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Sunday, November 3, 2024

लेखक को जानिये - अनुराग शर्मा के कुछ और साक्षात्कार

9 जुलाई 2019 को प्रकाशित साक्षात्कार-वार्ताओं की शृंखला में कुछ और विडियो यहाँ प्रस्तुत हैं।
विडियो Video

अनुराग शर्मा का रचनापाठ तथा वार्ता - साहित्य अकादमी के प्रवासी मञ्च कार्यक्रम में
Pravasi Manch featuring Anurag Sharma at Sahitya Akademi in New Delhi




अनुराग शर्मा और पूजा अनिल से साहित्यकार आशा पांडेय ओझा, ओसियाँ (उदयपुर) का संवाद
Asha Pandey Ojha, in discussion with Pooja Anil and Anurag Sharma



संज्ञा टंडन तथा अनुराग शर्मा से उषा छाबड़ा की वार्ता (गुफ़्तगू पर)
Guftagu - Usha Chhabra, in discussion with Sangya Tandon and Anurag Sharma



अनुराग शर्मा का एकल वक्तव्य: भारतेतर हिंदी की चुनौतियाँ (सर्व भाषा ट्रस्ट पर)
Anurag Sharma talking at Sarv Bhasha Trust



अनुराग शर्मा को राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान (मध्य प्रदेश प्रशासन द्वारा)
Anurag Sharma gets National Nirmal Verma Award for 2023



अनुराग शर्मा रवींद्र भवन,भोपाल में आयोजित राष्‍ट्रीय हिन्‍दी भाषा सम्‍मान अलंकरण समारोह में
Anurag Sharma (Hindi Diwas, Sept 14, 2024)



अनुराग शर्मा राष्‍ट्रीय हिन्‍दी भाषा सम्‍मान अलंकरण समारोह में सम्मानित
Anurag Sharma honored at Hindi Diwas, Sept 14, 2024



फ़ेसबुक पर: हिंदी के वर्तमान स्वरूप पर चर्चा - कारण और निवारण
हिंदी दिवस,सितंबर 17, 2023 पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिका इकाई का आयोजन



Sunday, January 12, 2020

मुझे याद है

मुझे याद हैं
लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर

मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँ
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।

मुझे याद हैं
वे दिन जब
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में

मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादें
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को

मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे

🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


Tuesday, July 9, 2019

कुछ साक्षात्कार

विडियो Video


हिंदी सम्पादन की चुनौतियाँ - टैग टीवी कैनैडा पर अनुराग शर्मा, सुमन घई और शैलजा सक्सेना
Anurag Sharma with Suman Ghai and Shailja Saxena on Tag TV Canada



मॉरिशस टीवी पर डॉ. विनय गुदारी के साथ अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Anurag Sharma's Interview by Dr. Vinay Goodary on Mauritius TV



आप्रवासी साहित्य सृजन सम्मान का फ़्रैंच समाचार French News about MGI Mauritius Award



अनुराग शर्मा का साक्षात्कार (अंग्रेज़ी में) In discussion with Sparsh Sharma (English)

ऑडियो Audio
एनएचके (जापान) पर अनुराग शर्मा से नीलम मलकानिया की वार्ता
Neelam Malkania speaks to Anurag Sharma on NHK Radio (Japan)

रेडियो सलाम नमस्ते (अमेरिका) पर अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Hindi Interview with Anurag Sharma on Radio Salam Namaste, Texas





मुद्रित, व अन्य Print and Online

Sunday, July 15, 2018

हल - लघुकथा

(लघुकथा व चित्र: अनुराग शर्मा)

प्लास्टिक और पॉलीथीन के खिलाफ़ आंदोलन इतना तेज़ हुआ कि प्रशासन को यह समस्या हल करने के लिये आपातकालीन सभा बुलानी पड़ी। दो-चार पदाधिकारी प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई और बलप्रयोग के पक्ष में थे लेकिन अन्य सभी समस्या को गम्भीर मानते हुए एक वास्तविक हल चाहते थे।

“पूर्ण प्रतिबंध” गहन विमर्श के बाद सभा के अध्यक्ष ने कहा। अधिकांश सदस्यों ने सहमति में तालियाँ बजाईं।

“पॉलीथीन के बिना सामान दुकान से घर तक कैसे आयेगा?” एक असंतुष्ट ने पूछा।

“बेंत की कण्डी, काग़ज़ के लिफ़ाफ़े और कपड़े के थैलों में” किसी ने सुझाया।

“खाना पकाने के लिये घी-तेल भी तो चाहिये, वह?”

