कवि नहीं हूँ पर आहत तो हूँ। यूं ही कुछ बिखरे से विचार
(अनुराग शर्मा)
गाँव छोड़कर क्यों जाते हैं
शहर की हैवानियत झेलने
हँसा मेरे गाँव का साहूकार
खेत हथियाने के बाद
अपनी इज्ज़त अपने हाथ
हमें तो कुछ नहीं हुआ
कपड़े उघड़े रहे होंगे बोले
मुर्दा खाल उघाड़ते क़स्साब
नज़र नीची रखो, पाँव की जूती
हया, नकाब, बुर्का और हिजाब
थोपकर ही खैरख्वाह बनते हैं
चेहरों पर तेज़ाब फेंकने वाले
घर से निकली ही क्यों
कहता है सौदागर हवस का
भारी छूट पर खरीदते हुए
एक नाबालिग को
दुर्योधन और रावण महान
विदेशी प्रथा है नारी अपमान
भाषण देता देसी पव्वा
सुन रहा है तंबाकू का पान
तुम्हें कर मिले तो कर लो
हमें तो देखना है, देख रहे हैं
देखते रहेंगे, कुछ न करेंगे
खाने कमाने आए थे, खाने दो
बसों में क्यों चढ़ते हैं लोग
मासूमियत से पूछते हैं
ज़ैड सिक्योरिटी पर इतराते
बुलेटप्रूफ शीशों के धृतराष्ट्र
अपनी हिफाज़त खुद करें
यही लिखा था उस बस में
जो अव्यवस्था के जंगल में
चलती है हफ्ते के ईंधन से
मानवता की गली लाशों के बीच
अट्टहास कर रहे हैं कुछ लोग
डॉक्टर ने मोटी रकम लेकर
जन्म से पहले ही कर दिया काम
(अनुराग शर्मा)
लिखा परदेस क़िस्मत में वतन को याद क्या करना
जहाँ बेदर्द हो हाकिम वहाँ फ़रियाद क्या करना
(~ अज्ञात)
(चित्र आभार: काजल कुमार) |
शहर की हैवानियत झेलने
हँसा मेरे गाँव का साहूकार
खेत हथियाने के बाद
अपनी इज्ज़त अपने हाथ
हमें तो कुछ नहीं हुआ
कपड़े उघड़े रहे होंगे बोले
मुर्दा खाल उघाड़ते क़स्साब
नज़र नीची रखो, पाँव की जूती
हया, नकाब, बुर्का और हिजाब
थोपकर ही खैरख्वाह बनते हैं
चेहरों पर तेज़ाब फेंकने वाले
घर से निकली ही क्यों
कहता है सौदागर हवस का
भारी छूट पर खरीदते हुए
एक नाबालिग को
दुर्योधन और रावण महान
विदेशी प्रथा है नारी अपमान
भाषण देता देसी पव्वा
सुन रहा है तंबाकू का पान
तुम्हें कर मिले तो कर लो
हमें तो देखना है, देख रहे हैं
देखते रहेंगे, कुछ न करेंगे
खाने कमाने आए थे, खाने दो
बसों में क्यों चढ़ते हैं लोग
मासूमियत से पूछते हैं
ज़ैड सिक्योरिटी पर इतराते
बुलेटप्रूफ शीशों के धृतराष्ट्र
अपनी हिफाज़त खुद करें
यही लिखा था उस बस में
जो अव्यवस्था के जंगल में
चलती है हफ्ते के ईंधन से
मानवता की गली लाशों के बीच
अट्टहास कर रहे हैं कुछ लोग
डॉक्टर ने मोटी रकम लेकर
जन्म से पहले ही कर दिया काम
सारे देश की शुभकामनाओं के बाद भी शनिवार 29 दिसंबर प्रातः हमने उसे खो दिया
सोया देश जागा है। आप भी न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति को यौन-अपराध में त्वरित न्याय के लिए अपने सुझाव निम्न पते पर भेज सकते हैं:
फैक्स: 011 2309 2675
ईमेल: justice.verma@nic.in
अपनी हिफाज़त खुद करें
ReplyDeleteलिखा था उस बस में
जो अव्यवस्था के जंगल में
चलती है हफ्ते के ईंधन से
..तीखा कटाक्ष!.. वाह!!
इस कविता में छिपी गहरी भावना के बारे में कहने के लिए कुछ शब्द नहीं हैं। पोस्ट ए कमेंट हटा लीजिए।
ReplyDeleteजी, आभार!
Delete:(
ReplyDeleteabhi tak bhi sakte me hoon ....
:(
अपनी हिफाज़त खुद करें
ReplyDeleteलिखा था उस बस में
जो अव्यवस्था के जंगल में
चलती है हफ्ते के ईंधन से
दर्द है कि नहीं ले रहा विराम.
भारतीय समाज एक बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है, उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाला कल आज से बेहतर हो
ReplyDeleteअवाक् !
