Sunday, January 23, 2011

यथार्थ में वापसी

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snow clad hill
दिसंबर २०१० में भारत आने से पहले मैंने बहुत कुछ सोचा था - भारत में ये करेंगे, उससे मिलेंगे, वहाँ घूमेंगे आदि. जितना सोचा था उतना सब नहीं हो सका.

पुरानी लालफीताशाही, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से फिर एकबारगी सामना हुआ. मगर भारतीय संस्कृति और संस्कार आज भी वैसे ही जीवंत दिखे. एक सभा में जब देर से पहुँचने की क्षमा मांगनी चाही तो सबने प्यार से कहा कि "बाहर से आने वाले को इंतज़ार करना पड़ता तो हमें बुरा लगता."


बर्फीली सड़कें
व्यस्तता के चलते कुछ बड़े लोगों से मुलाक़ात नहीं हो सकी मगर कुछ लोगों से आश्चर्यजनक रूप से अप्रत्याशित मुलाकातें हो गयीं. कुछ अनजान लोगों से मिलने पर वर्षों पुराने संपर्कों का पता लगा. अपने तीस साल पुराने गुरु और उनकी कैंसर विजेता पत्नी के चरण स्पर्श करने का मौक़ा मिला.
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२ अंश फहरन्हाईट
दिल्ली की गर्मजोशी भरी गुलाबी ठण्ड के बाद पिट्सबर्ग की हाड़ कंपाती सर्दी से सामना हुआ तो लगा जैसे स्वप्नलोक से सीधे यथार्थ में वापसी हो गयी हो. वापस आने के एक सप्ताह बाद आज भी मन वहीं अटका हुआ है. लगता है जैसे अमेरिका मेरे वर्तमान जीवन का यथार्थ है और भारत वह स्वप्न जिसे मैं जीना चाहता हूँ
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बर्फ का आनंद उठाते बच्चे
जिस रात दिल्ली पहुँचा था घने कोहरे के कारण दो फीट आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और जिस शाम पिट्सबर्ग पहुँचा, हिम-तूफ़ान के कारण हवाई अड्डे से घर तक का आधे घंटे का रास्ता तीन घंटे में पूरा हुआ क्योंकि लोग अतिरिक्त सावधानी बरत रहे थे. मगर स्कूल बंदी होने के कारण बच्चों की मौज थी. उन्हें हिम क्रीड़ा का आनंद उठाने का इससे अच्छा अवसर कब मिलेगा?
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मिट्टी के डाइनासोर
बिटिया ने अपने पापा के स्वागत में मिट्टी के नन्हे डाइनासोर बनाकर रखे थे. बहुत सी किताबें साथ लाया हूँ. कुछ खरीदीं और कुछ उपहार में मिलीं. मित्रों और सहकर्मियों के लिए भारत से छोटे-छोटे उपहार लाया और अपने लिए लाया भारत माता का आशीर्वाद.

33 comments:

  1. अमेरिका मेरे वर्तमान जीवन का यथार्थ है और भारत वह स्वप्न जिसे मैं जीना चाहता हूँ.......

    यह हर हिन्दुस्तानी के मन बात है जो देश के बाहर बसा है.....रंग बिरंगे डायनासोर बहुत क्यूट हैं....

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  2. भीष्म साहनी जी की कहानी है शायद 'ओ हरामजादे ' , पढ़ी नहीं हो तो पढ़ें

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  3. आपकी भारत यात्रा सुखद रही,शुभकामनाएं! भारत आपका पहला प्यार जो है। आपका यथार्थ भी शानदार है। मन-लुभावन चित्र!!

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  4. .....ओह तो मतलब हम बड़े लोगों में स्वयं को मान ही लें !
    :-)


    ....समझ सकता हूँ कि भारत आने और जाने में आपके क्या एहसास रहे होंगे ! रंग बिरंगे डायनासोर तो इतने डरावने भी नहीं लग रहे!

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  5. कहानी पढी नीरज. धन्यवाद नहीं कह सकता हूँ.

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  6. इतने दिन विदेश में रहने के बाद भी मातृभूमि के प्रति आपलोगों के लगाव के बारे में सुनना पढना अच्‍छा लगता है .. अच्‍छी पोस्‍ट !!

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  7. अपने देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाये तो बल्ले ही बल्ले है..

