Tuesday, May 8, 2012

इतना भी पास मत आओ - कविता

 (कविता व चित्र: अनुराग शर्मा)

ज़िन्दगी प्रेम का राग है
मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥

सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥

है सफ़र मुश्किल अगर गुज़रें रक़ीबों की गली।
मेरी डगर के ज़िक्र पे तुमने सदा कड़वी कही है॥

सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा चाहत ए दिल है यही।
दर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥

खिड़की खुले तो हो सके रोशन जो घर अन्धेरा है।
सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥

55 comments:

  1. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
    क्या बात है मित्र ! प्रणय प्रवास भी कितना नैशर्गिक, व शालीन .....विलक्षण मधुरता है इस छोटी भाव पूर्ण रचना में ..बधाईयाँ शर्मा जी /

    ReplyDelete
  2. सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा यही दिल की चाह है।
    दर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥

    हर पंक्ति एक नया अहसास , और एक अद्भुत भाव सामने लाती है ...!

    ReplyDelete
  3. आखिर इस दर्द का माजरा क्या है ?

    ReplyDelete
  4. मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
    शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥
    कुछ भावनाएं कभी बदलती नहीं है !
    खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
    दिमाग की खिड़की खुली हो तो बात बने !
    बेहतरीन !

    ReplyDelete
  5. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥

    बहुत भावपूर्ण और सत्य कहती कविता ....
    बहुत सुंदर ....!!

    ReplyDelete

  6. एक फटा शेर नज़र है हुज़ूर के ...

    रास्ते चलते छेड़ने पर , याद कर "स्थान" को !
    नौ सौ ग्यारा ध्यान रखना,ज्यादा ही दमदार है !

    ReplyDelete
  7. सतीशजी के रास्‍ते पर चलते हुए एक और शेर झेलिए -

    दोस्‍तों से जान पे सदमें उठाए इस कदर,
    दुश्‍मनों से बेवफाई का गिला जाता रहा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विष्णु जी, सतीश जी,

      हमें तो दोनों शेर अच्छे लगे, अब आपने उकसाया है तो आप भी झेलिये एक पुराना बदायूँनी शेर। परिवार के एक बुज़ुर्ग सुनाते है, आशा है, उन्हीं का होगा:

      बच के चलते हैं सभी खस्ता दरो-दीवार से
      दोस्तों की
      बेवफ़ाई का ग़िला पीरी में क्या

      Delete
  8. सुंदर ||
    शुभकामनायें ||

    ReplyDelete
  9. शब्द हुये धुँधले पर अर्थ नही बदले,
    मन को सम्हालने में शाम बीत जाती है,
    अंधकार छाता है, भेद सा मिटाता है,
    आँख के किनारों से आस बही आती है।

    ReplyDelete
  10. :))

    यह भी झेलें....

    मार तेरे प्यार में , खाई है थाने तक सनम !
    शब्द तुम सुनती नहीं फिर अर्थ समझाएं किसे

    सह सकूं हर मार तेरे यारों की, बाज़ार में !
    चीख चिल्लाने पर मेरे जान तो बच जायेगी

    ReplyDelete
    Replies

    1. बेहद प्रभाव शाली है यह रचना ......
      आपका यह स्वरूप आनंद दायक है , बधाई

      Delete
  11. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥

    वाह.....बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  12. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
    all lines are beautiful and
    ful of deep emotions.

    ReplyDelete
  13. काश कि वक़्त रहते इशारे समझ लिए जाते
    इस जहां के बहुत से फ़साने सुलझ जाते ....

    समझदार को इशारा ....
    परन्तु सामने वाला समझदार है ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. वीरानों में बसर करने की आदत है हमारी तो
      न आते हम अगर हमको इतना वे न उलझाते

      Delete
  14. क्या बात है.. क्या बात है!!
    .
    सीरियस लेखन से चलकर आये हैं ग़ज़लों तलक,
    एक रूमानी सा शायर था छिपा ये भी सही है!

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभी तो इब्दिता है,देखते जाइये जनाब,
      हमने थैली का सिर्फ इक कोना ही देखा है !

      Delete
    2. अजी, आपका बडप्पन है!

      Delete
  15. वाह ! सहज रचना हेतु बधाई । टूटा फूटा कुछ लिख रहा हूँ - फूल के साथ काँटेँ होते है या काँटोँ के साथ फूल है। आदमी खुद से भी गम पाता तो जाता भूल है । लफ्जोँ की टकराहट से अर्थ अलग हैँ होते । अर्थ की टंकार अल्फाज का फूल है ।

    ReplyDelete
  16. सह सकूँ हर ज़ुल्म तेरा यही दिल की चाह है।
    दर्द से चिल्ला पड़ा इतनी शिकायत तो रही है॥

    बहुत खूब गजल कही है .... यह रंग भी असरदार है

    ReplyDelete
  17. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥

    वाह क्या बात है बहुत सुंदर .....अच्छा समां बंधने लगा है जारी रखिये ....

