Sunday, August 5, 2012

बलवानों को दे दे ज्ञान - इस्पात नगरी से [59]

हर रविवार की तरह जब आज सुबह भारतीय समुदाय के लोग ओक क्रीक, विस्कॉंसिन के गुरुद्वारे में इकट्ठे हुए तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वहाँ कैसी मार्मिक घटना होने वाली थी। अभी तक जितनी जानकारी है उसके अनुसार गोरे रंग और लम्बे-चौडे शरीर वाले एक चालीस वर्षीय व्यक्ति ने गोलियाँ चलाकर गुरुद्वारे के बाहर चार और भीतर तीन लोगों की हत्या कर दी। इस घटना में कई अन्य लोग घायल हुए हैं। सहायता सेवा पर आये फ़ोन कॉल के बाद गुरुद्वारे पहुँचने वाले पहले पुलिस अधिकारी को दस गोलियाँ लगीं और वह अभी भी शल्य कक्ष में है। बाद में हत्यारा भी पुलिस अधिकारियों की गोली से मारा गया।

सरकार ने इस घृणा अपराध घटना को आंतरिक आतंकवाद माना है और इस कारण से इस मामले की जाँच स्थानीय पुलिस के साथ-साथ आतंकवाद निरोधी बल (ATF) और केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (FBI) भी कर रहे हैं। हत्यारे के बारे में आधिकारिक जानकारी अभी तक जारी नहीं की गई है मगर पुलिस ने जिस अपार्टमेंट को सील कर जाँच की है उसके आधार पर एक महिला ने हत्यारे को वर्तमान निवास से पहले अपने बेटे के घर में किराये पर रहा हुआ बताया है। इस महिला के अनुसार हाल ही में इस व्यक्ति का अपनी महिला मित्र से सम्बन्ध-विच्छेद भी हुआ था।

यह घटना सचमुच दर्दनाक है। मेरी सम्वेदनायें मृतकों और घायलों के साथ हैं। दुख इस बात का है कि अमेरिका में हिंसा बढती दिख रही है। कुछ ही दिन पहले एक नई फ़िल्म के रिलीज़ के पहले दिन ही एक व्यक्ति ने सिनेमा हॉल में घुसकर सामूहिक हत्यायें की थीं। कुछ समय और पहले ठीक यहीं पिट्सबर्ग के मनोरोग चिकित्सालय में घुसकर एक व्यक्ति ने वैसा ही कुकृत्य किया था। हिंसा बढने के कारणों की खोज हो तो शायद हर घटना के बाद कुछ नई जानकारी सामने आये लेकिन एक बात तो पक्की है। वह है अमेरिका का हथियार कानून।

अधिकांश अमेरिकी आज भी बन्दूक खरीदने के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं। सामान्य पिस्तौल या रिवॉल्वर ही नहीं बल्कि अत्यधिक मारक क्षमता वाले अति शक्तिशाली हथियार भी आसानी से उपलब्ध हैं और अधिकांश राज्यों में कोई भी उन्हें खरीद सकता है। दुःख की बात यह है कि हथियार लॉबी कुछ इस प्रकार का प्रचार करती है मानो इस प्रकार की घटनाओं का कारण समाज में अधिक हथियार न होना हो। वर्जीनिया टेक विद्यालय की गोलीबारी की घटना के बाद हुई लम्बी वार्ता में एक सहकर्मी इस बात पर डटा रहा कि यदि उस घटना के समय अन्य लोगों के पास हथियार होते तो कम लोग मरते। वह यह बात समझ ही नहीं सका कि यदि हत्यारे को बन्दूक सुलभ न होती तो घटना घटती ही नहीं, घात की कमी-बेशी तो बाद की बात है।

