हर रविवार की तरह जब आज सुबह भारतीय समुदाय के लोग ओक क्रीक, विस्कॉंसिन के गुरुद्वारे में इकट्ठे हुए तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वहाँ कैसी मार्मिक घटना होने वाली थी। अभी तक जितनी जानकारी है उसके अनुसार गोरे रंग और लम्बे-चौडे शरीर वाले एक चालीस वर्षीय व्यक्ति ने गोलियाँ चलाकर गुरुद्वारे के बाहर चार और भीतर तीन लोगों की हत्या कर दी। इस घटना में कई अन्य लोग घायल हुए हैं। सहायता सेवा पर आये फ़ोन कॉल के बाद गुरुद्वारे पहुँचने वाले पहले पुलिस अधिकारी को दस गोलियाँ लगीं और वह अभी भी शल्य कक्ष में है। बाद में हत्यारा भी पुलिस अधिकारियों की गोली से मारा गया।
सरकार ने इस घृणा अपराध घटना को आंतरिक आतंकवाद माना है और इस कारण से इस मामले की जाँच स्थानीय पुलिस के साथ-साथ आतंकवाद निरोधी बल (ATF) और केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (FBI) भी कर रहे हैं। हत्यारे के बारे में आधिकारिक जानकारी अभी तक जारी नहीं की गई है मगर पुलिस ने जिस अपार्टमेंट को सील कर जाँच की है उसके आधार पर एक महिला ने हत्यारे को वर्तमान निवास से पहले अपने बेटे के घर में किराये पर रहा हुआ बताया है। इस महिला के अनुसार हाल ही में इस व्यक्ति का अपनी महिला मित्र से सम्बन्ध-विच्छेद भी हुआ था।
यह घटना सचमुच दर्दनाक है। मेरी सम्वेदनायें मृतकों और घायलों के साथ हैं। दुख इस बात का है कि अमेरिका में हिंसा बढती दिख रही है। कुछ ही दिन पहले एक नई फ़िल्म के रिलीज़ के पहले दिन ही एक व्यक्ति ने सिनेमा हॉल में घुसकर सामूहिक हत्यायें की थीं। कुछ समय और पहले ठीक यहीं पिट्सबर्ग के मनोरोग चिकित्सालय में घुसकर एक व्यक्ति ने वैसा ही कुकृत्य किया था। हिंसा बढने के कारणों की खोज हो तो शायद हर घटना के बाद कुछ नई जानकारी सामने आये लेकिन एक बात तो पक्की है। वह है अमेरिका का हथियार कानून।
अधिकांश अमेरिकी आज भी बन्दूक खरीदने के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं। सामान्य पिस्तौल या रिवॉल्वर ही नहीं बल्कि अत्यधिक मारक क्षमता वाले अति शक्तिशाली हथियार भी आसानी से उपलब्ध हैं और अधिकांश राज्यों में कोई भी उन्हें खरीद सकता है। दुःख की बात यह है कि हथियार लॉबी कुछ इस प्रकार का प्रचार करती है मानो इस प्रकार की घटनाओं का कारण समाज में अधिक हथियार न होना हो। वर्जीनिया टेक विद्यालय की गोलीबारी की घटना के बाद हुई लम्बी वार्ता में एक सहकर्मी इस बात पर डटा रहा कि यदि उस घटना के समय अन्य लोगों के पास हथियार होते तो कम लोग मरते। वह यह बात समझ ही नहीं सका कि यदि हत्यारे को बन्दूक सुलभ न होती तो घटना घटती ही नहीं, घात की कमी-बेशी तो बाद की बात है।
आज की इस घटना ने मुझे डॉ. गोर्डन हडसन (Dr. Gordon Hodson) के नेतृत्व में हुए उस अध्ययन की याद दिलाई जिसमें रंगभेद, जातिवाद, कट्टरपन और पूर्वाग्रह आदि का सम्बन्ध बुद्धि सूचकांक (IQ) से जोड़ा गया था। यह अध्ययन साइकॉलॉजिकल साइंस में छपा है और इसका सार निःशुल्क उपलब्ध है। ब्रिटेन भर से इकट्ठे किये गये आँकड़ों में से 15,874 बच्चों के बुद्धि सूचकांक का अध्ययन करने के बाद मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि कम बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर भेदभाव और कट्टरता अपनाने में अपने अधिक बुद्धिमान साथियों से आगे रहते हैं। अमेरिकी आँकड़ों पर आधारित एक अध्ययन में कम बुद्धि सूचकांक और पूर्वाग्रहों का निकट सम्बन्ध पाया गया है। इसी प्रकार निम्न बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर नियंत्रणवाद, कठोर अनुशासन और तानाशाही आदि में अधिक विश्वास करते हुए पाये गये।
