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आइये, आगे बढ़ने से पहले पिछली कड़ियों की कुछ टिप्पणियों पर एक नज़र डालते चलते हैं.
डॉ. अरविन्द मिश्र ने कहा:
मैं स्वप्न देखता हूँ तो ज्यादातर स्वप्न में भी यह बात स्पष्ट रहती है कि स्वप्न देख रहा हूँ -मगर सबसे रोचक बात यह कि ऐसे दृश्य आते हैं वे कदापि विश्वसनीय नही हो सकते हैं मगर इस समानांतर अनुभूति के बाद भी कि वे महज स्वप्न है -सच ही लगते हैं -ताज्जुब!
लवली कुमारी जी ने कहा:
कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है कि हम एक ही सपने को अलग-अलग भाग करके देखते हैं (किसी धारावाहिक के पार्ट की तरह ) ..इस पर भी प्रकाश डालिए.
मैं सपने पसंद न आने पर बदल लेती थी...इस पर भी..और आप सिर्फ अनुभव और निष्कर्ष लिख रहे हैं विश्लेषण और कारण के साथ पूरे प्रोसेस पर लिखिए..वरना रहस्यमयी धुंध घटने जगह गहरी होगी.
गिरिजेश राव ने कहा:
मुझे सपने बहुत कम आते हैं या यूँ कहें कम याद रहते हैं।
समय ने कहा:
जागने के बाद अवचेतन के क्रियाकलाप जो स्मृतिपटल पर दर्ज़ रह जाते है, उन्हें ही हम स्वप्न की अवधारणा से पुकारते हैं। गहरी नींद यानि गहरी अचेतनता में हुए कार्यकलाप स्मृतिपटल पर दर्ज़ नहीं होते और मनुष्य सोचता है कि उसे स्वप्न नहीं आये।
डॉ .अनुराग ने कहा:
सपने देखने वालो की नींद पूरी नहीं मानी जाती क्यूंकि उसे आर इ एम् स्लीप बोलते है
और अब चर्चा
सतही तौर पर पहले तीनों प्रश्न अलग अलग लगते हैं मगर गहराई में जाने पर इनका कारण एक ही मुद्दे पर संकेंद्रित हो जाता है. कैसे? यह हम इस शृंखला की अंतिम कड़ी में देखेंगे. तब तक हमें कुछ और पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रुरत है ताकि शृंखला पूरी होने तक सारे महत्वपूर्ण मुद्दे तय हो जाएँ.
समय जी की टिप्पणी में गिरिजेश राव की निद्रा के स्वप्नविहीन (नींद हमारी, ख्वाब कहाँ रे?) होने का कारण व्यक्त है मगर इस कथन से एक नया सवाल यह उठता है कि यदि स्वप्न बना ही पिछले अनुभवों और तात्कालिक कारकों से होता है तो जो दृश्य स्वप्न में दिखे थे उनके जागृति में याद रहने की संभावना तो रहनी ही चाहिए, मगर अक्सर ऐसा होता नहीं है. ज़रा अंदाज़ लगाकर इसके संभावित कारण बताइये न!
डॉ. अनुराग की बात को समझने के लिए नींद के विभिन्न पदों (stages) की एक त्वरित समीक्षा कर लेते हैं. नींद को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:
1. तीव्र-चक्षुगति रहित (NREM = Non-Rapid Eye Movement) नींद
2. तीव्र-चक्षुगति (REM = Rapid Eye Movement) नींद
इनमें भी पहले वाली नींद के चार पद हैं जिन्हें हम 1, 2, 3, 4 कह सकते हैं. जब एक औसत व्यक्ति आठ घंटे की नींद लेता है तो वह तीव्र-चक्षुगति-रहित नींद के पद 1 से शुरूआत करता है और फिर 1 → २ → 3 → 4 → 3 → 2 → 1 तक आकर फिर तीव्र-चक्षुगति नींद में चला जाता है और लगभग 10 मिनट तक तीव्र-चक्षुगति नींद में रहने के बाद फिर तीव्र-चक्षुगति रहित नींद के पद 1, 2, 3, 4, 3, 2, 1 आ जाते हैं. कुल नींद में लगभग पाँच बार तीव्र-चक्षुगति नींद आती है और उसकी अवधि हर बार बढ़ती जाती है. पाँचवीं (और अंतिम) बार की तीव्र-चक्षुगति रहित नींद 20 से 40 मिनट तक होती है और उसके बाद आँख खुल जाती है.