“घर से शीशे की बोतल लेकर जाइये।”

“एक घर से कोई कितनी बोतलें लेकर जा पायेगा? एक पानी की, एक सरसों के तेल की, एक नारियल के तेल की, एक सिरके की, एक ...” एक सदस्या ने आपत्ति की

“तो तेल-सिरके को भी बैन करना पड़ेगा। दूध लेकर आइये और उसी से घर पर घी बनाइये।” उत्तर तैयार था।

“... दूध? लेकिन सरकारी डेयरी का दूध भी तो पॉलीथीन के पाउच में ही आता है!”

“तो हम दूध को भी बैन कर देंगे।”

“लेकिन, उससे तो बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा ...”

“स्वास्थ्य के लिये दूध छोड़कर अण्डे खाइये न, वे तो दफ़्ती के डब्बों में भी मिलते हैं।”

रात बढ़ती गई, बात बढ़ती गई, प्रतिबंधित सामग्री की सूची भी बढ़ती गई।

अगले दिन अखबार में खबर छपी कि तुरंत प्रभाव से राज्य के बाज़ारों में दूध, और घरों में रसोईघर प्रतिबंधित कर दिये गये हैं। समाचार से यह तथ्य ग़ायब था कि प्रशासनिक परिषद के एक प्रमुख सदस्य राज्य ढाबा संघ के पदाधिकारी थे और दूसरे अण्डा उत्पादक समिति के।

[समाप्त]

Tuesday, November 22, 2016

स्वप्न - एक कविता

ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं

सच्चे से लगते कभी कभी
ये पुलाव खयाली पकाते है

सपने मनमौजी होते हैं
कोई नियम समझ न पाते हैं

ज्ञानी का ज्ञान धरा रहता
अपने मन की कर जाते हैं

सब कुछ कभी लुटा देते
सर्वस्व कभी दे जाते हैं

ये स्वप्न कहाँ से आते हैं
ये स्वप्न कहाँ से आते हैं

पिट्सबर्ग की एक सपनीली सुबह



Tuesday, October 25, 2016

अनंत से अनंत तक - कविता

(अनुराग शर्मा)

जीवन क्या है एक तमाशा
थोड़ी आशा खूब निराशा

सब लीला है सब माया है
कुछ खोया है कुछ पाया है

न कुछ आगे न कुछ पीछे
कुछ ऊपर ही न कुछ नीचे

जो चाहे वो अब सुन कहले
उस बिन्दु से न कुछ पहले

उस बिन्दु के बाद नहीं कुछ
होगा भी तो याद नहीं कुछ

जो कुछ है वह सभी यहीं है
जितना सुधरे वही सही है.
सेतु हिंदी काव्य प्रतियोगिता में आपका स्वागत है, संशोधित अंतिम तिथि: 10 नवम्बर, 2016

Tuesday, September 13, 2016

ये दुनिया अगर - कविता

(अनुराग शर्मा)

बारूद उगाते हैं बसी थी जहाँ केसर
मैं चुप खड़ा कब्ज़े में है उनके मेरा घर

कैसे भला किससे कहूँ मैं जान न पाऊँ
दे न सकूँ आवाज़ मुझे जान का है डर

नक्सल कहीं माओ कहीं बैठे हैं जेहादी
कंधे बड़े लेकिन नहीं दीखे है कहीं सर

कोई अमल होता नहीं बेबस हुआ हाकिम
दर पे तेरे पटक के ये सर जायेंगे हम मर

बदलाव कभी आ नहीं सकता है वहाँ पे
परचम बगावत का हुआ चोरी जहाँ पर

Wednesday, September 7, 2016

शाब्दिक हिंसा - मत करो (कविता)

लोग अक्सर शाब्दिक हिंसा की बात करते हुए उसे वास्तविक हिंसा के समान ठहराते हैं. फ़ेसबुक पर एक ऐसी ही पोस्ट देखकर निम्न उद्गार सामने आये. शब्दों को ठोकपीट कर कविता का स्वरूप देने के लिये सलिल वर्मा जी का आभार. (अनुराग शर्मा)

