लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को
मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर
मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँजो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।
मुझे याद हैं
वे दिन जबयौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में
मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादेंजब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को
मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे
🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!