(अनुराग शर्मा)
जीवन क्या है एक तमाशा
थोड़ी आशा खूब निराशा
सब लीला है सब माया है
कुछ खोया है कुछ पाया है
न कुछ आगे न कुछ पीछे
कुछ ऊपर ही न कुछ नीचे
जो चाहे वो अब सुन कहले
उस बिन्दु से न कुछ पहले
उस बिन्दु के बाद नहीं कुछ
होगा भी तो याद नहीं कुछ
जो कुछ है वह सभी यहीं है
जितना सुधरे वही सही है.
जीवन क्या है एक तमाशा
थोड़ी आशा खूब निराशा
सब लीला है सब माया है
कुछ खोया है कुछ पाया है
न कुछ आगे न कुछ पीछे
कुछ ऊपर ही न कुछ नीचे
जो चाहे वो अब सुन कहले
उस बिन्दु से न कुछ पहले
उस बिन्दु के बाद नहीं कुछ
होगा भी तो याद नहीं कुछ
जो कुछ है वह सभी यहीं है
जितना सुधरे वही सही है.
सेतु हिंदी काव्य प्रतियोगिता में आपका स्वागत है, संशोधित अंतिम तिथि: 10 नवम्बर, 2016
बात सही है समझ में आती है पर यही समझे रहे इतना तटस्थ रह कौन पाता है !
ReplyDeleteवाह सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ,भावप्रवण कविता
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
ReplyDeleteजब तक है ज़िन्दगी तब तक ही कुछ है
ReplyDeleteउसके बाद कहाँ क्या है, कुछ पता नहीं है ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2508 में दिया जाएगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteथोडी आशा खूब निराशा ? या थोडी आशा थोडी निराशा ?
ReplyDeleteजो है वो यहीं है ... ये एक सत्य है पर कौन और कितने समझ पाते हैं ...
ReplyDeleteअच्छी कविता है ...
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, जीवन अभी है यही है वर्तमान में यही सच है !
ReplyDeleteबचपन में एक कथा सुनी थी कि एक तोता यही रटता रहता था कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से फंसना नहीं... और यही रटते-रटते वो जाल में फँस भी गया मगर उसका यह जाप बंद नहीं हुआ.
ReplyDeleteयुगों युगों से हम यह सुनते, समझते, मानते आ रहे हैं... लेकिन कौन अपनाए!
बहुत ही प्रेरक!
सब लीला है सब माया है
ReplyDeleteकुछ खोया है कुछ पाया है
...वाह जवाब नहीं इस पंक्ति का लाजवाब