मत करो
मत करो तुलना
कलम-तलवार में
और समता
शब्द और हथियार में
ताण्डव करते हुये हथियार हैं
शब्द पीड़ा-शमन को तैयार हैं

कुछ बुराई कर सके
अपशब्द माना
वह भी तभी जब
मैं समझ पाऊँ
गिरी भाषा तुम्हारी
और निर्बलता मेरी
आहत मुझे कर दे ज़रा
कुछ भी कहो
सामान्यतः
हर शब्द ने है
दर्द अक्सर ही हरा

लेकिन तुम्हारी
आईईडी, बम, और बरसती गोलियाँ
इनसे भला किसका हुआ
हर कोई बस है मरा
नारी-पुरुष, आबाल-वृद्ध
कोई नहीं है बच सका
जो सामने आया
वही जाँ से गया

शब्द और हथियार की तुलना
तो केवल बचपने की बात है
ध्यान से सोचें तनिक तो
ये किन्हीं हिंसक दलों की
इक गुरिल्ला घात है

इनके कहे पर मत चलो तुम
वाद या मज़हब,
किसी भी बात पर
इनका हुकुम मानो नहीं तुम
छोड़कर हिंसा को ही
संसार यह आगे बढ़ा है
नर्क तल में और हिम ऊपर चढ़ा है
बस चेष्टा इतनी करो
हिंसा से तुम बचकर रहो
जब भी कहो, जैसा कहो, बस सच कहो
और धैर्य धर सच को सहो

शब्द से उपचार भी सम्भव है जग में
प्रेम तो नि:शब्द भी करता है अक्सर
फिर भला नि:शस्त्र होना
हो नहीं सकता है क्यों
पहला कदम इंसानियत के नाम पर
कर जोड़कर
कर लो नमन, हथियार छोड़ो
अग्नि हिंसा की बुझाने के लिये तुम
आज इस पर बस ज़रा सा प्रेम छोड़ो!

Sunday, August 21, 2016

शिकायत - कविता

मुद्रा खरी खरी
कहती है
खोटे सिक्के चलते हैं।

साँप फ़ुंकारे
जहर के थैले
क्यों उसमें पलते हैं।

रोज़ लड़ा पर 
हारा सूरज 
दिन आखिर ढलते हैं।

पाँव दुखी कि
बदन सहारे
उसके ही चलते हैं।

मैल हाथ का पैसा
सुनकर
हाथ सभी मलते हैं।

आग खफ़ा हो
जाती क्योंकि
उससे सब जलते हैं॥

(अनुराग शर्मा)

Wednesday, March 16, 2016

याद के बाद - कविता

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


क्यों  ऐसी  बातें  करते  हो
ज़ालिम दुनिया से डरते हो

जो आग को देखके राख हुए
क्यों तपकर नहीं निखरते हो

बस एक ही था वह रूठ गया
अब किसके लिये संवरते हो

हर रोज़ बिछड़ जन मिलते हैं
तुम मिलकर रोज़ बिखरते हो

सब निर्भय होकर उड़ते हैं
तुम फिक्र में डूबते तिरते हो

जब दिल में आग सुलगती है
तुम भय की ठंड ठिठुरते हो

इक बार नज़र भर देखो तो
जिस राह से रोज़ गुज़रते हो

कल त्याग आज कल पाता है
तुम भूत में कितना ठहरते हो


Saturday, January 9, 2016

मेरा दर्द न जाने कोय - कविता

दर्द मेरा न वो ताउम्र कभी जान सके
बेपरवाही यही उनकी मुझे मार गई॥
तेरे मेरे आँसू की तासीर अलहदा है
बेआब  नमक सीला, वो दर्द से पैदा है
सब दर्द तेरे सच हैं सखी, मानता हूँ मैं
और उनके वजूहात को भी जानता हूँ मैं

