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कमाल का राष्ट्र है अपना भारत। ब्राह्मी से नागरी तक की यात्रा में पैशाची आदि न जाने कितनी ही लिपियाँ लुप्त हो गयीं। आश्चर्य नहीं कि आज भारतभूमि तो क्या विश्व भर में कोई विद्वान सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की मुहरों को निर्कूट नहीं कर सके हैं। हड़प्पा की लिपि तो बहुत दूर (कुछ सहस्र वर्ष) की बात है, एक महीना पहले जब विष्णु बैरागी जी ने "यह कौन सी भाषा है" पूछा था तो ब्लॉग-जगत की विद्वत्परिषद बगलें झाँक रही थी। जबकि वह भाषा मराठी आज भी प्रचलित है और वह लिपि मोड़ी भी 40 वर्ष पहले तक प्रचलित थी।
आज भले ही हम गले तक आलस्य, लोभ और भ्रष्टाचार में डूबे पड़े हों, एक समय ऐसा था कि हमारे विचारक मानव-मात्र के जीवन को बेहतर बनाने में जुटे हुए थे। लम्बे अध्ययन और प्रयोगों के बाद भारतीय विद्वानों ने ऐसी दशाधारित अंक (0-9) पद्धति की खोज की जो आज तक सारे विश्व में चल रही है। भले ही अरबी-फारसी दायें से बायें लिखी जाती हों, परंतु अंक वहाँ भी हमारे ही हैं, हमारे ही तरीके से लिखे जाते हैं, और हिंदसे कहलाते हैं।
जब धरा के दूसरे भागों में लोग नाक पोंछना भी नहीं जानते थे भारत में नई-नई लिपियाँ जन्म ले रही थीं, और कमी पाने पर सुधारी भी जा रही थीं। निश्चित है कि उनमें से अनेक अल्पकालीन/अस्थाई थीं और शीघ्र ही काल के गाल में समाने वाली थीं। आश्चर्य की बात यह है कि नई और बेहतर लिपियाँ आने के बाद भी अनेकों पुरानी लिपियाँ आज भी चल रही हैं, भले ही उनके क्षेत्र सीमित हो गये हों।
भारत की यह विविधता केवल लेखन-क्रांति में ही दृष्टिगोचर होती हो, ऐसा नहीं है, कालगणना के क्षेत्र में भी हम लाजवाब हैं। लिपियों की तरह ही कालचक्र पर भी प्राचीन भारत में बहुत काम हुआ है। जितने पंचांग, पंजिका, कलैंडर, नववर्ष आपको अकेले भारत में मिल जायेंगे, उतने शायद बाकी विश्व को मिलाकर भी न हों। भाई साहब ने भारतीय/हिन्दू नववर्ष की शुभकामना दी तो मुझे याद आया कि अभी दीवाली पर ही तो उन्होंने ग्रिगेरियन कलैंडर को धकिया कर हमें "साल मुबारक" कहा था।
आज आरम्भ होने वाला विक्रमी सम्वत नेपाल का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे ही जैसे "शक शालिवाहन" भारत का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे तमिलनाडु के हिन्दू अपना नया साल सौर पंचांग के हिसाब से तमिल पुत्तण्डु, विशु पुण्यकालम के रूप में या थईपुसम के दिन मनाते हैं। इसी प्रकार जैन सम्वत्सर दीपावली को आरम्भ होती है। सिख समुदाय परम्परागत रूप से विक्रम सम्वत को मानते थे परंतु अब वे सम्मिलित पर्वों के अतिरिक्त अन्य सभी दैनन्दिन प्रयोग के लिये कैनैडा में निर्मित नानकशाही कलैंडर को मानने लगे हैं। युगादि का महत्व अन्य सभी नववर्षों से अधिक इसलिये माना जाता है क्योंकि आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि-सृजन किया था, ऐसी मान्यता है।
आज का दिन देश के विभिन्न भागों में गुड़ी पडवो, युगादि, उगादि, चेइराओबा (चाही होउबा), चैत्रादि, चेती-चाँद, बोहाग बिहू, नव संवत्सर आदि के नाम से जाना जाता है। यद्यपि उत्सव का दिन प्रचलित सम्वत और उसके आधार (सूर्य/शक/मेष संक्रांति या चन्द्रमा/सम्वत/चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या दोनों) पर इधर-उधर हो जाता है। भारत और नेपाल में शक और विक्रमी सम्वत के अतिरिक्त भी कई पंचांग प्रचलित हैं। आज के दिन पंचांग और वर्षफल सुनने का परम्परागत महत्व रहा है। मुझे तो आज सुबह अमृतवेला में काम पर निकलना था वर्ना हमारे घर में आज के दिन विभिन्न रसों को मिलाकर बनाई गई "युगादि पच्चड़ी" खाने की परम्परा है।
