(अनुराग शर्मा)
बूढा शेर समझा ही न सका कि जिस शेरनी ने मैत्री प्रस्ताव भेजा है, एक मृत शेरनी की खाल में वह दरअसल एक शेरखोर लोमड़ी है। बेचारा बूढा जब तक समझ पाता, बहुत देर हो चुकी थी। उस शेर की मौत के बाद तो एक सिलसिला सा चल पड़ा। यदि कोई शेर उस शेरनी की असलियत पर शक करता तो वह उसके प्यार में आत्महत्या कर लेने की दुहाई देती। दयालु और बेवकूफ किस्म के शेरों के लिए उसकी चाल भिन्न थी। उन्हें वह अपनी बीमारियों के सच्चे-झूठे किस्से सुनाकर यह जतलाती कि अब उसका जीवन सीमित है। यदि शेर उसकी गुफा में आकर उसे सहारा दे तो उसकी बाहों में वह चैन से मर सकेगी। जो शेर उसके झांसे में आ जाता, अन्धेरी गुफा में बेचैनी से मारा जाता। धीरे-धीरे जंगल में शेरों की संख्या कम होती गयी, जो बचे वे उस एक शेरनी के लिए एक दूसरे के शत्रु बन गये। छोटे-मोटे चूहे, गिलहरी और खरगोश आदि कमज़ोर पशुओं को वह अपना पॉलिश किया हुआ शेरनी वाला कोट दिखाने के लिये लुभाती, वे आते और स्वादिष्ट आहार बनकर उसके पेट में पहुँच जाते थे।
एक दिन जब लोमड़ी अपने घर से निकलने से पहले शेरनी की खाल का कोट पहन रही थी तो कुछ सिंहशावकों ने उसे पहचान लिया और इस धोखे के लिये उसका मज़ाक उड़ाने लगे। घबराई लोमड़ी ने उन्हें डराया धमकाया, पर वे बच्चे न माने। तब लोमड़ी ने अपने प्रेमजाल में फंसाये हुए कुछ जंगली कुत्तों व लकड़बघ्घों को बुलाकर उन बच्चों को डराया। शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से एक हिरन और कुछ भैंसों को घायल कर दिया। बच्चे तब भी नहीं माने तो उन की शरारतें उनके माता-पिता को बता देने का भय दिखाकर उन्हें धमकाया। अब बच्चे डर गये और लोमड़ी फिर से बेफ़िक्र होकर अपना जीवन शठता के साथ व्यतीत करने लगी।
लगातार मिलती सफलता के कारण लोमड़ी की हिम्मत बढती जा रही थी। शेरों से उसके पारिवारिक सम्बन्ध की बात फ़ैलाये जाने के कारण जंगल के मासूम जानवर उसके खिलाफ कुछ कह नहीं पाते थे। लेकिन गधों द्वारा प्रकाशित जंगल के अखबार पर अभी भी उसका कब्ज़ा नहीं हो सका था जिसमें यदा-कदा उसके किसी न किसी अत्याचार की ख़बरें छाप जाती थीं। ऐसी स्थिति आने पर वह खच्चरों की प्रेस में पर्चियां छपवाकर उस घटना को अपने विरुद्ध द्वेष और ईर्ष्या का परिणाम बता देती थी। हाँ, उसने लोमड़ियों को अपनी असलियत बताकर अपने जाति-धर्म का नाता देकर साथ कर लिया था। यदि कभी बात अधिक बढ़ जाती थी तो यह लोमड़ियाँ एक "निर्दोष" शेरनी के समर्थन में आक्रामक मोर्चा निकाल देती थीं और मार्ग में आये छोटे-मोटे पशु पक्षियों को डकारकर पिकनिक मनाती थीं। इस सब से डरकर जंगल के प्राणी चुप बैठ जाते थे।
जंगल के बाहर ऊंची पहाड़ी पर रहने वाला बाघ काफी दिनों से दूर से यह सब धतकरम देख रहा था। लोमड़ी के दुष्ट व्यवहार के कारण वह उसकी असलियत पहले दिन से ही पहचान गया था। कमज़ोर जानवरों की मजबूरी तो उसे समझ आती थी। पर समर्थ शेरों की मूर्खता पर उसे आश्चर्य होता था। जंगल के एक विद्वान मोर को दौड़ा दौड़ा कर मार डालने के बाद लोमड़ी जब उस बाघ पर हमला करने दौड़ी तब उस बाघ से रहा न गया। उसने लोमड़ी की गुफा के बाहर जाकर उसे धिक्कारा। अपने षडयंत्रों की अब तक की सफलता से अति उत्साहित लोमड़ी ने सोचा कि जब वह बड़े-बड़े बब्बर शेरों को आराम से पचा गयी तो यह बाघ किस खेत की मूली है।
