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Thursday, December 24, 2015

अहिंसा - लघुकथा


ग्रामीण - हम पक्के अहिंसक हैं जी। हिंसा को रोकने में लगे रहते हैं।
आगंतुक - गाँव में लड़ाई झगड़ा तो हो जाता होगा
ग्रामीण - न जी न। सभी पक्के अहिंसक हैं। हम न लड़ते झगड़ते आपस में
आगंतुक - अगर आस-पड़ोस के गाँव से कोई आके झगड़ने लग जाय तो?
ग्रामीण - आता न कोई। दूर-दूर तक ख्याति है इस गाम की।
आगंतुक - मान लो आ ही जाये?
ग्रामीण - तौ क्या? जैसे आया वैसे चला जाएगा, शांति से। हम शांतिप्रिय हैं जी  ...
आगंतुक - और अगर वह शांतिप्रिय न हुआ तब?
ग्रामीण - शांतिप्रिय न हुआ से क्या मतलब है आपका?
आगंतुक - अगर वह झगड़ा करने लगे तो ...
ग्रामीण - तौ उसे प्यार से समझाएँगे। हम पक्के अहिंसक हैं जी।
आगंतुक - समझने से न समझा तब?
ग्रामीण - तौ घेर के दवाब बनाएँगे, क्योंकि हम पक्के अहिंसक हैं जी।
आगंतुक - फिर भी न माने?
ग्रामीण - मतलब क्या है आपका? न माने से क्या मतलब है?
आगंतुक - मतलब, अगर वह माने ही नहीं ...
ग्रामीण - तौ हम उसे समझाएँगे कि हिंसा बुरी बात है।
आगंतुक - तब भी न माने तो? मान लीजिये लट्ठ या बंदूक ले आए?
ग्रामीण - ... तौ हम उसे पीट-पीट के मार डालेंगे,लेकिन इस गाम में हिंसा नहीं करने देंगे। हम पक्के अहिंसक हैं जी। हिंसा को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सके हैं।  

Friday, August 21, 2015

बुद्धू - लघुकथा

राज और रूमा के विवाह को सम्पन्न हुए कुछ महीने बीत चुके थे। पति-पत्नी दोनों शाम को छज्जे पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। मज़ाक की कोई बात चलने पर रूमा ने कहा, "अगर उस दिन रीना की शादी में आपने मुझे देखा ही न होता तब?"

"तब तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर तुम मुझे देखकर दीदी से बात नहीं करतीं, तो मुझे कैसे पता लगता?" राज ने कहा।

"क्या कैसे पता लगता?" आवाज़ में कुतूहल था।

"वही सब जो तुमने दीदी से कहा?"

"मैंने? कुछ भी तो नहीं। उनसे बस इतना पूछा था कि जलपान किया या नहीं। फिर वे बात करने लगीं।"

"क्या बात करने लगीं? तुमने उनसे मेरे बारे में क्या कहा?" राज कुछ सुनने को उतावला था।

"मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था। वे खुद ही तुम्हारी बातें बताने लगी थीं" रूमा ने ठिठोली की।

"मुझे सब पता है, दीदी ने मुझे उसी दिन सारी बात बता दी थी।"

"अच्छा! क्या क्या बताया?"  

"जो कुछ भी तुमने मेरे बारे में कहा। ... वह लड़का जो आपके साथ आया था, वही जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें इतनी सुंदर हैं, लंबी नाक, चौड़ा माथा। इतना सभ्य, शांत सा, इस शहर के दंभी लड़कों से बिल्कुल अलग।"

"क्या? ये सब कहा दीदी ने तुमसे?"

