Monday, February 15, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [2]

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे - 1

आगे बढ़ने से पहले, बीस-तीस साल पहले "मधु मुस्कान" में पढी एक कहानी आपसे साझा करना चाहता हूँ. मेरी आधी-अधूरी याद के अनुसार उसमें एक खिलाड़ी लाइलाज कोमा में चला जाता है. मगर चिकित्सक उसे फिर से खडा करके कुशल खिलाड़ी बना देते हैं. वह अपनी प्रगति से बड़ा खुश है और इस बात से बिलकुल बेखबर भी कि यह नया जीवन चिकित्सकों द्वारा उसके लगभग निर्जीव शरीर में स्पंदित एक स्वप्न भर ही है. [यदि किसी को लेखक/लेखिका के बारे में जानकारी हो तो कृपया साझा करें.]

कभी-कभी सत्य बिलकुल अविश्वसनीय होता है. इसी तरह अक्सर सपने उपरोक्त खिलाड़ी के सपने की तरह बिलकुल सच जैसे होते हैं खासकर खुशहाल लोगों के सपने. ऐसा समय आता है जब स्वप्न और सच्चाई में फर्क करना कठिन होता है. कोई लोग च्यूंटी काटकर देख लेते हैं, यदि दर्द न हो तो सपना है वरना सच. मेरे बचपन में यह ट्रिक हमेशा कामयाब रही. मज़े की बात यह है कि इसकी ज़रुरत सिर्फ सपने में ही पडी. [हाल की एक घटना को छोड़कर - उसके बारे में फिर कभी]

पुराने ज़माने में डेटाक्वेस्ट या उसकी सहयोगी पत्रिका में कृत्रिम बुद्धि पर सुगत मित्र की एक शृंखला आयी थी जिसमें स्वप्न के एक विशिष्ट लक्षण का ज़िक्र था - वह था स्वप्न का पूर्ण आभासी होना. जैसा मुझे याद पड़ता है उन्होंने इसे सिक्कों के एक उदाहरण से समझाया था. मान लीजिये आप स्वप्न में कुछ सिक्के लिए बैठे हैं. तो उन्हें दो-तीन बार गिनिये, हर बार उनकी संख्या अलग होगी. हो सकता है कि अचानक ही आपको मुट्ठी एकदम खाली भी मिले. [जो लोग सुगत मित्र से परिचित नहीं हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि उनके होल इन द वाल प्रयोग के बारे में ज़रूर पढ़ें]

सपनों की दुनिया के पीछे सच का ठोस धरातल नहीं होता है. बच्चों के बस मैं बैठते ही बस की जगह पर एक हाथी हो सकता है (क्यों होता है इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना पडेगा) सच तो यह है कि प्रकृति के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन सपनों को सत्य से अलग कर सकने में बहुत सहायक होता है.

उपरोक्त विचार का विस्तार करें तो वही बात सामने आती है कि स्वप्न की दुनिया सच्चाई की दुनिया जैसी निश्चित और नियमबद्ध नहीं है. लेकिन चुटकी काटने की विधि और सुगत मित्र के कथन में एक और महत्वपूर्ण तथ्य छिपा है जो कि स्वप्न-वार्ता में अक्सर छूट जाता है, वह यह कि स्वप्न अवचेतन का अनियंत्रित प्रलाप मात्र नहीं है. कई स्वप्नों को आप नियंत्रित कर सकते हैं. आप उनकी चुटकी काट सकते हैं, दुबारा गिनती कर सकते हैं या दिशा-परिवर्तन कर सकते हैं.

बचपन के सपनों में यदि मेरा सामना किसी खल से होता था और मैं उसके पास कोई हथियार पाता था तो मैं "अरे यह तो सपना है" मन्त्र बोलकर या तो उससे बेहतर हथियार अपने हाथ में ले लेता था या बिना चोट खाए आराम से उस हथियार का मुकाबला कर लेता था. इसका मतलब यह नहीं है कि स्वप्न में दौड़ने पर आप हाँफेंगे नहीं इसका मतलब सिर्फ इतना है कि जब आप हाँफने लगें तो "अरे यह तो सपना है" इतना ध्यान में आते ही फिर आपको हाँफने, दौड़ने की ज़रुरत ही नहीं बचेगी. आप उड़कर या अदृश्य होकर आराम से गंतव्य तक पहुँच सकेंगे यहाँ मैं दिवास्वप्न की बात नहीं कर रहा हूँ. अगले स्वप्न में आप भी करके देखिये.