ReplyDeleteकविता अलग से कुछ नहीं होती। पीडा की अभिरूक्ति ही कविता है। वह न तो छन्द की दासी है न ही गद्य की बन्दिनी।
ReplyDeleteनज़र नीची रखो, पाँव की जूती
ReplyDeleteहया, नकाब, बुर्का और हिजाब
थोपकर ही खैरख्वाह बनते हैं
चेहरों पर तेज़ाब फेंकने वाले
घर से निकली ही क्यों
कहता है सौदागर हवस का
भारी छूट पर खरीदते हुए
एक नाबालिग को
*****कोई एक मात्र नहीं जिस पर कुछ कहा जाये बस इतना की आपको मेरा प्रणाम सुबह की किरण ले जाये *****
अब तक इतना सहमी नहीं थी ,जितना कि इस घटना से सहमी हूँ ...डर बढ़ा है ...:-(
ReplyDeleteकष्टदायक नया साल...
ReplyDeleteघर से निकली ही क्यों
ReplyDeleteकहता है सौदागर हवस का
भारी छूट पर खरीदते हुए
एक नाबालिग को ...
कितना सच लिखा है ... दर्द भी साफ नज़र आ रहा है ओर आक्रोश भी ...
बहुत ही कष्ट दायक और शर्मसार करने वाली घटना, जिससे सभी आहत हैं.
ReplyDeleteरामराम
बहुत से मुद्दे , एक साथ .
ReplyDeleteसुन्दर रचना, गहरे भाव।
उसका कारण सबने ढूढ़ा,
ReplyDeleteनिज मति गति पर कोई न जाना।
सभी आहत हैं ............
ReplyDeleteसब के सब आंखें मूंद कर अपनी अपनी काबिलियत के अनुसार कील ठोंक रहे हैं. आखिरी कील भी जल्द ठुक ही जायेगी. और देश की दशा सुधरने से रही. पढ़े लिखे लोगों के गांव में प्रधान के घर आगे गन्दा पानी भरा है और लोग कहते हैं कि इस बार बेचारा कर्जा उतार लेगा. धन्य है.
ReplyDeleteमानवता की गली लाशों के बीच
ReplyDeleteअट्टहास कर रहे हैं कुछ लोग
डॉक्टर ने मोटी रकम लेकर
जन्म से पहले ही कर दिया काम
मार्मिक ....गहन अभिव्यक्ति ....
शुभकामनायें ...
कब तक विदेशियों को ही कोसते रहेंगे , दामन हमारे कम दागदार नहीं :(
ReplyDeleteइस माहौल में पंक्तियाँ अपनी बात स्पष्ट कहती है !
अव्यवस्था का जंगल ..ऐसा ही तो है..
ReplyDeleteआहत मन
ReplyDelete:( :(
ReplyDeletebahut bahut udaas hoon
@ बसों में क्यों चढ़ते हैं लोग
मासूमियत से पूछते हैं
the people asking this are unfortunately delhi police personnel, who VERY WELL KNOW that
1. Auto charges are not affordable for everyone - then ? only those who can afford autos are entitled to be safe ? even if this particular case could or could not afford an auto is immaterial ----- those people (???) in the bus would have found some other girl, or rather, some other female body for their sick and perverse pleasure :(. is it ok for this to happen if the girl CAN NOT afford auto fare,a nd wrong if she can afford it??
2. Auto persons in delhi REFUSE to go to the place the customer requests - many times, i myself have waited for HOURS together in delhi with my husband trying to get autos to go home - they JUST REFUSE TO GO....
3. Are all autos always safe? don't the police personnel talking about why she got into a bus KNOW all this?
4. they say she should not have gone bcoz the glasses were dark and it was a chartered bus - WHY WERE NORMAL BUSES NOT RUNNING??? and WHY was that bus running ? is it not the job of the very same POLICE DEPT to see that such buses do not run for normal routes?
5. the CCTV cameras all over delhi - by which they send challans to a scooterist's home if he stops his scooter after 2 inches of the stop line at a traffic signal - none of those CCTV Cameras could see a huge white chartered bus running on the road at night ? and not just that night , IT MUST HAVE BEEN DOING SO EVERY DAY, it would not have been the first time, right ?
there are so many questions, but the answers from authorities come via tear gas bombs, lathi-charges, and water canons in the freezing cold of delhi winters, and canons of insulting words are fired by our ministers and MP's :(
गाँव छोड़कर क्यों जाते हैं
ReplyDeleteशहर की हैवानियत झेलने
हँसा मेरे गाँव का साहूकार
खेत हथियाने के बाद
sahi kaha sabhi satik...
गाँव छोड़कर क्यों जाते हैं
ReplyDeleteशहर की हैवानियत झेलने
हँसा मेरे गाँव का साहूकार
खेत हथियाने के बाद
sahi kaha ...satik !
दिल्ली गैंग रेप पीडित छात्रा की मौत हो चुकी है. शायद कुदरत को भी यह गवारा ना था कि यह लड़की इंसानों के बीच उस तरह फंसी रहे जैसे भूखे भेडियों के बीच मांस का टुकडा womenempowerment.jagranjunction.com/2012/12/29/%e0%a4%b5%e0%a4%9c%e0%a4%b9-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%81%e0%a4%b7%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%b8%e0%a4%bf/
ReplyDeleteसबके अपने अपने नजरिये, अपनी अपनी नजर.
ReplyDeleteहर जगह यही दोगलापन है , जैसे-
ReplyDeleteदुर्योधन और रावण महान
विदेशी प्रथा है नारी अपमान
तम्बाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है , इससे कर्क रोग होता है और हर साल बजट में गुटखा और सिगरेट का विशेष जिक्र होता है |
सादर