भारतीय सम्वत्सर साठ वर्ष के चक्र में बन्धे हैं और इस तरह विक्रम सम्वत के हर नये वर्ष का अपना एक ऐसा नाम होता है जो कि साठ वर्ष बाद ही दोहराया जाता है। साठ वर्ष का चक्र ब्रह्मा,विष्णु और महेश देवताओं के नाम से तीन बीस-वर्षीय विभागों में बँटा है। दक्षिण भारत (तेलुगु/कन्नड/तमिल) वर्ष के हिसाब से इस संवत का नाम खर है। जबकि आज आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत्सर उत्तर भारत में क्रोधी नाम है। (उत्तर भारत के विक्रम संवतसर के नाम के लिये अमित शर्मा जी का धन्यवाद)
अनंतकाल से अब तक बने पंचांगों के विकास में विश्व के श्रेष्ठतम मनीषियों की बुद्धि लगी है। युगादि उत्सव अवश्य मनाइये परंतु साथ ही यदि अन्य भारतीय (सम्भव हो तो विदेशी भी) मनीषियों द्वारा मानवता के उत्थान में लगाये गये श्रम को पूर्ण आदर दे सकें तो हम सच्चे भारतीय बन सकेंगे। अपना वर्ष हर्षोल्लास से मनाइये परंतु कृपया दूसरे उत्सवों की हेठी न कीजिये।
आप सभी को सप्तर्षि 5087, कलयुग 5113, शक शालिवाहन 1933, विक्रमी 2068 क्रोधी/खरनामसंवत्सर की मंगलकामनायें!
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* भारतीय काल गणना
* वर्ष और संवत्सर
* खरनाम सम्वत्सर पंचांग ऑनलाइन
* राष्ट्रीय नववर्ष - श्री शालिवाहन शक सम्वत 1933
कमाल का राष्ट्र है अपना भारत। ब्राह्मी से नागरी तक की यात्रा में पैशाची आदि न जाने कितनी ही लिपियाँ लुप्त हो गयीं। आश्चर्य नहीं कि आज भारतभूमि तो क्या विश्व भर में कोई विद्वान सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की मुहरों को निर्कूट नहीं कर सके हैं। हड़प्पा की लिपि तो बहुत दूर (कुछ सहस्र वर्ष) की बात है, एक महीना पहले जब विष्णु बैरागी जी ने "यह कौन सी भाषा है" पूछा था तो ब्लॉग-जगत की विद्वत्परिषद बगलें झाँक रही थी। जबकि वह भाषा मराठी आज भी प्रचलित है और वह लिपि मोड़ी भी 40 वर्ष पहले तक प्रचलित थी।
आज भले ही हम गले तक आलस्य, लोभ और भ्रष्टाचार में डूबे पड़े हों, एक समय ऐसा था कि हमारे विचारक मानव-मात्र के जीवन को बेहतर बनाने में जुटे हुए थे। लम्बे अध्ययन और प्रयोगों के बाद भारतीय विद्वानों ने ऐसी दशाधारित अंक (0-9) पद्धति की खोज की जो आज तक सारे विश्व में चल रही है। भले ही अरबी-फारसी दायें से बायें लिखी जाती हों, परंतु अंक वहाँ भी हमारे ही हैं, हमारे ही तरीके से लिखे जाते हैं, और हिंदसे कहलाते हैं।
जब धरा के दूसरे भागों में लोग नाक पोंछना भी नहीं जानते थे भारत में नई-नई लिपियाँ जन्म ले रही थीं, और कमी पाने पर सुधारी भी जा रही थीं। निश्चित है कि उनमें से अनेक अल्पकालीन/अस्थाई थीं और शीघ्र ही काल के गाल में समाने वाली थीं। आश्चर्य की बात यह है कि नई और बेहतर लिपियाँ आने के बाद भी अनेकों पुरानी लिपियाँ आज भी चल रही हैं, भले ही उनके क्षेत्र सीमित हो गये हों।
भारत की यह विविधता केवल लेखन-क्रांति में ही दृष्टिगोचर होती हो, ऐसा नहीं है, कालगणना के क्षेत्र में भी हम लाजवाब हैं। लिपियों की तरह ही कालचक्र पर भी प्राचीन भारत में बहुत काम हुआ है। जितने पंचांग, पंजिका, कलैंडर, नववर्ष आपको अकेले भारत में मिल जायेंगे, उतने शायद बाकी विश्व को मिलाकर भी न हों। भाई साहब ने भारतीय/हिन्दू नववर्ष की शुभकामना दी तो मुझे याद आया कि अभी दीवाली पर ही तो उन्होंने ग्रिगेरियन कलैंडर को धकिया कर हमें "साल मुबारक" कहा था।
