Tuesday, April 26, 2011

शब्दों के ये अजीबोगरीब टुकड़े

किसी अदीब ने इक बार
इन्हें बताया था मोती
असलियत में तो बस
एक टूटा मुस्तक़बिल हैं

अभिषेक ओझा का "खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २)" पढा तो याद आया कि कुछ मिसरे मेरी झोली में भी हैं। अभिषेक के कथनों जितने खूबसूरत भले न हों, फिर भी उनकी अनुमति से आपके नज़रे इनायत हैं:

1. जो जूते बचाने जाते हैं, वे पैर गंवाकर आते हैं।
2. समय बाँटने के मामले में ईश्वर साम्यवादी है।
3. भविष्य प्रकाशित होगा, दिया जलाया क्या?
4. चले थे दुनिया बदलने, मांग रहे हैं चन्दा।
5. जीवन नहीं बदला है, केवल मेरी दृष्टि बदली है।
6. नाच का अनाड़ी कैसे भी एक टेढा आंगन ढूंढ ही लेता है।
7. खुद करें तो मज़ाक, और करे तो बदतमीज़ी।
8. हर रविवार के साथ एक सोमवार बन्धा है।
9. मैंने जीवन भर अपने आप से बातें की हैं। सच तो सच ही रहेगा, कोई सुने न सुने।
10. मेरे शव में से चाकू वापस निकालकर आपने मुझ पर अहसान तो नहीं किया न?
11. कितने निर्धन हैं वे जिनके पास धन के अलावा कुछ भी नहीं है।
12. जिसने दोषारोपण किया ही नहीं, उसे "फॉरगिव ऐंड फॉरगैट" जैसे बहानों से क्या काम?
13. आत्मकेन्द्रित जगत में दूसरों का सत्य घमंड लगता है और अपना कमीनापन भी खरा सत्य।
14. शहंशाह को भिक्षा कौन देगा?
15. मामूली रियायत मतलब बडी इनायत।
16. खुशी कोई चादर तो है नहीं कि दिल किया तो ओढ ली।
17. सृजन काम न आये तो अनुवाद करके देखो। वह भी बेकार जाये तो विवाद का ब्रह्मास्त्र तो है ही।
18. बोर को पता होता कि वह बोर है तो वह बोर होता ही क्यों?
(बोर वह होता है जो बोर करता है)

... और भी हैं परंतु बोरियत की एक बडी डोज़ एक ही बार में देना भी ठीक नहीं है। आज के लिये बस एक और जिसका अनुवाद नहीं हुआ है:
It's not the food that kills, it's the company.
[क्रमशः]

[डिस्क्लेमर: ऊलजलूल सोच पर मेरा सर्वाधिकार नहीं है। अगर किसी महापुरुष ने मिलती-जुलती (या एकदम यही) बात पहले कही है तो उनसे क्षमाप्रार्थना सहित। हाँ मार्क ट्वेन या गुरुदत्त ने कही हो तो बात और है, वे तो मेरे ही पूर्वजन्म थे।]
[अनुवाद आभार: आचार्य गिरिजेश राव]
=================================
सम्बंधित कड़ियाँ
=================================

* शब्दों के टुकड़े - भाग 1, भाग 2, भाग 3, भाग 4, भाग 5, भाग 6
* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* सत्य के टुकड़े

42 comments:

  1. sarthak & praharak vakya srijan /
    vicharmayi prastuti. sabhar ji .

    ReplyDelete
  2. गुड मोर्निंग !
    अभिषेक ब्लॉग जगत के मोती हैं ...उनके यहाँ होने से भाषा सम्रद्ध महसूस करती है !
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  3. सभी पंक्तियाँ लाजवाब है ...
    कभी प्रहार करती हैं , कभी दार्शनिक बनती है ...

    ReplyDelete
  4. एक से बढ़कर एक ! लाजबाब !

    ReplyDelete
  5. फ़ट्टे चक दित्ते जी।
    एक हमारी तरफ़ से भी नज़र करते हैं -
    शेर कभी मुँह नहीं धोते,....... (सामने वाले को चाय पूछी तो उसने कहा कि अभी मुँह नहीं धोया है, उसे खुश कर दिया जाये)............... वो तो अपनी जीभ से ही चाटकर मुँह साफ़ कर लेते हैं।

    ReplyDelete
  6. एक से एक खूबसूरत मोती है, आपकी झोली से…!!

    कुछ तो ब्लॉगजगत की सीपो के उत्पाद लगते है…।

    "खुद करें तो मज़ाक, और करे तो बदतमीज़ी।"

    "आत्मकेन्द्रित जगत में दूसरों का सत्य घमंड लगता है और अपना कमीनापन भी खरा सत्य लगता है।"

    ला-जवाब!!

