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Tuesday, September 16, 2014

शब्दों के टुकड़े - भाग 6

(~ स्वामी अनुरागानन्द सरस्वती
विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। जब ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। कई बार कोई प्रचलित वाक्य इतना खला कि उसका दूसरा पक्ष सामने रखने का मन किया। ऐसे अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं। कुछ वाक्य पहले चार आलेखों में लिख चुका हूँ, कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं। भाग 1; भाग 2; भाग 3; भाग 4; भाग 5;
  • आज की जवानी, कल एक बचपना थी।
  • शक्ति सदा ही कमजोरी है, लेकिन कई बार कमजोरी भी ताकत बन जाती है।
  • स्वप्नों को हक़ीक़त में बदलने का काम भले ही भाड़े पर कराया जाए लेकिन सपने देखना तो खुद को ही सीखना पड़ेगा।
  • जिस भावनाप्रधान देश को हल्की-फुलकी अफवाहें तक गहराई से प्रभावित करके आसानी से बहा ले जाती हों, वहाँ प्रशासनिक सुधार हो भी तो कैसे?
  • यह आवश्यक नहीं है कि बेहतर सदा अच्छा ही हो।
  • भारतीय राजनीति में सही गलत कुछ नहीं होता, बस मेरा-तेरा होता है।
  • अज्ञान कितना उत्तेजक और लोंमहर्षक होता है न!
  • आपकी विश्वसनीयता बस उतनी ही है जितनी आपकी फेसबुक मित्र सूची की।  
  • जनहितार्थ होम करते हाथ न जलते हों, ऐसा नहीं है। लेकिन कई लोग सारा गरम-गरम खाना खुद हड़प लेने की उतावली में भी हाथ जलाते हैं ... 
  • जीवन भर एक ही कक्षा में फेल होने वाले जब हर क्लास को शिक्षा देने लगें तो समझो अच्छे दिन आ चुके हैं।
  • समय से पहले लहर को देख पाते, ऐसी दूरदृष्टि तो सबमें नहीं होती। लेकिन लहर में सिर तक डूबे होने पर भी किसी शुतुरमुर्ग का यह मानना कि सिर सहरा की रेत में धंसा है, दयनीय है।
  • आपके चरित्र पर आपका अधिकार है, छवि पर नहीं ... 
  • आँख खुली हो तो नए निष्कर्ष अवश्य निकलते हैं, वरना - पहले वाले ही काम आ जाते हैं।
  • "भगवान भला करें" कहना आस्था नहीं, सदिच्छा दर्शाता है।
  • सही दिशा में एक कदम गलत दिशा के हज़ार मील से बेहतर है 
  • खुद मिलना तो दूर, जिनसे आपके विचार तक नहीं मिलते, उन्हें दोस्तों की सूची में गिनना फेसबुक पर ही संभव है।
... और अंत में एक हिंglish कथन
पाकिस्तानी सीमा पर घुसपैठ के साथ-साथ गोलियाँ भी चलती रहती हैं जबकि चीनी सैनिक घुसपैठ भले ही रोज़ करते हों गोली कभी बर्बाद नहीं करते क्योंकि चीनी की गोली is just a placebo ...
अनुरागी मन कथा संग्रह :: लेखक: अनुराग शर्मा 

Sunday, March 9, 2014

शब्दों के टुकड़े - भाग 5

(आलेख: अनुराग शर्मा)
विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। जब ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। कई बार कोई प्रचलित वाक्य इतना खला कि उसका दूसरा पक्ष सामने रखने का मन किया। ऐसे अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं। कुछ वाक्य पहले चार आलेखों में लिख चुका हूँ, कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं।

1. जित्ता बड़ा दिल, उत्ता बड़ा बिल
2. किसी फिक्र का ज़िक्र करने वालों को अक्सर उस ज़िक्र की फिक्र करनी पड़ती है।
3. दोस्ती दो दिलों की सहमति से ही हो सकती है, असहयोग के लिए एक ही काफी है।
4. उदारता की एक किरण उदासी की कालिमा हर लेती है।
5. हर किसी का पक्षधर अक्सर किसी का भी पक्षधर नहीं होता, खासकर तब जब वह खुद भी दौड़ में शामिल हो।
6. अच्छी कहानियाँ पात्रों से नहीं, लेखकों से होती हैं। सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ पात्रों या लेखकों से नहीं, पाठकों से होती हैं।
7. सूमो विरोधी का बलपूर्वक सामना करता है लेकिन जूडोका विरोधी की शक्ति से ही काम चलाता है।
8. जो कुछ नहीं करते, वे गज़ब करते हैं।
9. बहरूपिये के मुखौटे के पीछे छिपे चेहरे को न पहचानकर उसे समर्थन देने वाले एक दिन खुद अपनी नज़रों में तो गिरते ही हैं, लेकिन तब तक समाज के बड़े अहित के साझीदार बन चुके होते हैं।
10. दुनिया का आधा कबाड़ा इंसानी गलतियों से हुआ। गलतियाँ सुधारने के अधकचरे, कमअक्ल और स्वार्थी प्रयासों ने बची-खुची उम्मीद का बेड़ा गर्क किया है।
11. तानाशाहों की वैचारिकी उनके हथियारबंद गिरोहों द्वारा मनवा ली जाती है, विचारकों की तानाशाही को तो उनकी अपनी संतति भी घास नहीं डालती।

आज आपके लिये कुछ कथन जिसका अनुवाद मुझसे नहीं हो सका। कृपया अच्छे से हिन्दी अनुवाद सुझायें:
  • You are not frugal until you use coupons at a dollar store
  • Don't act, just act!
  • visibility enables trust, familiarity means comfort
मुकेश निर्मित और अभिनीत "अनुराग"


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सम्बंधित कड़ियाँ
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* शब्दों के टुकड़े - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6
मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* सत्य के टुकड़े - कविता
* खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २) - अभिषेक ओझा
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Sunday, October 14, 2012

शब्दों के टुकड़े - भाग 4

(आलेख व चित्र: अनुराग शर्मा)
विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। जब ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। कई बार कोई प्रचलित वाक्य इतना खला कि उसका दूसरा पक्ष सामने रखने का मन किया। ऐसे अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं। कुछ वाक्य पहले तीन आलेखों में लिख चुका हूँ, कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं।
1. स्वतंत्रता कभी थोपी नहीं जा सकती। थोपते ही वह दासत्व में बदल जाती है।
2. इतिहास अब मिटाया नहीं जा सकता और भविष्य अभी पाया नहीं जा सकता।
3. आज के लोभ को कल का लाभ देखने की फ़ुर्सत कहाँ।
4. भविष्य किसने देखा है? बहुतेरे तो भूत भी नहीं देख पाते।
5. अफ़वाहों की समय सीमा (एक्सपायरी डेट) निर्धारित होनी चाहिये।
6. गिलास आधा खाली है या आधा भरा यह शंका समाप्त करनी है तो उसे पूरा भरना होगा।
7. रिश्ते अक्सर वनवे ट्रैफ़िक की तरह होते हैं। कोई देने के भार से दुखी है कोई लेने के।
8. इस ब्रह्माण्ड में सब कुछ अस्थाई है, हम भी। (सर्वम् क्षणिकम्)
9. कुछ लेख संग्रहणीय होते हैं, पढे तो बाकी भी जाते हैं।
10. पूँजीवाद का सबसे अमानवीय रूप साम्यवाद कहलाता है।

पिछले अंक में अंग्रेज़ी में लिखे दो कथन जिनका हिन्दी अनुवाद निशांत मिश्र के सहयोग से हुआ
11. गर्भधारण का झंझट न हो तो माँ-बाप बनना सहज है।
12. कला कोई मेज़-कुर्सी तो है नहीं जो अपने बूते पर टिक सके।

आज आपके लिये कुछ कथन जिसका अनुवाद मुझसे नहीं हो सका। कृपया अच्छे से हिन्दी अनुवाद सुझायें:

  • I have so many friends that I can't count. Can I count on them?
  • Every outsider is a potential insider from the "other" side!
  • What finish line? Nice guys never cared about rat race.

