अनुराग शर्मा
सुबह की ओस में आँखें मुझे भिगोने दो
युगों से सूखी रहीं आँसुओं से धोने दो
बहुत थका हूँ मुझे रात भर को सोने दो
हँसी लबों पे बनाये रखी दिखाने को
अभी अकेला हूँ कुछ देर मुझको रोने दो
सफ़र भला था जहाँ तक तुम्हारा साथ रहा
मधुर हैं यादें उन्हीं में मुझे यूँ खोने दो
कँटीली राह रही आसमान तपता हुआ
खुशी के बीज मुझे भी कभी तो बोने दो
रहो सुखी सदा जहाँ भी रहो जैसे रहो
हुआ बुरा जो मेरे साथ उसको होने दो
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-06-2019) को "सांस लेते हुए मुर्दे" (चर्चा अंक- 3360) (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
Deleteनमस्कार !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 8 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 07/06/2019 की बुलेटिन, " क्यों है यह हाल मेरे (प्र)देश में - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह...अति.सुंदर👍
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteपरेशाँ हाल में भी शुभेच्छा न छूटी...
ReplyDeleteबस यही प्यार था.
अच्छी लगी कविता.
वाह क्या बात
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ReplyDeleteकँटीली राह रही आसमान तपता हुआ
खुशी के बीज मुझे भी कभी तो बोने दो
मन की आशा निराशा के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति !
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन द्वंद्वोंं का दूसरा नाम है, इसकी समझ गहरी होने दो..भावपूर्ण सुंदर रचना..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteशेरो के माध्यम से जीवन का द्वन्द .... मन के भाव लिखें हैं अनुराग जी ...
ReplyDeleteअच्छे शेर ...
अति सुंदर लेख
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