डच मनोचिकित्सक फ्रेडरिक फान ईडन (Frederik van Eeden) ने इस प्रकार के स्वप्न के लिए lucid dream शब्द-युग्म दिया था. इस पर बहुत खोजें, अध्ययन और चिकित्सकीय प्रयोग (क्लिनिकल ट्रायल्स) हो चुके हैं. जो लोग विस्तार से जानना चाहते हैं उन्हें अंतरजाल पर ही काफी सामग्री मिल सकती है प्रकाशनों की तो बात ही क्या है.

तो इस कड़ी में हमने देखा कि -
1. स्वप्न आभासी होता है और प्रकृति के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन कर सकता है.
2. वास्तविकता के मुकाबले स्वप्न को उसके आभासी रूप से पहचाना जा सकता है.
3. स्वप्न अनियंत्रित ही रहे, यह ज़रूरी नहीं है. स्वप्न को चेतना द्वारा निर्देशित किया जा सकता है

अगली कड़ी में हम देखेंगे कि स्वप्न सिर्फ भूत के अनुभव, चेतन के निर्देश या हमारी आकांक्षाओं और भावनाओं पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि सितारों से आगे जहाँ और भी हैं.
पिट्सबर्ग के फर्स्ट इंग्लिश एवंजेलिकल लुथरण चर्च की 1888 में बनी इमारत 
First English Lutheran Evangelical Church of Pittsburgh
[Photo by Anurag Sharma - चित्र अनुराग शर्मा]
[क्रमशः]

27 comments:

  1. स्वप्न की बातें...स्वप्न आभासी होता है..स्वप्न की दुनिया ठोस धरातल पर नहीं होती...
    स्वप्न के बारे में इतनी बातें जानना अच्छा लगा...
    बस एक बात...मैं (स्वप्न मंजूषा) आभासी नहीं हूँ :)

    ReplyDelete
  2. कृपया फान्ट थोड़ा बड़ा कर दें या यह सुविधा अपने ब्लाग पर दे दें.

    ReplyDelete
  3. आपको जानकर खुशी हो गई कि आपका ब्लॉग यहाँब्लॉगवुड शामिल कर लिया गया है।

    ReplyDelete
  4. बड़ी सारी जिज्ञासायें उभर आई हैं और चल रहे हैं आपके साथ इस यात्रा पर..रोचक और दिलचस्प श्रॄंखला!

    ReplyDelete
  5. आज ही आपकी पिछली पोस्ट भी पढी बहुत रोचक जानकारी है आगे पढने की जिग्यासा बढ गयी है मेरा भी मानना है कि इन सपनो का सम्भन्ध कहीं न कहीं हमारे जीवन से जरूर होता है। अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। हां बहुत बारीक शब्द हैं पढने मे असुविधा होती है। धन्यवाद्

    ReplyDelete
  6. @अदा जी
    स्वप्न मंजूषा जी तो आभासी नहीं है मगर अदा तो है, राईट!

    @भारतीय नागरिक जी
    फान्ट थोड़ा सा बड़ा किया है. कृपया बताएं यदि इतना बदलाव काफी है।

    @blogwood जी
    आपने इस काबिल समझा, इसका शुक्रिया।

    ReplyDelete
  7. चलिए देखते हैं कि हमारे सपने कैसे बदलते हैं, मैं उन्‍हे सच होने की चाह नहीं रखती क्‍योंकि सपनों में अक्‍सर मैं उलझन में ही रहती हूँ, यदि सच हो जाएं तो फिर तो जीवन में भी उलझन आ जाएगी। आगामी कड़ी का इंतजार रहेगा।

    ReplyDelete
  8. @निर्मला जी,
    शब्दों को थोड़ा सा बढ़ा दिया है.

    ReplyDelete
  9. दोनों भाग आज ही पढने को मिल गए -मैं स्वप्न देखता हूँ तो ज्यादातर स्वप्न में भी यह बात स्पष्ट रहती है की स्वप्न देख रहा हूँ -मगर सबसे रोचक बात यह कि ऐसे दृश्य आते हैं वे कादापी विश्वसनीय नही हो सकते हैं मगर इस समानांतर अनुभूति के बाद भी कि वे महज स्वप्न है -सच ही लगते हैं -ताज्जुब!
    मैं श्रृखला के अंत में कुह्ह कह सकूंगा -हाँ अपनी कहानी सपने का सच भी पढ़ाऊंगा !