"हाँ, सारी बात बता दी, एक एक शब्द।"

"लेकिन मैंने तो ये सब कहा ही नहीं। सोचा ज़रूर था, लगभग यही सब। लेकिन उनसे तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा।"

"सच? तब तो ये भी नहीं कहा होगा कि कद थोड़ा अधिक होता तो बिलकुल अमिताभ बच्चन होता, वैसे संजीव कुमार, धर्मेंद्र, शशि कपूर वगैरा को तो अभी भी मात कर रहा है।"

"बिल्कुल नहीं। हे भगवान! ये दीदी भी न ..."

"समझ गया दीदी की शरारत। बनाने को एक मैं ही मिला था?"

"एक मिनट, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने भी मेरे बारे में उनसे कुछ नहीं कहा हो?" 

"मैंने? मैं तो कभी किसी से कुछ कहता ही नहीं, उनसे कैसे कहता? ... और फिर, तुम्हें देखने के बाद तो मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था।"

"क्या? तुमने मेरी तारीफ़ में उनसे कुछ नहीं कहा था? इसका मतलब यह कि दीदी ने हम दोनों को ही  बुद्धू बना दिया।"

"कमाल की हैं दीदी भी। लेकिन इस मज़ाक के लिए मैं जीवन भर उनका आभारी रहूँगा।"

"मैं भी। दीदी ने गजब का बुद्धू  बनाया हमें।"

राज ने स्वगत ही कहा, "मेरी माइंड रीडर दीदी।" और दोनों अपनी-अपनी हसीन बेवकूफी पर एकसाथ हँस पड़े।

[समाप्त]

Thursday, July 30, 2015

मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन - 31 जुलाई

मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)
मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी कथा संकलन मानसरोवर
आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन है। हिन्दी और उर्दू साहित्य में रुचि रखने वाला कोई विरला ही होगा जो उनका नाम न जानता हो। हिन्दी (एवं उर्दू) साहित्य जगत में यह नाम एक शताब्दी से एक सूर्य की तरह चमक रहा है। विशेषकर, ज़मीन से जुड़े एक कथाकार के रूप में उनकी अलग ही पहचान है। उनके पात्रों और कथाओं का क्षेत्र काफी विस्तृत है फिर भी उनकी अनेक कथाएँ भारत के ग्रामीण मानस का चित्रण करती हैं। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे उर्दू में नवाब राय और हिन्दी में प्रेमचंद के नाम से लिखते रहे। आम आदमी की बेबसी हो या हृदयहीनों की अय्याशी, बचपन का आनंद हो या बुढ़ापे की जरावस्था, उनकी कहानियों में सभी अवस्थाएँ मिलेंगी और सभी भाव भी। अपने साहित्यिक जीवनकाल में उन्होने सैकड़ों कहानियाँ और कुछ लेख, उपन्यास व नाटक भी लिखे। उनकी कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं और अनेक रेडियो व टीवी कार्यक्रम भी। उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर १९१५ के अंक में "सौत" शीर्षक से प्रकाशित हुई थी और उनकी अंतिम प्रकाशित (१९३६) कहानी "कफन" थी।
जिस युग में उन्होंने लिखना आरंभ किया, उस समय हिंदी कथा-साहित्य जासूसी और तिलस्मी कौतूहली जगत् में ही सीमित था। उसी बाल-सुलभ कुतूहल में प्रेमचंद उसे एक सर्व-सामान्य व्यापक धरातल पर ले आए। ~ महादेवी वर्मा