पर उनके बहाने से जब टूटती हो तुम
बेवजहा बहुत मुझसे जो रूठती हो तुम

तुम मुझको जलाओ तो कोई बात नहीं है
अपनी उँगलियों को भी तो भूनती हो तुम

ये बात मेरे दिल को सदा चाक किए है
यूँ तुमसे कहीं ज़्यादा मैंने अश्क पिये हैं

मिटने से मेरे दर्द भी मिट जाये गर तेरा
तो सामने रखा है तेरे सुन यह सर मेरा

तेरे दर्द का मैं ही हूँ सबब जानता हूँ मैं
सब दर्द तेरे सच हैं सखी, मानता हूँ मैं।

Thursday, December 31, 2015

2016 की शुभकामनायें! कविता

चित्र व शब्द: अनुराग शर्मा

बीतते हुए वर्ष की
अंतिम रात्रि
यूँ लगती है
जैसे अंतिम क्षण
किसी जाते हुए  
अपने के
साथ तो हैं पर
साथ की खुशी नहीं
जाने का गम है
सच पूछो तो
यही क्या कम है!
नववर्ष 2016 आप सबके जीवन में सफलता, समृद्धि और खुशियाँ बढ़ाये  

Thursday, December 24, 2015

अहिंसा - लघुकथा


ग्रामीण - हम पक्के अहिंसक हैं जी। हिंसा को रोकने में लगे रहते हैं।
आगंतुक - गाँव में लड़ाई झगड़ा तो हो जाता होगा
ग्रामीण - न जी न। सभी पक्के अहिंसक हैं। हम न लड़ते झगड़ते आपस में
आगंतुक - अगर आस-पड़ोस के गाँव से कोई आके झगड़ने लग जाय तो?
ग्रामीण - आता न कोई। दूर-दूर तक ख्याति है इस गाम की।
आगंतुक - मान लो आ ही जाये?
ग्रामीण - तौ क्या? जैसे आया वैसे चला जाएगा, शांति से। हम शांतिप्रिय हैं जी  ...
आगंतुक - और अगर वह शांतिप्रिय न हुआ तब?
ग्रामीण - शांतिप्रिय न हुआ से क्या मतलब है आपका?
आगंतुक - अगर वह झगड़ा करने लगे तो ...
ग्रामीण - तौ उसे प्यार से समझाएँगे। हम पक्के अहिंसक हैं जी।
आगंतुक - समझने से न समझा तब?
ग्रामीण - तौ घेर के दवाब बनाएँगे, क्योंकि हम पक्के अहिंसक हैं जी।
आगंतुक - फिर भी न माने?
ग्रामीण - मतलब क्या है आपका? न माने से क्या मतलब है?
आगंतुक - मतलब, अगर वह माने ही नहीं ...
ग्रामीण - तौ हम उसे समझाएँगे कि हिंसा बुरी बात है।
आगंतुक - तब भी न माने तो? मान लीजिये लट्ठ या बंदूक ले आए?
ग्रामीण - ... तौ हम उसे पीट-पीट के मार डालेंगे,लेकिन इस गाम में हिंसा नहीं करने देंगे। हम पक्के अहिंसक हैं जी। हिंसा को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सके हैं।  

Thursday, November 26, 2015

कबाड़ - कविता

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)
यादों का कबाड़

कचरा ढोते रहे
दुखित रोते रहे

ढेर में कबाड़ के
खुदको खोते रहे

तेल जलता रहा
लौ पर न जली

था अंधेरा घना
जुगनू सोते रहे

मूल तेरा भी था
सूद मेरा भी था

कर्ज़ दोनों का
अकेले ढोते रहे

शाम जाती रही
दिन बदलते रहे

बौर की चाह में
खत्म होते रहे।

Saturday, October 10, 2015

तुम और हम - कविता

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

तुम खूब रहे हम खूब रहे
तुम पार हुए हम डूब रहे

अपना न मुरीद रहा कोई
पर तुम सबके मतलूब रहे

तुम धूप हिमाल शुमाल की
हम शामे-आबे-जुनूब रहे

दोज़ख की आग तपाती हमें
और तुम फ़िरदौसी खूब रहे

हमसे पहचान हुई न मगर
तुम दुश्मन के महबूब रहे

शब्दार्थ:
मतलूब = वांछनीय, मनवांछित; हिमाल = हिमालय; शुमाल = उत्तर दिशा; आब = जल, सागर;
शाम = संध्या; जुनूब = दक्षिण दिशा; दोज़ख = नर्क; दुश्मन = शत्रु;
महबूब = प्रिय; फ़िरदौसी = फिरदौस (स्वर्ग) का निवासी = स्वर्गलोक का आनंद उठाता हुआ

Friday, August 21, 2015

बुद्धू - लघुकथा

राज और रूमा के विवाह को सम्पन्न हुए कुछ महीने बीत चुके थे। पति-पत्नी दोनों शाम को छज्जे पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। मज़ाक की कोई बात चलने पर रूमा ने कहा, "अगर उस दिन रीना की शादी में आपने मुझे देखा ही न होता तब?"

