Showing posts with label शायरी. Show all posts
Showing posts with label शायरी. Show all posts

Sunday, January 12, 2020

मुझे याद है

मुझे याद हैं
लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर

मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँ
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।

मुझे याद हैं
वे दिन जब
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में

मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादें
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को

मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे

🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


Tuesday, November 22, 2016

स्वप्न - एक कविता

ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं

सच्चे से लगते कभी कभी
ये पुलाव खयाली पकाते है

सपने मनमौजी होते हैं
कोई नियम समझ न पाते हैं

ज्ञानी का ज्ञान धरा रहता
अपने मन की कर जाते हैं

सब कुछ कभी लुटा देते
सर्वस्व कभी दे जाते हैं

ये स्वप्न कहाँ से आते हैं
ये स्वप्न कहाँ से आते हैं

पिट्सबर्ग की एक सपनीली सुबह



Sunday, May 25, 2014

क्यूँ नहीं - कविता

(चित्र व पंक्तियाँ: अनुराग शर्मा)

इंद्र्धनुष
है नाम लबों पर तो सदा क्यूँ नहीं देते,
जब दर्द दिया है तो दवा क्यूँ नहीं देते

ज़िंदा हूँ इस बात का एहसास हो सके
मुर्दे को मेरे फिर से हिला क्यूँ नहीं देते

है गुज़री कयामत मैं फिर भी न गुज़रा
ये सांस जो अटकी है हटा क्यूँ नहीं देते

सांस ये चलती नहीं है दिल नहीं धड़के,
जाँ से मिरी मुझको मिला क्यूँ नहीं देते

सपनों में सही तुमसे मुलाकात हो सके,
हर रात रतजगे को सुला क्यूँ नहीं देते


(प्रेरणा: हसरत जयपुरी की "जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते")

 अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन के स्वर में

Monday, December 30, 2013

प्रेमिल मन - एक कविता

चावल, चीनी और चाय से बनी स्वर्णकण आच्छादित जापानी मिठाई मोची (餅)
(अनुराग शर्मा)

दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है

इंतिहा मासूमियत की हो गयी है
प्यार में दिल मार खाना चाहता है

इक नदी के दो किनारे लोग नाखुश
हर कोई "उस" पार जाना चाहता है

धूप और बादल में समझौता हुआ है
खेत बस अब लहलहाना चाहता है

जिस जहाँ में साथ तेरा मिल न पाये
दिल वहाँ से छूट जाना चाहता है

बचपने में जो खिलौना तोड़ डाला
मन उसी को आज पाना चाहता है

रात दिन भटका सारे जगत में वो
मन तुम्हारे द्वार आना चाहता है

कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ
दिल हमारा रूठ जाना चाहता है

एक बाज़ी ये लगा लें आखिरी बस
दिल तुम्ही से हार जाना चाहता है

दुश्मनों का साथ देने चल दिया वह
कौन आखिर मात खाना चाहता है

बहर से करते सरीकत क्या कहेंगे
केतली में ज्वार आना चाहता है
सपरिवार आपको, आपके मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों को नव वर्ष 2014 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएँ