आइये मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2] खंड [3]
स्वप्नों के कारण पर विचार करने से पहले आइये हम स्वप्न के कारकों और इसकी संरचना पर एक नज़र डालते चलें. देखें कि क्या इसमें अतीत की छवियों के अलावा भी कुछ है? [कम्प्यूटर विज्ञान के छात्रों को "कूड़ा डाला कूड़ा पाया" (GIGO) याद होगा] या फिर स्वप्न में कोई सन्देश छिपा है?
जहाँ तक मैंने समझा (और मुझे भी गलत होने का पूरा अधिकार है) स्वप्न एक वाहन चलाने जैसा है जिसमें आप वाहन में पहले से भरी मशीनरी, शक्ति, ईंधन आदि पूरा उपयोग करते हुए अपने संचालन प्रशिक्षण और अनुभव का पूरा लाभ उठाते हैं. अभिप्राय यह कि आपके अनुभव, आपके मस्तिष्क में एकत्रित विभिन्न यादें, कथन, घटनाएँ, छवियाँ आदि स्वप्न को कच्चा मसाला प्रदान करते हैं. दिमाग में बेतरतीब पड़े इन टुकड़ों को जोड़कर एक रहस्यमय कैनवास बनता है जिसमें आपकी चेतना रियल टाइम में तार्किक पैबंद का स्पर्श देती चलती है. इस सब के अलावा एक बात और है और वह है आपके अनुभव, यादों, नियंत्रण या संज्ञान से बाहर के एक तत्व की मौजूदगी. स्पष्ट कहें तो बाहरी परिवेश के प्रभाव से पैदा हुई इंटर एक्टिविटी. मतलब यह कि स्वप्न इंटरएक्टिव होते हैं. सपने का वाहन चलाते समय आपको राह में पड़ने वाले गड्ढों, अवरोधों, यातायात और संकेतों का ध्यान भी रखना पड़ता है क्योंकि यह सब आपके स्वप्न की दिशा को रीयल टाइम में बदल रहे होते हैं. ठीक वैसे ही जैसे वाहन चलाते समय सड़क पर अचानक सामने आता हुआ जुलूस आपका मार्ग बदल देता है.
मसलन यह कि जब आप स्वप्न देख रहे हैं और कोई कमरे की बत्ती जला दे तो आपके स्वप्न में सूर्योदय हो सकता है या अँधेरे जंगल में किसी जीप की हैडलाईट आपकी आँखों पर पड़ती है. सोते हुए व्यक्ति को सुई चुभने से स्वप्न में छुरा घोंपे जाने का अनुभव हो सकता है. ऐसे उदाहरण हैं जब लोग सपने में शेर से लड़े और जागने पर अपने आप को चूहे या किसी अन्य प्राणी द्वारा कुतरा हुआ पाया. आप स्वप्न देख रहे हैं और उसी समय टीवी पर कोई वृत्तचित्र आ रहा है तो आपका स्वप्न उस वृत्तचित्र के विषय, संवाद और संगीत से प्रभावित हो सकता है बल्कि अक्सर होता ही है. अकेले रहने वालों के मुकाबले संयुक्त परिवारों में या छात्रावास में रहने वालों के स्वप्न अधिक गत्यात्मक होते हैं क्योंकि नींद के समय उनका परिवेश अधिक गतिमान है. इसी तरह दिन की झपकी के सपने ज़्यादा रंगीन होते हैं क्योंकि आसपास का प्रकाश हमारी रंग महसूसने की क्षमता बढ़ा देता है.
अभिषेक ओझा जी ने कहा, "पहले सपने बहुत आते थे... हर रात. अब बहुत कम. ऐसा क्यों?"
ख़ास संभावना यह है कि शायद अब आपकी नींद में बाहरी व्यवधान पहले से कम हैं. हमने पीछे देखा कि जागृति के क्षण वाला सपना याद रहने की संभावना सर्वाधिक है. होता यह है कि जब हमारी नींद स्वप्न देखते हुए टूट जाती है तभी हमें याद रहता है कि सपना देखा था वरना नहीं. मतलब यह कि भरपूर नींद कमाई तो समझो सपना गँवाया.
