नवरात्रि के नौ दिन भले ही देवी और श्रीराम के नाम हों, दशहरा तो महर्षि विश्रवा पौलस्त्य और कैकसी के पुत्र महापंडित रावण ने मानो हर ही लिया है। और हो भी क्यों न? इसी दिन तो अपने अंतिम क्षणों में श्रीराम के अनुरोध पर गुरु बनकर रावण ने दशरथ पुत्रों को आदर्श राज्य की शिक्षा दी थी। दैवी धन के संरक्षक और उत्तर दिशा के दिक्पाल कुबेर रावण महाराज के अर्ध-भ्राता थे। कुछ कथाओं के अनुसार सोने की लंका और पुष्पक विमान कुबेर के ही थे परंतु बाद में पिता की आज्ञा से वे इन्हें रावण को देकर उत्तर की ओर चले गये और अल्कापुरी में अपनी नयी राजधानी बनायी।
भारतीय ग्रंथों में रावण जैसे गुरु चरित्र बहुत कम हैं। वीणावादन का उस्ताद माना जाने वाला रावण सुरुचि सम्पन्न सम्राट था। वह षड्दर्शन और वेदत्रयी का ज्ञाता है। जैन विश्वास है कि वह अलवर के रावण पार्श्वनाथ मन्दिर में नित्य पूजा करता था। कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र का राक्षस-ताल उसके भार से बना माना जाता है। कैलाश पर्वत पर पडी क्षैतिज रेखायें रावण द्वारा इस पर्वत को शिव सहित लंका ले जाने के असफल प्रयास के चिह्न हैं। ब्रह्मज्ञान उसके जनेऊ की फांस में बन्धा है। फिर वह राक्षस कैसे हुआ? उसके नारे "वयम रक्षामः" को भारतीय तट रक्षकों ने अपने नारे के रूप में अपनाया है। यह नारा ही राक्षस वंश की विशेषताओं को दर्शाने के लिये काफी है। ध्यान से देखने पर इस नारे में दो बातें नज़र आती हैं - एक तो यह कि राक्षस अपनी रक्षा स्वयम कर सकने का गौरव रखते हैं और दूसरी अंतर्निहित बात यह भी हो सकती है कि राक्षसों को अपनी शक्ति, सम्पन्नता और पराक्रम का इतना दम्भ है कि वे अपने को ही सब कुछ समझते हैं। याद रहे कि राक्षस, दानवों और दैत्यों से अलग हैं।
ऐसा कहा जाता है कि रावण ने काव्य के अतिरिक्त ज्योतिष और संगीत पर ग्रंथ लिखे हैं। रावण की कृतियों में आज "शिव तांडव स्तोत्र" सबसे प्रचलित है। मुझे छन्द का कोई ज्ञान नहीं है फिर भी केवल अवलोकन मात्र से ही आदि शंकराचार्य की कई रचनायें इसी छन्द का पालन करती हुई दिखती हैं। रावण के वयम रक्षामः में ईश्वर की सहायता के बिना अपनी रक्षा स्वयम करने का दम्भ उसके सांख्य-धर्मी होने की ओर भी इशारा करती है। हमारे परनाना के परिवार के सांख्यधर होने के कारण "रावण के खानदानी" होने का मज़ाकिया आक्षेप मुझे अभी भी याद है। सांख्यधर शब्द ही बाद में संखधर, शंखधार और शकधर आदि रूपों में परिवर्तित हुआ। वयम रक्षामः से पहले, कुवेर के शासन में लंका का नारा वयम यक्षामः था जिसमें यक्षों की पूजा-पाठ की प्रवृत्ति का दर्शन होता है जोकि राक्षस जीवन शैली के उलट है।
दूसरी ओर भगवान राम द्वारा लंकेश के विरुद्ध किये जा रहे युद्ध में अपनी विजय के लिये सेतुबंध रामेश्वर में महादेव शिव की स्तुति के समय का यज्ञ व प्राण-प्रतिष्ठा में वेदमर्मज्ञ पंडित रावण को बुलाना और अपने ही विरुद्ध विजय का आशीर्वाद रामचन्द्र जी को देने के लिये रामेश्वरम् आना निःशंक रावण की नियमपरायणता और धार्मिक निष्पक्षता का प्रमाण है।