प्रेमचंद की हिन्दी कथाओं की ऑडियो सीडी
मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इन्टरनेट पर देवनागरी लिपि में उपलब्ध हिन्दी (उर्दू एवं अन्य रूप भी) की मौलिक व अनूदित कहानियों के ऑडियो बनाने से जुड़ा रहा हूँ। विभिन्न वाचकों द्वारा "सुनो कहानी" और "बोलती कहानियाँ" शृंखलाओं के अंतर्गत पढ़ी गई कहानियों में से अनेक कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद की हैं। आप उनकी कालजयी रचनाओं को घर बैठे अपने कम्प्युटर या चल उपकरणों पर सुन सकते हैं। प्रेमचंद की कुछ कहानियो से हिन्द युग्म ने एक ऑडियो सीडी भी जारी की थी। कुछ चुनिन्दा ऑडियो कथाओं के लिंक यहाँ संकलित हैं। आशा है आपको पसंद आएंगे। यदि आप उनकी (या अपनी पसंद के किसी अन्य साहित्यकार की हिन्दी में मौलिक या अनूदित) कोई कथा विशेष सुनना चाहते हों तो अवश्य बताइये ताकि उसे रेडियो प्लेबैक इंडिया के साप्ताहिक "बोलती कहानियाँ" कार्यक्रम में सुनवाया जा सके।
मुंशी प्रेमचंद की 57 कहानियों के ऑडियो का भंडार, 4 देशों से 9 वाचकों के स्वर में

(31 जुलाई 1880 - 8 अक्तूबर 1936)
सौत (शन्नो अग्रवाल) [दिसंबर १९१५]
निर्वासन (अर्चना चावजी और अनुराग शर्मा)
आत्म-संगीत (शोभा महेन्द्रू और अनुराग शर्मा)
प्रेरणा (शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा)
बूढ़ी काकी (नीलम मिश्रा)
ठाकुर का कुआँ' (डॉक्टर मृदुल कीर्ति)
स्त्री और पुरुष (माधवी चारुदत्ता)
शिकारी राजकुमार (माधवी चारुदत्ता)
मोटर की छींटें (माधवी चारुदत्ता)
अग्नि समाधि (माधवी चारुदत्ता)
मंदिर और मस्जिद (शन्नो अग्रवाल)
बड़े घर की बेटी (शन्नो अग्रवाल)
पत्नी से पति (शन्नो अग्रवाल)
पुत्र-प्रेम (शन्नो अग्रवाल)
माँ (शन्नो अग्रवाल)
गुल्ली डंडा (शन्नो अग्रवाल)
दुर्गा का मन्दिर' (शन्नो अग्रवाल)
आत्माराम (शन्नो अग्रवाल)
नेकी (शन्नो अग्रवाल)
मन्त्र (शन्नो अग्रवाल)
पूस की रात (शन्नो अग्रवाल)
स्वामिनी (शन्नो अग्रवाल)
कायर (अर्चना चावजी)
दो बैलों की कथा (अर्चना चावजी)
खून सफ़ेद (अर्चना चावजी)
अमृत (अनुराग शर्मा)
अपनी करनी (अनुराग शर्मा)
अनाथ लड़की (अनुराग शर्मा)
अंधेर (अनुराग शर्मा)
आधार (अनुराग शर्मा)
आख़िरी तोहफ़ा (अनुराग शर्मा)
इस्तीफा (अनुराग शर्मा)
ईदगाह (अनुराग शर्मा)
उद्धार (अनुराग शर्मा)
कौशल (अनुराग शर्मा)
क़ातिल (अनुराग शर्मा)
घरजमाई (अनुराग शर्मा)
ज्योति (अनुराग शर्मा)
बंद दरवाजा (अनुराग शर्मा)
बांका ज़मींदार (अनुराग शर्मा)
बालक (अनुराग शर्मा)
बोहनी (अनुराग शर्मा)
देवी (अनुराग शर्मा)
दूसरी शादी (अनुराग शर्मा)
नमक का दरोगा (अनुराग शर्मा)
नसीहतों का दफ्तर (अनुराग शर्मा)
पर्वत-यात्रा (अनुराग शर्मा)
पुत्र प्रेम (अनुराग शर्मा)
वरदान (अनुराग शर्मा)
विजय (अनुराग शर्मा)
वैराग्य (अनुराग शर्मा) 
शंखनाद (अनुराग शर्मा)
शादी की वजह (अनुराग शर्मा)
सभ्यता (अनुराग शर्मा)
समस्या (अनुराग शर्मा)
सवा सेर गेंहूँ (अनुराग शर्मा)
कफ़न (अमित तिवारी) [१९३६]

