.
हमेशा की तरह सुबह की सैर के लिए निकला। सामने से सैय्यद चाभीरमानी आते हुए दिखाई दिए। जब तक पहचान पाया, इतनी देर हो चुकी थी कि कहीं छिप न सका। लिहाजा उनके सामने पड़कर दुआ सलाम करनी पडी। मैंने कहा नमस्ते, उन्होंने जवाब में वालेकुम सलाम कहते हुए अपने हाथ का चाभी का गुच्छा मेरी ओर फुलटॉस करके फेंकने का उपक्रम किया। मैंने बरेली की झाँप देकर बगलें झाँकीं और इस बात पर मन ही मन खुश हुआ कि चोट खाने से बच गया। पागल आदमी का क्या भरोसा? क्या पता सचमुच ही यह भारी गुच्छा मेरे सर पर दे मारे।
"आज सुबह-सुबह किधर की सवारी है मियाँ?" मैंने रस्म-रिवाज़ के तौर पर पूछ डाला।
"जहन्नुम जाने की तय्यारी है, आप चलेंगे साथ?" सैय्यद ने अपनी जानी-पहचानी झुंझलाहट के साथ कहा, "...अजी यहाँ जान पर आ बनी है, इन्हें सवारी की पड़ी है।"
"सोच लो, हम तो ठहरे बुद्धपरस्त काफिर, साथ चल पड़े तो कहीं तुम्हारा पाक जहन्नुम नापाक न हो जाए?" मैंने भी चुटकी ली।
"क्यों तुमने भी हिंदुत्वा ब्रिगेड ज्वाइन कल्ली क्या? मियाँ तुम तो सेकुलर थे कल तलक।"
"अरे कल ही तो तुम्हारे मौलवी साहेब कह रहे थे कि सारे सेकुलर काफिर होते हैं, तुम्हीं ने तो बताया था..." हमने याद दिलाया।
"अमाँ, काफिर भी निभ जाते हैं और ये निगोड़े सेकुलर भी चल जाते हैं। पिराबलम तो हिंदुत्वा से है। अब देखो न, ये हिंदुत्वा वाले सब मिलकर हमारे मोहम्मद जुबैर भाई को दाढी बढ़ाने से रोक रहे हैं।"
हमें कुछ समझ नहीं आया। सोचा कि किसी नई सेना ने कोई नया फड्डा कर दिया होगा। एक तो अपनी जनरल नालेज पहले से इतनी गरीब है दूसरे रोजाना ही दो चार नयी सेनायें बन जाती हैं - शिव सेना, अली सेना, निर्माण सेना, तकरार सेना, बिगाड़ सेना, और अब लड़कियों पर वीरता दिखाने वाली श्रीराम सेना ... किस-किस का हिसाब रखा जाए।
सैय्यद चाभीरामानी ठहरे इन सेनाओं के चलते-फिरते साइक्लोपीडिया, सोचा उन्हीं से पूछ लेते हैं, "किस हिंदुत्वा की बात कर रहे हैं आप? कोई नई रथयात्रा शुरू हुई है क्या या एक और जन्मभूमि मुक्त कराने का मीजान है?"
आपके मुल्क में मुसलमानों पर इतने जुलुम ढाए जा रहे हैं, "अब देखो शबाना आपा को किराए पर घर नहीं मिलता क्योंकि वे मुसलमान हैं।"
"अरे घर तो हमें भी नहीं मिलता था, क्योंकि हम कुँवारे थे - रात-बिरात मुहल्ले में आने-जाने का डर था, बाद में इसलिए नहीं मिलता था क्योंकि हमारा भरा-पूरा परिवार था - घर पर कब्ज़ा कर लेने का डर था। अरे भई, जिसने घर बनाने में लाखों रुपया, मेहनत और समय लगाया है, उसका डर भी कुछ मायने रखता है या नहीं? वैसे एक बात बताइये... अभी तक शबाना आपा क्या पाकिस्तान में रहती थीं या किसी पाइप में रहती थीं?"
हमारी बात न सैय्यद की समझ में आयी न शबाना आपा की। बस बोलते रहे, "... हेमा मालिनी, अस्मिता पाटिल, माधुरी सब को चांस मिला, शबाना आपा को कोई चांस भी न मिला जब तक शमीम बंगाली नहीं आए।"
"मियाँ, वह श्याम बेनेगल हैं, शमीम बंगाली नहीं, ... चलो अगर यह बेतुकी बात मान भी लें तो सलमान खान, आमिर खान, शाहरुख खान के महलनुमा बंगलों के बारे में क्या राय है आपकी?"
"अरे, लाहौल विला कुव्वत. वो तो सब के सब काफिर हैं, कोई दिवाली मनाता है और कोई राखी बंधाता है। एक सोहेल खान था असली मुसलमान, उसे करा दिया न फ्लॉप आप लोगों ने साजिश करके?" सैय्यद का गुस्सा कम होने पर ही नहीं आ रहा था, "... और वैसे भी, इस वखत हम तुम्हारे सरकारी हिंदुत्वा की बात कर रहे हैं!"
"सरकारी हिंदुत्वा जैसी कोई चीज़ नहीं होती। भारत सरकार सेकुलर है।"
"अरे तुम्हारी सरकार और फौज सेकुलर होती तो जुबैर भाई की दाढ़ी के पीछे क्यों पड़ती?" सैय्यद अभी भी ऐंठे हुए थे।
"चलो हम चलते हैं तुम्हारे साथ जुबैर भाई की दाढ़ी बचाने, कहाँ रहते हैं वह?"
"अरे भाई वो हियाँ पे नहीं रहते, वो हैं आपके हिन्दुस्तान की हवाई फौज में ... साथ चलेंगे? ... बात करते हैं!"
