(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
सदा खिलाया औरों को
खुद खाना सीखो दादी माँ
सबको देते उम्र कटी
अब पाना सीखो दादी माँ
थक जाती हो जल्दी से
अब थोड़ा सा आराम करो
चुस्ती बहुत दिखाई अब
सुस्ताना सीखो दादी माँ
रूठे सभी मनाये तुमने
रोते सभी हँसाये तुमने
मन की बात रखी मन में
बतलाना सीखो दादी माँ
दिन छोटा पर काम बहुत
खुद करने से कैसे होगा
पहले कर लेती थीं अब
करवाना सीखो दादी माँ
हम बच्चे हैं सभी तुम्हारे
जो चाहोगी वही करेंगे
मानी सदा हमारी अब
मनवाना सीखो दादी माँ
वाह
ReplyDeleteक्या खूब!
ReplyDeleteचार महीने पहले लिखी होती तो माँ को पढ़कर सुनाती... :(
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/03/2019 की बुलेटिन, " सांसद का चुनाव और जेड प्लस सुरक्षा - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमैं अपने लिए ले रही 😂
ReplyDeleteवाह ! दादी के मन को भाए ऐसी प्यारी बात..वह तो सुनकर ही कुर्बान जाएगी और पहले से ज्यादा काम करेगी..
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब रचना है ... दादी माँ जो करे वहिकम है ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सरल शब्दों बड़ी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteThanks for finally writing about >"दादी माँ कुछ बदलो तुम भी" <Liked it!
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