आज आरम्भ होने वाला विक्रमी सम्वत नेपाल का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे ही जैसे "शक शालिवाहन" भारत का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे तमिलनाडु के हिन्दू अपना नया साल सौर पंचांग के हिसाब से तमिल पुत्तण्डु, विशु पुण्यकालम के रूप में या थईपुसम के दिन मनाते हैं। इसी प्रकार जैन सम्वत्सर दीपावली को आरम्भ होती है। सिख समुदाय परम्परागत रूप से विक्रम सम्वत को मानते थे परंतु अब वे सम्मिलित पर्वों के अतिरिक्त अन्य सभी दैनन्दिन प्रयोग के लिये कैनैडा में निर्मित नानकशाही कलैंडर को मानने लगे हैं। युगादि का महत्व अन्य सभी नववर्षों से अधिक इसलिये माना जाता है क्योंकि आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि-सृजन किया था, ऐसी मान्यता है।
आज का दिन देश के विभिन्न भागों में गुड़ी पडवो, युगादि, उगादि, चेइराओबा (चाही होउबा), चैत्रादि, चेती-चाँद, बोहाग बिहू, नव संवत्सर आदि के नाम से जाना जाता है। यद्यपि उत्सव का दिन प्रचलित सम्वत और उसके आधार (सूर्य/शक/मेष संक्रांति या चन्द्रमा/सम्वत/चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या दोनों) पर इधर-उधर हो जाता है। भारत और नेपाल में शक और विक्रमी सम्वत के अतिरिक्त भी कई पंचांग प्रचलित हैं। आज के दिन पंचांग और वर्षफल सुनने का परम्परागत महत्व रहा है। मुझे तो आज सुबह अमृतवेला में काम पर निकलना था वर्ना हमारे घर में आज के दिन विभिन्न रसों को मिलाकर बनाई गई "युगादि पच्चड़ी" खाने की परम्परा है।
हर भारतीय संवत्सर का एक नाम होता है और उस कालक्षेत्र का एक-एक राजा और मंत्री भी। संवत्सर के पहले दिन पड़ने वाले वार का देवता/नक्षत्र संवत्सर का राजा होता है और वैसाखी के दिन पड़ने वाले वार का देवता/नक्षत्र मंत्री होता है।यही नव वर्ष गुजरात के अधिकांश क्षेत्रों में दीपावली के अगले दिन बलि प्रतिपदा (कार्तिकादि) के दिन आरम्भ होगा। जबकि काठियावाड़ के कुछ क्षेत्रों में आषाढ़ादि नववर्ष भी होगा। सौर वर्ष का नव वर्ष वैशाख संक्रांति (बैसाखी) के अनुसार मनाया जाता है और यह 14 अप्रैल 2011 को होगा। नव वर्ष का यह वैसाख संक्रांति उत्सव उत्तराखंड में बिखोती, बंगाल में पोइला बैसाख, पंजाब में बैसाखी, उडीसा में विशुवा संक्रांति, केरल में विशु, असम में बिहु और तमिलनाडु में थइ पुसम के नाम से मनाया जाता है। श्रीलंका, जावा, सुमात्रा तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों कम्बोडिआ, लाओस, थाईलैंड में भी संक्रांति को नववर्ष का उल्लास रहता है। वहाँ यह पारम्परिक नव वर्ष सोंग्रन या सोंक्रान के नाम से आरम्भ होगा।
भारतीय सम्वत्सर साठ वर्ष के चक्र में बन्धे हैं और इस तरह विक्रम सम्वत के हर नये वर्ष का अपना एक ऐसा नाम होता है जो कि साठ वर्ष बाद ही दोहराया जाता है। साठ वर्ष का चक्र ब्रह्मा,विष्णु और महेश देवताओं के नाम से तीन बीस-वर्षीय विभागों में बँटा है। दक्षिण भारत (तेलुगु/कन्नड/तमिल) वर्ष के हिसाब से इस संवत का नाम खर है। जबकि आज आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत्सर उत्तर भारत में क्रोधी नाम है। (उत्तर भारत के विक्रम संवतसर के नाम के लिये अमित शर्मा जी का धन्यवाद)
अनंतकाल से अब तक बने पंचांगों के विकास में विश्व के श्रेष्ठतम मनीषियों की बुद्धि लगी है। युगादि उत्सव अवश्य मनाइये परंतु साथ ही यदि अन्य भारतीय (सम्भव हो तो विदेशी भी) मनीषियों द्वारा मानवता के उत्थान में लगाये गये श्रम को पूर्ण आदर दे सकें तो हम सच्चे भारतीय बन सकेंगे। अपना वर्ष हर्षोल्लास से मनाइये परंतु कृपया दूसरे उत्सवों की हेठी न कीजिये।
आप सभी को सप्तर्षि 5087, कलयुग 5113, शक शालिवाहन 1933, विक्रमी 2068 क्रोधी/खरनामसंवत्सर की मंगलकामनायें!
