(कविता व चित्र: अनुराग शर्मा)
मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
है सफ़र मुश्किल अगर गुज़रें रक़ीबों की गली।
मेरी डगर के ज़िक्र पे तुमने सदा कड़वी कही है॥
सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा चाहत ए दिल है यही।
दर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥
खिड़की खुले तो हो सके रोशन जो घर अन्धेरा है।
सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
ज़िन्दगी प्रेम का राग है |
शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
है सफ़र मुश्किल अगर गुज़रें रक़ीबों की गली।
मेरी डगर के ज़िक्र पे तुमने सदा कड़वी कही है॥
सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा चाहत ए दिल है यही।
दर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥
खिड़की खुले तो हो सके रोशन जो घर अन्धेरा है।
सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
क्या बात है मित्र ! प्रणय प्रवास भी कितना नैशर्गिक, व शालीन .....विलक्षण मधुरता है इस छोटी भाव पूर्ण रचना में ..बधाईयाँ शर्मा जी /
सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा यही दिल की चाह है।
ReplyDeleteदर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥
हर पंक्ति एक नया अहसास , और एक अद्भुत भाव सामने लाती है ...!
आखिर इस दर्द का माजरा क्या है ?
ReplyDeleteमार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
ReplyDeleteशब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥
कुछ भावनाएं कभी बदलती नहीं है !
खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
दिमाग की खिड़की खुली हो तो बात बने !
बेहतरीन !
खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
बहुत भावपूर्ण और सत्य कहती कविता ....
बहुत सुंदर ....!!
ReplyDeleteएक फटा शेर नज़र है हुज़ूर के ...
रास्ते चलते छेड़ने पर , याद कर "स्थान" को !
नौ सौ ग्यारा ध्यान रखना,ज्यादा ही दमदार है !
सतीशजी के रास्ते पर चलते हुए एक और शेर झेलिए -
ReplyDeleteदोस्तों से जान पे सदमें उठाए इस कदर,
दुश्मनों से बेवफाई का गिला जाता रहा।
विष्णु जी, सतीश जी,
Deleteहमें तो दोनों शेर अच्छे लगे, अब आपने उकसाया है तो आप भी झेलिये एक पुराना बदायूँनी शेर। परिवार के एक बुज़ुर्ग सुनाते है, आशा है, उन्हीं का होगा:
बच के चलते हैं सभी खस्ता दरो-दीवार से
दोस्तों की
बेवफ़ाई का ग़िला पीरी में क्या
सुंदर ||
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
शब्द हुये धुँधले पर अर्थ नही बदले,
ReplyDeleteमन को सम्हालने में शाम बीत जाती है,
अंधकार छाता है, भेद सा मिटाता है,
आँख के किनारों से आस बही आती है।
वाह!
Delete:))
ReplyDeleteयह भी झेलें....
मार तेरे प्यार में , खाई है थाने तक सनम !
शब्द तुम सुनती नहीं फिर अर्थ समझाएं किसे
सह सकूं हर मार तेरे यारों की, बाज़ार में !
चीख चिल्लाने पर मेरे जान तो बच जायेगी
Deleteबेहद प्रभाव शाली है यह रचना ......
आपका यह स्वरूप आनंद दायक है , बधाई
:)
Deleteखुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
वाह.....बहुत सुंदर
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
all lines are beautiful and
ful of deep emotions.
काश कि वक़्त रहते इशारे समझ लिए जाते
ReplyDeleteइस जहां के बहुत से फ़साने सुलझ जाते ....
समझदार को इशारा ....
परन्तु सामने वाला समझदार है ?
वीरानों में बसर करने की आदत है हमारी तो
Deleteन आते हम अगर हमको इतना वे न उलझाते
क्या बात है.. क्या बात है!!
ReplyDelete.
सीरियस लेखन से चलकर आये हैं ग़ज़लों तलक,
एक रूमानी सा शायर था छिपा ये भी सही है!
अभी तो इब्दिता है,देखते जाइये जनाब,
Deleteहमने थैली का सिर्फ इक कोना ही देखा है !
अजी, आपका बडप्पन है!
Deleteवाह ! सहज रचना हेतु बधाई । टूटा फूटा कुछ लिख रहा हूँ - फूल के साथ काँटेँ होते है या काँटोँ के साथ फूल है। आदमी खुद से भी गम पाता तो जाता भूल है । लफ्जोँ की टकराहट से अर्थ अलग हैँ होते । अर्थ की टंकार अल्फाज का फूल है ।
ReplyDeleteवाह!
