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रंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का
याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का
मुँह लगा के पीनी मुझे तो नागवार है
देखकर चढे नशा तौ जादू है खुमार का
हैसियत नहीं यहाँ से खाक भी उठा सकूँ
देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का
खुद से मैं छिपा हुआ सामने न आ सकूँ
फटी जेब खाली हाथ आर का न पार का
छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
बोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का
[कुसुमाकर कवि = जो कवि नहीं है लेकिन बहार के मौसम में कविता जैसा कुछ कहना चाहता है।]
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