पिट्सबर्ग का एक विहंगम दृश्य

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* शब्दों के टुकड़े - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6
मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* सत्य के टुकड़े - कविता
* खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २) - अभिषेक ओझा
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Tuesday, June 7, 2011

शब्दों के टुकड़े - भाग 3

विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। मन में ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा चटख/क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं। .

1. शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।
2. कुछ की महानता छप जाती है कुछ की छिपी रह जाती है।
3. दुश्मन का दुश्मन दोस्त कैसे होगा? दुश्मन ख़त्म तो दोस्ती भी ख़त्म!
4. मेरी अपेक्षा के बंधन में गैर क्यों बंधे?
5. बेलगाम खरी-खोटी कहने भर से कोई सत्यवादी नहीं हो जाता, सत्य सुनने का साहस, और सत्य स्वीकारने की समझ भी ज़रूरी है।
6. ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है। ईमानदार तो ईमानदार, बेईमान भी अपने प्रति ईमानदारी चाहते हैं।
7. जो व्यवसाय विश्वास पर टिका हो उसमें किसी का भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।
8. अगर आपको अपने अस्तित्व पर आस्था है तो आप नास्तिक कहाँ हुए?
9. स्वयम् को बनाने और बदलने का अधिकार व्यक्ति का है, छवि को दूसरे बनाते और बदलते हैं।
10. जिसकी जैसी खाज, उसका वैसा इलाज।

आज आपके लिये दो और कथन जिनका अनुवाद नहीं हुआ है। कृपया अच्छा सा हिन्दी अनुवाद सुझायें:

11. I hate being pregnant, I love being a mother/father though.
12. Art can't stand on its own, furniture does.

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सम्बंधित कड़ियाँ
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* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* शब्दों के टुकड़े - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6
* सत्य के टुकड़े
* मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २) - अभिषेक ओझा
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Sunday, May 1, 2011

शब्दों के टुकड़े - भाग 2

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विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। मन में ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा चटख/क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं।

1. दोष देना सीख लिया तो कुछ और क्यों सीखें?
2. छोटी-छोटी दीमकें बडे-बडे पेड गिरा देती हैं।
3. कुछ और होने से बुद्धिमान होना अच्छा।
4. लत सही ठहराने वाले से तो लती बेहतर है।
5. परेशानी प्यार करने से नहीं, जान खाने से होती है।
6. दिशाहीन इच्छाशक्ति बेमतलब ही नहीं हानिप्रद भी हो सकती है।
7. सुनहरा दिल होना काफी नहीं है, सक्षम पाँव और कुशल हाथ भी चाहिये।
8. ज़िम्मेदारी किसकी थी कहने से समस्या हल नहीं होती।
9. जिसे दी उसे समझ ही न आये, ऐसी सलाह बेकार है।
10. दिल का दर्द शब्दों में कहाँ बंधता है?
11. अगर आप मेरी बात का कोई भाग सुन न सके हों तो वह हिस्सा दोहरा दें, ताकि में फिर कह सकूँ।
12. जो बात अनसुनी रह गयी उसका कहना बेकार गया।
13. चिंता छोडो, कर्म करो।
14. समय - कल अच्छा था, आज बेहतर है, कल स्वर्णिम होगा/करेंगे।
15. रुपए भर की कमाई जितना बडा बनायेगी, सैकड़ों की भीख नहीं।
16. सचेत रहो, दुर्भाग्य निर्मम शिकारी है।
17. कर्कश गायन मुझे नापसन्द है भले ही मेरे स्वर में हो।
18. बुद्धिमान साम्य ढूंढते है परंतु अंतर का अपमान नहीं करते।
19. सच्ची निराशा से झूठी आशा बेहतर।
20. हम संसार को अपने अज्ञान की सीमाओं में ही समझते हैं।
21. मुझे दु:ख कुछ छोडने का नहीं, खुद से छूटने का है।

... और अब, पिछली बार का छूटा हुआ अनुवाद:
It's not the food that kills, it's the company.
22. दावत तो झेल लूँ मगर यजमान को कैसे झेलूँ?