मथुरा (मधुरा, मधुवन, मधुपुरी) के राजा मधु (मधु-कैटभ वाला) से रावण की बहिन कुम्भिनी का विवाह हुआ था। इसी कुम्भिनी और भाई कुम्भकर्ण के नाम पर दक्षिण के नगर कुम्भाकोणम का नामकरण हुआ माना जाता है। मध्य प्रदेश के मन्दसौर नाम का सम्बन्ध मन्दोदरी से समझा जाता है। यहाँ शहर से बाहर रावण की मूर्ति बनी है और रावण दहन नहीं होता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बिसरख ग्राम (ग्रेटर नॉएडा) रावण के पिता ऋषि विश्रवा से सम्बन्धित समझा जाता है। खरगोन (Khargone) नगर भी खर (खर दूषण वाला खर) का क्षेत्र है। खरगोन से 55 किलोमीटर दूर सिरवेल महादेव मन्दिर की प्रसिद्धि इसलिये है कि यहाँ पर रावण ने अपने दशानन महादेव को अर्पित किये थे। जोधपुर/मंडोर क्षेत्र के कुछ ब्राह्मण (दवे कुल/श्रीमाली समाज) अपने को रावण का वंशज मानते हैं। जोधपुर के अमरनाथ महादेव मन्दिर में रावण की प्राण प्रतिष्ठा का विश्व हिन्दू परिषद द्वारा विरोध एक खबर बना था। पता नहीं चला कि बाद में प्रशासन ने क्या किया। यदि किसी को इस बारे में वर्तमान स्थिति की जानकारी है तो कृपया बताइये। मौरावा के लंकेश्वर महादेव का रावण दशहरे पर भी नहीं मरता है। सिंहासन पर बैठे राजा रावण की यह सात मीटर ऊँची प्रस्तर मूर्ति अब तक 200 से अधिक दशहरे देख चुकी है और इसकी नियमित पूजा-अर्चना होती है। विदिशा के रावणग्राम में भी नियमित रावण-पूजा होती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित प्राचीन धार्मिक तीर्थ बैजनाथ में भी विजया दशमी को रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। कानपुर निवासी तो शायद दशहरे पर शिवाला के दशानन मन्दिर में रावण के दर्शन कर रहे होंगे।
कभी कभी, एक प्रश्न मन में उठता है - श्रीराम ने एक रावण का वध करने पर उस हिंसा का प्रायश्चित भी किया था। हम हर साल रावण मारकर कौन सा तीर मार रहे हैं?
आप सभी को दुर्गापूजा और दशहरे की शुभकामनायें। पाप का नाश हो धर्म का कल्याण हो और हम समाज और संसार को काले सफेद में बाँटने के बजाये उसे समग्र रूप में समझने की चेष्टा करें।
शुभमस्तु!
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(17 अक्टूबर 2010)
दशहरे की शुभकामनायें. "जटाटवी गलज्जल" को याद दिलाने के लिये धन्यवाद. इस लेख के बहाने कई जानकारियां बांटने के लिये आभार..
ReplyDeleteदशहरे के दि रावण के बारे में इतनी जानकारियॉं? इतनी अनूठी जनकारियॉं? रावण को, रावण के प्रचलित अर्थ से परे धकेलकर, 'अरावण' साबित करनेवाली जानकारियॉं
ReplyDelete?
आपकी यह पोस्ट पढकर भला रावण दहन देखने कौन जाए?
नवीन जानकारी से पूर्ण इस आलेख के लिए बधाई...दशहरे की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteरावण के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। प्रतिवर्ष रावण को मारना एक परम्परा बन गयी है, और अक्सर परम्परा निर्वहन के समय विवेक साथ नहीं होता।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी पूर्ण लेख !
ReplyDeleteविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें !
आपको दशहरे की शुभकामनायें।
ReplyDeleteअसत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
ReplyDeleteविजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!
असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
ReplyDeleteविजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!
आज आप एक नये नज़रिये के साथ आये हैं ! भीड से अलग सा ! मुद्दों को हर एंगल से देखनें का फन हर किसी में नहीं होता सो साधुवाद !