आज की इस घटना ने मुझे डॉ. गोर्डन हडसन (Dr. Gordon Hodson) के नेतृत्व में हुए उस अध्ययन की याद दिलाई जिसमें रंगभेद, जातिवाद, कट्टरपन और पूर्वाग्रह आदि का सम्बन्ध बुद्धि सूचकांक (IQ) से जोड़ा गया था। यह अध्ययन साइकॉलॉजिकल साइंस में छपा है और इसका सार निःशुल्क उपलब्ध है। ब्रिटेन भर से इकट्ठे किये गये आँकड़ों में से 15,874 बच्चों के बुद्धि सूचकांक का अध्ययन करने के बाद मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि कम बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर भेदभाव और कट्टरता अपनाने में अपने अधिक बुद्धिमान साथियों से आगे रहते हैं। अमेरिकी आँकड़ों पर आधारित एक अध्ययन में कम बुद्धि सूचकांक और पूर्वाग्रहों का निकट सम्बन्ध पाया गया है। इसी प्रकार निम्न बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर नियंत्रणवाद, कठोर अनुशासन और तानाशाही आदि में अधिक विश्वास करते हुए पाये गये।

तमसो मा ज्योतिर्गमय ...
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि बेहतर समझ पूर्वाग्रहों का बेहतर इलाज कर सकती है। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डॉ. ब्रायन नोसेक (Dr. Brian Nosek) का कहना है कि अधिक बुद्धिमता तर्कों की असंगतता को स्वीकार कर सकती है जबकि कम बुद्धि के लिये यह कठिन है, उसके लिये तो कोई एक वाद या विचारधारा जैसे सरल साधन को अपना लेना ही आसान साधन है।

बुद्धि के विस्तार और व्यक्ति, वाद, मज़हब, क्षेत्र आदि की सीमाओं से मुक्ति के सम्बन्ध के बारे में मेरा अपना नज़रिया भी लगभग यही है। बुद्धि हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर सतत निर्देशित करती रहती है। पूर्वाग्रहों से बचने के लिये अपने अंतर का प्रकाशस्रोत लगातार प्रज्ज्वलित रखना होगा। सवाल यह है कि ऐसा हो कैसे? बहुजन में बेहतर समझ कैसे पैदा की जाय? सब लोग नैसर्गिक रूप से एक से कुशाग्रबुद्धि तो हो नहीं सकते। तब अनेकता में एकता कैसे लाई जाये, संज्ञानात्मक मतभेद (Cognitive dissonance) के साथ रहना कैसे हो? मुझे तो यही लगता है कि स्वतंत्र वातावरण में पले बढे बच्चे नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र विचारधारा की ओर उन्मुख होते हैं जबकि नियंत्रण और भय से जकड़े वातावरण में परवरिश पाये बच्चों को बड़े होने के बाद भी मतैक्य, कट्टरता, तानाशाही ही स्वाभाविक आचरण लगते हैं। इसलिये हमारा कर्तव्य बनता है कि बच्चों को वैविध्य की खूबसूरती और सुखी मानवता के लिये सहिष्णुता की आवश्यकता के बारे में विशेष रूप से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। इस विषय पर आपके विचार और अनुभव जानने की इच्छा है।
सम्बन्धित कड़ियाँ
* गुरुद्वारा गोलीबारी में सात मृत
* अमेरिका में आग्नेयास्त्र हिंसा
* प्रकाशित मन और तामसिक अभिरुचि
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
अहिसा परमो धर्मः
संगच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्‌।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥ (ऋग्वेद 12.191.4)

42 comments:

  1. जहाँ शिक्षा का स्तर इतना ऊँचा है, प्रशासन चुस्त दुरूस्त है वहाँ हथियार सर्वसुलभ कराने की क्या आवश्यकता है? मनोरोगी तो ऐसी वारदात कर ही सकते हैं और मनोरोगी हमेशा रहेंगे। अमेरिका में ऐसी घटनाएं प्रायः सुनने को मिलती हैं।

    ईश्वर मृतकों के परिवार वालों को अचानक आई इस आपदा को सहने की शक्ति दे। मृतआत्माओं को शांति प्रदान करे।

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    1. जी, हथियारों के पक्ष में एक बड़ा जन समुदाय मौजूद है।

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    2. दरअसल रसूख भी इसका एक कारण है. हथियार को लोग रसूख से जोड़कर देखते हैं..