शेरनी की खाल पहनकर घड़ियाली आँसू बहाती लोमड़ी बाहर आयी और फिर से अपने सतीत्व की, नारीत्व की, असुरत्व की, बीमारी की, दुत्कारी की, सब तरह की दुहाई देकर जंगल छोड़ने और आत्महत्या करने की धमकी देने लगी। उसकी असलियत जानकर जब किसी ने उसका विश्वास नहीं किया तो उसने गुप्त सन्देश भेजकर अपने दीवाने लकड़बघ्घों व कुत्तों को पुकारा। बाघ के कारण इस बार वे खुलकर सामने न आये तो उसने चमचौड़ कुत्ते को अपनी नई पार्टी "बुझा दिया" का राष्ट्रीय समन्वयक बनाने की बोटी फेंकी। बोटी देखते ही वह लालची कुत्ता काली गुफा के पीछे से भौंककर वीभत्स शोर करता हुआ अपनी वफ़ादारी दिखाने लगा। पर लोमड़ी इतने भर से संतुष्ट न हुई। उसके दुष्ट मन में इस बाघ को मारकर खाने की इच्छा प्रबल होने लगी। सहायता के लिये उसने लोमड़ियों के दल को बुलाया। मगर भय के कारण उनका हाल भी लकड़बघ्घों व कुत्तों जैसा ही था। तब उसने अपनी अस्मिता की रक्षा का नाम लेकर बचे हुए शेरों को इस बाघ का कलेजा चीर कर लाने के लिए ललकारा।
शेर मैदान में आये तो बाघ ने उन्हें लोमड़ी की असलियत बता दी। शेर तो शेर थे, बाघ की बात से उनकी आँखो पर पड़ा लोमड़ी के कपट का पर्दा झड़ गया। सच्चाई समझ आ गयी और वे अपनी अब तक की मूर्खता का प्रायश्चित करने नगर के चिड़ियाघर में चले गए। अपनी असलियत खुल जाने के बाद लोमड़ी को डर तो बहुत लगा लेकिन उसे अपनी शठता, झूठ और शैतानियत पर पूरा भरोसा था। उसने यह तो मान लिया कि वह शेरनी नहीं है मगर उसने अपने को लोमड़ी मानने से इनकार कर दिया। बाघ की बात को झूठा बताते हुए उसने बेचारगी के साथ टेसुए बहाते हुए कहा कि वह दरअसल एक चीता नारी है और इस अत्याचारी बाघ ने पिछले कई जन्मों में उसे बहुत सताया है। उससे बचने के लिए ही वह मजबूरी में शेरनी का वेश बनाकर चुपचाप अपने दिन गुज़ार रही थी मगर देखो, यह दुष्ट बाघ अब भी उसे चैन से रहने नहीं दे रहा। लोमड़ियों, लकड़बघ्घों व कुत्तों की नारेबाजी तेज़ हो गयी। कुछ छछून्दर तो आगे बढ़-चढ़कर उस बाघ के गले का नाप भी मांगने लगे। गिरगिटों ने अपना रंग बदलते हुए तुरंत ही बाघ द्वारा किए जा रहे लोमड़ी-दमन के खिलाफ़ क्रांति की घोषणा कर दी। चमचौड़ कुत्ते ने फ़िल्मी स्टाइल में भौंकते हुए कहा, "हमारी नेता गाय सी सीधी हैं, जंगल के संविधान में संशोधन करके इन्हें राष्ट्रीय संरक्षित पशु घोषित कर दिया जाना चाहिये।" लोमड़ी ने घोषणा कर दी कि जिस जंगल में उसके जैसी शीलवान नारी को इस प्रकार सरेआम अपमानित किया जाता हो वह उस जंगल को तुरंत छोड़कर चली जायेगी। चमचौड़ कुत्ते ने लोमड़ी के तलवे चाटकर जंगलवासियों को बतलाया कि वह शब्दकोश में से रक्तपिपासु शब्द का अर्थ खूंख्वार से बदलकर शीलवान करने का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलायेगा।
गर्दभ-समाचार से छपते-छपते ताज़ा अपडेट: कुछ हंसों के विरुद्ध झूठे पर्चे बाँटने का प्रयास चारों खाने चित्त होने के बाद खिसियानी लोमड़ी जंगल के चीतों को कोरा बेवक़ूफ़ समझकर उन्हें बाघ के खिलाफ़ लामबन्द करने की उछलकूद में लगी है। देखते हैं काग़ज़ी हांडी कितनी बार चढती है।
[समाप्त]
[कहानी व चित्र :: अनुराग शर्मा]
* कुछ अन्य बोधकृतियाँ *
==================
* तरह तरह के बिच्छू
* आधुनिक बोधकथा – न ज़ेन न पंचतंत्र
* कुपोस्ट से आगे क्या?