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि बेहतर समझ पूर्वाग्रहों का बेहतर इलाज कर सकती है। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डॉ. ब्रायन नोसेक (Dr. Brian Nosek) का कहना है कि अधिक बुद्धिमता तर्कों की असंगतता को स्वीकार कर सकती है जबकि कम बुद्धि के लिये यह कठिन है, उसके लिये तो कोई एक वाद या विचारधारा जैसे सरल साधन को अपना लेना ही आसान साधन है।
बुद्धि के विस्तार और व्यक्ति, वाद, मज़हब, क्षेत्र आदि की सीमाओं से मुक्ति के सम्बन्ध के बारे में मेरा अपना नज़रिया भी लगभग यही है। बुद्धि हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर सतत निर्देशित करती रहती है। पूर्वाग्रहों से बचने के लिये अपने अंतर का प्रकाशस्रोत लगातार प्रज्ज्वलित रखना होगा। सवाल यह है कि ऐसा हो कैसे? बहुजन में बेहतर समझ कैसे पैदा की जाय? सब लोग नैसर्गिक रूप से एक से कुशाग्रबुद्धि तो हो नहीं सकते। तब अनेकता में एकता कैसे लाई जाये, संज्ञानात्मक मतभेद (Cognitive dissonance) के साथ रहना कैसे हो? मुझे तो यही लगता है कि स्वतंत्र वातावरण में पले बढे बच्चे नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र विचारधारा की ओर उन्मुख होते हैं जबकि नियंत्रण और भय से जकड़े वातावरण में परवरिश पाये बच्चों को बड़े होने के बाद भी मतैक्य, कट्टरता, तानाशाही ही स्वाभाविक आचरण लगते हैं। इसलिये हमारा कर्तव्य बनता है कि बच्चों को वैविध्य की खूबसूरती और सुखी मानवता के लिये सहिष्णुता की आवश्यकता के बारे में विशेष रूप से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। इस विषय पर आपके विचार और अनुभव जानने की इच्छा है।
* अमेरिका में आग्नेयास्त्र हिंसा
* प्रकाशित मन और तामसिक अभिरुचि
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* अहिसा परमो धर्मः
सरकार ने इस घृणा अपराध घटना को आंतरिक आतंकवाद माना है और इस कारण से इस मामले की जाँच स्थानीय पुलिस के साथ-साथ आतंकवाद निरोधी बल (ATF) और केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (FBI) भी कर रहे हैं। हत्यारे के बारे में आधिकारिक जानकारी अभी तक जारी नहीं की गई है मगर पुलिस ने जिस अपार्टमेंट को सील कर जाँच की है उसके आधार पर एक महिला ने हत्यारे को वर्तमान निवास से पहले अपने बेटे के घर में किराये पर रहा हुआ बताया है। इस महिला के अनुसार हाल ही में इस व्यक्ति का अपनी महिला मित्र से सम्बन्ध-विच्छेद भी हुआ था।
यह घटना सचमुच दर्दनाक है। मेरी सम्वेदनायें मृतकों और घायलों के साथ हैं। दुख इस बात का है कि अमेरिका में हिंसा बढती दिख रही है। कुछ ही दिन पहले एक नई फ़िल्म के रिलीज़ के पहले दिन ही एक व्यक्ति ने सिनेमा हॉल में घुसकर सामूहिक हत्यायें की थीं। कुछ समय और पहले ठीक यहीं पिट्सबर्ग के मनोरोग चिकित्सालय में घुसकर एक व्यक्ति ने वैसा ही कुकृत्य किया था। हिंसा बढने के कारणों की खोज हो तो शायद हर घटना के बाद कुछ नई जानकारी सामने आये लेकिन एक बात तो पक्की है। वह है अमेरिका का हथियार कानून।