साठ संवत्सर नाम | ||
१. प्रभव २. विभव ३. शुक्ल ४. प्रमुदित ५. प्रजापति ६. अग्निरस ७. श्रीमुख ८. भव ९. युवा १०. धाता ११. ईश्वर १२. बहुधान्य १३. प्रमादी १४. विक्रम १५. विशु १६. चित्रभानु १७. स्वभानु १८. तारण १९. पार्थिव २०. व्यय | २१. सर्वजित २२. सर्वधर २३. विरोधी २४. विकृत २५. खर २६. नंदन २७. विजय २८. जय २९. मन्मत्थ ३०. दुर्मुख ३१. हेवलम्बी ३२. विलम्ब ३३. विकारी ३४. सर्वरी ३५. प्लव ३६. शुभकृत ३७. शोभन ३८. क्रोधी ३९. विश्ववसु ४०. प्रभव | ४१. प्लवंग ४२. कीलक ४३. सौम्य ४४. साधारण ४५. विरोधिकृत ४६. परिद्व ४७. प्रमादिच ४८. आनंद ४९. राक्षस ५०. अनल ५१. पिंगल ५२. कलायुक्त ५३. सिद्धार्थी ५४. रौद्र ५५. दुर्मथ ५६. दुन्दुभी ५७.रुधिरोदगारी ५८.रक्ताक्षी ५९. क्रोधन ६०. अक्षय |
सम्बन्धित कड़ियाँ
=============
* भारतीय काल गणना
* वर्ष और संवत्सर
* खरनाम सम्वत्सर पंचांग ऑनलाइन
* राष्ट्रीय नववर्ष - श्री शालिवाहन शक सम्वत 1933
हमारे घर में भी उगादी के दिन विशेष भोजन (विशेष पत्तों की चटनी , नमकीन -मीठे चावल )बनाये जाते थे ...
ReplyDeleteनव संवत्सर शुभ हो ..!
आपको भी नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteसम्वत्सरों पर शानदार जानकारी!!
ReplyDeleteहम प्राचीन मनिषीयों के बल भले गौरव न लें, पर उनके किये धरे पर पानी तो न फेरें।
ज्ञानपूर्ण पोस्ट, नववर्ष की बधाई।
ReplyDeleteभारत तो सदैव ही सभी को अपनाता है। हम कभी नहीं कहते कि हम ही श्रेष्ठ हैं। भारतीय नवसम्वतसर की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteडीक्रिप्ट=उदघाटन?विकोडन(प्रस्तावित ) ?
ReplyDeleteआनंदित करने वाला आलेख - खर संवत्सर आपको सपरिवार शुभ ,मंगलमय हो !
