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दिसंबर २०१० में भारत आने से पहले मैंने बहुत कुछ सोचा था - भारत में ये करेंगे, उससे मिलेंगे, वहाँ घूमेंगे आदि. जितना सोचा था उतना सब नहीं हो सका.
पुरानी लालफीताशाही, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से फिर एकबारगी सामना हुआ. मगर भारतीय संस्कृति और संस्कार आज भी वैसे ही जीवंत दिखे. एक सभा में जब देर से पहुँचने की क्षमा मांगनी चाही तो सबने प्यार से कहा कि "बाहर से आने वाले को इंतज़ार करना पड़ता तो हमें बुरा लगता."
व्यस्तता के चलते कुछ बड़े लोगों से मुलाक़ात नहीं हो सकी मगर कुछ लोगों से आश्चर्यजनक रूप से अप्रत्याशित मुलाकातें हो गयीं. कुछ अनजान लोगों से मिलने पर वर्षों पुराने संपर्कों का पता लगा. अपने तीस साल पुराने गुरु और उनकी कैंसर विजेता पत्नी के चरण स्पर्श करने का मौक़ा मिला.
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दिल्ली की गर्मजोशी भरी गुलाबी ठण्ड के बाद पिट्सबर्ग की हाड़ कंपाती सर्दी से सामना हुआ तो लगा जैसे स्वप्नलोक से सीधे यथार्थ में वापसी हो गयी हो. वापस आने के एक सप्ताह बाद आज भी मन वहीं अटका हुआ है. लगता है जैसे अमेरिका मेरे वर्तमान जीवन का यथार्थ है और भारत वह स्वप्न जिसे मैं जीना चाहता हूँ
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जिस रात दिल्ली पहुँचा था घने कोहरे के कारण दो फीट आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और जिस शाम पिट्सबर्ग पहुँचा, हिम-तूफ़ान के कारण हवाई अड्डे से घर तक का आधे घंटे का रास्ता तीन घंटे में पूरा हुआ क्योंकि लोग अतिरिक्त सावधानी बरत रहे थे. मगर स्कूल बंदी होने के कारण बच्चों की मौज थी. उन्हें हिम क्रीड़ा का आनंद उठाने का इससे अच्छा अवसर कब मिलेगा?
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बिटिया ने अपने पापा के स्वागत में मिट्टी के नन्हे डाइनासोर बनाकर रखे थे. बहुत सी किताबें साथ लाया हूँ. कुछ खरीदीं और कुछ उपहार में मिलीं. मित्रों और सहकर्मियों के लिए भारत से छोटे-छोटे उपहार लाया और अपने लिए लाया भारत माता का आशीर्वाद.
snow clad hill |
पुरानी लालफीताशाही, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से फिर एकबारगी सामना हुआ. मगर भारतीय संस्कृति और संस्कार आज भी वैसे ही जीवंत दिखे. एक सभा में जब देर से पहुँचने की क्षमा मांगनी चाही तो सबने प्यार से कहा कि "बाहर से आने वाले को इंतज़ार करना पड़ता तो हमें बुरा लगता."
बर्फीली सड़कें |
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२ अंश फहरन्हाईट |
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बर्फ का आनंद उठाते बच्चे |
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मिट्टी के डाइनासोर |
अमेरिका मेरे वर्तमान जीवन का यथार्थ है और भारत वह स्वप्न जिसे मैं जीना चाहता हूँ.......
ReplyDeleteयह हर हिन्दुस्तानी के मन बात है जो देश के बाहर बसा है.....रंग बिरंगे डायनासोर बहुत क्यूट हैं....
भीष्म साहनी जी की कहानी है शायद 'ओ हरामजादे ' , पढ़ी नहीं हो तो पढ़ें
ReplyDeleteआपकी भारत यात्रा सुखद रही,शुभकामनाएं! भारत आपका पहला प्यार जो है। आपका यथार्थ भी शानदार है। मन-लुभावन चित्र!!
ReplyDelete.....ओह तो मतलब हम बड़े लोगों में स्वयं को मान ही लें !
ReplyDelete:-)
....समझ सकता हूँ कि भारत आने और जाने में आपके क्या एहसास रहे होंगे ! रंग बिरंगे डायनासोर तो इतने डरावने भी नहीं लग रहे!
कहानी पढी नीरज. धन्यवाद नहीं कह सकता हूँ.
ReplyDeleteइतने दिन विदेश में रहने के बाद भी मातृभूमि के प्रति आपलोगों के लगाव के बारे में सुनना पढना अच्छा लगता है .. अच्छी पोस्ट !!