* नानृतम - एक कविता
* होलिका के सपने
* कोई लेना देना नहीं
* कवि और कौवा ....
* उगते नहीं उजाले
बूढा शेर समझा ही न सका कि जिस शेरनी ने मैत्री प्रस्ताव भेजा है, एक मृत शेरनी की खाल में वह दरअसल एक शेरखोर लोमड़ी है। बेचारा बूढा जब तक समझ पाता, बहुत देर हो चुकी थी। उस शेर की मौत के बाद तो एक सिलसिला सा चल पड़ा। यदि कोई शेर उस शेरनी की असलियत पर शक करता तो वह उसके प्यार में आत्महत्या कर लेने की दुहाई देती। दयालु और बेवकूफ किस्म के शेरों के लिए उसकी चाल भिन्न थी। उन्हें वह अपनी बीमारियों के सच्चे-झूठे किस्से सुनाकर यह जतलाती कि अब उसका जीवन सीमित है। यदि शेर उसकी गुफा में आकर उसे सहारा दे तो उसकी बाहों में वह चैन से मर सकेगी। जो शेर उसके झांसे में आ जाता, अन्धेरी गुफा में बेचैनी से मारा जाता। धीरे-धीरे जंगल में शेरों की संख्या कम होती गयी, जो बचे वे उस एक शेरनी के लिए एक दूसरे के शत्रु बन गये। छोटे-मोटे चूहे, गिलहरी और खरगोश आदि कमज़ोर पशुओं को वह अपना पॉलिश किया हुआ शेरनी वाला कोट दिखाने के लिये लुभाती, वे आते और स्वादिष्ट आहार बनकर उसके पेट में पहुँच जाते थे।
एक दिन जब लोमड़ी अपने घर से निकलने से पहले शेरनी की खाल का कोट पहन रही थी तो कुछ सिंहशावकों ने उसे पहचान लिया और इस धोखे के लिये उसका मज़ाक उड़ाने लगे। घबराई लोमड़ी ने उन्हें डराया धमकाया, पर वे बच्चे न माने। तब लोमड़ी ने अपने प्रेमजाल में फंसाये हुए कुछ जंगली कुत्तों व लकड़बघ्घों को बुलाकर उन बच्चों को डराया। शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से एक हिरन और कुछ भैंसों को घायल कर दिया। बच्चे तब भी नहीं माने तो उन की शरारतें उनके माता-पिता को बता देने का भय दिखाकर उन्हें धमकाया। अब बच्चे डर गये और लोमड़ी फिर से बेफ़िक्र होकर अपना जीवन शठता के साथ व्यतीत करने लगी।
लगातार मिलती सफलता के कारण लोमड़ी की हिम्मत बढती जा रही थी। शेरों से उसके पारिवारिक सम्बन्ध की बात फ़ैलाये जाने के कारण जंगल के मासूम जानवर उसके खिलाफ कुछ कह नहीं पाते थे। लेकिन गधों द्वारा प्रकाशित जंगल के अखबार पर अभी भी उसका कब्ज़ा नहीं हो सका था जिसमें यदा-कदा उसके किसी न किसी अत्याचार की ख़बरें छाप जाती थीं। ऐसी स्थिति आने पर वह खच्चरों की प्रेस में पर्चियां छपवाकर उस घटना को अपने विरुद्ध द्वेष और ईर्ष्या का परिणाम बता देती थी। हाँ, उसने लोमड़ियों को अपनी असलियत बताकर अपने जाति-धर्म का नाता देकर साथ कर लिया था। यदि कभी बात अधिक बढ़ जाती थी तो यह लोमड़ियाँ एक "निर्दोष" शेरनी के समर्थन में आक्रामक मोर्चा निकाल देती थीं और मार्ग में आये छोटे-मोटे पशु पक्षियों को डकारकर पिकनिक मनाती थीं। इस सब से डरकर जंगल के प्राणी चुप बैठ जाते थे।