आपकी अध्ययनप्रियता/शीलता इस लेख से साफ़ झलकती है -
अगला संवत्सर नंदना है !पूरी सूची विकीपीडिया पर यूं है -
1. Prabhava
2. Vibhava
3. Shukla
4. Pramoda
5. Prajāpati
6. Āngirasa
7. Shrīmukha
8. Bhāva
9. Yuva
10. Dhātri
11. Īshvara
12. Bahudhānya
13. Pramādhi
14. Vikrama (2000-2001)
15. Vrisha (2001-02)
16. Chitrabhānu (2002-03)
17. Svabhānu (2003-04)
18. Tārana (2004-05)
19. Pārthiva (2005-06)
20. Vyaya (2006-2007)
21. Sarvajeeth (2007-08)
22. Sarvadhāri (2008-09)
23. Virodhi (2009-10)
24. Vikrita (2010-11)
25. Khara (2011-12)
26. Nandana (2012-13)
27. Vijaya
28. Jaya
29. Manmadha
30. Durmukhi
31. Hevilambi
32. Vilambi
33. Vikāri
34. Shārvari
35. Plava
36. Shubhakruti
37. Sobhakruthi
38. Krodhi
39. Vishvāvasu
40. Parābhava
41. Plavanga
42. Kīlaka
43. Saumya
44. Sādhārana
45. Virodhikruthi
46. Paridhāvi
47. Pramādicha
48. Ānanda
49. Rākshasa
50. Anala
51. Pingala
52. Kālayukthi
53. Siddhārthi
54. Raudra
55. Durmathi
56. Dundubhi
57. Rudhirodgāri
58. Raktākshi
59. Krodhana
60. Akshaya
जी, बहुत बहुत शुभकामनायें. यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हमने अपने ज्ञान-विज्ञान-संस्कृति को तिलांजलि दे दी वरना क्या कारण था कि अपना उन्नत कैलेण्डर दुनिया भर में चलाने के स्थान पर सत्तावन वर्ष पुराना कैलेण्डर स्वीकार किया...
ReplyDeleteआज के दिन आपने बेहतरीन जानकारी दी है ...आनंद आ गया ! हार्दिक आभार आपका !
ReplyDeleteआप तो 'दिल के धडकने से भी डर जाते हैं' वाली गिनती में आना चाह रहे हैं। हम अपने राष्ट्र धर्म की दुहाइयॉं देंगे और पूरी बेशर्मी से इसकी ऐसी-तैसी करेंगे। नव सम्वत्सर का उत्सव मनाऍंगे और 31 दिसम्बर की रात को केक काटेंगे।
ReplyDeleteहमारा राष्ट्र धर्म अब विदेशी ही निभाऍंगे। क(पया अपना काम देखें और हमें, रोकडा कमाने का अपना एक मात्र काम करने दें।
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने। आभार।
ReplyDeleteआदरणीय ,
ReplyDeleteआपका मेल पता ढूंढने से भी नहीं मिला, इसलिए इस लेख में संशोधन करने का निवेदन कमेन्ट रूप में ही करना पड़ रहा है.
सम्मानीय इस वर्ष "क्रोधी" नाम संवत्सर प्रारंभ हुआ है ना की "खर" नामक. खर नामक संवत्सर 2055 विक्रमी में आया था यानि की 1998-1999 ईस्वी में. शायद किसी भ्रम के कारण ऐसा हो गया है, इसलिए आपसे यह जानकारी संशोधित करने का आग्रह है जिससे की यह भ्रम आगे ना फैल पाए.
विक्रम संवत के वर्तमान चक्र की स्थिति निम्न रूप से है ------
१. प्रभव 2031 विक्रमी (1974 - 1975 ई )
२. विभव 2032 वि. (1975 - 1976)
३. शुक्ल 2033 वि. (1976 - 1977)
४. प्रमुदित 2034 वि.(1977 - 1978)
५. प्रजापति 2035 वि. (1978 - 1979)
६. अग्निरस 2036 वि. (1979 -1980)
७. श्रीमुख
८. भव
९. युवा
१०. धाता
११. ईश्वर
१२. बहुधान्य
१३. प्रमादी
१४. विक्रम
१५. विशु
१६. चित्रभानु
१७. स्वभानु
१८. तारण
१९. पार्थिव 2049 वि. (1992 -1993 ई.)
२०. व्यय 2050 वि.(1993 -1994 ई.)
२१. सर्वजित 2051 वि.(1994 - 1995)
ReplyDelete२२. सर्वधर 2052 वि.(1995 - 1996)
२३. विरोधी
२४. विकृत
२५. खर 2055 वि.(1998-1999 ई.)
२६. नंदन
२७. विजय
२८. जय
२९. मन्मत्थ
३०. दुर्मुख
३१. हविलम्ब
३२. विलम्ब
३३. विकारी
३४. सर्वरी
३५. प्लव
३६. शुभकृत 2066 वि.(2009-2010 ई.)