Thursday, July 15, 2010

तहलका तहलका तहलका

नोट: उत्खनन क्षेत्र की साईट १९२.३ बी पर मिले एमु के चर्मपत्र पर लिखे इस वार्तालाप से दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की प्राचीन मय सभ्यता के कुछ रहस्य उजागर होते हैं. इस चर्मपत्र का रहस्य अब तक उसी प्रकार से गुप्त रखा गया है जैसे कि आज तक किसी भी मानव के चन्द्रमा पर और हिमालय की एवेरेस्ट चोटी पर न पहुँच पाने का रहस्य. छद्म-वैज्ञानिकों के अनुसार इस चर्मपत्र पर इंसानी रक्त से लिखी गयी इबारत एक प्रोडिजी बालक "वंशबुद्धि अखबार पौलिसी" और एक युवक "सतर्कवीर कटहल दिलजला" का वार्तालाप है जो किसी सम्राट के गुप्तचर द्वारा छिपकर् दर्ज किया गया मालूम होता है. सुविधा के लिए हम इन्हें क्रमशः वंश और वीर के नाम से पुकारेंगे. आइये पढ़ते हैं इस दुर्लभ प्रतिलिपि का अकेला हिन्दी अनुवाद केवल आपके लिए. सरलता के उद्देश्य से अनुवाद के भाषा और सन्दर्भ सम्पादित किये गये हैं. कृपया इसे सीरियसली न लें, धन्यवाद!

वीर: यार तू हर समय क्या सोचता रहता है?
वंश: यह भारत कहाँ है?
वीर: धरती के नीचे, पाताल में.
वंश: वहां कैसे जाते हैं?
वीर: पानी से?
वंश: पानी में ज़िंदा कैसे रहते हैं?
वीर: अरे पानी के अन्दर नहीं जाते, पानी के जहाज़ से जाते हैं. सीधे चलते जाते हैं और भारत आ जाता है.
वंश: जब ज़मीन के नीचे है तो सीधे चलते जाने से कैसे आ जाता है.
वीर: अरे आजकल विज्ञान का युग है. गुरूजी कहते हैं कि अब दुनिया गोल हो गयी है. सीधे चलते रहो तो धरातल से पाताल पहुँच जाते हैं. भारत, हमारे ठीक नीचे.
वंश: यकीन नहीं होता.
वीर: Ripley's! Believe it.

वीर: आज का फ़ुटबाल का खेल बढ़िया था, खूब मज़ा आया?
वंश: फ़ुटबाल के नियमों में कभी कोई परिवर्तन होगा क्या?
वीर: तुम हमेशा परिवर्तन की बात क्यों करते हो? हमारे काट मार कमरकस बाबा के बनाए हुए नियम अपने आप में सम्पूर्ण हैं. उनमें रंचमात्र परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है.
वंश: क्या बात करते हो? गेंद...
वीर: फिर वही गेंद की बात. इतनी कड़ी क्यों होती है? खिलाड़ियों के पैर लहूलुहान हो जाते हैं. [हंसता है] अरे हम असुरवीर हैं. हमारे कपडे, भोजन, ज़मीन, झंडा सब लहू से लाल है, पैरों का क्या है?
वंश: मैं कड़ेपन की बात नहीं कर रहा हूँ.
वीर: फिर क्या बात है?
वंश: पिछले खेल में जीते हुए कप्तान के सर को गेंद की तरह प्रयोग क्यों करते हैं हम? यह मानवता के विरुद्ध है.
वीर: तुम्हें क्या हो गया है? अव्वल तो हम मानव नहीं हैं.... और फ़ुटबाल खेलना कहीं से भी मानवता के विरुद्ध नहीं है.