"तब तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर तुम मुझे देखकर दीदी से बात नहीं करतीं, तो मुझे कैसे पता लगता?" राज ने कहा।

"क्या कैसे पता लगता?" आवाज़ में कुतूहल था।

"वही सब जो तुमने दीदी से कहा?"

"मैंने? कुछ भी तो नहीं। उनसे बस इतना पूछा था कि जलपान किया या नहीं। फिर वे बात करने लगीं।"

"क्या बात करने लगीं? तुमने उनसे मेरे बारे में क्या कहा?" राज कुछ सुनने को उतावला था।

"मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था। वे खुद ही तुम्हारी बातें बताने लगी थीं" रूमा ने ठिठोली की।

"मुझे सब पता है, दीदी ने मुझे उसी दिन सारी बात बता दी थी।"

"अच्छा! क्या क्या बताया?"  

"जो कुछ भी तुमने मेरे बारे में कहा। ... वह लड़का जो आपके साथ आया था, वही जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें इतनी सुंदर हैं, लंबी नाक, चौड़ा माथा। इतना सभ्य, शांत सा, इस शहर के दंभी लड़कों से बिल्कुल अलग।"

"क्या? ये सब कहा दीदी ने तुमसे?"

"हाँ, सारी बात बता दी, एक एक शब्द।"

"लेकिन मैंने तो ये सब कहा ही नहीं। सोचा ज़रूर था, लगभग यही सब। लेकिन उनसे तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा।"

"सच? तब तो ये भी नहीं कहा होगा कि कद थोड़ा अधिक होता तो बिलकुल अमिताभ बच्चन होता, वैसे संजीव कुमार, धर्मेंद्र, शशि कपूर वगैरा को तो अभी भी मात कर रहा है।"

"बिल्कुल नहीं। हे भगवान! ये दीदी भी न ..."

"समझ गया दीदी की शरारत। बनाने को एक मैं ही मिला था?"

"एक मिनट, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने भी मेरे बारे में उनसे कुछ नहीं कहा हो?" 

"मैंने? मैं तो कभी किसी से कुछ कहता ही नहीं, उनसे कैसे कहता? ... और फिर, तुम्हें देखने के बाद तो मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था।"

"क्या? तुमने मेरी तारीफ़ में उनसे कुछ नहीं कहा था? इसका मतलब यह कि दीदी ने हम दोनों को ही  बुद्धू बना दिया।"

"कमाल की हैं दीदी भी। लेकिन इस मज़ाक के लिए मैं जीवन भर उनका आभारी रहूँगा।"

"मैं भी। दीदी ने गजब का बुद्धू  बनाया हमें।"

राज ने स्वगत ही कहा, "मेरी माइंड रीडर दीदी।" और दोनों अपनी-अपनी हसीन बेवकूफी पर एकसाथ हँस पड़े।

[समाप्त]