अधिकांश अमेरिकी आज भी बन्दूक खरीदने के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं। सामान्य पिस्तौल या रिवॉल्वर ही नहीं बल्कि अत्यधिक मारक क्षमता वाले अति शक्तिशाली हथियार भी आसानी से उपलब्ध हैं और अधिकांश राज्यों में कोई भी उन्हें खरीद सकता है। दुःख की बात यह है कि हथियार लॉबी कुछ इस प्रकार का प्रचार करती है मानो इस प्रकार की घटनाओं का कारण समाज में अधिक हथियार न होना हो। वर्जीनिया टेक विद्यालय की गोलीबारी की घटना के बाद हुई लम्बी वार्ता में एक सहकर्मी इस बात पर डटा रहा कि यदि उस घटना के समय अन्य लोगों के पास हथियार होते तो कम लोग मरते। वह यह बात समझ ही नहीं सका कि यदि हत्यारे को बन्दूक सुलभ न होती तो घटना घटती ही नहीं, घात की कमी-बेशी तो बाद की बात है।
आज की इस घटना ने मुझे डॉ. गोर्डन हडसन (Dr. Gordon Hodson) के नेतृत्व में हुए उस अध्ययन की याद दिलाई जिसमें रंगभेद, जातिवाद, कट्टरपन और पूर्वाग्रह आदि का सम्बन्ध बुद्धि सूचकांक (IQ) से जोड़ा गया था। यह अध्ययन साइकॉलॉजिकल साइंस में छपा है और इसका सार निःशुल्क उपलब्ध है। ब्रिटेन भर से इकट्ठे किये गये आँकड़ों में से 15,874 बच्चों के बुद्धि सूचकांक का अध्ययन करने के बाद मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि कम बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर भेदभाव और कट्टरता अपनाने में अपने अधिक बुद्धिमान साथियों से आगे रहते हैं। अमेरिकी आँकड़ों पर आधारित एक अध्ययन में कम बुद्धि सूचकांक और पूर्वाग्रहों का निकट सम्बन्ध पाया गया है। इसी प्रकार निम्न बुद्धि सूचकांक वाले बच्चे बड़े होकर नियंत्रणवाद, कठोर अनुशासन और तानाशाही आदि में अधिक विश्वास करते हुए पाये गये।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ... |
बुद्धि के विस्तार और व्यक्ति, वाद, मज़हब, क्षेत्र आदि की सीमाओं से मुक्ति के सम्बन्ध के बारे में मेरा अपना नज़रिया भी लगभग यही है। बुद्धि हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर सतत निर्देशित करती रहती है। पूर्वाग्रहों से बचने के लिये अपने अंतर का प्रकाशस्रोत लगातार प्रज्ज्वलित रखना होगा। सवाल यह है कि ऐसा हो कैसे? बहुजन में बेहतर समझ कैसे पैदा की जाय? सब लोग नैसर्गिक रूप से एक से कुशाग्रबुद्धि तो हो नहीं सकते। तब अनेकता में एकता कैसे लाई जाये, संज्ञानात्मक मतभेद (Cognitive dissonance) के साथ रहना कैसे हो? मुझे तो यही लगता है कि स्वतंत्र वातावरण में पले बढे बच्चे नैसर्गिक रूप से स्वतंत्र विचारधारा की ओर उन्मुख होते हैं जबकि नियंत्रण और भय से जकड़े वातावरण में परवरिश पाये बच्चों को बड़े होने के बाद भी मतैक्य, कट्टरता, तानाशाही ही स्वाभाविक आचरण लगते हैं। इसलिये हमारा कर्तव्य बनता है कि बच्चों को वैविध्य की खूबसूरती और सुखी मानवता के लिये सहिष्णुता की आवश्यकता के बारे में विशेष रूप से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। इस विषय पर आपके विचार और अनुभव जानने की इच्छा है।
सम्बन्धित कड़ियाँ* गुरुद्वारा गोलीबारी में सात मृत
* अमेरिका में आग्नेयास्त्र हिंसा
* प्रकाशित मन और तामसिक अभिरुचि
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* अहिसा परमो धर्मः
संगच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥ (ऋग्वेद 12.191.4)