Sunday, February 21, 2010

उठ दीवार बन

नरक के रस्ते से काफी बचना चाहा लेकिन फिर भी कुछ कहे बिना रहा न गया. स्वप्न-जगत से एक छोटा से ब्रेक ले रहा हूँ. तब तक गिरिजेश राव के "नरक के रस्ते" से प्रेरित कुछ अनगढ़ सी पंक्तियाँ प्रस्तुत है:

इंसान बलिश्ते क्यूँ अवरोध दानवी क्यूँ
प्रश्न सभी अपने रह जाते अनुत्तरित क्यूँ

क्यूँ त्याग दधीचि का भूदेव भूमिगत क्यूँ
ये सुरेश पराजित है वह वृत्र वृहत्तर क्यूँ

इस आग का जलना क्यूँ दिन रात सुलगना क्यूँ
ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूँ

दिल क्यूँ घबराता है यूँ दम घुटता है क्यूँ
चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूँ

(अनुराग शर्मा)

32 comments:

  1. प्रश्न ही प्रश्न!! बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete
  2. कब होगा उत्तरित ये क्यूं

    ReplyDelete
  3. @डॉ. अरविन्द मिश्र,
    उत्तर तो एक ही है, उठकर दीवार बनना.
    चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं

    ReplyDelete
  4. आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
    नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।
    ....बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!

    ReplyDelete
  5. सही कहा भैया, हर ज़माने में त्रास, पीड़ा, अँधेरे रहे हैं। मानव तो इनसे जूझते ही आगे बढ़ा है।
    .. एक मन:स्थिति आती है जिसमें क्रोध, खीझ, हताशा, व्यर्थता बोध हाबी हो जाते हैं। उस दौर की अभिव्यक्ति की सार्थकता इसी में होती है कि समस्याएँ एकदम वृहत्तर वृत्र सी दिखती हैं और उनकी पहचान आसान हो जाती है ...
    ..'त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप' याद आ गया।

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छी लगी ये रचना गिरिजेश राव जी को और आपको शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  7. इस आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
    ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।

    सोचने को मजबूर करती पंक्तियाँ......सुन्दर अभिव्यक्ति...
    regards

    ReplyDelete
  8. वाकई बहुत ही गहन अर्थ को अभिव्यक्त करती लाईने. अंतोतगत्वा "चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं" सही उपाय है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  9. स आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं
    ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ...

    प्रश्न, प्रश्न प्रश्न ..... प्रश्न तो बहुत हैं ... पर क्या सब प्रश्नों का उत्तर हो ये ज़रूरी है ... एक जीवन में की इतने सारे प्रश्नों का रहस्य, इनका उत्तर मिलना संभव है .....

    ReplyDelete
  10. स्वर्ग और नर्क तो पेयर ऑफ अपोजिट्स हैं। नर्क न रहे तो स्वर्ग की महत्ता नहीं!

    कभी कभी डर लगता है कि जब धरती पर सब अच्छा अच्छा हो जायेगा तो अच्छे की इज्जत क्या होगी?

    ReplyDelete
  11. "इस आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
    ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।"

    बिलकुल यही उठा मन में ! नरक के रस्ते से गुजरते हुए बहुत से स्फुट विचार मेरे मन में भी आये ! समयानुसार लिखूँगा !
    आभार ।

    ReplyDelete
  12. आपकी बात में दम है,
    शायरी भी बढ़िया है!

    ReplyDelete
  13. कितना ???????????????????????

    ReplyDelete
  14. गंभीर चिंतन को उत्प्रेरित करती इस सुन्दर रचना ने
    मोहित कर लिया ....

    पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया निदान बता दिया....बेबात ही डरते रहते हैं....संघर्ष ज़रूरी है...

    ReplyDelete
  16. " नर हो में निराश करो मनको ,
    यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
    समझो जिससे यह व्यर्थ न हो "
    और
    " फिर महान बन मनुष्य
    फिर महान बन
    मन मिला अपार प्रेम से भरा तुझे
    इसलिए कि प्यास जीव मात्र की बुझे "
    कई कवियों ने यही भाव हर युग में गाया है आज आपने भी वही बात कही
    बहुत अच्छी लगी कविता और भाव
    स स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  17. आप का प्रशन नाईस है जी,

    ReplyDelete
  18. सादर वन्दे!
    दिल क्यूं घबराता है यूं दम घुटता है क्यूं ।
    चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं ।।
    सही कहा आपने
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete
  19. काश, उठकर दीवार बनना हर एक के लिये आसान होता.

    शर्त ये है, कि ये दीवार अन्याय या मुश्किलों के विरुद्ध हों. आपसी मानवी रिश्तों में नहीं.

    ReplyDelete
  20. सुन्‍दर चयन। शाश्‍वत आह्वान।

    ReplyDelete
  21. ये सारे क्यूं हल हो जाएं तो ज़िंदगी न संवर जाये

    ReplyDelete
  22. आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...

    ReplyDelete
  23. आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
    नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।


    सच कहा .....

    ReplyDelete
  24. इंसान बलिश्ते क्यूं अवरोध दानवी क्यूं ।
    प्रश्न सभी अपने रह जाते अनुत्तरित क्यूं ।।
    ...मतले का यह शेर बेहद लाज़वाब है.
    इतना ही कहना चाहता हूँ कि
    यक्षप्रश्न ऐसे हमारे दिल में सुलगते ही क्यूं!

    ReplyDelete
  25. ...होली की लख-लख बधाईंया व शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  26. दिल क्यूं घबराता है यूं दम घुटता है क्यूं ।
    चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं ।।

    Kya baat hai! Bahut achche.

    ReplyDelete
  27. अक्सर अनुभव बोलते हैं पढ़े हुए शब्द तो सिर्फ व्यक्त करने का माध्यम बनाते हैं. इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई, आपकी सपनों की श्रृंखला आज शाम से पढूंगा.

    ReplyDelete
  28. हम ही नरक का निर्माण करते हैं हम ही उसमे जलते सुलगते है |अपने बनाए नरक में तो दम भी घुटेगा और घबराहट भी होगी | अगर हमने नरक नहीं बनाया है और वास्तव में इसका अस्तित्व है तो संभव है किसी अन्य गृह के निवासी को यह हमारी दुनियां नरक लगे

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।