Thursday, July 30, 2015

मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन - 31 जुलाई

मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)
मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी कथा संकलन मानसरोवर
आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन है। हिन्दी और उर्दू साहित्य में रुचि रखने वाला कोई विरला ही होगा जो उनका नाम न जानता हो। हिन्दी (एवं उर्दू) साहित्य जगत में यह नाम एक शताब्दी से एक सूर्य की तरह चमक रहा है। विशेषकर, ज़मीन से जुड़े एक कथाकार के रूप में उनकी अलग ही पहचान है। उनके पात्रों और कथाओं का क्षेत्र काफी विस्तृत है फिर भी उनकी अनेक कथाएँ भारत के ग्रामीण मानस का चित्रण करती हैं। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे उर्दू में नवाब राय और हिन्दी में प्रेमचंद के नाम से लिखते रहे। आम आदमी की बेबसी हो या हृदयहीनों की अय्याशी, बचपन का आनंद हो या बुढ़ापे की जरावस्था, उनकी कहानियों में सभी अवस्थाएँ मिलेंगी और सभी भाव भी। अपने साहित्यिक जीवनकाल में उन्होने सैकड़ों कहानियाँ और कुछ लेख, उपन्यास व नाटक भी लिखे। उनकी कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं और अनेक रेडियो व टीवी कार्यक्रम भी। उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर १९१५ के अंक में "सौत" शीर्षक से प्रकाशित हुई थी और उनकी अंतिम प्रकाशित (१९३६) कहानी "कफन" थी।
जिस युग में उन्होंने लिखना आरंभ किया, उस समय हिंदी कथा-साहित्य जासूसी और तिलस्मी कौतूहली जगत् में ही सीमित था। उसी बाल-सुलभ कुतूहल में प्रेमचंद उसे एक सर्व-सामान्य व्यापक धरातल पर ले आए। ~ महादेवी वर्मा

प्रेमचंद की हिन्दी कथाओं की ऑडियो सीडी
मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इन्टरनेट पर देवनागरी लिपि में उपलब्ध हिन्दी (उर्दू एवं अन्य रूप भी) की मौलिक व अनूदित कहानियों के ऑडियो बनाने से जुड़ा रहा हूँ। विभिन्न वाचकों द्वारा "सुनो कहानी" और "बोलती कहानियाँ" शृंखलाओं के अंतर्गत पढ़ी गई कहानियों में से अनेक कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद की हैं। आप उनकी कालजयी रचनाओं को घर बैठे अपने कम्प्युटर या चल उपकरणों पर सुन सकते हैं। प्रेमचंद की कुछ कहानियो से हिन्द युग्म ने एक ऑडियो सीडी भी जारी की थी। कुछ चुनिन्दा ऑडियो कथाओं के लिंक यहाँ संकलित हैं। आशा है आपको पसंद आएंगे। यदि आप उनकी (या अपनी पसंद के किसी अन्य साहित्यकार की हिन्दी में मौलिक या अनूदित) कोई कथा विशेष सुनना चाहते हों तो अवश्य बताइये ताकि उसे रेडियो प्लेबैक इंडिया के साप्ताहिक "बोलती कहानियाँ" कार्यक्रम में सुनवाया जा सके।
मुंशी प्रेमचंद की 57 कहानियों के ऑडियो का भंडार, 4 देशों से 9 वाचकों के स्वर में

(31 जुलाई 1880 - 8 अक्तूबर 1936)
सौत (शन्नो अग्रवाल) [दिसंबर १९१५]
निर्वासन (अर्चना चावजी और अनुराग शर्मा)
आत्म-संगीत (शोभा महेन्द्रू और अनुराग शर्मा)
प्रेरणा (शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा)
बूढ़ी काकी (नीलम मिश्रा)
ठाकुर का कुआँ' (डॉक्टर मृदुल कीर्ति)
स्त्री और पुरुष (माधवी चारुदत्ता)
शिकारी राजकुमार (माधवी चारुदत्ता)
मोटर की छींटें (माधवी चारुदत्ता)
अग्नि समाधि (माधवी चारुदत्ता)
मंदिर और मस्जिद (शन्नो अग्रवाल)
बड़े घर की बेटी (शन्नो अग्रवाल)
पत्नी से पति (शन्नो अग्रवाल)
पुत्र-प्रेम (शन्नो अग्रवाल)
माँ (शन्नो अग्रवाल)
गुल्ली डंडा (शन्नो अग्रवाल)
दुर्गा का मन्दिर' (शन्नो अग्रवाल)
आत्माराम (शन्नो अग्रवाल)
नेकी (शन्नो अग्रवाल)
मन्त्र (शन्नो अग्रवाल)
पूस की रात (शन्नो अग्रवाल)
स्वामिनी (शन्नो अग्रवाल)
कायर (अर्चना चावजी)
दो बैलों की कथा (अर्चना चावजी)
खून सफ़ेद (अर्चना चावजी)
अमृत (अनुराग शर्मा)
अपनी करनी (अनुराग शर्मा)
अनाथ लड़की (अनुराग शर्मा)
अंधेर (अनुराग शर्मा)
आधार (अनुराग शर्मा)
आख़िरी तोहफ़ा (अनुराग शर्मा)
इस्तीफा (अनुराग शर्मा)
ईदगाह (अनुराग शर्मा)
उद्धार (अनुराग शर्मा)
कौशल (अनुराग शर्मा)
क़ातिल (अनुराग शर्मा)
घरजमाई (अनुराग शर्मा)
ज्योति (अनुराग शर्मा)
बंद दरवाजा (अनुराग शर्मा)
बांका ज़मींदार (अनुराग शर्मा)
बालक (अनुराग शर्मा)
बोहनी (अनुराग शर्मा)
देवी (अनुराग शर्मा)
दूसरी शादी (अनुराग शर्मा)
नमक का दरोगा (अनुराग शर्मा)
नसीहतों का दफ्तर (अनुराग शर्मा)
पर्वत-यात्रा (अनुराग शर्मा)
पुत्र प्रेम (अनुराग शर्मा)
वरदान (अनुराग शर्मा)
विजय (अनुराग शर्मा)
वैराग्य (अनुराग शर्मा) 
शंखनाद (अनुराग शर्मा)
शादी की वजह (अनुराग शर्मा)
सभ्यता (अनुराग शर्मा)
समस्या (अनुराग शर्मा)
सवा सेर गेंहूँ (अनुराग शर्मा)
कफ़न (अमित तिवारी) [१९३६]