Deleteसह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा यही दिल की चाह है।
ReplyDeleteदर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥
बहुत खूब गजल कही है .... यह रंग भी असरदार है
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
वाह क्या बात है बहुत सुंदर .....अच्छा समां बंधने लगा है जारी रखिये ....
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
कालेज के दिन याद आ गए लगता है :)
मस्त अंदाज़ में लिखी ग़ज़ल .
ReplyDeleteबढ़िया है अनुराग जी .
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है ..
वाह ... मज़ा आ गया इसे पढ़ने के बाद ... सर झुकाना ही ठीक है ...
रास्ते में छेड़ना कभी कभी उल्टा भी पड़ जाता है ...
खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
क्या बात है...यह भी खूब रही.
खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
यह शेर कमाल का है !!
शुक्रिया संतोष जी!
Deleteshirshak julie movie ki yaad dilaataa haen
ReplyDeleteजी, वह इंटेशनल है।
Deletehain hamdard hamare aise bhee,
ReplyDeleteafasane kahane aate hain
dil ke fafole sahalate bhee,
maze se aag lagate hain.
Bravo to blog platform, shamelessness touches new horizons daily. Maniacs dance in full frontal nudity and talk about veils!
बडी मेहंत से हिंदी मे वो जुली मूवी का गाना -
ReplyDeleteना कुच तेरे ब्स में जुली, ना कुछ मेरे बस में
दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाये
अली जी, आप देवनागरी लिखने के लिये गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेशन ट्राइ कर सकते हैं, रोमन लिखेंगे और हिन्दी बनती जायेगी। निम्न लिंक पर जाकर:
Deletehttp://www.google.com/transliterate/indic/
Complete song runs like it. Very meaningful in present scenario:
ReplyDeletedil kyaa kare jab kisii se kisii ko pyaar ho jaae
jaane kahaan kab kisii ko kisii se pyaar ho jaae
uunchii uunchii diivaaron sii is duniyaa kii rasmen
na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men
jaise parvat pe ghataa jhukatii hai
jaise saagar se lahar uthatii hai
aise kisii chahare pe nigaah rukatii hai 2
ho rok nahiin sakatii nazaron ko duniyaa bhar kii rasmen
na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men
dil kyaa kare
aa main terii yaad men sab ko bhulaa duun
duniyaa ko terii tasaviir banaa duun
meraa bas chale to dil chiir ke dikhaa duun
ho daud rahaa hai saath lahuu ke pyaar tere nas nas men
na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men
dil kyaa kare
जो दिल के हाथ मज्बूर है उन्हे माफ कर दे सर जी.
इश्क कमबखत होता ही है ऐसा.
:)
Deleteयह गीत है - फिल्म जूली ही है - गीत दूसरा है :)
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भूल गया सब कुछ - याद नहीं अब कुछ
इक यही बात न भूली - जूली - आय लव यू
...
इतना भी दूर मत जाओ - के पास आना मुश्किल हो
हो ओ ओ
इतना भी पास मत आओ - के दूर जाना मुश्किल हो ....
जाने भी दो - कहा मानो मेरा ...
शुक्रिया!
Deleteब्लॉग्गिंग अपने सर पर किस कदर हावी हो गयी है, देखिये 'इतना भी पास मत आओ' ये देखकर जूली के गीत से भी पहले गिरिजेश जी की काफी पहले लिखी लिखी पंक्तियाँ याद आ गयीं| वैसे चक्कर है क्या?
ReplyDeleteगिरिजेश का वह आलेख मुझे भी याद है। सच पूछो तो अच्छा लेखन याद रह ही जाता है।
Deleteधन्यवाद संगीता जी!
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल कही है..
ReplyDeleteसर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
अनुराग जी बड़ी नटखट सी ग़ज़ल कही है ...बहुत अच्छी लगी
जी, आभार!
Deleteखुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
सार्थक चिंतन
bahut badhiya rachna ! badhai ho
ReplyDeleteमार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
ReplyDeleteशब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥
kya bat hai .. bahut khoob ... abhar
चाहें भी तो रुख बदल ना पायेंगे
ReplyDeleteये हवा जो अब तुम तक बही है.........
अनु
बहुत खूब गजल है
ReplyDeleteशानदार गजल...:-)
सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
ReplyDeleteरास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
- शालीनता की मिसाल !
खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
ReplyDeleteसियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
bahut acchi lagi aapki rachna aur blog
मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
ReplyDeleteबहुत सही भाई साहब....
वाह! वाह और फिर से वाह! :)
ReplyDeleteओह गज़ल!
ReplyDeleteशुरुआत ही जबरदस्त है सर जी-
मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