    ReplyDelete
  18. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥

    कालेज के दिन याद आ गए लगता है :)

    ReplyDelete
  19. मस्त अंदाज़ में लिखी ग़ज़ल .
    बढ़िया है अनुराग जी .

    ReplyDelete
  20. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है ..

    वाह ... मज़ा आ गया इसे पढ़ने के बाद ... सर झुकाना ही ठीक है ...
    रास्ते में छेड़ना कभी कभी उल्टा भी पड़ जाता है ...

    ReplyDelete
  21. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
    क्या बात है...यह भी खूब रही.

    ReplyDelete
  22. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥

    यह शेर कमाल का है !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया संतोष जी!

      Delete
  23. shirshak julie movie ki yaad dilaataa haen

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, वह इंटेशनल है।

      Delete
  24. hain hamdard hamare aise bhee,
    afasane kahane aate hain
    dil ke fafole sahalate bhee,
    maze se aag lagate hain.

    Bravo to blog platform, shamelessness touches new horizons daily. Maniacs dance in full frontal nudity and talk about veils!

    ReplyDelete
  25. बडी मेहंत से हिंदी मे वो जुली मूवी का गाना -

    ना कुच तेरे ब्स में जुली, ना कुछ मेरे बस में
    दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाये

    ReplyDelete
    Replies
    1. अली जी, आप देवनागरी लिखने के लिये गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेशन ट्राइ कर सकते हैं, रोमन लिखेंगे और हिन्दी बनती जायेगी। निम्न लिंक पर जाकर:
      http://www.google.com/transliterate/indic/

      Delete
  26. Complete song runs like it. Very meaningful in present scenario:

    dil kyaa kare jab kisii se kisii ko pyaar ho jaae
    jaane kahaan kab kisii ko kisii se pyaar ho jaae
    uunchii uunchii diivaaron sii is duniyaa kii rasmen
    na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men

    jaise parvat pe ghataa jhukatii hai
    jaise saagar se lahar uthatii hai
    aise kisii chahare pe nigaah rukatii hai 2
    ho rok nahiin sakatii nazaron ko duniyaa bhar kii rasmen
    na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men
    dil kyaa kare

    aa main terii yaad men sab ko bhulaa duun
    duniyaa ko terii tasaviir banaa duun
    meraa bas chale to dil chiir ke dikhaa duun
    ho daud rahaa hai saath lahuu ke pyaar tere nas nas men
    na kuchh tere bas men julie na kuchh mere bas men
    dil kyaa kare

    जो दिल के हाथ मज्बूर है उन्हे माफ कर दे सर जी.
    इश्क कमबखत होता ही है ऐसा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. :)
      यह गीत है - फिल्म जूली ही है - गीत दूसरा है :)
      -------------
      भूल गया सब कुछ - याद नहीं अब कुछ
      इक यही बात न भूली - जूली - आय लव यू
      ...
      इतना भी दूर मत जाओ - के पास आना मुश्किल हो
      हो ओ ओ
      इतना भी पास मत आओ - के दूर जाना मुश्किल हो ....
      जाने भी दो - कहा मानो मेरा ...

      Delete
  27. ब्लॉग्गिंग अपने सर पर किस कदर हावी हो गयी है, देखिये 'इतना भी पास मत आओ' ये देखकर जूली के गीत से भी पहले गिरिजेश जी की काफी पहले लिखी लिखी पंक्तियाँ याद आ गयीं| वैसे चक्कर है क्या?

    ReplyDelete
    Replies
    1. गिरिजेश का वह आलेख मुझे भी याद है। सच पूछो तो अच्छा लेखन याद रह ही जाता है।

      Delete
  28. धन्यवाद संगीता जी!

    ReplyDelete
  29. सुंदर ग़ज़ल कही है..

    ReplyDelete
  30. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
    अनुराग जी बड़ी नटखट सी ग़ज़ल कही है ...बहुत अच्छी लगी

    ReplyDelete
  31. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥

    सार्थक चिंतन

    ReplyDelete
  32. मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
    शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥


    kya bat hai .. bahut khoob ... abhar

    ReplyDelete
  33. चाहें भी तो रुख बदल ना पायेंगे
    ये हवा जो अब तुम तक बही है.........

    अनु

    ReplyDelete
  34. बहुत खूब गजल है
    शानदार गजल...:-)

    ReplyDelete
  35. सर झुका लेते हैं जब भी देखते हैं हम तुम्हें।
    रास्ते में छेड़ना तुम ही कहो कितना सही है॥
    - शालीनता की मिसाल !

    ReplyDelete
  36. खुले खिड़की तो रोशन हो सके जो घर अन्धेरा है।
    सियाही कब से इस चौखट में जमती जा रही है॥
    bahut acchi lagi aapki rachna aur blog

    ReplyDelete
  37. मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
    बहुत सही भाई साहब....

    ReplyDelete
  38. वाह! वाह और फिर से वाह! :)

    ReplyDelete
  39. ओह गज़ल!
    शुरुआत ही जबरदस्त है सर जी-
    मार तेरे प्यार की हमने प्रिये हँसकर सही है।
    शब्द मिटते जा रहे पर अर्थ तो फिर भी वही है॥

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।