चावल, चीनी और चाय से बनी स्वर्णकण आच्छादित जापानी मिठाई मोची (餅) |
दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है
इंतिहा मासूमियत की हो गयी है
प्यार में दिल मार खाना चाहता है
इक नदी के दो किनारे लोग नाखुश
हर कोई "उस" पार जाना चाहता है
धूप और बादल में समझौता हुआ है
खेत बस अब लहलहाना चाहता है
जिस जहाँ में साथ तेरा मिल न पाये
दिल वहाँ से छूट जाना चाहता है
बचपने में जो खिलौना तोड़ डाला
मन उसी को आज पाना चाहता है
रात दिन भटका सारे जगत में वो
मन तुम्हारे द्वार आना चाहता है
कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ
दिल हमारा रूठ जाना चाहता है
एक बाज़ी ये लगा लें आखिरी बस
दिल तुम्ही से हार जाना चाहता है
दुश्मनों का साथ देने चल दिया वह
कौन आखिर मात खाना चाहता है
बहर से करते सरीकत क्या कहेंगे
केतली में ज्वार आना चाहता है
सपरिवार आपको, आपके मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों को नव वर्ष 2014 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएँ
कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ
ReplyDeleteदिल हमारा रूठ जाना चाहता है ...
सुहावने मौसम की ठंडी हवा के झोंके स लगी आपकी गज़ल ... खूबसूरत शेरों से सजी ...
नए साल की बहुत बहुत शुभकामनायें ...
बहुत सुंदर भाव और उतने ही अच्छे ढंग से अभिव्यक्त कविता।
ReplyDeleteआपकी इस शायरी को क्या कहें हम,
ReplyDeleteदिल ग़ज़ल में डूब जाना चाहता है,
इतना ज़िद करके न रोको, ना रुकेगा,
अब तो बस ये साल जाना चाह्ता है!!
साल के आखिर में आपकी ग़ज़ल बहुत मन भाई और हम भी कुछ तुकबन्दी कर बैठे!!
ब्यूटीफुल
ReplyDeleteसहज सरल सी मगर उतनी ही भावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (31-12-13) को "वर्ष 2013 की अन्तिम चर्चा" (चर्चा मंच : अंक 1478) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
2013 को विदायी और 2014 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी।
Deleteवाह!
ReplyDeleteइक नदी के दो किनारे लोग नाखुश
हर कोई "उस" पार जाना चाहता है
अकाट्य सत्य!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट नया वर्ष !
नई पोस्ट मिशन मून
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteनव वर्ष शुभ हो !
क्यों नहीं लिख पाये हम ऐसी कविता
ReplyDeleteदिल हमारा ख़ार खाना चाहता है :)
जस्ट किडिंग :)
बहुत अच्छी बन पड़ी है कविता आपकी
नव वर्ष शुभ हो !
वाह...वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को और सभी ब्लॉगर-मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है
@एक बाज़ी ये लगा लें आखिरी बस
ReplyDeleteदिल तुम्ही से हार जाना चाहता है
कसम से ....
एक बाज़ी ये लगा लें आखिरी बस
ReplyDeleteदिल तुम्ही से हार जाना चाहता है
BAHUT KHUB HAPPY NEW YEAR
रात दिन भटका था सारे जगत में
ReplyDeleteवो मन तुम्हारे द्वार आना चाहता है ..............कविता में उकेरे गए सभी भावों से दहलने के बाद मन यही तो करना चाहता है। बहुत प्यारी, मनभावन पंक्तियां। आपको भी 2014 बहुत-बहुत शुभ हो।
बहुत सारे सुंदर संदेश देती सहज रचना...दिल की उलझन की ही तो सारी बात है...
ReplyDeleteमात खाने के डर से दूसरे पाले में जाने वाला मित्र नहीं हो सकता, वो तो अवसरवादी होगा।
ReplyDeleteलय में रस भी है !
ReplyDeleteसुन्दर कविता !
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
इक नदी के दो किनारे लोग नाखुश
ReplyDeleteहर कोई "उस" पार जाना चाहता है
bahut badhiya yek se yek !
very nice
ReplyDeletenadan hia dana jatana chahata hai
dekhen kya mujhase jamana chahata hai
नादान हैं दाना जाताना चाहता हैं
Deleteदेख क्या मुझसे जमाना चाहता हैं
नादान हैं दाना जाताना चाहता हैं
Deleteदेख क्या मुझसे जमाना चाहता हैं
http://vivekssachan.blogspot.in/2014/01/blog-post_14.html
ReplyDeleteplease visit and give comment and suggestions ..
dushmanon se bhi pyar pane ki khwahish....jinda rahe. waah
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