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  2. वर्ष २००५ में क्वेंटिन टरेंटिनो ने अपनी हॉस्टल श्रृंखला की हॉरर फ़िल्में बनाई जिसमें उसने यह दिखाया कि चेक गणराज्य में कुछ लोग विदेशी टूरिस्टों को अगवा करके धनी लोगों को 'हत्या का अनुभव' लेने का बंदोबस्त करते हैं. इस पर चेक सरकार और नागरिकों ने उनके देश की छवि धूमिल करने का (उचित) आरोप लगाया तो निर्देशक ने कहा कि बहुसंख्यक अमेरिकी नागरिकों का सामान्य ज्ञान इतना कम है कि उन्हें यह पता ही नहीं है कि चेक गणराज्य कहाँ है, इसलिए उसकी छवि धूमिल करने का प्रश्न ही नहीं उठता.
    यह दलील हास्यास्पद है न? लेकिन यह बात ज़ाहिर हो चुकी है कि कॉलेज लेवल की शिक्षा प्राप्त अमेरिकी और यूरोपीय जनसमुदाय को निकाल दें तो बचे हुए लोग अपने विश्व के बारे में लगभग कुछ भी नहीं जानते. उनसे ज्यादा बेहतर स्थिति में भारतीय हैं लेकिन भारतीयों में भी वह तबका अधिक कट्टर और संकीर्ण है जो शिक्षा से वंचित रह गया है. शिक्षा में भी कई भेद हैं और यह पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक बुनावट से संचालित होती है इसलिए बहुत अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी कभी जाहिल प्रतीत होने लगते हैं क्योंकि वे बहुधा सिक्कों के एक ही पहलू को देखने लगते हैं.
    ९/११ समीप है. देखिये अब आगे और क्या होता है.
    अंतिम पैरा में 'मतैक्य' को 'मतभिन्नता' कर लीजिये.

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    1. मतैक्य से मेरा आशय unanimity की अपेक्षा है। मैं कहना चाह रहा था कि संकीर्ण वातावरण के लोग मतभिन्नता को स्वीकार नहीं कर पाते, उनके लिये मतैक्य ही आदर्श स्थिति है और यदि स्वतः न बने तो बलप्रयोग से अपनी बात मनवाना सही समझते हैं। अनेक अतिवादी विचारधाराओं के लो आइक्यू अनुयायियों के साथ यह बात पूर्णतया सत्य लगती है।

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    2. आपकी विवेचना सही प्रतीत होती है.
      मैंने भी अपने कमेन्ट में 'स्लोवाकिया' की जगह गलती से 'चेक गणराज्य' लिख दिया.

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  3. हे ईश्वर, इन मूढ़ों को सद्बुद्धि दो..

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  4. inhe kab sad-budhhi milegi, bhagwan marne walo ke pariwar ko ise sahne ki shakti de........

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  5. ईश्वर सद्बुद्धि दे.... इस विषय पर आखिरी पेराग्राफ में आपके विचार बहुत सधे हुए और सही राह सुझाते हुए हैं

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  6. ऐसी घटनाएँ पहले भी वहाँ हुई हैं.ये बताती हैं कि अमेरिका एक राष्ट्र के नाते किस तरह का अपना निर्माण कर रहा है.उसने जनसंहारों के कई बड़े और दर्दनाक अध्याय रचे हैं तो नागरिक भी यही करेंगे !

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  7. दुखद घटना. आज की अखबारों में आया था. यह आम जानकारी है की अमरीकी नागरिकों को हथियार बड़ी आसानी से मिल जाती है. उन्हें अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योकि अमरीकी भी इस सुविधा के रहते काल के ग्रास हो रहे हैं. मोनिका जी से सहमत.

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  8. मनुष्‍य के अन्‍दर की ईर्ष्‍या और घृणा बढ़ती जा रही है। वह अपनी असफलता के पीछे दूसरों की सफलता को कारण मानता है और हिंसा पर उतर आता है। दुखद हैं ऐसे प्रसंग।

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  9. बहुत दुखद !
    प्रायःयह भी होता है कि बचपन से पारिवारिक विखंडन की त्रासदी झेलनेवाले बच्चे बड़े हो कर कुंठा- ग्रस्त असामाजिक हो जाते हैं .