पहले ऐसा समझा जाता था कि स्वप्न केवल तीव्र-चक्षुगति नींद में ही आते हैं मगर अब विशेषज्ञ जानते हैं कि स्वप्न नींद में कभी भी आते हैं. हाँ तीव्र-चक्षुगति रहित नींद में हमारा दिमाग चिंतन की अवस्था में होता है इसलिए स्वप्न पर बेहतर नियंत्रण रख सकता है. ज़रुरत हो तो उन्हें बदल भी सकता है. तीव्र-चक्षुगति नींद में हमारा शरीर अल्पकालीन पक्षाघात जैसी अवस्था में होता है और इस अवस्था के स्वप्न में मांसपेशीय गतियों की प्रतीति पूर्णतया काल्पनिक होती है. जागृति के ठीक पहले की (अंतिम) तीव्र-चक्षुगति नींद के स्वप्न याद रहने की संभावना सर्वाधिक होती है. याद रखिये कि यह बातें तभी पूर्णतया सच हो सकती हैं जब आपकी नींद बिलकुल टेक्स्ट बुक के हिसाब से हो.
अंत में, कार्तिकेय मिश्र की 'विनम्र जिद':
कृपया अगली कड़ी में ईडन के प्रयोग के कुछ बोधगम्य दृष्टांत दें, या कम से कम उनके लिंक तो दे ही दें! जितना अभी तक ढूँढा मैनें, कुछ खास जँचा नहीं...
कार्तिकेय की टिप्पणी के बाद जब मैंने ढूंढना शुरू किया तो उनकी कठिनाई समझ में आई. स्वप्न पर अंतरजाल में इतनी सामग्री है कि अपने काम की चीज़ ढूंढना असंभव सा ही लगता है. अंग्रेज़ी में कुछ हलकी फुल्की कड़ियाँ रखने की धृष्टता कर रहा हूँ. बाद में यदि संभव हुआ तो सूची अद्यतन कर दूंगा:
लूसिड ड्रीम्स (लाबर्ग)
लूसिड ड्रीम्स प्रश्नोत्तरी
स्वप्न अध्ययन
[क्रमशः]
nice
ReplyDeleteइस विमर्श के से आगे बढे -एल के गोस्वामी की बात
ReplyDeleteसत्यान्वेषण के लिहाज से बहुत उचित है !
रोचक है...जाते हैं इन लिंक्स पर!
ReplyDeleteपढ़ रहे हैं अनुराग भाई -आपको आश्चर्य होगा अभी बीती रता में मुझे अर्धनिद्रा की स्थति में ये स्वप्न सरीखा यह पूरा विमर्श याद हो आया -और मैं स्वप्न में ही स्वप्न व्याख्या में जुट गया -ऐसा लगा की किसी तार्किक परिणतिपर पहुच गया और मन गहरे संतोष से भी भर गया -मगर अब कुछ भी याद नहीं आ रहा है -स्वप्न में ही सोचा कि उठते ही इस पर पूरी पोस्ट लिख दूंगा -यह भी अनुभूत हुआ कि चलो कितना अच्छा है कि पोस्ट लिखने की एक बढियां सामग्री मिल गयी -पर धत्त तेरे की अब तो कुछ भी याद नहीं आ रहा है -
ReplyDeleteहाँ एक रात के ही धारावाहिक स्वप्न मैंने देखे हैं मगर सहसा ही नीद भंग से उनमें से एकाध प्रतिशत ही अंतिम दृश्य तक पहुँच पाए .
