.
" ... ऊँच-नीच से ऊपर उठे बिना क्रांति नहीं आयेगी। ... मैं और मेरा, यह सब पूंजीपतियों के चोंचले हैं। ... धर्म अफीम है। ... शादी, विवाह, परिवार जैसी रस्में हमें बान्धने के लिये, हमारी सोच को कुंद करने के लिये पिछड़े, धर्मभीरु समाजों ने बनाई थीं। ... अपना घर फूंककर हमारे साथ आइये।"
कामरेड का ओजस्वी भाषण चल रहा था। उनके चमचे जनता को विश्वास दिला रहे थे कि क्रांति दरवाज़े तक तो आ ही चुकी है। जिस दिन इलाके के स्कूल, कारखाने, थाने, और इधर से गुज़रने वाली ट्रेनों को आग लगा दी जायेगी, क्रांति का प्रकाश उसी दिन उनके जीवन को आलोकित कर देगा।
" ... ऊँच-नीच से ऊपर उठे बिना क्रांति नहीं आयेगी। ... मैं और मेरा, यह सब पूंजीपतियों के चोंचले हैं। ... धर्म अफीम है। ... शादी, विवाह, परिवार जैसी रस्में हमें बान्धने के लिये, हमारी सोच को कुंद करने के लिये पिछड़े, धर्मभीरु समाजों ने बनाई थीं। ... अपना घर फूंककर हमारे साथ आइये।"
कामरेड का ओजस्वी भाषण चल रहा था। उनके चमचे जनता को विश्वास दिला रहे थे कि क्रांति दरवाज़े तक तो आ ही चुकी है। जिस दिन इलाके के स्कूल, कारखाने, थाने, और इधर से गुज़रने वाली ट्रेनों को आग लगा दी जायेगी, क्रांति का प्रकाश उसी दिन उनके जीवन को आलोकित कर देगा।
भाषण के बाद जब कामरेड अपनी कार तक पहुँचे तो देखा कि उनके नौकर एक अधेड़ को लुहूलुहान कर रहे थे।
"क्या हुआ?" कामरेड ने पूछा।
"हुज़ूर, चोरी की कोशिश में था ... शायद।"
"तेरी ये हिम्मत, जानता नहीं कार किसकी है?" कामरेड ने ज़मीन पर तड़पते हुए अधेड़ को एक लात लगाते हुए कहा और अपने काफिले के साथ निकल लिये। उनका समय कीमती था।
उस सर्द रात के अगले दिन एक स्थानीय अखबार के एक कोने में एक लावारिस भिखारी सड़क पर मरा पाया गया। दो भूखे अनाथ बच्चों पर अखबार की नज़र अभी नहीं पडी है क्योंकि वे अभी भी जीवित हैं।
मंत्री जी कमिश्नर से कह रहे थे, "कोई लड़का बताओ न! अपने कामरेड जी की बेटी के लिये। दहेज़ खूब देंगे, फैक्ट्री लगा देंगे, एनजीओ खुला देंगे। उत्तर-दक्षिण, देश-विदेश कहीं से भी हो शर्त बस एक है, लडका ऊँची जाति का होना चाहिये।"
==========================================
ऑडियो प्रस्तुतियाँ - आपके ध्यानाकर्षण के लिये
==========================================
उपाय छोटा काम बड़ा
बांधों को तोड़ दो
कमलेश्वर की "कामरेड"
तीखी व्यंजनावाली धारदार लघुकथा। अच्छी लगी।
ReplyDeleteविरोधाभासों से भरे जीवन, क्या निष्कर्ष निकलेगा।
ReplyDeleteसमाज की सच्चाई बयान करती इस अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteकिंगमेकर कॉमरेड ’सुरजीत’ के पौत्र के विवाहोत्सव की याद आ गई।
ReplyDelete’खाने के और, दिखाने के और’
यही तो असली रंग है.. क्या कहिये ऐसे लोगों को ... असली सूरत छिपी रहे..
ReplyDeleteकथनी और करनी के इसी फर्क ने कम्युनिस्टों क्या सभी नेताओं की छवि को धुमिल किया है।
ReplyDeleteकथनी और करनी में फ़र्क़ को दर्शाती लघुकथा सटीक और सार्थक है।
ReplyDeleteशहीद अपने घर कोई नहीं चाहता, पडोसी के घर में चाहता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
सटीक कटाक्ष है सोच पर......
ReplyDeleteअपने बदायू मे एक कामरेड का महल बन रहा है ,और उसकी पेजेरो पर लाल झंडा मुझे असलियत बताता है सर्वहारा की
ReplyDeleteयहाँ ऐसा ही होता है भाषण मे कुछ और हकीकत मे कुछ और
ReplyDeleteदो भूखे अनाथ बच्चों पर अखबार की नज़र अभी नहीं पडी है क्योंकि वे अभी भी जीवित हैं।
ReplyDeleteमार्मिक सत्य !
ek satya katha ....
ReplyDeletejai baba banaras....
हकीकत बयां करती कहानी, ............................ क्या कभी मरने के बाद नज़र आने वालों पर जिन्दा रहतें हमारी नज़र पड़ेगी कभी ??