ReplyDeleteपर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteछिटपुट रूप से रावण के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ रखा था....परन्तु आज एक जगह ही बहुत सारी विस्तृत जानकारी मिली....शुक्रिया
ReplyDeleteविजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
रावण एक ज्ञानी पुरुष था बस यह सुना था... पर इतनी जानकारी तो नहीं थी ..... आभार... विजयदशमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteकिंवदंती है कि मन्दोदरी मध्यप्रदेश के मन्दसौर शहर की थी। पहले मन्दसौर का नाम दशपुर था। यहाँ शहर से बाहर रावण की मूर्ति बनी है और यहाँ भी रावण दहन नहीं होता है। मध्य प्रदेश का खरगोन शहर भी खर (खर दूषण वाला खर) का क्षेत्र माना जाता है।
ReplyDeleteआपको और परिवार को दशहरे की शुभकामनाएँ।
अतुल जी,
Deleteआभार आपका! मन्दसौर और खरगौन की जानकारी पोस्ट में जोड़ दी है।
विष्णु बैरागी जी से बिलकुल सहमत. रावण के विषय में मुझे भी उतनी ही जानकारी है जितनी कि रामलीलाओं में दर्शाई जाती है. सुन्दर और ज्ञान वर्धक पोस्ट के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleterawan ke kuch anchuwe pehluon ko prakashit krti ek jankari purn post hetu abhaar......
ReplyDeleteमुग्ध भाव से आपका यह आलेख पढ़ा...पर इस विषय पर वह सब कुछ जानने की आकांक्षा है,जो आप जानते हैं...
ReplyDeleteमधु कैटभ के विषय में जितना कुछ आपको ज्ञात है,कृपया मुझे बताइयेगा...आभारी रहूंगी..
दशानन के कुछ क्रत्य भारी पड गये उसकी विद्धता पर
ReplyDeleteदशानन के कुछ क्रत्य भारी पड गये उसकी विद्धता पर
ReplyDeleteअच्छी जानकारी. रावण के चरित्र से एक बड़ी बात सीखने को मिलाती है वो ये कि बहुत ही ज्यादा प्रभावी और विद्वान् व्यक्ति अगर किसी एक मामलें में गलत होता है तो वो ज्यादा खतरनाक होता है. तो किसी व्यक्ति के केवल अच्छे गुणों से ही हमें बहुत ज्यादा प्रभवित नहीं होना चाहिए. ऐसे उदाहरणों से तो खैर ग्रन्थ भरे ही पड़े हैं. रावण ही क्यों और भी तो कई ऐसे हैं.
ReplyDeleteएकदम सही। प्रभावित होने से लेकर व्यक्तिपूजा तक पहुँचना किसी भी समाज के लिये आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। और अगर व्यक्तिपूजा का केन्द्र स्वयं हो जाये? तब तो राम बचाये!
Deleteसुन्दर आलेख ....दुर्गापूजा और दशहरे की शुभकामनायें आपको भी !
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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जानकारियों से भरा आलेख... बचपन के कुछ साल छोड़ मुझे रावण दहन देखना कभी अच्छा नहीं लगा... दो महान योद्धाओं के बीच युद्ध में एक जीतेगा तो एक हारेगा भी... पर जीत के उन्माद में हारने वाले का उपहास-अपमान नहीं होना चाहिये... मृत्यु शय्या पर पड़े रावण के पास आदेश देकर राम ने राजनीति शास्त्र की शिक्षा लेने लक्ष्मण को भेजा था, रावण ने जरूरत पड़ने पर अपने वैद्म की सेवायें भी विरोधी सेना को दी थी, सीता के साथ वह कुछ भी कर सकता था, परंतु उसने अशोक वाटिका में स्त्री सेविकाओं के साथ सम्मानपूर्वक उन्हें रखा... एक समाज के तौर पर रावण-दहन की परंपरा का अस्तित्व में आना, हम सबके बारे में एक बड़ा कमेंट है... और यह कमेंट गर्व करने योग्य तो कतई नहीं है...
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प्रवीण जी - शायद आपकी जानकारी अधूरी है, या आप जानते बूझते कुछ तथ्यों को अनदेखा कर रहे हैं ।
Deleteइसमें कोई दो राय नहीं की रावण अद्वितीय ज्ञानी, योद्धा अदि था । किन्तु इस बात में भी कोई दो राय नहीं की वह एक जघन्य हत्यारा और बलात्कारी भी था । और समाज जो रावण को जलाता है - वह परंपरा "एक योद्धा की दुसरे योद्धा पर जीत" भर को glorify करने के लिए नहीं बनी है । वह एक सांकेतिक प्राकट्य था, हज़ारों लाखों मजबूर लोगों का । जो उस "योद्धा" की क्रूरताओं का शिकार बने , बिना ही उससे " युद्ध" करने की कोई इच्छा रखे - सिर्फ उसकी क्रूरता , हिंसा , उच्चाकांक्षा , और दर्प की भूख को पूरी करने के लिए । and who escaped all that due to this victory of rama...