जंगल के बाहर ऊंची पहाड़ी पर रहने वाला बाघ काफी दिनों से दूर से यह सब धतकरम देख रहा था। लोमड़ी के दुष्ट व्यवहार के कारण वह उसकी असलियत पहले दिन से ही पहचान गया था। कमज़ोर जानवरों की मजबूरी तो उसे समझ आती थी। पर समर्थ शेरों की मूर्खता पर उसे आश्चर्य होता था। जंगल के एक विद्वान मोर को दौड़ा दौड़ा कर मार डालने के बाद लोमड़ी जब उस बाघ पर हमला करने दौड़ी तब उस बाघ से रहा न गया। उसने लोमड़ी की गुफा के बाहर जाकर उसे धिक्कारा। अपने षडयंत्रों की अब तक की सफलता से अति उत्साहित लोमड़ी ने सोचा कि जब वह बड़े-बड़े बब्बर शेरों को आराम से पचा गयी तो यह बाघ किस खेत की मूली है।
शेरनी की खाल पहनकर घड़ियाली आँसू बहाती लोमड़ी बाहर आयी और फिर से अपने सतीत्व की, नारीत्व की, असुरत्व की, बीमारी की, दुत्कारी की, सब तरह की दुहाई देकर जंगल छोड़ने और आत्महत्या करने की धमकी देने लगी। उसकी असलियत जानकर जब किसी ने उसका विश्वास नहीं किया तो उसने गुप्त सन्देश भेजकर अपने दीवाने लकड़बघ्घों व कुत्तों को पुकारा। बाघ के कारण इस बार वे खुलकर सामने न आये तो उसने चमचौड़ कुत्ते को अपनी नई पार्टी "बुझा दिया" का राष्ट्रीय समन्वयक बनाने की बोटी फेंकी। बोटी देखते ही वह लालची कुत्ता काली गुफा के पीछे से भौंककर वीभत्स शोर करता हुआ अपनी वफ़ादारी दिखाने लगा। पर लोमड़ी इतने भर से संतुष्ट न हुई। उसके दुष्ट मन में इस बाघ को मारकर खाने की इच्छा प्रबल होने लगी। सहायता के लिये उसने लोमड़ियों के दल को बुलाया। मगर भय के कारण उनका हाल भी लकड़बघ्घों व कुत्तों जैसा ही था। तब उसने अपनी अस्मिता की रक्षा का नाम लेकर बचे हुए शेरों को इस बाघ का कलेजा चीर कर लाने के लिए ललकारा।
शेर मैदान में आये तो बाघ ने उन्हें लोमड़ी की असलियत बता दी। शेर तो शेर थे, बाघ की बात से उनकी आँखो पर पड़ा लोमड़ी के कपट का पर्दा झड़ गया। सच्चाई समझ आ गयी और वे अपनी अब तक की मूर्खता का प्रायश्चित करने नगर के चिड़ियाघर में चले गए। अपनी असलियत खुल जाने के बाद लोमड़ी को डर तो बहुत लगा लेकिन उसे अपनी शठता, झूठ और शैतानियत पर पूरा भरोसा था। उसने यह तो मान लिया कि वह शेरनी नहीं है मगर उसने अपने को लोमड़ी मानने से इनकार कर दिया। बाघ की बात को झूठा बताते हुए उसने बेचारगी के साथ टेसुए बहाते हुए कहा कि वह दरअसल एक चीता नारी है और इस अत्याचारी बाघ ने पिछले कई जन्मों में उसे बहुत सताया है। उससे बचने के लिए ही वह मजबूरी में शेरनी का वेश बनाकर चुपचाप अपने दिन गुज़ार रही थी मगर देखो, यह दुष्ट बाघ अब भी उसे चैन से रहने नहीं दे रहा। लोमड़ियों, लकड़बघ्घों व कुत्तों की नारेबाजी तेज़ हो गयी। कुछ छछून्दर तो आगे बढ़-चढ़कर उस बाघ के गले का नाप भी मांगने लगे। गिरगिटों ने अपना रंग बदलते हुए तुरंत ही बाघ द्वारा किए जा रहे लोमड़ी-दमन के खिलाफ़ क्रांति की घोषणा कर दी। चमचौड़ कुत्ते ने फ़िल्मी स्टाइल में भौंकते हुए