३७. शोभन 2067 वि.(2010-2011 ई.)
३८. क्रोधी 2068 वि.(2011 - 2012 ई.)
३९. विश्ववसु 2069 वि.(2012-2013 ई.)
४०. प्रभव 2070 वि.(2013-2014 ई.)
४१. प्लवंग 2071 वि.(2014-2015 ई.)
४२. कीलक 2072 वि.(2015-2016 ई.)
४३. सौम्य
४४. साधारण
४५. विरोधिकृत
४६. परिद्व
४७. प्रमादिच
४८. आनंद
४९. राक्षस
५०. अनल
५१. पिंगल
५२. कलायुक्त
५३. सिद्धार्थी
५४. रौद्र
५५. दुर्मथ
५६. दुन्दुभी
५७.रुधिरोदगारी
५८.रक्ताक्षी
५९. क्रोधन 2079 वि.(2032-2033 ई.)
६०. अक्षय 2080 वि.(2033-2034 ई.)
आभार सहित
अमित शर्मा
नवसंवत्सर की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबाकी क्या होना चाहिए.. क्या हो सकता है .. इस पर कुछ कह नहीं सकता
नव संवत्सर शुभ हो ..!
ReplyDelete:):):)
ReplyDeletepranam.
शर्मा जी कलेन्डर तो लाते है हम भी ,मगर तारीख देखने और उसमें खास तौर पर ये देखने की छुटिटयां कब कब है।योग लगन तिथि समझ में भी नहीं आती और जरुरत ही महसूस नहीं होती ।एक जनवरी को नया साल मनाने की प्रथा चल पडी सो चल पडी । आपका लेख ज्ञान बर्धक है । कुछ लोग तो यह भी नही जानते कि कौनसा नव वर्ष और कौनसा पुराना वर्ष ।उनको तो सब दिन एक समान ही है । सुबह से शाम तक दानों की तलाश। आदमी आदमी नहीं परिन्दा हो गया है।
ReplyDeleteआपको भी सपरिवार नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसुंदर ज्ञानवर्धक जानकारी.... नवसंवत की शुभकामनायें
ReplyDeleteगजब की जानकारी.
ReplyDeleteअनुराग, अरविन्द और अमित जी के त्रिनेत्र खुलते ही अज्ञान भस्म हुआ और छिपे 'भारतीय काल-चक्र ज्ञान' पर से धूल हटनी शुरू हुईं.
इस जानकारी को मैंने अपने संग्रह में ले लिया है स्वाध्याय करने हेतु.
आभारी हूँ अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक करने को.
शर्मा जी बहुत ही बढ़िया लेख है. टिप्पणियों में संवत्सरों की दो सूचियाँ है पहली अरविन्द मिश्र जी की और दूसरी सूची अमित शर्मा जी की . दोनों में अंतर क्यों है समझ नहीं आया.
ReplyDeleteअपना वर्ष हर्षोल्लास से मनाइये परंतु कृपया दूसरे उत्सवों की हेठी न कीजिये।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने!
आपको भी नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत ही बढ़िया और विस्तृत जानकारी
ReplyDeleteएक संग्रहणीय पोस्ट
@ अमित जी,
ReplyDeleteसम्वत्सर नाम पर ध्यानाकर्षण के लिये आपका आभार। निष्कर्ष यह निकलता है कि उत्तर और दक्षिण के सम्वत्सर नामों में 13 वर्ष का अंतर है। क्या कोई इसके समुचित कारण पर प्रकाश डाल सकता है?