एक व्यक्ति कितना ही पढ़ा लिखा और गुणी क्यों न हो - उसके सारे गुण तब गौण हो जाते हैं जब वह अपने सहज मानवीय धर्म से नीचे गिर कर अपने से कमजोरों पर अपने दर्प के चलते अत्याचार करता है । फिर वह अत्याचार निरीह पशु पक्षियों पर हो, या नर नारियों पर - अत्याचार अत्याचार ही है । और यह अपराध तब और बड़ा हो जाता है जब करने वाला पढ़ा लिखा हो और जानता हो कि वह क्या कर रहा है । कहते हैं कि व्यक्ति क्या और कैसा है यह उसकी डिग्रीज़ देख कर / उसका उसके श्रेष्ठों के सामने व्यवहार देख कर नहीं तय किया जाता, बल्कि उसके व्यवहार अपने से कमज़ोर लोगों से कैसा है, यह देख कर तय होता है ।
जो उसे glorify करते हैं (बहुत लोग हैं ऐसे), उनसे मैं पूछना चाहूंगी की क्या वे एक nobel पुरस्कार विजेता ज्ञानी साइंटिस्ट का उतना ही महिमामंडन तब भी करते यदि वह उनके परिवार के जनो का हत्यारा होता या उनके अपने परिवार की स्त्रियों का बलात्कारी ? जिस व्यक्ति ने अपनी पुत्रवधू तक को नहीं छोड़ा - सीता को क्या बख्श देता? वह तो उसकी मजबूरी थी , जिसे आप नहीं मानेंगे - क्योंकि आप धार्मिक किताबों में लिखी बातों में से अपने विश्वास pick and choose करते हैं ।
और शारीर्रिक सम्बन्ध स्थापित न करने भर से एक ब्याहता स्त्री का उसकी इच्छा के विरुद्ध बलात अपहरण क्या आपके लिए क्षम्य हो जाता है ? or these "small digresses" should be swept under the carpet seeing his other great achievements so to say ? बलात्कार का शाब्दिक अर्थ है - बलात + कार = बलात / जबरदस्ती किसी के प्रति उसके विरुद्ध किया गया कोई जबरन कार्य । बलात्कार का अर्थ सिर्फ रेप भर नहीं है । यदि उसने सीता के साथ बलात्कार नहीं किया - तो उन अगणित कन्याओं का दर्द mit गया क्या जिनके साथ उसने और उसकी शह पर उसके राक्षस साथियों ने न जाने कितनी क्रूरता की ?
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Delete.
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आदरणीय शिल्पा जी,
मुझे वाकई आपके द्वारा ऊपर दी गयी घटनाओं की जानकारी नहीं है... अनुराग शर्मा जी से आशा है कि उन पर प्रकाश डालेंगे... फिर भी किसी की मृत्यु का उत्सव ???
अच्छा नहीं लगता... :(
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आप दोनों का संवाद बहुत कुछ सोचने को बाध्य करता है। जब हमारे बीच के लोग मामूली से चुनावों के विजय जुलूसों से लेकर दुर्गापूजा और मुहर्रम के धार्मिक जुलूसों तक में उन्माद की अति दिखला सकते हैं तो क्षेत्र की दो सांस्कृतिक विचारधाराओं के टकराव के निर्णायक अंत का उत्सवीकरण क्यों न होता? ज़रूरत तो लकीर पीटना छोड़कर आत्मचिंतन करने की है। आलेख का उद्देश्य इतना ही है कि तमसो मा ज्योतिर्गमय की संस्कृति में "मैं ज्योति तुम तमस" जैसी क्षुद्र विचारधारा को स्थान न मिले। संसार में समर्थ विद्वानों, राजनीतिज्ञों, शासकों की कमी नहीं है, लेकिन समाज के आम नागरिक का वैचारिक उत्थान और पतित-दलित वर्ग की सामाजिक बराबरी आज भी कितनी कठिन दिखती है!
Deleteमिल कर चलें, एक दूसरे से सीखें, ज्योति से ज्योति जगायें! जय हो!
@ आदरणीय प्रवीण जी
Delete@@ मुझे वाकई आपके द्वारा ऊपर दी गयी घटनाओं की जानकारी नहीं है...
जी - अक्सर कई लोगों को यह सब जानकारी नहीं होती ।
@@... फिर भी किसी की मृत्यु का उत्सव ???
