]
पिछली एक पोस्ट में जब मैंने हैलोवीन की तैय्यारी में बैठे बच्चों द्वारा अपने घरों के बाहर नकली कब्रें और कंकाल आदि का ज़िक्र किया था तो इसी बहाने हैलोवीन पर कुछ लिखने का शरद जी का अनुरोध मिला। पिछले साल मैंने इस विषय पर लिखने के बारे में सोचा भी था मगर फिर आलस करके (गिरिजेश राव से क्षमा याचना सहित) रह गया। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। आज की शुरुआत कुछ चित्रों से कर रहा हूँ। बाद में अन्य जानकारी भी रखने का प्रयास करूंगा। सभी चित्र क्लिक करके बड़े किए जा सकते हैं।
समुद्री डाकू का यह भूत हमसे मिलने बड़ी दूर से आया है।
उड़ने वाले प्रेतों के प्यारे-प्यारे बच्चे कुछ दिन मेपल के इसी वृक्ष पर रहने वाले हैं।
चेतावनी भूत के लिए? नहीं, वर्तमान के लिए!
मकडी के जाले? नए निराले.
अभी-अभी कब्र फाड़कर निकला हूँ। कुछ दिन यहीं रहूँगा।
इस्पात नगरी से - १८ [पिछली कडी]
[All Halloween photos by Anurag Sharma. सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा]
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:-)
ReplyDeleteहेलोवीन का इंतज़ार है --
बच्चों को आनंद आएगा --
केंडी मिलेंगीं ..
स्नेह सहित ,
- लावण्या
हम भी इतजार में हैं हेलोविन के...कैन्डी आ चुकी हैं. :)
ReplyDeleteअपनी संस्कृति हो - मानव की यह चाहत क्या क्या नहीं करा देती। हेलोवीन कहीं उसी की परिणति तो नहीं ?
ReplyDeleteरिपोर्टिंग की प्रतीक्षा रहेगी। एक नए संसार (मेरे लिए) के बारे में ढेर सारी बातें जानने को मिलेंगी।
फोटू में बड़े चौंचक लग रहे हैं।
आप की साइटों के चित्रों पर क्लिक करने से किसी अपना कॉर्टून बनाओ जैसी साइट का पॉप अप क्यों खुलता है? जरा चेक करिए।
अरे यह सब तो डरावना लग रहा है सचमुच !
ReplyDeleteहम भी इंतजार कर रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
हमें तो हेलोवीन के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं है.....आप ही से जानने को मिलेगा ।
ReplyDeleteइन्तजार करते हैं !
अनुराग जी बहुत सुंदर चित्र लगे, मजे दार
ReplyDeleteWaah ! Atyant rochak !!
ReplyDeleteLAJAWAB CHITRON KI SAATH AAPNE HELOVIAN KI SHUTUAAT KARI HAI ... HAMAARE JAISE ANEK BHAARTIYON KO ISKE ITIHAAS KE BAARE MEIN JAAN KAR AUR BHI CHHA LAGEGA ....
ReplyDeleteवेलनटइन की तरह हेलोवीन भी भारत में समाने के लिए तेयार है . और क्या होता है इसके बारे में बताये
ReplyDelete:-)सुंदर चित्र.
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी आपने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर तत्परता से हेलोवीन पर अपनी इस श्रंखला की शुरुआत की । यह चित्र देख कर उत्सुकता और बढ़ गई है और बचपन मे देखी ड्राकुला सीरीज़ की वो फिल्मे याद आने लगी है जिन्हे देखते हुए लगता था .. अरे अब आगे क्या होगा । इसके इतिहास और लोकमान्यताओं पर भी आप विस्तार से लिखिये ।
ReplyDeleteभाई ज्यादा जान्कारी नही है आपने जितना बताया उतना जान गया
ReplyDeleteIsn't it sick to act as corpses and skeletons , i mean how can an Indian take it for granted like this! Macabre , plain disgusting sure . I have been watching these reports for many years ,but i am not aware of the background . Hope ur posts will explain this strange and repulsive phenomenon .May lord Shiva take-over this bhoot party before it gets unruly !
ReplyDeleteहमें तो हेलोवीन के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं है.....
ReplyDeleteशपथ से
आप ही से जानने को मिल रहा है
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
रोचक जानकारी...... मजेदार.... साधुवाद संभालें..
ReplyDeleteअच्छा, ये माडर्न शिव जी के बाराती हैं। प्रेत पिशाच गंधर्व! :)
ReplyDeleteसुन्र्दर चित्रों के साथ जानकारी देने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteगिरिजेश,
ReplyDeleteतस्वीरों को ज़रा एक बार फिर से चेक करके देखो. पहले विजिटर्स की जानकारी देने वाला एक विजेट लगाया था शायद उसमें कोई जावा कोड रहा होगा जो ज़बरदस्ती विज्ञापन की तरफ ले जाता रहा हो.
धन्यवाद!
मुनीश जी,
ReplyDeleteवीभत्स की भी अपनी-अपनी परिभाषा हो सकती है. चूंकि आपने भारत की बात (how can an Indian take it for granted like this) की है इसलिए इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि हैलोवीन का वीभत्स तो नकली है, मगर विशुद्ध भारतीय औघड़ और तांत्रिकों का वीभत्स असली भी हो सकता है और उस सीमा तक जा सकता है जिसकी आप हैलोवीन में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. अगली कड़ी में और जानकारी आ रही है.
अनुरागजी,
ReplyDeleteहेलोईन के बारे में आम भारतीय को जानकारी कुछ कम ही है. यह प्रसंग है जानकारे देनें का, ताकि उसके बाद इस पर कोई राय बन सके.
हर देश, हर समाज के अपनें त्योहार और परंपरायें होती हैं , जो उनकी संस्कृति का एक हिस्सा होती है,जिसे हम अपनी परंपराओं से तुलना नहीं कर सकतें.
हां , ये बात ज़रूर है, कि कुछ बाहर की परंपराओं को हम बिन सोचे समझे हमारे संस्कृति में ढालने की गफ़लत करते हैं, सिर्फ़ बाज़ारवाद के लिये ,तो वह अवश्य निंदा के योग्य हैं.
रोचक ,आश्चर्य चकित करने वाला , कुछ ड्ररावना, कुल मिला कर बहुत अच्छा
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