ReplyDeleteअन्ना जैसा कोई भ्रष्टाचार के विरोध की बात करता है तो जनता सुनती है, नहीं तो अपने चिदंबरम जी भी कल कह रहे थी की भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं किया जायेगा तो हंसी छूट रही थी मेरी .
.
ReplyDeleteइस तरह के दोहरे चरित्र वाले मैंने भी कई जगह देखें हैं :
— एक बार कवि सम्मेलन में श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी के सुपुत्र श्री गोविन्द व्यास जी पान खाते हुए गरीबी और भूख पर कविता पाठ कर रहे थे... कविता अपना प्रभाव नहीं छोड़ पा रही थी. फिर भी उनके साथी कवि वाह-वाह कर रहे थे. मुझे अचरज हो रहा था.
— एक कम्यूनिस्ट विचारों की बंधुआ और बाल मजदूरी पर जमकर भाषण देने वाली मेरे कोलिज की मेडम (आचार्या) अपने घर पर एक कामकाजी बालक को कामचलाऊ पढाई कराते हुए उसकी परवरिश कर रही थीं. वे ब्राह्मण विरोधी होते हुए भी अपने नाम के पीछे ब्राह्मण वाची संबोधन को लगाना समाज में अपनी उच्चता का भान कराते रहना पसंद करती थीं.
— मेरे पूर्व ऑफिस में पारदर्शिता की डींगे भरने वाले सीईओ साहब की जब मेरी कविताओं ने पोल खोल दी तब उसका नतीजा काफी असरदायी हुआ.
— प्रायः कोमरेडों का चरित्र दोहरा होता है. उनका समस्त आक्रोश-विरोध 'उपदेश' भर बनकर रह गया है. चोरी-छिपे हिन्दू मान्यताओं और कुरीतियों को मानने वाले और बाहरी रूप से लाल सलाम ठोंकने वाले आज़ देखे जा सकते हैं. कई ऐसे भी कोमरेड देखने में आये हैं जो क्रिसमस ट्री तो सजायेंगे लेकिन नाग पंचमी, ऋषि पंचमी और बसंत पंचमी (सरस्वती) का पूजन करने से गुरेज करेंगे.
मन से ऊँची जात-पात, बिरादरी और पूँजी संचय में भरोसा करने वाले कोमरेडों की दावतें कोर्पोरेट-पार्टियों से कम आलीशान नहीं होतीं.
इसे ही कहते हैं 'दोहरे चरित्र की पराकाष्ठा'
.
aapki laghukatha rozmarra ki tasveer banti ja rahi bhartiy jivan drashti ka chamakdar chitra to hai hi, yah bachi-khuchi samvednaon ko sahej lene ke liye kiya gaya ahwan bhi hai. bahut achchha.
ReplyDeleteआपकी लघुकथा ने तो आइना दिखा दिया।
ReplyDeleteचुनाव के दिनों में विधायक दल के एक कामरेड प्रत्याशी द्वारा हुनुमान मंदिर में पूजा अर्चना करने की घटना मैं आंखों से देख चुका हूं और एक पोस्ट में लिखा भी था...
ReplyDeleteस्वर्गीय ज्योति बाबू के सुपुत्र याद आ गए...और कितने ही..
ReplyDeleteथैंक्स जोर्ज ओरवेल फॉर एनिमल फ़ार्म!
समाज के विरोधाभास जीवन को दर्शाती सटीक लघुकथा.तीखा व्यंग सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteएक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?
ReplyDeletebadhiya likha hai ,sachchai ko ujaagar karti hoom .
ReplyDeleteइससे तो वे लोग कही ज्यादा अच्छे हैं जिन्हें अपनी जाति और धर्म को लेकर कोई शर्मिंदगी नहीं है ...
ReplyDeleteइंसानों की इन दोहरे चरित्र के कारण ही युवापीढी हम से दूर हो रही है।
ReplyDeleteयह लघुकथा भारी बन पडी है।
ReplyDeleteदिखावटी हथौडा अब उनके स्वयं के सर फोडने लगा है।
लाल में सदा विरोधाभास का बाल रहा है।
हकीकत तो यही है...
ReplyDeleteबिलकुल आईना दिखाता सटीक व्यंग्य
किसी कामरेड की टिपण्णी नहीं आई. आश्चर्य है.
ReplyDeleteसचमुच स्थितियां नहीं बदलतीं।
ReplyDeleteवाकई सबसे पहले जो याद आया वो था Animal farm
सटीक व्यंग।
painful double standards..
ReplyDeleteDhritrashtron- shikhandion ki jamat aakhir kabtak in nakli chehron ko nahi pagchanege? sundar katha..
ReplyDelete:):):)........
ReplyDeletepranam.
त्रिभुवन जननायक मर्यादा पुरुषोतम अखिल ब्रह्मांड चूडामणि श्री राघवेन्द्र सरकार
ReplyDeleteके जन्मदिन की हार्दिक बधाई हो !!
कथनी और करनी में अंतर समझाती आपकी ये लघुकथा बहुत पसंद आई!
ReplyDeleteसार्थक और रोचक कथा के लिए आपको को बधाई.
आपको मर्यादा पुरषोत्तम भगवान् श्री राम के जन्मदिन की कोटि -कोटि शुभकामनाएँ!