अच्छा नहीं लगता... :(
- मृत्यु का उत्सव -सच है - अच्छा तो नहीं लगता ।
किन्तु फिर से सोचा जाए तो उचित न होते हुए भी समझ में आता है , logically ... जैसे हमारे यहाँ लोग कसाब की फांसी की राह देख रहे हैं - ve utsav karenge ya nahi ? (जो सिर्फ एक प्यादा भर है इस आतंकी षडयंत्र की शतरंज का ) । तो रावण तो फिर राजा था उस शतरंज का - तो बात उचित न होते हुए भी understandable है, ----- उन लोगों का उस समय उत्सव मनाना अवश्य क्षम्य हो सकता हैं ----- लेकिन अब हमारा ऐसा करना अजीब अवश्य है ।
@ अनुराग जी
@@ज़रूरत तो लकीर पीटना छोड़कर आत्मचिंतन करने की है। आलेख का उद्देश्य इतना ही है कि तमसो मा ज्योतिर्गमय की संस्कृति में "मैं ज्योति तुम तमस" जैसी क्षुद्र विचारधारा को स्थान न मिले।
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लकीर पीटना ही हमारी स्टाइल बनती जा रही है दुर्भाग्य से । मैं ज्योति तुम तमस जैसी विचारधाराएं ही ज्योतियों को बुझाती हैं । लेकिन दिया जल जाने भर से बात नहीं बनती, लगातार उसकी सफाई और तेल डालते रहने से ही दिया जलता रह सकता है ।
दिक्कत यह है कि जो संस्कृति एक ऊँचाई को छू लेती है, उस संस्कृति के उत्तराधिकारी यह मान लेते हैं कि हाँ अब तो हम सर्वोच्च हैं, हमें निरंतर कर्म की आवश्यकता नहीं रही । और यहीं से उच्चासन से पतन का सिलसिला शुरू हो जाता है । यह सिर्फ संस्कृतियों में ही नहीं - हर क्षेत्र में सच होता दीखता है । क्या किया जाया ? सौ प्रतिशत लोग तो विचारवान और कर्मशील नहीं होते न ?
@@ "मैं ज्योति तुम तमस" जैसी क्षुद्र विचारधारा ...
Deleteyah baat mujhe baar baar sochne par majboor kar rahi hai |
bahut se log aisa hi maante hain n ? ki "main" sadaa sahi hoon, samajhdaar hoon |
aur jo bhi mujhse asahmat hain ve ya to "moorkh" hain, ya "bure" hain :(
आभार । इसके अलावा और भी बहुत सी बातें सुनी हैं रावण के अद्वितीय गुणों के बारे में । पता नहीं कौनसी सच हैं और कौनसी नहीं, किन्तु सुना तो बहुत कुछ है ।
ReplyDeleteआपके इन लेखों में जानकारी के झरने बहते हैं । आपके ज्ञान को प्रणाम ।
विजयादशमी की बहुत बधाईयाँ और शुभकामनायें
@ श्रीराम ने एक रावण का वध करने पर उस हिंसा का प्रायश्चित भी किया था। हम हर साल रावण मारकर कौन सा तीर मार रहे हैं?
ReplyDeleteहम हर साल रावण जलाकर करोडोँ निर्दोष किट पँतगो, किडे मकोडोँ को व्यर्थ ही सजा दे रहे है.
रावण बस प्रतिनायक था, दर्प के कारण् उसने कर्मफल भोगा. इससे विशेष कुछ नहीँ.