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  8. यथार्थ और स्वप्न के बीच झूलते प्रवासियों की व्यथा एक जैसी ही होती है ...!

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  9. ऐसा ही है जी हमारा भारत देश।

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  10. जब हम अपनों से दूर होते है तो उस पर पहले से ज्यादा प्यार आता है वो कहते है ना दूर रहने से प्यार पढ़ता है फिर देश भी तो अपना है |
    मिट्टी के डाइनासोर तो वाकई बड़े प्यारे है |

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  11. बहुत बढ़िया तस्वीरें। वाक़ई दिल्ली के बाद पिट्सबर्ग की फौलादी सर्दी चित्रों के बिना महसूस नहीं होती।
    आपकी दिल्ली यात्रा यानी भारतयात्रा भी हो गई और हम पता नहीं कहाँ गाफ़िल थे:)

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  12. ACHHA TO MAYKE AAKAR CHALE BHI GAYE.....

    PRANAM.

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  13. उम्‍मीद थी कि आपके भारत प्रवास के दौरान आपसे फिर सम्‍पर्क होगा। चलिए। आपकी यात्रा अच्‍छी रही और आप सकुशल घर पहुँच गए। अपना ध्‍यान रखिएगा।

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  14. जनाब आप छोटों से भी नहीं मिले ...

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  15. ६ मार्च का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं तो. तब अपने पाँव भी दिल्ली में होंगे !

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  16. सब जगहों के और सब लोगों के अपने—अपने यथार्थ हैं बस कंधा बचा कर चलना होता है :)

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  17. आपका सपना साकार हो.

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  18. संस्कृति और संस्कार गहरे बैठते है, जाते जाते समय लगेगा।

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  19. आपसे हुई छोटी सी मुलाकात हमेशा याद रहेगी .

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  20. @मगर भारतीय संस्कृति और संस्कार आज भी वैसे ही जीवंत दिखे...
    बस yahee तो भारतीयों की ताकत है.

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  21. कुछ तो ऎसा खास हे भारत मे जो हम बार बार खींचे चले जाते हे, ओर सब कुछ अन्देखा कर के एक शांति सी आत्मा को मिलती हे...
    बहुत सुंदर लगा,

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  22. भारत की गर्मजोशी के बाद पिट्सबर्गकी बर्फबारी का कॉनट्रास्ट भी मज़ेदार रहा! इस वतन में कुछ कशिश है जो खींचती है, बुलाती है हमेशा!!

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  23. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  24. भारत भारत ही है...इसके मोह पाश से बचना असंभव है...अब अमेरिका प्रवास की शुभकामनाएं...
    नीरज

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  25. तीन बार बिना टिप्पणी दर्ज कराये लौट गया ! घर छूटने का रंज मुझे बहुत हांट करता है ! आपके बच्चे वहां थे , संभवतः उनके अनुराग में गांव से वापस जाने का अफ़सोस शिद्दत से ना भी हुआ हो ! पर रोजी रोटी और भविष्य के चक्रव्यूह में फंसे देस परदेस को भी यथार्थ के तौर पर ही स्वीकारना होगा !
    शुभकामनायें !

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  26. अली जी आपने रोजी रोटी और भविष्य के चक्रव्यूह में फंसे मेरे जैसे अनेकों खानाबदोशों की भावनाओं को शब्द दे दिए.

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  27. अरे, भारत आकर लौट भी गए!मुम्बई का चक्कर नहीं लगा? जहाँ भी रहें वहीं घर है,खुशी भी वहीँ है.
    घुघूती बासूती

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  28. सूखे में बैठे बर्फ से आवृत्त दृश्य बड़े रोमांचक लगते हैं क्योंकि हम याद नहीं रख पाते कि यह बर्फ कितनी ठंडी होगी.....

    अपना देश,अपनी माटी और अपनी भाषा तो बस अपनी ही होती है...

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  29. आपकी यात्रा ki एक उपलब्धि तो हमारी भी रही .....
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    आपसे मुलाकात ....
    Welcome back...

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  30. इधर की जिन्दगी और उधर की - लगता है दोनों में रस है!
    इन्द्रियाँ ग्रहण करने वाली होनी चाहियें।
    बहुत बढ़िया पोस्ट।

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  31. ये देश कभी नहीं बदलेगा ..और लोग भी ..

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।