Thursday, July 2, 2015

सच या झूठ - लघुकथा

पुत्र: ज़माना कितना खराब हो गया है। सचमुच कलयुग इसी को कहते हैं। जिन माँ-बाप का सहारा लेकर चलना सीखा, बड़े होकर उन्हीं को बेशर्मी से घर से निकाल देते हैं, ये आजकल के युवा।

माँ: अरे बेटा, पहले के लोग भी कोई दूध के धुले नहीं होते थे। कितने किस्से सुनने में आते थे। किसी ने लाचार बूढ़ी माँ को घर से निकाल दिया, किसी ने जायदाद के लिए सगे चाचा को मारकर नदी में बहा दिया। सौतेले बच्चों पर भी भांति-भांति के अत्याचार होते थे। अब तो देश में कायदा कानून है। और फिर जनता भी पढ लिख कर अपनी ज़िम्मेदारी समझती है।

पुत्र: नहीं माँ, कुछ नहीं बदला। आज सुबह ही एक बूढ़े को फटे पुराने कपड़ों में सड़क किनारे पड़ी सूखी रोटी उठाकर खाते देखा तो मैंने उसके बच्चों के बारे में पूछ लिया। कुछ बताने के बजाय गाता हुआ चला गया
 खुद खाते हैं छप्पन भोग, मात-पिता लगते हैं रोग।

माँ: बेटा, उसने जो कहा तुमने मान लिया? और उसके जिन बच्चों को अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं मिला, उनका क्या? हो सकता है बच्चे अपने पूरे प्रयास के बावजूद उसे संतुष्ट कर पाने में असमर्थ हों। हो सकता है वह कोई मनोरोगी हो?

पुत्र: लेकिन अगर वह इनमें से कुछ भी न हुआ तो?

माँ: ये भी तो हो सकता है कि वह झूठ ही बोल रहा हो।

पुत्र: हाँ, यह बात भी ठीक है। 

Tuesday, May 5, 2015

सांप्रदायिक सद्भाव

(लघुकथा व चित्र: अनुराग शर्मा)
जब मुसलमानों ने मकबूल की जमीन हथियाकर उस पर मस्जिद बनाई तो हिंदुओं के एक दल ने मुकुल की जमीन पर मठ बना दिया। मुकुल और मकबूल गाँव के अलग-अलग कोनों में उदास बैठे हैं फिर भी गाँव में शांति है क्योंकि इस बार कोई यह नहीं कह सकता कि हिंदुओं ने मुसलमान या मुसलमानों ने हिन्दू को सताया है।

Thursday, April 16, 2015

अस्फुट मंत्र - कविता

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

प्रेम का जादू यही
इक एहसास वही

अमृती धारा  बही
पीर अग्नि में दही

मैं की दीवार ढही
रात यूँ ढलती रही

बंद होठों से सही
बात जो तूने कही