ReplyDeleteअपने देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाये तो बल्ले ही बल्ले है..
ReplyDeleteसुआगत है शिरीमान:))
ReplyDeleteयथार्थ और स्वप्न के बीच झूलते प्रवासियों की व्यथा एक जैसी ही होती है ...!
ReplyDeleteऐसा ही है जी हमारा भारत देश।
ReplyDeleteजब हम अपनों से दूर होते है तो उस पर पहले से ज्यादा प्यार आता है वो कहते है ना दूर रहने से प्यार पढ़ता है फिर देश भी तो अपना है |
ReplyDeleteमिट्टी के डाइनासोर तो वाकई बड़े प्यारे है |
बहुत बढ़िया तस्वीरें। वाक़ई दिल्ली के बाद पिट्सबर्ग की फौलादी सर्दी चित्रों के बिना महसूस नहीं होती।
ReplyDeleteआपकी दिल्ली यात्रा यानी भारतयात्रा भी हो गई और हम पता नहीं कहाँ गाफ़िल थे:)
ACHHA TO MAYKE AAKAR CHALE BHI GAYE.....
ReplyDeletePRANAM.
उम्मीद थी कि आपके भारत प्रवास के दौरान आपसे फिर सम्पर्क होगा। चलिए। आपकी यात्रा अच्छी रही और आप सकुशल घर पहुँच गए। अपना ध्यान रखिएगा।
ReplyDeleteजनाब आप छोटों से भी नहीं मिले ...
ReplyDelete६ मार्च का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं तो. तब अपने पाँव भी दिल्ली में होंगे !
ReplyDeleteसब जगहों के और सब लोगों के अपने—अपने यथार्थ हैं बस कंधा बचा कर चलना होता है :)
ReplyDeleteआपका सपना साकार हो.
ReplyDeleteसंस्कृति और संस्कार गहरे बैठते है, जाते जाते समय लगेगा।
ReplyDeleteआपसे हुई छोटी सी मुलाकात हमेशा याद रहेगी .
ReplyDelete@मगर भारतीय संस्कृति और संस्कार आज भी वैसे ही जीवंत दिखे...
ReplyDeleteबस yahee तो भारतीयों की ताकत है.
कुछ तो ऎसा खास हे भारत मे जो हम बार बार खींचे चले जाते हे, ओर सब कुछ अन्देखा कर के एक शांति सी आत्मा को मिलती हे...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा,
भारत की गर्मजोशी के बाद पिट्सबर्गकी बर्फबारी का कॉनट्रास्ट भी मज़ेदार रहा! इस वतन में कुछ कशिश है जो खींचती है, बुलाती है हमेशा!!
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDelete-------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
भारत भारत ही है...इसके मोह पाश से बचना असंभव है...अब अमेरिका प्रवास की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनीरज
तीन बार बिना टिप्पणी दर्ज कराये लौट गया ! घर छूटने का रंज मुझे बहुत हांट करता है ! आपके बच्चे वहां थे , संभवतः उनके अनुराग में गांव से वापस जाने का अफ़सोस शिद्दत से ना भी हुआ हो ! पर रोजी रोटी और भविष्य के चक्रव्यूह में फंसे देस परदेस को भी यथार्थ के तौर पर ही स्वीकारना होगा !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
अली जी आपने रोजी रोटी और भविष्य के चक्रव्यूह में फंसे मेरे जैसे अनेकों खानाबदोशों की भावनाओं को शब्द दे दिए.
ReplyDeleteअरे, भारत आकर लौट भी गए!मुम्बई का चक्कर नहीं लगा? जहाँ भी रहें वहीं घर है,खुशी भी वहीँ है.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सूखे में बैठे बर्फ से आवृत्त दृश्य बड़े रोमांचक लगते हैं क्योंकि हम याद नहीं रख पाते कि यह बर्फ कितनी ठंडी होगी.....
ReplyDeleteअपना देश,अपनी माटी और अपनी भाषा तो बस अपनी ही होती है...
आपकी यात्रा ki एक उपलब्धि तो हमारी भी रही .....
ReplyDelete.
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आपसे मुलाकात ....
Welcome back...
इधर की जिन्दगी और उधर की - लगता है दोनों में रस है!
ReplyDeleteइन्द्रियाँ ग्रहण करने वाली होनी चाहियें।
बहुत बढ़िया पोस्ट।
ये देश कभी नहीं बदलेगा ..और लोग भी ..
ReplyDeleteप्यारी पोस्ट!
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