    ReplyDelete
  10. अच्छा लिखा है बड़े भाई....सही जा रहे हैं... कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है की हम एक ही सपने को अलग-अलग भाग करके देखते हैं (किसी धारावाहिक के पार्ट की तरह ) ..इस पर भी प्रकाश डालिए.
    मैं सपने पसंद न आने पर बदल लेती थी...इस पर भी..और आप सिर्फ अनुभव और निष्कर्ष लिख रहे हैं विश्लेषण और कारन के साथ पुरे प्रोसेस पर लिखिए..वरना रहस्यमयी धुंध घटने जगह गहरी होगी.
    आपसे उम्मीद है इसलिए फरमाइश कर रही हूँ. किसी प्रकार अन्यथा न लीजिएगा.

    ReplyDelete
  11. सितारों से आगे जहां और भी हैं. - हम इसपर टिप्पणी करने के लिए लेखमाला की समाप्ति तक प्रतीक्षा करेंगे... फिर इस पर चर्चा भी.

    ReplyDelete
  12. बढिया श्रंखला शुरु की आपने. सपनों के बारे में निश्चित ही बेहतरिन जानकारी मिलेगी.

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. @लवली जी और अरविन्द जी,

    इत्तेफाक की बात है कि आपके प्रश्न/अवलोकन उन मुद्दों में से है जिनका स्पष्टीकरण करने के प्रयास में मैंने यह श्रंखला लिखने का मन बनाया था. इन बातों की चर्चा आगे है.

    ReplyDelete
  14. @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen

    आप ताऊ की सलाह मानिये. आपकी समस्या हल हो जायेगी. हम तो सब जगह ऐसा ही करते हैं.

    Ctrl दबाकर + दबायें ..जितना बडा करना हों करले...और छोटा करने के लिये Ctrl दबा कर - दबायें. और अपनी मन मर्जी मुताबिक फ़ोंट में कहीं भी पढें.

    रामराम.

    ReplyDelete
  15. स्वप्न आभासी होता है ..

    आपका लेख बहुत सी नये तथ्य खोल रहा है .... पर बहुत सी बातें जो मैने महसूस की है उनमे से एक तो ये है की अगर मैं स्वप्न में किसी पहाड़ से गिर जाता हूँ या कूदता हूँ तो बहुत धीरे धीरे ज़मीन की तरफ आता हूँ .. जैसे ग्रुत्वकर्शन काम ही नही कर रहा हो ... और फिर ज़मीन छूने से पहले ही जाग भी जाता हूँ ... ऐसा अक्सर होता है .....

    ReplyDelete
  16. आपकी बातों से पूरा इत्तेफ्फाक रखती हूँ...
    स्वप्न के विषय में व्यक्तिगत रूप से मेरे बड़े जबरदस्त अनुभव रहे हैं ...
    कई बार घटनाओं के पूर्वाभास हू-बहू उसी रूप में मुझे स्वप्न में हुए हैं...और मुझे मानने को बाध्य होना पड़ा है की सभी स्वप्न निराधार नहीं होते...
    हाँ आपने जो कहा कि - स्वप्न आभासी होता है, स्वप्न को उसके आभासी रूप से पहचाना जा सकता है और स्वप्न अनियंत्रित ही रहे, यह ज़रूरी नहीं है. स्वप्न को चेतना द्वारा निर्देशित किया जा सकता है...इससे मैं पूर्ण सहमत हूँ...कई बार सफलता पूर्वक स्वप्न को हम चेतना द्वारा सहज ही नियंत्रित करने में सक्षम रहते हैं...

    ReplyDelete
  17. स्वप्नों के बारे में इतना सब कुछ.. एक ही जगह पर! संग्रहणीय लेखमाला साबित होने जा रही है..

    स्वप्न तो कभी कभी सत्य से भी ज्यादा वास्तविक लगते हैं मुझे.. कवि-स्वप्न तो यथार्थ से ज्यादा सुंदर होता ही आया है! लेकिन यह जानना कि स्वप्न अनियंत्रित नहीं, जरा सा पचाने में मुश्किल लग रहा है। कभी रजनीश की देशना में भी सुना था इसके बारे में.. होश में रहो, यहाँ तक कि नींद में भी!

    होश और नींद तो दोनों साथ साथ चल सकना संभव लगा था लेकिन स्वप्न का चेतना से नियंत्रित कर पाना जरा सी अनूठी बात लगती है.. उम्मीद करता हूँ, बल्कि एक विनम्र जिद है, कृपया अगली कड़ी में ईडन के प्रयोग के कुछ बोधगम्य दृष्टांत दें, या कम से कम उनके लिंक तो दे ही दें! जितना अभी तक ढूँढा मैनें, कुछ खास जँचा नहीं..

