सपना एक क्षणिक पागलपन है जबकि पागलपन एक लंबा सपना है.
~आर्थर स्कोपेन्हौर (१७८८-१८६०)
आइये मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1]; खंड [2]; खंड [3]; खंड [4]; खंड [5]; खंड [6]
इस शृंखला को मैं जितना आगे बढ़ रहा हूँ, आपकी रोचक टिप्पणियों और जानकारी से लिखने का मज़ा बढ़ता जा रहा है.
स्वप्न में, देजा व्यू में बल्कि हमारे दिमाग में समय उस तरह एक रेखा में नहीं चलता है जैसे हम उसे मानते आये हैं. हाथ से नाक छूने के पिछले एक उदाहरण (संवेदी देरी) में और "ब्रेन टाइम" आलेख में हमने देखा कि काल की रैखिक गति की परिकल्पना का काल बीत चुका है. इसके अलावा दीवार की खिड़की में शीशा ढूंढना या चोरों की प्रकृति के बारे में विचार जैसे कार्यों में कोई इन्द्रियारोपित सीमाएं भी नहीं हैं इसलिए वे सारे कार्य एक अल्पांश में एक साथ प्रसंस्कृत हो सकते हैं. इसी रोशनी में, पिछली बार के सपने के बारे में आपका अंदाज़ सही है. यह सपना दरवाज़े पर क़दमों की आहट से शुरू हुआ और दरवाजा खुलने के साथ ख़त्म हो गया. कुल समय दो या तीन पल.
स्वप्न और सृजनशीलता
पिछली कड़ियों में गिरिजेश राव ने चुटकी ली थी कि सपना देखने का सम्बन्ध कल्पनाशीलता से है. तो उनके बहाने आज का रहस्योद्घाटन - गोरा सपना भैस बराबर. मतलब यह कि सपने गाय भैंस और अन्य (स्तनधारी) प्राणियों को भी वैसे ही आते हैं जैसे हम मनुष्यों को. अब जरा बताइये कि बुद्धू घोसी की भैंस कितनी शायरी करती है या नत्थू कुम्हार का गधा अब तक कितने घोडे पेंट कर चुका है? मतलब यह कि सपने न देखने का (या भूल जाने का) कल्पनाशीलता पर बुरा असर नहीं पडता है. स्वप्न के अनेकों सिद्धांतों में से एक के अनुसार स्वप्न (देखकर) भूल जाना आपके दिमाग (और कल्पनाशीलता) को दुरुस्त रखता है.
"लाल लकड़ी के चालीस लट्ठे" नामक त्रिविमीय कलाकृति का चित्र अनुराग शर्मा द्वारा खींचा (और पलटा) गया [Forty redwood logs - photograph taken and put upside down by Anurag Sharma]
[क्रमशः]
back after a long time ..please continue it without breaks now ....
ReplyDeleteहम भी भूल जाते हैं देखकर..मतलब दिमाग दुरुस्त ही है अब तक! :)
ReplyDeletenice
ReplyDeleteहां अगर हम नही भूले तो शायद पागलपन की हद तक पहुंच जायें?
ReplyDeleteरामराम.
आज मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ ।
ReplyDeleteसोना कितना जरुरी है यह ज्ञात हुआ ।
क्योकि सोते समय ही सपने दीखते है ।
और सपने आगे बड़ने की प्रेरणा देते है ।
इसलिए
सोइए खूब सोइए
सपने देखिये
शान्ति के
समृद्धि के
खुशहाली के
लेकिन
सपने हकीक़त मे
सपने ही रहते है
सयाने कहते है
सपने सपने होते है
रोचक!
ReplyDeleteसपने भूलने के बारे में जान कर राहत हुआ.
हम भी आधे से ज्यादा सपने तो भुल ही जाते है, जो याद रहे वो सोच मै डालते है
ReplyDeleteयदि सपना क्षणिक पागलपन है तो यह अच्छा ही है कि हम उसे जल्द भूल जाएं।
ReplyDeleteबहुत दिन बाद ये चर्चा चलाई आपने। रोचक है। आगे भी इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही बढियां और शिक्षाप्रद शृंखला शुरु की है. दिमाग को ज़ोर लगाना पडता है!
ReplyDeleteमैं तो सोने जा रहा हूं. सपना देखने के लिये :)
ReplyDeleteसादर वन्दे!
