Friday, June 7, 2019

कविता: अनुनय

अनुराग शर्मा 

सुबह की ओस में आँखें मुझे भिगोने दो
युगों से सूखी रहीं आँसुओं से धोने दो

कभी उठा तो बिखर जाऊंगा सहर बनकर
बहुत थका हूँ मुझे रात भर को सोने दो

हँसी लबों पे बनाये रखी दिखाने को
अभी अकेला हूँ कुछ देर मुझको रोने दो

सफ़र भला था जहाँ तक तुम्हारा साथ रहा
मधुर हैं यादें उन्हीं में मुझे यूँ खोने दो

कँटीली राह रही आसमान तपता हुआ
खुशी के बीज मुझे भी कभी तो बोने दो

रहो सुखी सदा जहाँ भी रहो जैसे रहो
हुआ बुरा जो मेरे साथ उसको होने दो

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-06-2019) को "सांस लेते हुए मुर्दे" (चर्चा अंक- 3360) (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 8 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 07/06/2019 की बुलेटिन, " क्यों है यह हाल मेरे (प्र)देश में - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. वाह...अति.सुंदर👍

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. परेशाँ हाल में भी शुभेच्छा न छूटी...
    बस यही प्यार था.
    अच्छी लगी कविता.

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  7. कँटीली राह रही आसमान तपता हुआ
    खुशी के बीज मुझे भी कभी तो बोने दो
    मन की आशा निराशा के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति !

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  8. सुन्दर रचना

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  9. जीवन द्वंद्वोंं का दूसरा नाम है, इसकी समझ गहरी होने दो..भावपूर्ण सुंदर रचना..

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  10. बहुत खूबसूरत पंक्तियां

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  11. शेरो के माध्यम से जीवन का द्वन्द .... मन के भाव लिखें हैं अनुराग जी ...
    अच्छे शेर ...

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  12. अति सुंदर लेख

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