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अलार्म से पहले उठना - मेरा अवलोकन
प्रतिदिन एक ही समय पर उठने की बात और है. मगर हर दिन के अलग-अलग अलार्म से कुछ क्षण पहले उठने का अजूबा? आज सुबह मेरे उठने के पल भर बाद मेरे सेलफोन का छह बजे का अलार्म बजने लगा. मैंने तुरंत उसे बंद किया और देखा कि फ़ोन में छह बजकर दो मिनट हो चुके थे. मतलब यह कि अलार्म बजने से उसके बंद होने तक 2 मिनट से अधिक (और 3 से कम) गुज़र चुके थे जो मेरे अंदाज़े के एक पल से कहीं अधिक है. स्पष्ट है कि मैं अलार्म के दो मिनट तक बजते रहने के बाद उठा था मगर मेरे दिमाग को या तो इसका कतई भान नहीं था या फिर सोने और जागृति के बीच के पल में ऐन्द्रिक (श्रवण) अनुभूति ग्रहण करने में कोई रुकावट आई थी. और मैं इसी भ्रम में जीता रहा हूँ कि अलार्म मेरे जागने के बाद बजता है. पुरानी अनालॉग टाइमपीस घड़ी में यह संवेदी देरी पहचानना आसान नहीं है खासकर जब आप उठकर जल्दी से अपनी रेल, बस या जहाज़ पकड़ने की फ़िक्र में हों. मगर आजकल डिजिटल घड़ियों ने यह काम आसान कर दिया है. समीर जी और मुसाफिर भाई, अगली बार बारीकी से समय ज़रूर चेक करिये.
एक किस्सा
आधी रात में कुछ खड़खड़ होती है और आँख खुल जाती है. देखता हूँ कि बैठक में पड़े सोफे पर सो रहा हूँ. हल्का सा आश्चर्य भी होता है, फिर याद आता है कि शाम को ज़्यादा थक गया था. सामने की दीवार पर बहुत बड़ी (लगभग 5x12 वर्ग फुट) आयताकार खिड़की है. यहाँ आमतौर पर खिडकियों, दरवाजों के बाहर लोहे की सलाख या लकड़ी की किवाड़ आदि नहीं होते हैं. खिड़की में से चांदनी छनकर अन्दर आ रही है. आसमान बहुत साफ़ है. तारे झिलमिला रहे हैं और चौदहवीं का चांद बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा है. रात में भी खिड़की इतनी साफ़ है कि मुझे लगता है मानो उसमें शीशा हो ही नहीं. मैं ध्यान से देखता हूँ तो पाता हूँ कि शीशा सचमुच नहीं है. मतलब यह कि खिड़की के नाम पर बस दीवार में एक बड़ा सा खाली छिद्र है.
अब मुझे खड़खड़ की उस आवाज़ की फ़िक्र होती है जिसकी वजह से मेरी आँख खुली थी. मैं साँस रोककर सुनता हूँ, कुछ नहीं है, मुझे पुलिस अधिकारी फूफाजी की बात याद आती है कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली बातों से उलट असली ज़िन्दगी में चोरी-चकारी जैसे व्यवसाय को अपनाने वाले लोग काफी काहिल और लालची किस्म के लोग होते हैं. यदि उन्हें ज़मीन पर ही कुछ चुराने को मिल जाए तो वे एक मंजिल भी नहीं चढ़ते. अगर खिड़की खुली मिल जाए तो वे ताला तोड़ने की ज़हमत नहीं करते.
उनकी बात याद आते ही मुझे इस तथ्य का संतोष होता है कि मेरा अपार्टमेन्ट पाँचवीं मंजिल पर है. फिर भी ऐसा क्यों लगता है जैसे कि सोफे के पीछे दो क़दमों की आवाज़ आयी थी? मैं फिर से सोचता हूँ, तब याद आता है कि पाँचवीं मंजिल पर तो पिछ्ला अपार्टमेन्ट था, यह वाला तो ग्राउंड फ्लोर पर ही है. मुझे अपनी इस बेवकूफी पर ताज्जुब होता है. अब मैं बिलकुल चौकन्ना होकर लेटा हूँ. आँख नाक कान सब खुले हैं. तभी...
तभी सामने का दरवाज़ा खुलता है. इसके साथ ही मैं एक क्षण गँवाए बिना "कौन है?" चिल्लाता हुआ चादर फेंककर दरवाज़े तक पहुँच जाता हूँ. देखता हूँ कि दरवाज़े पर श्रीमती जी खड़ी हैं. ताला उन्होंने अपनी चाबी से खोला था. कल रात हम सब उनकी बहन का जन्मदिन मना रहे थे. मेरा कुछ काम रह गया था सो मैं जल्दी वापस आ गया था और काम पूरा करके बाहर सोफ़े पर ही सो गया था. वे रुक गयी थीं और अभी वापस आयी थीं. पत्नी से पूछता हूँ कि क्या उन्होंने मुझे कुछ कहते सुना, उनका जवाब नकारात्मक है. बताने की ज़रूरत नहीं कि मेरे चादर फेंकने से पहले तक की हर बात एक स्वप्न का हिस्सा थी. सुबह हो चुकी थी और सोफा के सामने वाली दीवार पर कोई खिड़की नहीं थी.
