चित्र: अनुराग शर्मा |
पिछली बार के टेस्ट में इसलिये फ़ेल कर दिया था कि उसने स्कूटर मोड़ते समय इंडिकेटर दे दिया था, तब बोले कि हाथ देना चाहिये था। इस बार उसने हाथ दिया तो कहते हैं कि इंडिकेटर देना चाहिये था।
भुनभुनाता हुआ बाहर आ रहा था कि एक आदमी ने उसे रोक लिया, "लाइसेंस चाहिये? लाइसेंस?"
उसने ध्यान से देखा, आदमी के सर के ठीक ऊपर दीवार पर लिखा था, "दलालों से सावधान।"
"नहीं, नहीं, मुझे लाइसेंस नहीं चाहिये ... "
"तो क्या यहाँ सब्ज़ी खरीदने आए थे? अरे यहाँ जो भी आता है उसे लाइसेंस ही चाहिये, चलो मैं दिलाता हूँ।"
कुछ ही देर में वह मुस्कुराता हुआ बाहर जा रहा था। उसे पता चल गया था कि मुड़ते समय न हाथ देना होता है न इंडिकेटर, सिर्फ़ रिश्वत देना होता है।
अकलमंदी इसी में है :)
ReplyDeleteखतरनाक मोड़ है
ReplyDeleteकिसी मोड पर........
ReplyDeleteसच्चाई
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. सालिम अली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षवर्धन!
Deleteआखिर कब तक ?
ReplyDeleteशायद ये सिलसिला कभी ख़त्म हो सके ...
ReplyDeleteसटीक लघुकथा !
ReplyDeleteमेरे और मेरे परिवार के किसी सदस्य के साथ दिल्ली में पिछले 32 वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ. न लाइसेंस बनवाने के समय और न ही नवीनीकरण के समय. लिखित और मौखिक परीक्षाएं दीं,ड्राइविंग टेस्ट दिये और लाइसेन्स बनवाये. कभी किसी ने रिश्वत नहीं मांगी, न ही अनावश्यक देरी की. किन्तु बिजली, पानी और हॉउस टैक्स के कार्यालयों में मगरमच्छों से पाला पड़ा. कई बार सड़क पर यातायात पोलिस ने कोई भी गलती न होते हुए भी पैसे ऐंठने की कोशिश की है.
ReplyDeleteअब यह सब ज्यादा दिन नहीं चलेगा..
ReplyDeleteसच इतना बदसूरत होता है, इसकी बदसूरती का एक और नमूना... आपकी नज़र को सलाम है सर!!
ReplyDeleteकड़वा सच .... उसने ध्यान से देखा, आदमी के सर के ठीक ऊपर दीवार पर लिखा था, "दलालों से सावधान."
ReplyDeleteसंसद की दीवारों पर भी कुछ लिखवाना चाहिए अनु जी
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ पहचना की नहीं
नमस्कार! बड़े दिनों के बाद दर्शन हुए। कैसे हैं आप? और कैसी है दुनिया आपके आस-पास की?
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