Sunday, October 7, 2012

भारत बोध - कविता

(चित्र, भाव व शब्द: अनुराग शर्मा)

असम धरातल, मरु है विषम ...

इतना ज़्यादा
होकर भी कम

असम धरातल
मरु है विषम

कैसे साथ
निभायेंगे हम

कहीं मिला न
कोई मो सम

कहाँ रहे तुम
कहाँ गये हम

मन हारा और
जीत रहे ग़म

पत्थर आँख न
होती है नम

साँस बची पर
निकला है दम

ज्योतिपुंज न
बने महातम

सर्वम दुःखम
सर्वम क्षणिकम

44 comments:

  1. अज्ञेय के क्षण वाद को चरितार्थ करती कविता !

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  2. सच है ...क्षणभंगुर हर पल ...!!
    सुंदर कविता ॥!!

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  3. chhoti bahar ki kamal ki ghazal......

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  4. शब्द, इतिहास के अध्याय कहते हुये।

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  5. सुंदर चित्र के साथ सुंदर रचना

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  6. सर्वम दुःखम
    सर्वम क्षणिकम
    bahut satik, sarthak rachna

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  7. उत्तम अत्युत्तम
    उत्तम अत्युत्तम!!

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    1. कहीं मिला न कोई मो सम ...

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    2. piche-piche rahte har-dum...
      koi rachna padhne ko anupam...


      pranam.

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    3. क्या बात है,
      बम बोलो बम। :)

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  8. बहुत सुन्दर ...........

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  9. सर्वम दुःखम
    सर्वम क्षणिकम ..

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  10. the people at the peak of the mountain are always alone.

    Lonely or not - is their decision - but alone - always. if hillary wants company - he should not go to the everest, coz he won't find it there.

    the one at the top has the advantage of having a crow's eye view though , of whatever goes on at the plains, and is in a position to correct it from the top ...

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  11. शब्द सँयम
    अर्थ सँचय

    अद्भुत भाव

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  12. अरविन्द जी के टिपण्णी से पूर्णतः सहमत होते हुए एक और बात कहना चाहूँगा
    सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माँ कश्चित् दुखः भाग भवेत
    को चरितार्थ कराती रचना के लिए धन्यवाद्

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  13. Chhoti si sugandhit rachna. 'mahaatam'ka koi vikalp sochiye.

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  14. चित्र,भाव व शब्द: गहरे जज्बात समेटे हुए...बहुत खूब |

    सादर नमन |

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  15. कहीं मिला न
    कोई मो सम

    कभी मिलेगा भी नहीं
    इश्वर ने डुप्लीकेट चीज नहीं बनाई है !
    सभी सुंदर सार्थक ......

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  16. कभी तो मुझे यह 'आत्‍म'वेदना का प्रकटीकरण' लगी और कभी जीवन दर्शन की छाया। या तो बहुत आसान है या बहुत जटिल। मझौली समझवाले मुझ जैसों को उलझा देगी आपकी यह कविता। कम से कम, मैं तो उलझ गया।

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  17. धन्यवाद रविकर जी!

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  18. अद्भुत.... अर्थपूर्ण शब्द संयोजन

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  19. मन हारा और
    जीत रहे ग़म


    साँस बची पर
    निकला है दम



    सर्वम दुःखम
    सर्वम क्षणिकम
    दिल को छू गयी भाव। शायद मेरे लिये लिखे गये हैं
    शुभकामनायें।

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  20. तान छिड़ी कितनी ,,
    सम पे रहे हम

    भंवे चढ़ी कितनी

    रमते रहे हम .

    क्षण वादी दर्शन ,क्षण भर जी लेने मरने का एक नखलिस्तान एक ओएसिस रचती है यह रचना -.

    सर्वम दुःखम
    सर्वम क्षणिकम

    हाँ यह दृश्यमान विश्व परिवर्तन शील है .अभी कुछ है अभी कुछ है .पल में तौला पल में माशा ,क्षण प्रति क्षण जो बदले वही सौन्दर्य जीवन का जगत का .परिवर्तन की शाश्वतता का .बढ़िया अप्रतिम उदाहरण है यह प्रस्तुति .इसमें बिंधा रूपक .

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  21. शब्द कृपणता भाव को उपेक्षित नहीं करती ...

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  22. जीवन के प्रति यह भी एक नज़रिया है.

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  23. कहाँ रहे तुम
    कहाँ गये हम..
    .......... तलास जारी है,
    सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार..........

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  24. @ मो सम कौन ??
    वाकई सच है :)
    बधाई संजय बाऊ जी !

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  25. जीवन का बोध कराती भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  26. असम, विषम होने पर भी सब चलता रहेगा। वरन सब सम हो जाये तो आनन्द कहां!

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  27. सशक्त प्रस्तुति.......!!

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  28. सर्वम दुःखम
    सर्वम क्षणिकम ....

    and when kshanik dissolves, no friends, no number of friends can prevent it from doing so. they can help bear the loss though ...

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  29. isn't the poem edited ? i remember it differntly - at least 2 stanzas seem new ? may be i did not read it properly at that time ?

    please don't publish this

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    1. जी, ऑनलाइन लेखन का यही लाभ है, सम्पादन/भूल सुधार चलता रहता है।

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  30. ji. mujhe doubt ho raha tha. main bhi sampaadan sudhar karti rahti hoon aksar .. :) abhi abhi ka udaaharan to aap dekh hi rahe hain ramayan 21 par :)

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  31. अहो अहम चिन्मात्रं ..

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  32. Pittsburgh, poem, poetry, अनुराग शर्मा जी द्वारा प्रस्तुत रचना अर्थपूर्ण शब्द संचय बोध कराती ,असमय परिस्थति में खुद पर नियंत्रण और समय का भान कराती
    रचना | साथ में ब्लागपर लोकप्रिय प्रविष्टियाँ चार चाँद लगाती !धन्यवाद रचनाकार

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