स्वप्न को गतिमान करने में माहौल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. उपरोक्त स्वप्न पूरी तरह मेरी पत्नी के क़दमों की आवाज़ और दरवाज़ा खोलने के प्रयत्न से संचालित था. फूफाजी से चोरों के विषय में मेरी कोई बात कभी नहीं हुई थी. यह विचार मेरे दिमाग में ठीक उसी तरह आया जैसे कि जागृत अवस्था में आया होता. मगर ख़ास बात यह है कि यह विचार किसी बीती हुई घटना पर आधारित न होकर उसी समय की परिस्थिति की प्रतिक्रया स्वरूप बना था. हाँ स्वप्न में यह दुविधा ज़रूर थी कि अपार्टमेन्ट किस मंजिल पर है क्योंकि मैं अतीत में विभिन्न मंजिलों पर रह चुका था. वैसे यह वाला अपार्टमेन्ट पाँचवीं मंजिल पर ही था.
यह सपना किसी सामान्य सपने जैसा ही है मगर यहाँ इस विशेष सपने का ज़िक्र करना मैं बहुत ज़रूरी समझता हूँ क्योंकि यह सपना कई महत्त्वपूर्ण बातें बता रहा है. क्या आप अंदाज़ लगा सकते हैं इतना विस्तृत सपना देखने में मुझे कितनी देर लगी होगी और क्यों?
[क्रमशः]
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अच्छी विवेचना की गई है. अगले एपीसोड की प्रतीक्षा में.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना।
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ReplyDeleteआप का यह रूप देख कर दंग हूँ ! मुझे इस शृंखला को कई बार पढ़ना पड़ेगा।
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ। पूछ्ना होगा तो मेल पर पूछूँगा।
क्या आप अंदाज़ लगा सकते हैं इतना विस्तृत सपना देखने में मुझे कितनी देर लगी होगी और क्यों?
ReplyDeleteअब यहां क्यों का जवाब तो हम खोजने आते हैं जो कि हम अभी तक जान नही पाये हैं.
रहा सवाल कितना समय लगा? तो असल लोचा यहीं पर है, क्योंकि कई बार इस पर हिसाब लगा कर देखा है. अक्सर दोपहर के भोजन के बाद हम अक्सर २० /३० मिनट की झपकी लेलेते हैं और खासकर गर्मियों में.
अब मजे की बात यह है कि हम कुल सोये ३० मिनट..इसमें अक्सर कई बार तो हम घर से निकले और घूमने हिमालय पहुंच गये. वहां पर बाबा लोग मिल गये और उनकी कई वर्षों तक चेला गिरी भी करली...और नींद खुली तो पाया कि कुल सोये हुये ही हमें ३० मिननट हुये थे और उसमें ये वर्षों का सपना देख या......लगता है कोई बहुत बडा केमिकल लोचा हुआ है हमारी खोपडी में.
रामराम.
bahut hi acchi rachna...
ReplyDeleteham bhi aaj kal blogging ke chakkar mein theek se nahi sote hain..aur naa jaane kaun-kaun blogger sapne mein aate hain...haan nahi to ..:):)
रोचक और सुन्दर संस्मरण!
ReplyDelete@ अदा जी,
ReplyDeleteऔर भी गम हैं ज़माने में ब्लोगिंग के सिवा...
लेकिन जाग कर सपने देखने का कोई जवाब नहीं :)
ReplyDelete@ anuraag ji,
ReplyDeletefilhaal to yahi ek GUM hai...jisse chipak gaye hain..
baki sab khushi hai..ha ha ha
दिलचस्प लगा!
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
आगे से ध्यान दिया जायेगा घड़ी पर.
ReplyDeleteवैसे इस सपने में कुछ सैकेन्ड का समय ही लगा होगा, ऐसा मुझे लगता है...अगली कड़ी का इन्तजार तो है ही.
अनुराग जी, जितना आगे बढ रहे हैं उतनी ही उत्सुकता की मात्रा बढ रही है।
ReplyDeleteहम इंतजार करेंगे।
सब कुछ एकसाथ पढ़ना बेहतर होग ! अभी तो अलर्ट निगाहें जमी हैं श्रृंखला पर ! बस!
ReplyDeleteइन्हें तो पढ़ कर लगा रहा है कि कहीं मैं ही तो कोई सपना नहीं देख रहा हूँ -
ReplyDeletesapno se sambndhit post aaj hi pdhi, baki pichli kdiyan bhi pdhni pdegi, rochak.
ReplyDeleteregards
सुंदर और दिलचस्प.