@ भारतीय नागरिक जी,
ReplyDeleteस्वतंत्रता के कुछ समय बाद, सरकार की कलैंडर निर्णायक कमेटी में बडे विद्वानों ने मिलकर ही श्री शालिवाहन शक सम्वत को उस समय भारत में प्रचलित अन्य सभी सम्वतों से अधिक आधुनिक, सुविधाजनक और वैज्ञानिक पाया था, इसीलिये ऐसा किया गया था।
@विचार शून्य
ReplyDeleteपांडे जी,
सूचियां तो सामान ही हैं बस लिपि का अंतर है ;)
हाँ इस सम्वत्सर के लिए उनके नामों में अंतर है। जैसा कि मैंने लेख में कहा है, भारत में अनेक पंचांग और संवत्सर हैं। सामान्यतः उनमें १२ मास और ६० वर्षों के नाम सामान हैं। परन्तु युगादि (वर्ष आरम्भ) अलग-अलग मास में हो सकता है और मास सामान होने पर भी युगादि, विशु, बिहु, वर्ष प्रतिपदा का दिन सौर, चन्द्र, संक्रांति, पूर्णिमा, नक्षत्र आदि के आधार पर भिन्न हो सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर और दक्षिण के सम्वत्सरों में १२ वर्ष का अंतर है। दक्षिण भारत में वर्तमान संवत्सर का नाम खर है जबकि उत्तर में क्रोधी है। ऐसा अंतर कब से चला आ रहा है, यह मुझे नहीं पता। बाबा के जाने के बाद से तो मेरे परिवार में भी ऐसा कोई नहीं बचा जो नियमित पंचांग देखता हो। ब्लॉग-वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों से सत्यान्वेषण का अनुरोध किया जा सकता है।
भारत का अतीत जितना गौरव शाली था ... उसका वर्त्तमान उतना ही अंधकारमय हो गया है ...
ReplyDeleteआज हमें अतीत की बातों से शिक्षा लेकर एक उज्जवल भविष्य की रचना करनी है ...
संजो कर रखने वाली आज की पोस्ट औरउस पर किए गये कमेंट ... कितना कुछ है अपने इतिहास ... अपनी सांस्कृति में जिसको हम नही जानते ....
ReplyDelete@
ReplyDeleteकितना कुछ है अपने इतिहास ... अपनी सांस्कृति में जिसको हम नही जानते ....
विविधता ही भारत का सच्चा स्वरूप दर्शाती है।
Wise people may be naturally better at finding similarity even among dissimilar objects, they never stop respecting the differences and the diversity.
ReplyDeleteआपको भी शुभकामनायें और अमित के ज्ञान को एक और पहचान मिलने पर बधाई।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पूरे इतिहास और वर्तमान का आईना है ..वक़्त और हालात ने हमें क्या से क्या बना दिया है यह सबके सामने है ...एक सार्थक पोस्ट आपका आभार
ReplyDeleteImportant information. Thank you.
ReplyDeleteअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteबहुत ही ठीक लिखा है आपने !इसीलिए कहते है...मेरा भारत महान !
ReplyDeleteअरविन्द जी और मेरा संयुक्त उद्यम है यदि जम जाए तो :)
ReplyDeleteडीक्रिप्ट = लिपिबोधन / लिपिबोधित / लिपि-अनावृत्ति / लिप्यानावृत्ति / लिप्योदघाटित !
@ अली जी और मिश्रा जी,
ReplyDeleteसुझाव के लिये धन्यवाद। मैं "कूट" का विलोम जैसा एक स्वाभाविक हिन्दी/संस्कृत शब्द ढूंढ रहा हूँ। उदाहरण के लिये - निर्कूट। क्या ऐसा कोई शब्द आपको ज्ञात है?
धन्यवाद!
@लिपि -शोधन और लिप्यान्वेषण दो और शब्द हमारे विमर्श के बाद आये हैं
ReplyDeleteRochak tathyaparak jankaion se bhara post ...aabhar
ReplyDeleteकमाल है जी । कमाल ही है । क्या गजब का कृतित्व है ।
ReplyDeleteप्रिय अनुराग !
ReplyDeleteडीक्रिप्ट के लिए कई समानार्थी शब्द सुझाए गए हैं उन्हीं में से कुछ नाम मुझे ठीक लगे - लिपिबोधन और लिपिशोधन. अंतिम शब्द अधिक ठीक है.
मिश्र जी ! शोधन और अन्वेषण में बड़ा अंतर है. "शोधन" अनावरण है उस तथ्य का जो है तो पहले से किन्तु हमारे ज्ञान में नहीं था. अन्वेषण नितांत नयी रचना है ....
अजन्ता-एलोरा की गुफाओं पर शोध किया गया किन्तु न्यूक्लियर रिएक्टर का आविष्कार किया गया.
कूट शब्द का विलोम- सरल/अकूट.
कूट आचरण, सरल आचरण
कूटनीति, अकूट नीति
कुttiनी चरितम् , सरला चरितम्
कूट आलेख , सरल आलेख
ज्ञानवर्धन के लिए एक बार फिर से धन्यवाद । विक्रमी सम्वत 2074 की शुभकामनेर
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