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    1. जी, ऐसा भी होता है।

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  10. अनुराग जी , इस खून खराबे को एक भिन्न अंदाज में भी देखना होगा ! सिमटते संसाधन बढ़ती जनसंख्या भी इन भयावह त्रासदियों की जन्म दाता है! असम का बोडो -मुस्लिम विवाद भी इसी की परिणिति का हिस्सा है !

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    1. आपकी बात से सहमत हूँ।

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  11. @ मुझे तो यही लगता है कि स्वतंत्र वातावरण में पले बढे बच्चे नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र विचारधारा की ओर उन्मुख होते हैं जबकि नियंत्रण और भय से जकड़े वातावरण में परवरिश पाये बच्चों को बड़े होने के बाद भी मतैक्य, कट्टरता, तानाशाही ही स्वाभाविक आचरण लगते हैं।
    थोड़ी उलझन होती है इस मुद्दे पर . सुना है कि पाश्चात्य देशों में बच्चे बिना नियंत्रण के पलते हैं , जो उन्हें अपनी हर बात मनवाने की भूख जगाता है , तानाशाही को प्रश्रय देता है .

    अध्ययन और जिज्ञासा के लिए मुक्त वातावरण देना ठीक है मगर संस्कारित करने के लिए थोड़ी कठोरता आवश्यक लगती है . हमारे विद्यार्थी होने के समय में गुरु द्वारा डांट फटकार आम बात होती थी , मगर विद्यार्थी बड़े अनुशासित रहते थे , अपराधी कम होते थे ! अपनी पीढ़ी के अभिभावकों के रूप में हम बच्चों को डांटना- फटकारना -मारना उचित नहीं समझते मगर ..... confused :(

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    1. कंफ़्यूज़न
      ?
      नियमन की आवश्यकता कब और कितनी? निर्देशन, नियमन और नियंत्रण का अंतर? इन सब का उद्देश्य? और फिर उद्देश्य और साधनों में ईमानदारी की मात्रा?

      बहुजन हिताय बहुजन सुखाय ...
      सर्वेषाम् मंगलम् भवतु ...
      सर्वे भवंतु सुखिनः ...

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  12. jaisa nishant ji btaya , agar waqai amerikiyo ka g.k. itna kamjor hai , to unhe hathiyar dena .bandar ke hath me ustaara dene jaisa hai . khair mare gye logo ki aatma ko ishwar shanti aur baki ko sadbuddhi de.

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  13. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |

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    1. धन्यवाद राजेश कुमारी जी!

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  14. हिंसा कही पर भी हो चाहे अमेरिका हो चाहे भारत या कोई भी जगह, बुनियादी तौर पर इस हिसा के पीछे क्रोध है ! सुना है कि, यहूदियों के प्राचीन ग्रंथो में उनका इश्वर स्वयं घोषणा करता है ....."I am an angry God I am not your uncle" लगता है तबसे आज तक क्रोध के तल पर कुछ विशेष बदलाव नहीं हुआ है ! क्रोध के दो तल है एक निम्म्तम दूसरा श्रेष्ठतम, निम्म्तम तल पर हर प्रकार क़ी पाशविकता बेहोशी है ! श्रेष्ठतम तल पर प्रेम है करुणा है अवेरनेस जागरूकता है ! प्राचीन काल से मनुष्य में यह क्रोध क़ी स्थितियां चली आ रही है ! कानून मुजरिमों को कड़ी से कड़ी सजा सुनाकर यह सोचता हो कि,सजाओं से हिंसा में सूधार होगा लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं और कभी होगा ! इसका समाधान है समाधी में,ध्यान में और यही देशना सनातन काल से हमारे बुद्ध पुरुष देते आ रहे है ! हम कितने ही हमारी विकास की बात करे लेकिन एक बड़े पैमाने पर मनुष्य जाति को ध्यान की जरुरत है जिससे क्रोध और हिसा से मुक्त हुआ जा सके !
    अच्छी पोस्ट है आपकी बातों को भी ध्यान में रखकर दी हुई टिप्पणी है !

