नरक के रस्ते से काफी बचना चाहा लेकिन फिर भी कुछ कहे बिना रहा न गया. स्वप्न-जगत से एक छोटा से ब्रेक ले रहा हूँ. तब तक गिरिजेश राव के "नरक के रस्ते" से प्रेरित कुछ अनगढ़ सी पंक्तियाँ प्रस्तुत है:
इंसान बलिश्ते क्यूँ अवरोध दानवी क्यूँ
प्रश्न सभी अपने रह जाते अनुत्तरित क्यूँ
क्यूँ त्याग दधीचि का भूदेव भूमिगत क्यूँ
ये सुरेश पराजित है वह वृत्र वृहत्तर क्यूँ
इस आग का जलना क्यूँ दिन रात सुलगना क्यूँ
ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूँ
दिल क्यूँ घबराता है यूँ दम घुटता है क्यूँ
चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूँ
(अनुराग शर्मा)
इंसान बलिश्ते क्यूँ अवरोध दानवी क्यूँ
प्रश्न सभी अपने रह जाते अनुत्तरित क्यूँ
क्यूँ त्याग दधीचि का भूदेव भूमिगत क्यूँ
ये सुरेश पराजित है वह वृत्र वृहत्तर क्यूँ
इस आग का जलना क्यूँ दिन रात सुलगना क्यूँ
ये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूँ
दिल क्यूँ घबराता है यूँ दम घुटता है क्यूँ
चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूँ
(अनुराग शर्मा)
प्रश्न ही प्रश्न!! बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteकब होगा उत्तरित ये क्यूं
ReplyDelete@डॉ. अरविन्द मिश्र,
ReplyDeleteउत्तर तो एक ही है, उठकर दीवार बनना.
चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं
प्रश्न विचारणीय हैं.
ReplyDeleteअच्छा है.
ReplyDeleteआग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
ReplyDeleteनरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।
....बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!
nice
ReplyDeleteसही कहा भैया, हर ज़माने में त्रास, पीड़ा, अँधेरे रहे हैं। मानव तो इनसे जूझते ही आगे बढ़ा है।
ReplyDelete.. एक मन:स्थिति आती है जिसमें क्रोध, खीझ, हताशा, व्यर्थता बोध हाबी हो जाते हैं। उस दौर की अभिव्यक्ति की सार्थकता इसी में होती है कि समस्याएँ एकदम वृहत्तर वृत्र सी दिखती हैं और उनकी पहचान आसान हो जाती है ...
..'त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप' याद आ गया।
बहुत अच्छी लगी ये रचना गिरिजेश राव जी को और आपको शुभकामनायें ।
ReplyDeleteइस आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
ReplyDeleteये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।
सोचने को मजबूर करती पंक्तियाँ......सुन्दर अभिव्यक्ति...
regards
वाकई बहुत ही गहन अर्थ को अभिव्यक्त करती लाईने. अंतोतगत्वा "चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं" सही उपाय है.
ReplyDeleteरामराम.
स आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं
ReplyDeleteये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ...
प्रश्न, प्रश्न प्रश्न ..... प्रश्न तो बहुत हैं ... पर क्या सब प्रश्नों का उत्तर हो ये ज़रूरी है ... एक जीवन में की इतने सारे प्रश्नों का रहस्य, इनका उत्तर मिलना संभव है .....
स्वर्ग और नर्क तो पेयर ऑफ अपोजिट्स हैं। नर्क न रहे तो स्वर्ग की महत्ता नहीं!
ReplyDeleteकभी कभी डर लगता है कि जब धरती पर सब अच्छा अच्छा हो जायेगा तो अच्छे की इज्जत क्या होगी?
"इस आग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
ReplyDeleteये नरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।"
बिलकुल यही उठा मन में ! नरक के रस्ते से गुजरते हुए बहुत से स्फुट विचार मेरे मन में भी आये ! समयानुसार लिखूँगा !
आभार ।
आपकी बात में दम है,
ReplyDeleteशायरी भी बढ़िया है!
कितना ???????????????????????
ReplyDeleteगंभीर चिंतन को उत्प्रेरित करती इस सुन्दर रचना ने
ReplyDeleteमोहित कर लिया ....
पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...
बहुत बढ़िया निदान बता दिया....बेबात ही डरते रहते हैं....संघर्ष ज़रूरी है...
ReplyDelete" नर हो में निराश करो मनको ,
ReplyDeleteयह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिससे यह व्यर्थ न हो "
और
" फिर महान बन मनुष्य
फिर महान बन
मन मिला अपार प्रेम से भरा तुझे
इसलिए कि प्यास जीव मात्र की बुझे "
कई कवियों ने यही भाव हर युग में गाया है आज आपने भी वही बात कही
बहुत अच्छी लगी कविता और भाव
स स्नेह,
- लावण्या
आप का प्रशन नाईस है जी,
ReplyDeletein yaksh prashno ka uttar bhee to sujhaaye
ReplyDeleteसादर वन्दे!
ReplyDeleteदिल क्यूं घबराता है यूं दम घुटता है क्यूं ।
चल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं ।।
सही कहा आपने
रत्नेश त्रिपाठी
काश, उठकर दीवार बनना हर एक के लिये आसान होता.
ReplyDeleteशर्त ये है, कि ये दीवार अन्याय या मुश्किलों के विरुद्ध हों. आपसी मानवी रिश्तों में नहीं.
सुन्दर चयन। शाश्वत आह्वान।
ReplyDeleteये सारे क्यूं हल हो जाएं तो ज़िंदगी न संवर जाये
ReplyDeleteआप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteआग का जलना क्यूं दिन रात सुलगना क्यूं ।
ReplyDeleteनरक बनाते कौन इसमें से गुज़रना क्यूं ।।
सच कहा .....
इंसान बलिश्ते क्यूं अवरोध दानवी क्यूं ।
ReplyDeleteप्रश्न सभी अपने रह जाते अनुत्तरित क्यूं ।।
...मतले का यह शेर बेहद लाज़वाब है.
इतना ही कहना चाहता हूँ कि
यक्षप्रश्न ऐसे हमारे दिल में सुलगते ही क्यूं!
...होली की लख-लख बधाईंया व शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteदिल क्यूं घबराता है यूं दम घुटता है क्यूं ।
ReplyDeleteचल उठ दीवार बनें बेबात का डरना क्यूं ।।
Kya baat hai! Bahut achche.
अक्सर अनुभव बोलते हैं पढ़े हुए शब्द तो सिर्फ व्यक्त करने का माध्यम बनाते हैं. इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई, आपकी सपनों की श्रृंखला आज शाम से पढूंगा.
ReplyDeleteहम ही नरक का निर्माण करते हैं हम ही उसमे जलते सुलगते है |अपने बनाए नरक में तो दम भी घुटेगा और घबराहट भी होगी | अगर हमने नरक नहीं बनाया है और वास्तव में इसका अस्तित्व है तो संभव है किसी अन्य गृह के निवासी को यह हमारी दुनियां नरक लगे
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