ReplyDeleteबहुत खूब। ..कभी दिवास्वप्न पर भी लिखिए ।
ReplyDeleteएक पहलू और भी है...सपनों का हमारे स्वस्थ्य से भी गहरा सम्बन्ध है। सपनों से हमें अपेक्षित रोगों का पूर्वाभास होता है। पुरुषों के स्वप्न में मृत्यु और स्त्रिओं के स्वप्न में सम्बन्ध विच्छेद हृदय रोग कि पूर्व सूचना है। संसाधनों कि हानि का सपना वृद्धों में मानसिक रोग का परिचायक माना जाता है।स्वप्न याद न रहना स्नायु रोग का लक्षण माना जाता है।
ReplyDeleteअनुराग जी, अब तक की विवेचनाओं में आपने स्वप्न के कारणों में दमित इच्छाओं, वाह्य जगत से छिपा कर रखी गयी चिन्ताओं या लगातर नकारे जाते सत्य को शामिल नहीं किया है । जोकि हमारे मेमोरी एरिया में ट्रिप्टोफ़ेन,मेलोटॉइन, जैसे रसायनों के बल पर मृत्युपर्यँत इकट्ठी रहती हैं । निद्रा में भावावेग की स्थिति में हाइपोथैलमॅस इसके ट्रिगरिंग फ़ैक्टर रिलीज़ करता है, मेमोरी रिकॉल की जाती है, ऑक्सीपिटल क्षेत्र में अवस्थित विजुअल एरिया प्रभावित हो इस दौरान लगातार रैन्डम इमेज बनाता रहता है, जबकि वास्तविक स्थिति में रेटिना इस प्रक्रिया से बिल्कुल अप्रभावित रहती है । इसे स्वप्न का सृजन कह सकते हैं. यह इमोनल स्ट्रेस रीलीज का सेफ़्टी-वाल्व भी हो सकता है या डाटा स्टोरेज के डिफ़्रैगमेन्टेशन की स्वाभाविक प्रक्रिया !
स्मरण रहे कि हमारे स्वप्न में कभी भी ऎसा आभासी बिम्ब नहीं बनता, जिसको हमने कभी देखा ही न हो, या जिसके विषय में सुना ही न हो.. यानि बेसिक डाटा का पहले से मौज़ूद होना आवश्यक है ।
यदि कोई स्ट्रेस मैनेजमेन्ट के जरिये अपना जँक डाटा समय समय पर डिलीट नहीं करता रहे, तो भी ऎसी स्थियाँ बनती हैं ।
अपने हार्ड डिस्क को डिफ़्रैग करते समय कभी सामने दौड़ती हुई फ़ाइलों के नाम पढ़ने का प्रयास करें, स्वप्न के जेनेसिस का मूल कुछ हद तक पकड़ में आ जायेगा ।
इन्टरनेट पर पढ़ना पसँद नहीं, यह वस्तुपरक या व्यक्तिपरक जानकारियाँ थोपता तो है, पर मनन करने का अवसर कम ही देता है ! मेरा पढ़ना लिखना बहुत दिनों से बँद है, अन्यथा सँदर्भ पुस्तकों के नाम अवश्य देता ।
यदि किसी बिन्दु पर कोई विसँगति पायें तो अवश्य सूचित करें !
मेरे पास अपने को सुधारते रहने के अवसरों की कमी नहीं रहती । सादर
@ डा० अमर कुमार
ReplyDeleteडॉ. साहब, विसंगति का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता बल्कि मैं आपका आभारी हूँ. स्वप्न के बारे में मैं जो कुछ कई कड़ियों के माध्यम से (उद्देश्य=बोधगम्यता) कहना चाहता था, खासकर डीफ्रैग वाली बात (प्रोग्रामर हूँ डॉक्टर नहीं) आपने उसका निचोड़ इस एक टिप्पणी में रख दिया है. साथ ही इस टिप्पणी ने मुझे आगे की दिशा के बारे में दुविधा में भी डाल दिया है.
इस कड़ी पर अब तक की सर्वश्रेष्ठ टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद!
आपमें औत्सुक्य जगाये रखने की जबादस्त क्षमता है!
ReplyDeleteबहुत रोचक व्याख्या की है आपने .... ये सच है की कभी कभी सपने ऐसे हो आते हैं ....
ReplyDeleteनींद में संभवतया ऐसा होता है कि मस्तिष्क अवश्य कुछ सिथिलावस्था में रहता है ,पर चेतना काफी हद तक चुस्त दुरुस्त रहती है और यही कारण है कि बहुत से पूर्वाभाश या फिर संचित संकेतों के हिसाब से ठीक एलार्म घड़ी की तरह समय से यह काम करता है....
ReplyDeleteअसंख्य बार इसका आभास हो चुका है मुझे..कई बार तो सचेतक समय को ४-५ या उससे अधिक बार दिमाग में बैठा लेती हूँ,तो देखा है घड़ी के एलार्म की आवश्यकता ही नहीं पड़ती....
बड़ा ही रोचक श्रृंखला चला रहे हैं आप...कृपया इसे जारी रखें...
मेरी नयी पोस्ट पर आपके विचार चाहिए अनुराग भाई ...
ReplyDeleteपोस्ट कमेंट्स पर आपकी चर्चा है
http://satish-saxena.blogspot.in/2012/04/blog-post.html?showComment=1333767136510#c7636264756054589664
"अनुराग शर्मा विद्वान् हैं और मैं उन्हें गुरु जनों में से एक मानता हूँ .... उनसे मदद मांगते हैं !
वैसे अली भाई की विवेचना पर विश्वास होता है!"