ReplyDeleteवैसे सोना व्यक्ति की अल्प मृत्यु है जिसमे कभी कभी उसे खुद का अस्तित्व स्वप्न रूपी आईने में दिखाई दे जाता है .
रत्नेश त्रिपाठी
ये तो अच्छा हुवा जो जाना की सपने याद न रहना कोई बीमारी नही ...
ReplyDeleteअच्छी श्रंखला चल रही है ...
कल्पना पर स्वप्न का आरोपण ।
ReplyDeleteकल्पना या स्वप्न मे बहुत कम दूरी है ।
ReplyDeleteदेर से आए और आते ही चित्र पर नज़र पड़ी । पूछने ही वाले थे - असली है(वास्तविक दुनिया) या डिजिटल (आभासी/स्वप्न ? दुनिया) कि नीचे आप के नोट पर दृष्टि पड़ गई। डाँट खाने से बच गए :)
ReplyDeleteउल्टा (मतलब सीधा) कर के देख लिए हैं।
सीधा बनाने वाले से उल्टा करने वाले ने अधिक प्रभाव उत्पन्न कर दिया है। ..तो इसे कहते हैं कल्पनाशीलता।
एक अनुरोध है - मुक्तिबोध का 'ब्रह्मराक्षस' और 'अन्धेरे में' पढ़े हैं क्या? मुझे इन लम्बी कविताओं की फ्ंतासी में स्वप्नलोक का कमाल दिखता है। लोग कहते हैं कि मुक्तिबोध सीज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त थे। फंतासी, सपने, सीज़ोफ्रेनिया... इन सबका आपस में सम्बन्ध है क्या?
गिरिजेश भैय्या, आप तो जानते ही हैं - सब माया है. 'ब्रह्मराक्षस' पढ़े भी हैं (गिरिजेश और मुक्तिबोध दोनों के) और देखे भी हैं. अब आपने बताया तो मुक्तिबोध की 'अन्धेरे में' भी पढ़ लेंगे. क्षमा करें, साहित्य का ज्ञान/परिचय कम ही रहा था अपना. अब अपनी गलती सुधार रहे हैं.
ReplyDeleteरोचक जानकारी,रोचक श्रृंखला...
ReplyDeleteजारी रखें...
विस्मण तो मनुष्य को ईश्वर की सबसे बडी देन है। यह नहीं होती तो आदमी अकलमन्द बाद में होता, पगलाता पहले।
ReplyDeleteकई कडियाँ पढ नही पाई क्षमा चाहती हूँ अब एक ही बार सब पढूँगी फुरसत मे। शुभकामनायें
ReplyDeleteAb agli kadi ka intzaar hai.
ReplyDeleteकुछ सपने कहाँ भूलते हैं... बचपन में अक्सर एक सपना आता था कि कपडे गायब हैं... जूता नहीं है पैर में. और हम क्लास में बैठे हुए हैं! या फिर स्कूल के मैदान में.
ReplyDeleteये सपना कुछ और दोस्तों ने बताया कि उन्हें भी आता था. परीक्षा में लेट हो जाना भी एक ऐसा ही सपना है. अभी भी आ जाता है कभी-कभी.
मुझे तो सपने खूब आते हैं और प्यारे-प्यारे, कुछ ही याद रहते हैं.
ReplyDelete_________________________
'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!
सपने है सपने कब हुये अपने नीद खुली और टूट गये ।तथा जो सपने सिर काटे कोई /बिन जागे न दूर दुख होई । स्वप्न के वारे मे बहुत कुछ लिखा जा चुका है अब तो चिकित्सक स्वप्न के आधार पर बीमीरी का इलाज करने की तयारी मे है ।अच्छा आलेख
ReplyDelete...बेहद रोचक विषय है... जानकारी भी प्रभावशाली है!!!
ReplyDeleteरोचक
ReplyDeleteइस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ आज ही पढीं. इससे एक लाभ यह हुआ कि तारतम्य बना रहा. रोचक श्रृंखला है.फ्रायड ने सपनों को दमित काम इच्छाओं से जोड़ा है.सपनें में सांप देखना अतृप्त काम वासना का परिचायक बताया गया है.ऐसे स्वप्न किशोर वय में प्राय: आया करते हैं.
ReplyDeleteरोचक रोचक बातें 😍
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