Tuesday, October 25, 2016

अनंत से अनंत तक - कविता

(अनुराग शर्मा)

जीवन क्या है एक तमाशा
थोड़ी आशा खूब निराशा

सब लीला है सब माया है
कुछ खोया है कुछ पाया है

न कुछ आगे न कुछ पीछे
कुछ ऊपर ही न कुछ नीचे

जो चाहे वो अब सुन कहले
उस बिन्दु से न कुछ पहले

उस बिन्दु के बाद नहीं कुछ
होगा भी तो याद नहीं कुछ

जो कुछ है वह सभी यहीं है
जितना सुधरे वही सही है.
सेतु हिंदी काव्य प्रतियोगिता में आपका स्वागत है, संशोधित अंतिम तिथि: 10 नवम्बर, 2016

13 comments:

  1. बात सही है समझ में आती है पर यही समझे रहे इतना तटस्थ रह कौन पाता है !

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  2. बहुत ही बढ़िया ,भावप्रवण कविता

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  3. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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  4. जब तक है ज़िन्दगी तब तक ही कुछ है
    उसके बाद कहाँ क्या है, कुछ पता नहीं है ...

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2508 में दिया जाएगा ।
    धन्यवाद

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. थोडी आशा खूब निराशा ? या थोडी आशा थोडी निराशा ?

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  8. जो है वो यहीं है ... ये एक सत्य है पर कौन और कितने समझ पाते हैं ...
    अच्छी कविता है ...

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  9. बहुत सुन्दर, जीवन अभी है यही है वर्तमान में यही सच है !

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  10. बचपन में एक कथा सुनी थी कि एक तोता यही रटता रहता था कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से फंसना नहीं... और यही रटते-रटते वो जाल में फँस भी गया मगर उसका यह जाप बंद नहीं हुआ.
    युगों युगों से हम यह सुनते, समझते, मानते आ रहे हैं... लेकिन कौन अपनाए!
    बहुत ही प्रेरक!

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  11. सब लीला है सब माया है
    कुछ खोया है कुछ पाया है
    ...वाह जवाब नहीं इस पंक्ति का लाजवाब

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