दूसरा [कम महत्वपूर्ण] कयास यह कि अब नींद के बीच में कोई और बत्ती जलाता-बुझाता नहीं, रेडियो ऑन-ऑफ नहीं करता और न ही सुबह पढने के लिए जगाता है इसलिए परिवेश-जन्य घटनाएँ कम हैं जिनके याद रहने की संभावना ज़्यादा होती है क्योंकि वह सिर्फ अवचेतन की एक हल्की छवि न होकर इन्द्रियों का ताज़ा अनुभव होता है.
अभी तक की कड़ियों का एक त्वरित सिंहावलोकन:
- स्वप्न नींद के किसी भी भाग में आ सकते हैं
- स्वप्न पूर्णतया आभासी होते हैं और उन्हें सांसारिक नियमों के पालन की आवश्यकता नहीं होती
- स्वप्न को नियंत्रित करना संभव है.
- स्वप्न किसी फिल्म की तरह न होकर विडियो गेम की तरह होते हैं.
- निद्रा स्थल का परिवेश रीयल टाइम में आपके स्वप्न को बदलता चलता है
- हमें अक्सर वही सपने याद रहते हैं जिनके दौरान हम जग गए हों
स्वप्न और नींद पर आगे बात करने से पहले हम दिमाग की कुछ उलटबांसियों पर विचार करेंगे.
[कृपया बताइये कि इंटरएक्टिव और रीयल टाइम की हिन्दी क्या है?]
[क्रमशः]
ये आलेख भी बहुत अच्छा लगा। ऐसा क्यों होता है कि जब स्वपन आते हुये हम जाग कर दोबारा सोते हैं तो वही स्वपन फिर से चलने लगता है। और पूरी तरह दोनो बार के स्वपन याद रहते हैं। बहुत अच्छा लगा आपका ये सफर अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद्
ReplyDeleteगत्यात्मक-सहसा घबडाया सुनकर यह शब्द -फिर सामान्य हो गया
ReplyDeleteअच्छा चल रहा है स्वप्न विचार -विवेचन
क्या स्वप्न मष्तिष्क की तांत्रिक जैवरासायनिक गतिविधियों का उभय उत्पाद है या फिर में स्ट्रीम गतिविधि -यह भी कभी विवेचना में आये
मगर मेरा मुख्य फोकस तो निश्चित ही स्वप्न और घटनाओं का पूर्वाभास ही रहेगा .
इंटरएक्टिव =दुभाषिक ,पारस्परिक संवादी ,दुतरफा संवादी
रीयल टाइम=तत क्षणिक -तत्क्षणिक
मुश्किल है गिरिजेश जी शायद सटीक बता पायें
एक दो बार तो मुझे सिक्वेल में भी आये हैं.
ReplyDeleteबड़ी ही शानदार श्रृंखला शुरु की है, आनन्द आ रहा है आपका विश्लेषण पढ़कर. जारी रहें.
ReplyDeleteबहुत मनोयोगपुर्वक पढ रहे हैं. रोचक श्रंखला चल रही है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
@निर्मला जी,
ReplyDeleteआपका प्रश्न बहुत अच्छा है. उसकेउत्तर की भूमिका तो अगली कड़ी में (२४ घंटे में) है. उत्तर भी शायद आगे की किसी कड़ी में आ जाए.
@डॉ. अरविन्द मिश्र
पिछले २० वर्षों में स्वप्न-अध्ययन में जो तेज़ बदलाव आया है उसने सपनों की दुनिया में फ्रायड, जुंग आदि के महत्त्व को कम करके तंत्रिका-संज्ञानात्मक (Neurocognitive) नमूने को जन्म दिया है. अधिकाँश नयी परिकल्पनाएं, और अध्ययन इसी नमूने के गिर्द रहे हैं. तांत्रिक जैवरासायनिक गतिविधियों की भूमिका तो है ही.
शब्दार्थ के लिए धन्यवाद.
bahut sundar shrinkhla..
ReplyDeleteaabhar...
बहुत कौतूहल पूर्ण एवं रुचिकर विषय है !