    विषय अत्यन्त रोमांचकारी है, आशा करता हूँ आपका ज्ञान इसे और सारगर्भित रूप से सामने लायेगा।

    आपकी तरफ से लवली जी को वादा कर दूँ??

    ReplyDelete
  18. ख्वाब में तो बम ही नजर आते हैं!
    जय बम भोले!
    हर-हर बम-बम!!

    ReplyDelete
  19. आप सधे हुए तरीके से आगे बढ रहे हैं। आपका अंदाज़ अधिक रोचक और प्रभावी है।

    एक अपना कयास भी यहां छोड़ना चाहता हूं।

    जागने के बाद अवचेतन के क्रियाकलाप जो स्मृतिपटल पर दर्ज़ रह जाते है, उन्हें ही हम स्वप्न की अवधारणा से पुकारते हैं।

    गहरी नींद यानि गहरी अचेतनता में हुए कार्यकलाप स्मृतिपटल पर दर्ज़ नहीं होते और मनुष्य सोचता है कि उसे स्वप्न नहीं आये।

    सापेक्षतः कम गहरी नींद में, यानि चेतनता की सापेक्षता कम तीव्रता के साथ हुए अवचेतन के कार्यकलापों यानि स्वप्नों में चेतन क्रियाकलाप की आंशिक उपस्थिति रहती है, इसीलिए वह स्मृति में दर्ज़ हो पाते हैं।

    यानि कि हर स्वप्न में चेतनता की मात्रा समाहित होती है। चेतनता की सतही पर निष्क्रिय उपस्थिति में स्वप्न एकदम बेतरतीब और बिना किसी आपसी तारतम्यता तथा जुड़ाव के साथ होते हैं।

    चेतनता की सापेक्षतः सक्रिय उपस्थिति में वह हस्तक्षेप करने लगती है, और स्वप्नों में एक तरतीब, एक तार्किकता पैदा होने लगती है।

    चेतनता की यही सक्रिय उपस्थिति की ऊंची तीव्रता आप द्वारा उल्लिखित नियंत्रण की अवस्थाओं की संभावनाएं पैदा करती है, और संभव है।

    हमारे एक मित्र जिनकी नींद अक्सर कमजोर हुआ करती थी, इस तरह स्वप्न में यह आभास कर लेते थे, कि वे स्वप्न देख रहे हैं। और अपनी मनचाही, सामान्यतयः असंभव, परिस्थितियां पैदा कर उसके मज़े लूटने लगते थे।

    अच्छी श्रृंखला की शुरूआत।

    शुक्रिया।

    ReplyDelete
  20. स्वप्न पर परामनोविग्यानिक तर्कों की कसौटी नहीं लगाई जा सकती.

    बडी रोचक शृंखला है.स्वप्न पर वेदों पर भी भाष्य है.अगली कडियों का इंतेज़ार रहेगा.

    ताऊ का आभासी नुस्खा भी बढिया है.

    ReplyDelete
  21. "उमा कहहूं मैं अनुभव अपना,
    सत्य हरि नाम, जगत सब सपना"

    व्यक्तिगत अनुभव दिगंबर नासवा जी के अनुभव से मिलते जुलते हैं, मुझे भी बहुत बार ऐसे स्वप्न आते हैं जिनमें एक-एक डग में जाने कितनी दूरी पार कर लेते हैं और पैर जमीन से टिकते ही नहीं। आशा है कि आपकी इस श्रंखला में हमारे स्वप्न का भी अर्थ स्पष्ट होगा, उत्सुकता रहेगी अगले अंक की।

    ReplyDelete
  22. पहले सपने बहुत आते थे... हर रात. अब बहुत कम. ऐसा क्यों?

    ReplyDelete
  23. हम तो निर्मला कपिला जी की टिपण्णी से सहमत है जी

    ReplyDelete
  24. शायद यह व्यक्ति की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि वह स्वनों को कितना अपने अनुसार मोड़ सकता है दूसरे, शांत प्रवृत्ति बहुत कम स्वपनों को जन्म देती है.

    ReplyDelete
  25. सब कुछ विचित्र, अविश्‍वसनीय, रोचक, जिज्ञासा को बढानेवाला।
    फाण्‍ट तो अभी भी बहुत छोटा है। पढने में अत्‍यधिक कठिनाई हो रही है।

    ReplyDelete
  26. स्वपन के बारे में एक और रोचक कड़ी......आगे पढ़ते हैं.....
    regards

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।