पता नही आप सब ने ऐसे स्वप्न देखे भी है या नहीं मगर प्रेम और समर्पण की गहन अनुभूति भारी और बहुत गहरी तुष्टि दायक ऐसे स्वप्न मैंने देखे हैं जो जागृत अवस्था में कभी संभव नहीं हुए -बार बार उन्हें देखने की इच्छा होती रहती है मगर कमबख्त नहीं दिखते -उन जैसे एक स्वप्न पर तो जीवन के कितने वर्ष निस्सार -पर वे भी छली हैं !
बहुत रोचक चल रहा है विमर्श जारी रखिये। धन्यवाद्
ReplyDeleteलूसिड ड्रीम्स अभी तक पूरी नहीं पढ़ सका हूं. कई बार ऐसा भी होता है कि कई घटनायें पहले स्वप्न में आ जाती हैं और बाद में जब घटित होती हैं तो लगता है कि यह घटना तो पहले कभी हो चुकी है.
ReplyDeleteपढ रहे हैं ध्यान से, हमारा विश्लेषण इस श्रंखला की आखिर कडी के बाद ही बता पायेंगे.
ReplyDeleteरामराम.
Waah....param rochak pravishti !!!
ReplyDeleteAagli kadiyon ki atiutsukta se prateeksha hai...
Khojparak gyaanvardhak aalekh ke liye bahut bahut aabhar..
बहुत बढ़िया लगा! कमाल का लिखा है आपने! शानदार!
ReplyDeleteरोचकता बनी हुई है...
ReplyDeleteपूरी श्रृंखला से गुजरते हैं। तभी शायद स्पष्ट हो पायेगा कि आप समग्रता में कैसे लेते हैं इनको।
ReplyDeleteयाद रहने की सम्भावना को आप स्मृति और इससे जुड़ी बारंबारता और प्राथमिकताओं के मद्देनज़र देख सकते हैं।
आप चलते रहिए। हम भी।
शुक्रिया।
स्वप्न की बात है तो बेंजीन के स्ट्रक्चर और सिलाई मशीन के आविष्कार वाले दृष्टान्त भी आने चाहिए. एक स्वप्न ज्योतिष के किताब की प्रस्तावना में पढ़ा था कभी. बेंजीन वाला किस्सा तो खैर ओरगेनिक केमिस्ट्री की किताब में भी मिल jaata है.
ReplyDeleteअभिषेक भाई, आपने सही याद दिलाया. मैं तो सॉफ्टवेर आर्किटेक्चर का अधिकाँश काम नींद में ही करता हूँ.
ReplyDeleteवास्तविक जीवन की समस्याओं का हल खोजने की प्रक्रिया का नींद में भी जारी रहना सामान्य है. बल्कि नींद में यह ज़्यादा आसान है (क्यों?)
ReplyDeleteAnuraag ji,
ReplyDeletebahut hi sundar likha hai aapne..rochakta bani hui hai..lagta hai kafi research kiya gaya hai...kam se kam ham is vishay par kuch ho kah hi paayenge ab kabhi zukr hua to..
bahut bahut aabhaar aapka..
google maharaj abhi naraz ho gaye hain..isliye Roman mein kar rahi hun..bura mat maniyega..
अनुराग भाई
ReplyDeleteये पूरी शृंखला बढ़िया लगी - एक बात और - आपके जालघर का नाम कब बदलेंगें ? :)
[ i mean " Is an Indian,
( Smart Indian :) ,
still in Pittsburg or
away ?
लावण्या जी,
ReplyDeleteप्रणाम!
अभी तो मैं सिर्फ एक ही शब्द safely हटा सकता हूँ, और वह है: smart
.
:D
.
जिज्ञासा बढ़ी जा रही है.....अगली कड़ी पर जाते हैं.....
ReplyDeleteregards