कहा, "हमारी नेता गाय सी सीधी हैं, जंगल के संविधान में संशोधन करके इन्हें राष्ट्रीय संरक्षित पशु घोषित कर दिया जाना चाहिये।" लोमड़ी ने घोषणा कर दी कि जिस जंगल में उसके जैसी शीलवान नारी को इस प्रकार सरेआम अपमानित किया जाता हो वह उस जंगल को तुरंत छोड़कर चली जायेगी। चमचौड़ कुत्ते ने लोमड़ी के तलवे चाटकर जंगलवासियों को बतलाया कि वह शब्दकोश में से रक्तपिपासु शब्द का अर्थ खूंख्वार से बदलकर शीलवान करने का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलायेगा।
हमारी नेता गाय सी सीधी हैं, जंगल के संविधान में संशोधन करके इन्हें राष्ट्रीय संरक्षित पशु घोषित कर दिया जाना चाहिये।लोमड़ियों, लकड़बघ्घों व कुत्तों ने लोमड़ी रानी से रुकने की अपील की और साथ ही बाघ को चेतावनी देकर उसे शेरनी माता यानी लोमड़ी से माफी मांगने को कहा। जब बाघ ने कोई ध्यान नहीं दिया तो अपने मद में चूर लोमड़ी ने अपनी ओर से ही बाघ को माफ़ करने की घोषणा खच्चर प्रेस में छपवा दी। और उसके बाद से नियमित रूप से बाघ के विरुद्ध कहानियाँ बनाकर छपवाने लगी। उसके साथी भी प्रचार में जुट गए। उन्हें लगा कि काम हो गया और लोग उसकी असलियत का सारा किस्सा भूल गए। मगर बाघपत्र से लेकर गर्दभ-समाचार तक किसी न किसी अखबार में अब भी गाहे-बगाहे उसके किसी न किसी अपराध का खुलासा हो जाता था। अब एक ही रास्ता था और शातिर लोमड़ी ने वही अपना लिया। उसने खच्चर प्रेस में एक नयी घोषणा छपवाकर गधों के साथ-साथ सभी चीतों, गेंडों, हाथियों और घोड़ों को भी अपना बाप बना लिया। जहाँ हाथी, घोड़े, गेंडे और चीते किसी दुष्ट लोमड़ी के ऐसे जबरिया प्रयास से खिन्न थे, वहीं गधे बहुत प्रसन्न हैं और अपनी नन्हीं सी, मुन्नी सी, प्यारी सी, भोली सी, (बन्दूक की गोली सी) गुड़िया के सम्मान में एक व्याघ्र-प्रतिरोध सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से जंगल में कुत्तों की भौंक तेज़ होती जा रही है। गधों की संख्या भी दिन ब दिन कम होती जा रही है। लोमड़ी की भी मजबूरी है। चमचौड़ कुत्ते की दुकान में धेला न होना, लोमड़ी की शठता की पोल खुलना, शेरों का जंगल से पलायन, बाघ का कभी हाथ न आ सकना, इतने सारे दर्द, मगर पापी पेट का क्या करे लोमड़ी बेचारी?
गर्दभ-समाचार से छपते-छपते ताज़ा अपडेट: कुछ हंसों के विरुद्ध झूठे पर्चे बाँटने का प्रयास चारों खाने चित्त होने के बाद खिसियानी लोमड़ी जंगल के चीतों को कोरा बेवक़ूफ़ समझकर उन्हें बाघ के खिलाफ़ लामबन्द करने की उछलकूद में लगी है। देखते हैं काग़ज़ी हांडी कितनी बार चढती है।
[समाप्त]
[कहानी व चित्र :: अनुराग शर्मा]
* अक्षय तृतीया पर आप सभी को मंगलकामनायें! *==================
* कुछ अन्य बोधकृतियाँ *
==================
* तरह तरह के बिच्छू
* आधुनिक बोधकथा – न ज़ेन न पंचतंत्र
* कुपोस्ट से आगे क्या?