बहुत ही रोचक व ज्ञानवर्धक आलेख । मुझे खास जानकारी तो नही पर यह निश्चित है कि रावण प्रकाण्ड विद्वान तपस्वी और वीर योद्धा था । सीता का हरण उसके पापी ,दुष्ट व व्यभिचारी होने का प्रमाण नही है जैसा कि माना जाता है । वास्तव में जैसा कि दो शत्रुओं के बीच होता है ,यह रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने व राम को युद्ध के लिये उकसाने के लिये किया था । कई बार राम से मात खाकर भी पीछे न हटना उसका दम्भ नही वीरता ही थी । वीर या तो जय का या फिर मृत्यु का ही वरण करते हैं । श्री राम भारतीय जनमानस के नायक हैं धीर गंभीर और उदात्त चरित्र के हैं, पुरुषोत्तम हैं । नायक की तुलना में खलनायक को दुष्ट ,पतित और पापी बनाना प्रबन्ध-रचना की परम्परा रही है यह भी कि अन्त और पराजय केवल बुरे लोगों को ही मिलती है । लेकिन मेरे विचार से रावण इसलिये नही मारा गया कि वह पापी था बल्कि इसलिये कि राम उससे अधिक शक्तिशाली थे सैन्य बल में भी और आत्म-बल में भी । युद्ध में एक की पराजय तो होती ही है । रावण को बुराई का प्रतीक मानना हमारी परम्परा बन गया है यह कोई गलत बात नही लेकिन महज परम्परा का आडम्बर नही होना चाहिये । व्यावहारिक तौर पर कम से कम समाज की एक बुराई को मिटाने का संकल्प और क्रियान्वयन होना ही चाहिये रावण-दहन के बहाने ही सही .. लेकिन यही तो नही होता । दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDelete@ मेरे विचार से रावण इसलिये नही मारा गया कि वह पापी था बल्कि इसलिये कि राम उससे अधिक शक्तिशाली थे सैन्य बल में भी और आत्म-बल में भी । युद्ध में एक की पराजय तो होती ही है ।
Delete- गिरिजा जी, आपके विचारों के लिये धन्यवाद। आपकी बात सही लगती है लेकिन "सत्यमेव जयते" में यक़ीन करने वाले मानते हैं कि भौतिक शक्ति और आत्मबल सत्य का साथ नहीं छोड़ते और अंततः (और यह "अंततः" महत्वपूर्ण है) विजय सत्य की ही होती है - नानृतम्! हाँ सारे युद्धों पर नज़र डालकर यह ज़रूर पहचाना जाना चाहिये कि सत्य की हमारी परिभाषा में कितना सत्य बचा है।
रावण से सम्बंधित नयी जानकारियां प्राप्त हुई . दैत्य और राक्षस के अंतर को भी जाना .
ReplyDeleteऔर सबसे बेहतर की दुनिया सिर्फ सफ़ेद या स्याह नहीं है ...दोनों के मिलजुले ढेरों रंग है !
बस एक ग़लती देख लीजिए क्या से क्या कर देती है
ReplyDelete:)
Deleteकई बार एक गलती के पीछे अनेक वर्षों का अन्धकार/अहंकार छिपा होता है।
महाराज दशानन के बारें आपने अत्यंत सारवान जानकारी दी जो लोगों को उसके व्यक्तित्व के बारे में फ़ैले भ्रम को दूर करेगी. भगवान राम के बारे में तो हर हिंदू जन्मत: जानता है पर रावण के बारें में ऐसा नही है. मुझे बचपन से ही रावण के बारे में विशेष उत्सुकता रही अत: उससे संबंधित जो भी जानकारी मिली वो मैने पढी हैं. रावण द्वारा रचित "अरूण संहिता" ज्योतिष का एक अदभुत ग्रंथ है जिसे आजकल थोडे तोड मरोड के साथ "लाल किताब" के रूप मे जाना जाता है.
ReplyDeleteतत्कालीन समय में रावण हर क्षेत्र का प्रकांड विद्वान था बल्कि कई जगह तो यह लिखा पाया गया है कि उस समय में उसके टक्कर का कोई पंडित नही था.
आज रावण दहन और रामलीला होती है पर मैं अपने स्तर पर यह सोचने को विवश हूं कि रावण अगर युद्ध जीत गया होता तो क्या आज रामलीला की जगह रावण लीला नही हो रही होती? वैसे भी अगर हम वर्तमान समाज में प्रचलित रावण की छवि को मान लें तो क्या आज हर गली मोहल्ले से लेकर शीर्ष तक रावण नही बैठे हैं?
आपके आलेख में एक जगह टाईपिंग की गल्ती से खर्गोन लिखा गया है मेरी समझ से उसे यहां खरगोन (Khargone) लिखा जाता है. कृपया देख लें.
रामराम.
आभार ताऊ महाराज! खरगोन की वर्तनी अभी ठीक किये देता हूँ। रावण-लीला की भली कही, वह तो खूब दिखती है, उसके लिये किसी मंच, किसी अभिनेता की ज़रूरत भी नहीं।
Deleteदशानन का अहंकार ही उसे खतम होने का कारन बना नहीं तो विभीषण की मदद के बिना शायद ...........शानदार आलेख बधाई
ReplyDeleteरोचक लेख। अच्छा लगा इसे आज पढ़कर।
ReplyDeleteॐ
ReplyDeleteरावण द्वारा रचित ' जटाटवीगलज्जल ' वीर और रौद्र रास से पूरित स्तुति से भोले शम्भू
भी डोल उठे थे। रावण पर की सारी जानकारियां पढ़ने को मिलीं। इसी तरह लिखते रहें।
विजया दशमी शुभ हो।
स स्नेह ,
- लावण्या