    ReplyDelete
  7. कितने निर्धन हैं वे जिनके पास धन के अलावा कुछ भी नहीं है।

    सरजी, वाकई लाजवाब कर दिया........ ऐसी ऐसी लफ्फबाजी अगर मौहल्ले में कर दी तो बैठकी जमी रहेगी - कसम से.

    ReplyDelete
  8. उम्दा साहित्य -क्योंकि साहित्य की आत्मा वक्र मानी गयी है!
    यह तो जार्ज आर्वेल के डबल स्पीक से भी बढ़कर घुमाऊ है

    ReplyDelete
  9. बहुत ही सुन्दर समन्वय

    ReplyDelete
  10. कुछ तो ब्लॉग जगत पर बिलकुल सटीक बैठते है |

    ReplyDelete
  11. आपके इन 'उद्धरणों' को पढ़कर मुझे कल रात देखा सपना याद आया. वह भी अजीब था.
    मैंने उस सपने में एक अजीब परिभाषा गढ़ी....
    सपने में किसी ब्लोगर ने मुझसे पूछा कि 'गूढ़ शब्द' का सही अर्थ कैसे पता किया जाये?'
    मैंने उत्तर दिया — "उस गूढ़ शब्द के पीछे जाकर 'भु' कर दो [मतलब डराओ] तब उस शब्द में से डरकर जो चीज़ बाहर निकले वही उसका वास्तविक अर्थ होगा."

    ReplyDelete
  12. शब्दों के अजीबो गरीब टुकड़े ज़िन्दगी का पाठ हैं इसे दीवार पर लगाना चाहिए ताकि रोज देख कर पढ़ सकें...
    नीरज

    ReplyDelete
  13. आपके द्वारा दिये कुटेशन बातचीत को समृद्ध करने और रोचक बनाने में सहायक होंगे. इसलिये इन्हें पढ़ने में बोर नहीं सराबोर हो जाते हैं. कह डालिए सब के सब.

    ReplyDelete
  14. Chalaymaan jagat men har cheez badalta hai.ye muhavra aaj ka aaina hai...satik ...achchhi lagi..aabhar

    ReplyDelete
  15. "...नाच का अनाड़ी कैसे भी एक टेढा आंगन ढूंढ ही लेता है।..."

    यह तो सेल्फ-प्रूव्ह्ड थ्योरम है!

    ReplyDelete
  16. यह अजीबोगरीब से शब्दों के टुकड़े हैं बड़े सटीक ...और अर्थपूर्ण भी

    ReplyDelete
  17. मुझे तो सारे के सारे बड़े बढ़िया लगे. कम शब्दों में गहरी बात.

    ReplyDelete
  18. बोर को पता होता कि वह बोर है तो वह बोर होता ही क्यों? कहां होता हे... वो ओ दुसरो को करता हे ना बोर.... ओर खुद मजे मे रहता हे, राम राम

    ReplyDelete
  19. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.....

    ReplyDelete
  20. मुझे तो आपके टिप्पणी बॉक्स के ऊपर लिखा ये सबसे ज़्यादा ये पसंद है-

    मौडरेशन की छन्नी से सिर्फ बुरा इरादा छ्नेगा - बाकी सब जस का तस...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  21. पहले मैंने इनकी क्रम संख्या लिखना चालू किया... सोचा था लिखूंगा कौन-कौन से खूब पसंद आये. दुबारा पढ़ा तो लगा जो छुट गए उनके साथ नाइंसाफी सी हो रही है. फिर सोच रहा हूँ बता ही देते हैं :) पहली बार के बाद २, ५, ६, ९, १०, ११, १२, १३ और १८ बहुत पसंद आये.
    [आपके 'टुकड़ों' को देखकर अपना पोस्ट लिखना सफल सा लगने लगा. धन्य हुए.]