* नानृतम - एक कविता
* होलिका के सपने
* कोई लेना देना नहीं
* कवि और कौवा ....
* उगते नहीं उजाले
निशाने बाज !!
ReplyDeleteसादर -
जंगल में राजनीति या राजनीति में जंगल।
ReplyDeleteवाह-------- कहानी के माध्यम से आपने बहुत कुछ कह दिया
ReplyDeleteकहानी में कुछ ऐसा भी होना चाहिए था कि वह "शेरनी" शेर की ह्त्या करने से पूर्व एक शेर से गर्भवती हो जाती है और उसकी जो संतान उत्पन्न होती है वह शेर की मक्कारी और लोमड़ी की धूर्तता दोनों लिए पैदा होता है.. खच्चर समाचारपत्र वाले उसे माता का रक्षक बताते हैं और समस्त जंगल वासियों का तारणहार भी!! वह "शेरनी" कहाँ तक अपनी मक्कारी में कामयाब होती है और उसके शावक का भविष्य क्या हुआ, यह अभी भी ज्ञात नहीं है!!
ReplyDeleteसभी पाठकों से अनुरोध है कि इस कहानी का क्या हुआ होगा सुझावें!!
वैसे आपकी यह पंचतंत्र की कथा वाकई बहुत मजेदार है!!
यक़ीनन चार चान्द और लग जाते
Deleteसलिल जी, हम सुझा देते हैं - 'लोमड़ी को सदबुद्धी प्राप्त होगी और उस पर एक रहस्य खुलेगा कि वो जो कुछ भी करती रही है उससे पाप की भागी तो वो बन रही है लेकिन दूर कहीं कोई मक्कार भेड़िया है जो उसकी नादानियों को अपने स्वार्थ लाभ में इस्तेमाल देखकर तालियाँ बजा रहा है| उस दिन से लोमड़ी अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में इस्तेमाल करने लगेगी और जान जायेगी कि सिर्फ हाँ में हाँ मिलाने वाले ही शुभचिंतक नहीं होते|'
DeleteSalil Bhaiya, though I am not very good at accepting such challenges but i tried to respond your call to offer an end to this story.
बहुत खूब संजय.. इस प्रपंचतन्त्र की कथा का अंत यही होना चाहिए!! आमीन!!
Delete:)
Delete:)
Delete:)
Deleteजंगल में अमंगल.................
ReplyDeleteया मंगल में दंगल ...
Deletelagata hai ki kahi kuch gadbad ghotala hua hai...
ReplyDeletekatha super hai...
jai baba banaras...
इत्ते कमाल धमाल बवाल कर चुकी और फिर रही बेचारी की बेचारी|
ReplyDeleteअब आप से इस बात की शिकायत करने लगा तो शोले के जय भा जी याद आ गए 'क्या करूँ मौसी, मेरा तो स्वभाव ही ऐसा है' :)
सुनिए, चालाक हो या धूर्त हो, शीलवान हो या शीलवती, जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा| वैसे हो सकता है इस बेचारी नायिका का कोई कसूर न हो, कोई syndrome..:)
जंगल ही सही ,आपने तो सारी पॉलिटिक्स की पोल खोल दी !
ReplyDeleteबिल्ली तो फिर भी हज करने जा सकती है ,लोमड़ी बिचारी क्या करे ?
जी, हज न करे, हज़ल लिख दे, तो भी चलेगा!
Deleteसर जी जंगल में दंगल ---
ReplyDeleteसुनो ---
बचपन से सुनता आ रहा हू
हम भीषण परिस्थितियों से गुजर रहे है|
वो तो हमें गुजरना पड़ेगा क्योकि
ये हमारा तुम्हारा बनाया हुआ योग है की
इन भीषण परिस्थितियों के निर्माता
एक ही खानदान के लोग है |
क्या यह बोध कथा है? मैं सहमत नहीं, लोमडी का न सुखांत है न दुखांत, न क्रोधान्त है न दर्दान्त? और फिर कथा-सार कहाँ है?