वंश: अच्छा यह बताओ कि हम लोग मानवों से ज़्यादा क्यों जीते हैं?
वीर: क्योंकि वे मूर्ख हैं.
वंश: मूर्खता का अल्पायु से क्या सम्बन्ध है?
वीर: सम्बन्ध है. उन मूर्खों ने अपने पंचांग में हर वर्ष ३६० दिनों का रखा है. जबकि हमारे दार्शनिकों ने साल को २०० दिन का बनाया है.
वंश: उससे क्या?
वीर: इस प्रकार ३६००० दिनों में वे केवल १०० साल ही जीते हैं जबकि हम लोग १८० साल के हो जाते हैं.
वंश: हमारा पंचांग किसने बनाया?
वीर: मयासुर बाबा ने. देखा नहीं, वे प्रस्तर शिलाओं पर कुछ खोदकर रखते जाते हैं और हमारे गुलाम उनका ढेर लगाते जाते हैं.
वंश: हाँ, देखा तो है. वे कब तक यह पंचांग लिखते रहेंगे?
वीर: जब तक जीवित हैं. उनकी गणना के अनुसार अपने देहांत से पहले वे २०१२ ईसवी तक के पंचांग लिख लेंगे.
वंश: और अगर २०१२ ईसवी के प्राणी आगे के पंचांग न पाकर यह सोचने लगे कि आगे उनका समय समाप्त हो गया है, या ब्रह्माण्ड का अंत होने वाला है, तब तो अफरातफरी मच जायेगी न?
वीर: मुझे नहीं लगता कि भविष्य के लोग ऐसे मूर्ख होंगे. लेकिन भविष्य के बारे में कुछ कहा भी नहीं जा सकता है.
वंश: Ripley's! Believe it.

[समाप्त]

The description of the Mesoamerican ballgame from Harvard museum of natural history
मय सभ्यता की कन्दुक क्रीडा का वर्णन - हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से
[चित्र अनुराग शर्मा द्वारा. Photo by Anurag Sharma]

Saturday, October 11, 2008

सुनें प्रेमचंद की कालजयी रचनाएं

कोई विरला ही होगा जो मुंशी प्रेमचंद का नाम न जानता हो। हिन्दी साहित्य जगत में वे एक चमकते सूर्य की तरह हैं। आवाज़ (हिन्दयुग्म) के सौजन्य से अब आप उनकी कालजयी रचनाओं को घर बैठे अपने कम्प्युटर पर सुन सकते हैं। आवाज़ की शृंखला सुनो कहानी में हर शनिवार को प्रेमचंद की एक नयी कहानी का पॉडकास्ट किया जाता है जिसे आप अपनी सुविधानुसार कभी भी सुन सकते हैं। इन कहानियों को को स्वर दिये हैं शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा ने।

अभी तक प्रकाशित कुछ ऑडियो कथाओं के लिंक यहाँ हैं:

* सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'आख़िरी तोहफ़ा'
* कहानीः प्रेमचंद की कहानी 'पर्वत-यात्रा'
* प्रेमचंद की अमर कहानी "ईदगाह" ( ईद विशेषांक )
* कहानीः प्रेमचंद की कहानी 'अमृत' का पॉडकास्ट
* प्रेमचंद की कहानी 'अपनी करनी' का पॉडकास्ट
* कहानीः शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा'
* प्रेमचंद की कहानी 'अनाथ लड़की' का पॉडकास्ट
* कहानीः प्रेमचंद की 'अंधेर'
* अन्य बहुत सी कहानियाँ

तो फ़िर देर किस बात की है? ऊपर दिए गए लिंक्स पर क्लिक करिए और आनंद उठाईये अपनी प्रिय रचनाओं का। अधिकाँश कहानियों को विभिन्न फॉर्मेट में डाउनलोड करने की सुविधा भी है ताकि आप बाद में उसे अपने कंप्युटर, आईपॉड या एम् पी थ्री प्लेयर द्वारा बार बार सुन सकें या CD बना सकें।