ReplyDeleteजो आप बता रहे हैं वह फ्रायड, जुंग, एडलर आदि विस्तार से लिख गए हैं ...न्युरोसिस एक अलग ब्रांच है ..और फंशनल साइकोसिस एक अलग ...दोनों की तुलना करना अजीब लगता है.
ReplyDeleteबहरहाल ..अच्छी पोस्ट .
आज सारी पिछली कड़ियाँ पढ़ीं ..स्वप्नों को लेकर बहुत उहा-पोह रहती है. मैंने पुरी का मंदिर, कई पिकनिक
ReplyDeleteस्पाट्स ,कई रास्ते ऐसे देखे जो बहुत सालों बाद मेरे सामने वैसे ही हूबहू नज़र आए .उस से भी अधिक परेशानी की बात
के परिवार में दूर दूर भी कुछ अशुभ या दुर्घटना घटने से पहले मुझे यहाँ .मेरी माँ को घर में,बहन को सात समुन्दर पार एक साथ
ख़ूब भीड़, भोज ,नहाने जैसे सपने दिखने शुरू हो जातें हैं . एक सपना किसी बड़ी,सामूहिक दुर्घटना का मै बार बार देखती हूँ . डरती भी हूँ उसके सच होने से .हम अक्सर आपस में ये बात करते हैं के ये पूर्वाभास ना हों तो अच्छा .
आगे की कड़ियों का इंतज़ार ....
जब कभी कच्ची नींद होती है, और कोई स्वप्न आता है तो मैं तो जान जाता हूं कि मैं सपना देख रहा हूं. फिर तो मैं सपने मन माफ़िक काम करता हूं, किसी को पीट देता हूं, बॉस को गाली भी दे देता हूं, किसी को छेड भी देता हूं.
ReplyDeleteस्वपनों का सिलसिला बहुत जोरदार चल रहा है .... सपने में शेर से लड़ना ... गाना गाना और असल में भी गीत का चलना ..... ऐसी बहुत सी अनुभूतियाँ मुझे भी होती हैं ... इनका तकनीकी पक्ष आपकी पोस्ट से समझ रहा हूँ ...
ReplyDeleteअभी तो मुग्ध भाव से इन कड़ियों को पढ़ रही हूँ....संपन्न हो जाए तो अपनी बात रखूंगी...
ReplyDelete@ लवली जी,
ReplyDeleteमैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा था कि फ्रायड और जुंग की स्वप्न-व्याख्याएं अपने समय के अनुसार ठीक रही होंगी परन्तु आधुनिक स्वप्न-अध्ययन तंत्रिका-संज्ञानात्मक नमूने के गिर्द ही घूम रहे हैं. वर्तमान अध्ययन इसी प्रकाश में हो रहे हैं.
यह पढ़ कर श्री अरविन्दो के स्वप्न विषयक लेखों को पुन: पढ़ने का मन हो रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
आगे की कड़ियों का इंतज़ार .
ReplyDeleteबढियां लिख रहे हैं आप,स्वप्न का भी कितना अनूठा संसार है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आज की कडी भी
ReplyDeleteआपकी बहुत सी बातों से सहमत, इसका अर्थ बाकी बातों से असहमति नहीं बल्कि वैसे व्यक्तिगत अनुभव न होना या याद न रहना। रोचक श्रंखला..
ReplyDeleteहम्म...
ReplyDeletegood + informative series.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteअच्छा लगा!
सब कुछ अनुमान जैसा लग रहा है। मुझे सपने बहुत ही कम आते हैं और उससे भी अधिक मुश्किल से याद रह पाते हैं।
ReplyDeleteइस लेखमाला से समझने की ाकेशिश कर तो रहा हँ किन्तु सफल नहीं हो पा रहा हूँ।
बेहद रोचक लग रहा है सपनो के बारे में जानना क्योंकि शायद कोई दिन होता होगा जब सपने नहीं आते होंगे, मगर कुछ याद रह जाते हैं और कुछ आधे अधूरे ही ध्यान रहते हैं, उनकी सत्यता पर कभी ध्यान नही गया.
ReplyDeleteregards