ReplyDeleteसहमत हूँ! लोमड़ी के लिये तो किसी कथा में भी बोध नहीं होता। सार किसी ने यह बताया कि जहाँ चोर चौकीदारी करते हैं वहाँ रपट नहीं लिखी जाती।
Delete@ सार किसी ने यह बताया कि जहाँ चोर चौकीदारी करते हैं वहाँ रपट नहीं लिखी जाती।
Delete....sherni oh...ho lomari ke nigah me kahin aap 'bagh' na
ban jayen???????
chachu ye vyang ..... tapchik cha rapchik raha.
pranam.
BEAUTIFUL STORY I LOVE IT . PLEASE WRITE THE NEXT PART .
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteआप रहस्य कथाओं के निष्णात् रचयिता हैं। इस कथा के व्यंग्य का निशाना कौन है - पूरी कथा पढने के बाद भी यह रहस्य, रहस्य ही रहा मेरे लिए।
ReplyDeleteaap ke tip ke pahle wakya se poorn sahmat.
Deleteis katha ka rahsya har-ek mukhya-dhara ke blogger jante hain.
aap gar nahi samajh paye to iska matlab aap samanantar-blogger
hain.
pranam.
दावपेचों के बीच यही होता है शायद , राजनीती और जंगल दोनों ही जगह
ReplyDeleteखच्चर प्रेस के कर्ता धर्ता और तमाम लोगों को जब बताया जा रहा था कि सावधान रहो तो कम्बख्त खुद ही कहते थे कि हमें न समझाओ हम जानते हैं। लोगों की आंखों के आगे से धीरे धीरे ही सही अब पर्दा हट रहा है :)
ReplyDeleteमस्त लिखा है। एकदम प्वाइंट टू प्वाइंट।
यह बोधकथा जानकर भी जो अभी तक अनजान बने रहना चाहते हैं तो उनके बारे में क्या कहा जाय :)
कई पर्दे सुपर-ग्लू वाले भी होते हैं सतीश जी।
Deleteबाघ भाई से डरकर लोमड़ी झील के किनारे बैठी है,उसे इत्ता मत डराओ कि पुनः टंकी पर चढ़ जाए !
ReplyDeleteउम्मीद करता हूँ कि यह समापन-किश्त होगी !
रोचक पंचतंत्र कथा !
ReplyDeleteआपको भी अक्षय तृतीया की बहुत शुभकामनायें !
रोचक पंचतंत्र कथा !
ReplyDeleteआपको भी अक्षय तृतीया की बहुत शुभकामनायें !
आधुनिक पंचतंत्र! सलिल भाई का आब्जर्वेशन कैसे छूट गया आपसे ...शेर के संयोग से उपजा लोमड़ी का दोगला बच्चा तो उससे भी तेज निकला ...अपनी मां का वह निरंतर हौसला बढाता रहता है ,आस पास से गुजरने वालों पर धावा बोलता रहता है -अब दोगला है तो जाहिर है उसके पुट्ठे मजबूत हो या न हों उनका प्रदर्शन तो करता ही रहता है ...लगता है एक दिन एकदम से उकता कर जंगल के सारे वासी धावा बोल देगें और उस धूर्त लोमड़ी और उसके नाजायज दोगले पुत्र का वह आख़िरी दिन होगा ...
ReplyDeleteफिर जंगल वासी जश्न करेगें और उस बूढ़े शेर की आत्मा की शान्ति का अनुष्ठान भी जिसका जिक्र कहानी में शुरू में ही आया है :)
कमाल की कहानी है पर समाप्त क्यों कर दी ? ...
ReplyDeleteकुछ लोग अपने ही चतुर जाल में फंस जाते हैं ! सैकड़ों वक्तव्यों, वायदों , क्रियाकलापों के मकडजाल से निकल कर, सामान्य जीवन गुज़ार पाना ही असंभव है ! ऐसे कुशाग्र बुद्धि लोगों के पास एक ही विकल्प है कि अपने किये गए कार्यों का अवलोकन करें....
हर विरोधी बुरा नहीं होता काश लोग अपनी गलतियों , मूर्खताओं से सबक ले सकें ...
मुझे सहानुभूति है ...
