ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
सच्चे से लगते कभी कभी
ये पुलाव खयाली पकाते है
सपने मनमौजी होते हैं
कोई नियम समझ न पाते हैं
ज्ञानी का ज्ञान धरा रहता
अपने मन की कर जाते हैं
सब कुछ कभी लुटा देते
सर्वस्व कभी दे जाते हैं
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteati sundar dhang se likhi gayi hai .
ReplyDeleteNEW YEAR WISHES 4 YOU
Sapne to sapne hote hain ... in par bas kahan hota hai ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,कैसा संयोग है मेरे पास भी एक ऐसी ही कविता है !
ReplyDeleteजीवन की तरह सपने भी हमारे लिए रहस्य बने हुए है !
मन को विस्मय विमुग्ध कर देने वाले इन सपनों के पीछे प्रकृति का
ही कोई रहस्यमय आयोजन लगता है मुझे तो !
मनोमुक्ति का आयोजन .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता
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