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  15. हिंसा की खबरें अमेरिका में ही नहीं सारे विश्व में बढ़ रही है, बोडो हिंसा फिर से भडक गयी है, नैतिक मूल्यों के प्रति अनास्था, ईश्वर को अपने जीवन से बेदखल कर देना, धर्म का अर्थ सम्प्रदाय लगाना आदि बहुत से कारण हैं, आपने सही कहा है बच्चों से ही शुरुआत करनी होगी..

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  16. मानसिक रुग्‍णता और साथ हथियार, चिंताजनक और खतरनाक.

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  17. This comment has been removed by the author.

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    1. मेरा मानना है, हिंसा क्रूरता और कटुता के लिए सबसे अधिक जवाबदार कुछ है तो वह है धैर्य की कमी और असहनशीलता। पता नहीं क्यों, शिक्षा और सभ्यता-विकास के इस दौर में धैर्य और सहनशीलता में कमी आ रही है, जबकि यह दोनो ही तत्व सहिष्णुता के लिए आवश्यक गुण है। यह बात भी सही है कि विकसित बुद्धि, एक विवेक प्रदान करती है जो हमें हमारे ही पूर्वाग्रहों पर समीक्षा-चिंतन का अवसर देती है।
      वस्तुततः पूर्वाग्रह तो सभी में होते है किन्तु मात्र वे लोग ही स्वभाव में परिष्कार कर पाते है जिनमें अपने ही पूर्वाग्रहों पर निर्ममता से समीक्षा करने का अभ्यास हो।

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  18. बेहद दुखद ! आघात सा लगा ! मेहनतकश भारतीयों से पिछड़ने के अपने कारण खोजने और उन्हें दुरुस्त करने के बजाये , उनकी कुंठायें अगर इस तरह से अभिव्यक्त होने लगीं तो यह बहुत बुरा होगा ! शायद नस्लवाद अब भी उनकी जेहनियत में शामिल है ?

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  19. हथियारों की लोकप्रियता में कहीं न कहीं हॉलीवुड का भी हाथ है . जिस तरह वहां फिल्मों में गन फाईट दिखाई जाती है वह एक खेल जैसा लगती है जो किसी भी मंद बुद्धि को प्रभावित कर सकती है . आपने सही कहा , इसका प्रभाव मंद बुद्धि के लोगों पर ज्यादा और जल्दी पड़ता है . वहां ऐसे लोगों की कमी है भी नहीं .
    बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है ये .

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  20. सचमुच! बलवान जब ज्ञानहीन हो, पूर्वाग्रह का मारा हो तो वह अधिक खतरनाक है।

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    1. शुक्रिया अविनाश! तुम्हारी इस पंक्ति में पूरे आलेख का सार है।

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  21. अनुराग जी! कुछ समय पहले तक और आज भी दुबई या संयुक्त अरब अमीरात को आतंकवाद से जोडकर देखा जाता रहा है.. और मैंने अपने प्रवास के दौरान यह निष्कर्ष निकाला है कि वहाँ कम पढ़े लिखे (आपके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार जिनका बुद्धि सूचकांक कम है)लोगों को आसानी से हिंसा और आतंकवाद की ओर प्रेरित किया जा सकता है.. अमेरिका के उन अपराधियों की आर्थिक पृष्ठभूमि का पता नहीं, किन्तु दुबई में कम पैसों में काम करने वाले एक एक कमरे में दस-दस रहते हैं (आर्थिक विवशता के कारण).. ऐसे में राष्ट्रीयता की दीवार से अधिक दीरघ दाग़ निदाघ का तपोवन प्रतीत होता है वह कमरा. सामीप्य समबन्धों को जन्म देता है और सम्बन्ध उनसे "कुछ भी" करवा लेते हैं और "किसी के भी" विरुद्ध, अपने अपनों के भी!!
    हथियार वाली बात तो आपने सही कही!!

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    1. सहमत हूँ। आपके पुनः ऐक्टिव होने का स्वागत है!

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  22. bahut dukhad hai sab kuch chahe jisakaa bhee haath ho.