ईश्वर सदबुद्धि दे....
sher ki khal ode lomdiyon ki kami nahi hai...lajawab...par haan kuch kuch ajeeb sa lag raha hai...ye keval kahani nhi lag rahi
ReplyDeleteअंत में नोट लिखना चाहिए था --यह एक सच्ची कहानी है . भावनाओं की कद्र करते हुए , पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं . :)
ReplyDeleteहम्म। अब सभी अखबार पढ़ना पड़ेगा।
ReplyDeleteकहानी जोरदार है .. पंचतंत्र की कहानियों की तरह ..
ReplyDeleteपर प्रकाश डालें की लोमड़ी कौन है ... शेर कौन और गधे कौन हैं ...
नास्वा जी, आप तो खुद ही ज्ञानी हैं, सूरज को दिया कैसे दिखाऊँ!
Deletegreat story
ReplyDeletethanks :)
सुन्दर. दराल साहब से सहमत.
ReplyDeleteभारत की राजनीति पर है यह कहानी...
ReplyDeleteजी, कुछ लोग हमारी भारत माता के दामन को गन्दा कर रहे हैं, राष्ट्रीय प्रतीकों को खुले आम अपमानित कर रहे हैं। कोई राष्ट्रीय गान पर सवाल उठा रहा है कोई संविधान को जलाने की बात कर रहा है और कई महा-बुद्धिमान लोग अब भी कन्नी काटकर बच निकलने के बहाने ढूंढ रहे हैं।
Deleteअच्छा !!
ReplyDeleteये बात है...
तभी कुछ शेर शुरू में ही धोखा खा गए थे...
शेरों का भी क्या दोष...शक्ल जो इतनी मिलती है...fox, wolf और dog की...
हाँ नहीं तो..!!
अदा जी...कई लोमड़ियाँ इतनी शातिर होती हैं कि बड़े-बड़े शेर ढेर हो जाते हैं,फिर भी उन्हीं घायल शेरों ने ऐसी लोमड़ियों का खात्मा किया है. कुछ नजदीकी से ही कमीनेपन का पता चलता है.
Deleteshandar khanee hae jaese bhartiya rajneetik parivesh ka chtran ho .
ReplyDelete"एक ऊद्बिलाऊ जी थे. घमण्डियों की भूमि पर रहने के कारण उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्धारित करने का शौक हो गया था. उनके मन में जो बात उठती वह उसे ईश का उपदेश कहकर प्रचारित करते. उनके भरसक प्रयास से एक पोखर का निर्माण हुआ जिसमें अप्रवासी मछलियों को लाने के लिये उन्होंने अनथक श्रम किया. उदबिलाऊ ने पोखर में तरह-तरह के समुद्री जीवों के दूतावास खोल दिये... वे रहना चाहें अथवा न रहना चाहें.. उनके पोखर में दूतावास खुल जाने से यह प्रतीत होता कि सबके-सब ऊदबिलाऊ को अपना आका मानते हैं और उसकी हाँ में हाँ मिलाना उनकी मजबूरी है. इस तरह उदबिलाऊ जी बिना सर्वसहमती बनाए स्वयम्भू 'वरिष्ठ' साबित हो गये."
ReplyDeleteमूषकों के लिये सबक : अगर झूठा सम्मान पाना हो तो मकान मालिक बन जाओ. रौब मारो, शान बघारो.
.... इस कहानी को और अधिक विस्तार दिया जा सकता है. लेकिन मन में प्रश्न है कि अपनी इस कल्पनाशीलता को प्रतिक्रियात्मक बनाने का किसको श्रेय दूँ? -- अपनी अशिष्टता को या फिर आपकी उत्प्रेरक बौद्धिक खुरापात को.
धन्य भाग हमारे
Deleteकवि-गुरु स्वयं पधारे
व्यंग्य विधा भी तर जायेगी
गुरु के नाम सहारे!
अहो भाग्य!
यह भी खूब रही.पंच तंत्र की कहानी का आधुनिक स्वरुप.
ReplyDelete'मित्रभेद' का सुन्दर ट्रेलर.
आपकी हास्य व्यंग्यमयि सुन्दर कल्पनाशीलता को नमन.
बिकुल सटीक कहानी है। सचमुच- देखते हैं काग़ज़ी हांडी कितनी बार चढती है।
ReplyDeleteaadarneey sugya ji kee ek post yaad aati hai - neer ksheer vivek - yahaan
ReplyDeletehttp://shrut-sugya.blogspot.in/2011/07/blog-post.html