    ReplyDelete
  22. सारे ही ज्ञान बढाने के लिए काफी है लेकिन यह बहुत अच्‍छा लगा -
    सृजन काम न आये तो अनुवाद करके देखो। वह भी बेकार जाये तो विवाद का ब्रह्मास्त्र तो है ही।

    ReplyDelete
  23. एक - एक पंक्ति सोचने पर मजबूर करती हुई .....एक अलग सा चिंतन और दृष्टिकोण ......आपका आभार

    ReplyDelete
  24. बहुत खूब...
    सबसे अच्छा डिस्क्लेमर है :)

    ReplyDelete
  25. बहुत बढ़िया और मज़ेदार भी। सबसे ज्यादा मज़ा आया डिस्क्लेमर पढ़।

    ReplyDelete
  26. सोचना तो पड़ ही गया।

    ReplyDelete
  27. अच्छा खज़ाना.. एक मेरी और से भी.
    ग़ालिब का एक शेर है:
    उनके देखे से जो आती है मुंह पे रौनक,
    वे समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
    और इसका होंदी अनुवाद देखिये,उसी बहर में:
    उनके दर्शन से जो आ जाती है मुख पर आभा,
    वो समझते हैं रोगी की दशा उत्तम है!
    गुलज़ार ने भी ओप्नी फिल्मों के संवाद में इस तरह के मुहावरे प्रयोग किये हैं..
    अच्छा लगा सच में!!!

    ReplyDelete
  28. 11. कितने निर्धन हैं वे जिनके पास धन के अलावा कुछ भी नहीं है।
    17 .सृजन काम न आये तो अनुवाद करके देखो। वह भी बेकार जाये तो विवाद का ब्रह्मास्त्र तो है ही।

    यूँ तो सभी बेजोड़ हैं,पर ये दो....लाजवाब !!!!

    ReplyDelete
  29. हर रविवार के साथ एक सोमवार बन्धा है। :(

    ReplyDelete
  30. अरे अनुरागजी! आपने तो जीवन सूत्रों का खजाना दे दिया है!

    ब्‍लॉग से चित्र उतारना मुझे नहीं आता। इसलिए कृपा कर मुझे मेरे ई-मेल पर अपना चित्र भेजिए। मैं एक साप्‍ताहिक में स्‍तम्‍भ लिखता हूँ। उसी में आपके ये जीवन सूत्र देना चाहता हूँ। उम्‍मीद है, आप अनुमति देंगे। हॉं, चित्र जरूर भेजिएगा वर्ना आनन्‍द अधूरा रह जाएगा।

    मजा आ गया। कई जाले झड गए।

    ReplyDelete
  31. Kalmadi visits Antique shop (owned by Ronie, the naughty fellow).

    Kalmadi : I’m looking for something “unique” to be kept in my Drawing………. make others envious…..U know..... (winks).

    Ronie : Ok, Ok Sir, I got it……(assures and goes to Store Room; after a while, returns with “something” beautifully wrapped in a gift pack).

    Ronie : This is the only piece left…………SPECIALLY FOR YOU.
    Kalmadi wanted to see it before parting Rs.50,000/- but Ronie won’t allow fearing leakage of its secrecy/uniqueness……instructs Kalmadi not to open it before reaching home. Finally Kalmadi makes payment and comes home wondering about the content. At home, he opens the pack.

    Kalmadi : What nonsense…….."old dusty leather sleeper and that too a single piece” ?


    (Immediately makes a Call to Ronie who asks him to read the letter attached with it)

    Letter goes this way :-

    “This is a unique sleeper which was hurled at former corrupt CWG Official Kalmadi in the Court complex in New Delhi."

    HA HA HA ! ! !

    ReplyDelete
  32. आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूं।पोस्ट अच्छा लगा। मे रेपोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा। शुभ रात्रि।

    ReplyDelete
  33. अनुराग जी, बहुत अच्छा लगा इसे बोरियत भारी डोज मत कहिए ये कमाल की लाइनें है..बढ़िया प्रस्तुति..बधाई

    ReplyDelete
  34. Dost hai dushman hai
    Rag hai Anuraag hai
    dhoop hai barsaat hai
    moharram ya phaag hai
    sab bulbule hain waqt ke
    koi thoss hai ki jhag hai

    Anurag g aapto kamaal karte hain
    blog ko roj hi maalamaal kate hain

    kaviyon ko masaala dene ke liye kaviyon ki aur se dhanyavaad...

    ReplyDelete
  35. आप बुरादा क्यूँ छानते हैं ..............
    मोटे वाले बुरादे को कहाँ एक्सपोर्ट करते हैं ??????????किस ब्लॉग पर .........
    जोक्स अपार्ट (अरे वाह ये भी हिंदी में लिख गया है )

    कुल मिलाकर अच्छे वाक्यांश ,इस बुध्धू को भी समझ में आये और पसंद भी आये ........

    ReplyDelete
  36. बाद वाला भाग मैंने पहले पढ़ा तब इसे पढने की इच्छा हुई... बहुत ही शानदार.

    ReplyDelete
  37. अजीब-ओ-गरीब नहीं ये तो चिंतनशीलता की गवाही देते हुए शब्द और वाक्य हैं !

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।