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रंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का
याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का
मुँह लगा के पीनी मुझे तो नागवार है
देखकर चढे नशा तौ जादू है खुमार का
हैसियत नहीं यहाँ से खाक भी उठा सकूँ
देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का
खुद से मैं छिपा हुआ सामने न आ सकूँ
फटी जेब खाली हाथ आर का न पार का
छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
बोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का
[कुसुमाकर कवि = जो कवि नहीं है लेकिन बहार के मौसम में कविता जैसा कुछ कहना चाहता है।]
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यह कुसुमाकर कवि तो सुधाकर लग रहा है .................. शीतल अमृतमयी फुहार सी लगी यह रचना .
ReplyDeleteतलस्पर्शी सच्चाई!!!
ReplyDeleteहैसियत नहीं यहाँ खाक भी उठा सकूँ
देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का
सभी की यह भ्रमपूर्ण सोच है।
छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
ReplyDeleteबोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का.....
balak ki bebasi tippani tak udhar ka......
pranam.
बहुत बढ़िया रही यह गजल तो!
ReplyDeleteकवि हूं मैं उधार का ......
ReplyDeleteवाह क्या बात है....
जो कविता लिखी है, उससे तो सिद्ध होता है कि आप मूल के कवि हैं, न कि उधार के।
ReplyDeleteलगता है शीर्षक में कुछ गलती हो गयी है -होना सुकुमार कवि था न :)
ReplyDeleteजब बात मौसम (=ऋतु?) और कवि की है तो कुसुमाकर के साथ शुक्राचार्य की बात भी होनी चाहिए :)
ReplyDeleteपता नहीं क्यों मुझे ऋतूनां कुसुमाकरः याद आ गया.
पता नहीं जिसे बंदे को बहारें पता चलने लग जायें उसे कवि कहेंगे भी कि नहीं :)
ReplyDeleteबहार का खुमार या बहर का हिसाब :)
Deleteकविता उधार के कवि की तो नहीं लगती.:)
ReplyDeleteउधार का यह कवि तो बहुत बडा साहूकार लग रहा है।
ReplyDeleteरंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का
ReplyDelete"bhut khubsurat alfaaj"
regards
बहुत खूब! उधारी वाली बात तो सही नहीं लगती!
ReplyDeletekavi toh tabhi kavi hai...jo bina khe bahut si batoin ka ahsas kara de....
ReplyDeleteJinko shabdon ki jadugari aati hai ve udhar ke kavi ho hi nahi sakte..han! shabd to vahi rahte hain aapni aavaz dalni hoti hai..achchhi rachana..badhai..
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