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* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* शब्दों के टुकड़े - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6
* मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* सत्य के टुकड़े
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[चित्र अनुराग शर्मा द्वारा:: Photo by Anurag Sharma]
पिट्सबर्ग में ट्यूलिप

Tuesday, April 26, 2011

शब्दों के ये अजीबोगरीब टुकड़े

किसी अदीब ने इक बार
इन्हें बताया था मोती
असलियत में तो बस
एक टूटा मुस्तक़बिल हैं

अभिषेक ओझा का "खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २)" पढा तो याद आया कि कुछ मिसरे मेरी झोली में भी हैं। अभिषेक के कथनों जितने खूबसूरत भले न हों, फिर भी उनकी अनुमति से आपके नज़रे इनायत हैं:

1. जो जूते बचाने जाते हैं, वे पैर गंवाकर आते हैं।
2. समय बाँटने के मामले में ईश्वर साम्यवादी है।
3. भविष्य प्रकाशित होगा, दिया जलाया क्या?
4. चले थे दुनिया बदलने, मांग रहे हैं चन्दा।
5. जीवन नहीं बदला है, केवल मेरी दृष्टि बदली है।
6. नाच का अनाड़ी कैसे भी एक टेढा आंगन ढूंढ ही लेता है।
7. खुद करें तो मज़ाक, और करे तो बदतमीज़ी।
8. हर रविवार के साथ एक सोमवार बन्धा है।
9. मैंने जीवन भर अपने आप से बातें की हैं। सच तो सच ही रहेगा, कोई सुने न सुने।
10. मेरे शव में से चाकू वापस निकालकर आपने मुझ पर अहसान तो नहीं किया न?
11. कितने निर्धन हैं वे जिनके पास धन के अलावा कुछ भी नहीं है।
12. जिसने दोषारोपण किया ही नहीं, उसे "फॉरगिव ऐंड फॉरगैट" जैसे बहानों से क्या काम?
13. आत्मकेन्द्रित जगत में दूसरों का सत्य घमंड लगता है और अपना कमीनापन भी खरा सत्य।
14. शहंशाह को भिक्षा कौन देगा?
15. मामूली रियायत मतलब बडी इनायत।
16. खुशी कोई चादर तो है नहीं कि दिल किया तो ओढ ली।
17. सृजन काम न आये तो अनुवाद करके देखो। वह भी बेकार जाये तो विवाद का ब्रह्मास्त्र तो है ही।
18. बोर को पता होता कि वह बोर है तो वह बोर होता ही क्यों?
(बोर वह होता है जो बोर करता है)

... और भी हैं परंतु बोरियत की एक बडी डोज़ एक ही बार में देना भी ठीक नहीं है। आज के लिये बस एक और जिसका अनुवाद नहीं हुआ है:
It's not the food that kills, it's the company.
[क्रमशः]

[डिस्क्लेमर: ऊलजलूल सोच पर मेरा सर्वाधिकार नहीं है। अगर किसी महापुरुष ने मिलती-जुलती (या एकदम यही) बात पहले कही है तो उनसे क्षमाप्रार्थना सहित। हाँ मार्क ट्वेन या गुरुदत्त ने कही हो तो बात और है, वे तो मेरे ही पूर्वजन्म थे।]
[अनुवाद आभार: आचार्य गिरिजेश राव]
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* शब्दों के टुकड़े - भाग 1, भाग 2, भाग 3, भाग 4, भाग 5, भाग 6
* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* सत्य के टुकड़े