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  23. ये दुखद घटना है ... आशा है अमेरिका सरकार इसके मनोवैज्ञानिक पक्ष को भी ध्यान से देखेगी और अपने समाज में इस बुराई को दूर करने के कदम उठेगी ...

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  24. अत्यंत वैचारिक लेख....

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  25. अत्यंत विचारणीय गंभीर पोस्ट जिस पर गहन चिंतन पश्चात ही कुछ कह पाने की स्थिति बनती है . हाँ सभी देशों की अपनी अस्मिता और जीवन शैली निर्धारित करती है पोस्ट पर अंकित बातें

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  26. बिना विवेक के बलवान नहीं, जैसे गंजे को नाखून मिल गए हों|

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  27. @" व्यक्तिगत स्वतंत्रता "

    यह हर समाज में बहुत महत्वपूर्ण है | होनी भी चाहिए - किन्तु इसकी कुछ हदें भी होनी चाहिए | जब हम आठवी कक्षा में थे तब हमारे "civics" विषय पढ़ाने वाले सर कहते थे "The Constitution allows us freedom. Every citizen is free. But, remember this - your freedom ( to move your hand ) ENDS where my cheek starts.

    अर्थात personal space ज़रूरी होते हुए भी दूसरे की personal space भी उतनी ही महत्वपूर्ण है | There can be freedom only when there is self discipline , नहीं तो स्वाधीनता - स्वाधीनता नहीं रह जाती , independence should mean choice , but never mean chaos .

    बन्दर के हाथ में मोतियों का हार दे देना क्या यह दिखाता है की हम बन्दर को अपने "बराबर" मानते हैं ? या यह दिखाता है की हम बौद्धिक तौर पर बन्दर के ही बराबर माने जाने योग्य हैं ?

    हर इंसान को हथियार खरीदने की वैयक्तिक स्वतंत्रता हो, तो यह भी आवश्यक है की हर व्यक्ति उस हथियार को, और स्वयं अपने भावावेशों को, संभालने, handle करने लायक परिपक्व हो | और यह संभव नहीं, तो हथियार रखने की choice व्यक्ति की नहीं, बल्कि क़ानून की होनी चाहिए |

    यह बात यहीं समाप्त नहीं होती | ब्लॉग लेखन पर भी लागू होती है |

    पढ़ते / सुनते आये हैं - the pen is mightier than the sword . और यह sword आज ब्लॉग के जरिये हर परिपक्व और अपरिपक्व के हाथ में है - जो जैसी काबिलियत / बुद्धि है वैसे इसे इस्तेमाल कर रहा है |

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  28. दुखद !
    मनोरोग के कई कारण हो सकते हैं. पर हथियार वाली बात ज्यादा चिंताजनक है. ! :(

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  29. आपकी इस विचारोत्‍तेजक पोस्‍ट के अनितम पैराग्राफ में दिए, आपके निष्‍कर्ष से मैं पूरी तरह सहमत हूँ।

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  30. आपकी प्रस्तुति सार्थक और विचारणीय है.
    श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार 'गुण त्रय विभाग योग'
    यदि संपन्न हो पाए तो 'तमो' गुण से निजात
    पा हम 'सतो'गुण की तरफ उन्मुख हो सकेंगें
    जब हमारे अंत:करण में हिंसा से मुक्ति मिल
    निर्मलता का संचार होगा.

    ऊपर से नीचे गिरना सरल है,पर नीचे से ऊपर
    उठने के लिए निरंतर साधना और प्रयास की आवश्यकता है.

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  31. दुखद घटना तो है ही, साथ ही समाज को इन मारक हथियारों की इतनी सरलता से उपलब्धता के बारे में भी सोचना होगा. आपने सही कहा कि कम आइ क्यू वाला व्यक्ति नए विचार, नए नजरिए की बजाए लीक पर चलना ही पसंद करेगा.जबकि कम बुद्धि के लिये कोई एक वाद या विचारधारा जैसे सरल साधन को अपना लेना ही आसान साधन है।
    इसी लिए कट्टरता पनप व फल फूल रही है.
    घुघूतीबासूती

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।