अब मामला कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। हमने कहा, "अगर सैनिक हैं तो सेना के नियमों को तो मानना पड़ेगा न?"
"अजी, यह कायदा क़ानून सब उन्हीं के लिए है क्या? आपके परधान मन्तरी ख़ुद भी तो दाढ़ी रखते हैं और जुबैर भाई पर हिंदुत्वा लगा रहे हैं।"
"अरे भैया, प्रधानमंत्री कोई सेना में थोड़े ही हैं। और फ़िर जुबैर भाई को दाढ़ी रखने से किसने रोका है? इस्तीफा देकर घर में बैठें और रखें 17 गज की दाढ़ी।"
"अरे जो ईमान के पक्के हैं, उलेमा का हर हुकम मानते हैं, वो कहीं भी रहें, दाढ़ी ज़रूर रखते हैं।" सैय्यद हमारी बात सुन थोड़े ही रहे थे।
"तो पाँच वक़्त की नमाज़ भी पढ़ते होंगे?" हमने पूछा।
"ज़रूर पढ़ते होंगे जब दाढी के इतने पक्के हैं तो" सैय्यद ने अपनी सफाचट काल्पनिक दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
"कल को जहाज़ उडाते समय नमाज़ का वक़्त होगा तो जुबैर भाई आँखे बंद करके, जहाज़ छोड़ के नमाज़ पढ़ने लगेंगे? चाहे मर जाएँ जहाज़ समेत?"
"नहीं ऐसा तो नहीं करेंगे शायद" सैय्यद चाभीरामानी ज़िंदगी में पहली दफा विचारमग्न दिखे।
"अच्छा, दाढ़ी इस्लामी है, नमाज़ नहीं? बेहतर हो आप उन्हें समझाएँ कि वे या तो पक्के मुसलमान हो जाएँ या फ़िर पक्के सैनिक ही बने रहें, दो नावों पे सवार होने के चक्कर में अपने दोनों जहाँ क्यों बरबाद कर रहे हैं? वैसे तुम्हारी इस्लामी जम्हूरियत की फौज में किस जनरल के दाढ़ी थी, मुशर्रफ़ के, जिया-उल-हक़ के या ढाका में सरेंडर करने वाले जनरल नियाज़ी के?"
शायद उनकी समझ में आ गया कि इस विषय पर उनकी दाल नहीं गलने वाली। तो उन्होंने फ़टाफ़ट दाल बदल दी, "अच्छा चलो मान लिया कि तुम्हारे परधान मन्तरी और विलायत से आयी मैडम हिंदुत्वा वाले नहीं है - तो फ़िर उनके होते हुए तुम्हारे मुल्क में अलग मुस्लिम पर्सनल कोड की मुखालफत क्यों होती है?"
"आजाद देश में लोग किसी भी बात की मुखालफत कर सकते हैं - जभी तो आपके सगे, वो जुबैर मियाँ फौजी नियमों की मुखालफत कर पा रहे है। जहाँ तक मुस्लिम पर्सनल ला की बात है, तो चलो हमारे साथ। हम लड़ेंगे आपके मुस्लिम पर्सनल कोड के लिए, आप कहेंगे, तो हम आपके लिए मुस्लिम क्रिमिनल कोड के लिए भी लडेंगे - कितने उलेमा हैं आपके साथ जो कहें कि मुस्लिम अपराधियों के लिए अलग से शरिया अदालतें हों जो उन्हें सऊदी अरब और तालेबान की तरह पत्थर मार-मारकर मौत की सज़ा, हाथ काटने या तलवार से चौराहे पर सर कलम करने जैसी सजाएँ तजवीज़ करें?"
"अब भई, ये हमने कब कहा? मज़हब भी उतना ही पालना चाहिए जितना अफ्फोर्ड कर सकें ..." सैय्यद खिसियाते हुए से बोले, "पूरी बोतल थोड़ी पी जांगे दवा के नाम पे? हैं? बोलो?"
"अरे, किधर को खिसक लिए?" जब तक हम ढूंढ पाते, सैय्यद चाभीरामानी अपने चाभी के गुच्छे को दोनों हाथों से पकड़कर मुँह से ऐके-47 की तरह आवाजें निकालते हुए एक पतली गली में गुम हो गए।
बहुत सी बातें पूछने से रह गयीं। सोचता हूँ कि सैय्यद जब अगली बार मिलेंगे तब ज़रूर पूछूंगा जैसे कि -
हमेशा की तरह सुबह की सैर के लिए निकला। सामने से सैय्यद चाभीरमानी आते हुए दिखाई दिए। जब तक पहचान पाया, इतनी देर हो चुकी थी कि कहीं छिप न सका। लिहाजा उनके सामने पड़कर दुआ सलाम करनी पडी। मैंने कहा नमस्ते, उन्होंने जवाब में वालेकुम सलाम कहते हुए अपने हाथ का चाभी का गुच्छा मेरी ओर फुलटॉस करके फेंकने का उपक्रम किया। मैंने बरेली की झाँप देकर बगलें झाँकीं और इस बात पर मन ही मन खुश हुआ कि चोट खाने से बच गया। पागल आदमी का क्या भरोसा? क्या पता सचमुच ही यह भारी गुच्छा मेरे सर पर दे मारे।
"आज सुबह-सुबह किधर की सवारी है मियाँ?" मैंने रस्म-रिवाज़ के तौर पर पूछ डाला।
"जहन्नुम जाने की तय्यारी है, आप चलेंगे साथ?" सैय्यद ने अपनी जानी-पहचानी झुंझलाहट के साथ कहा, "...अजी यहाँ जान पर आ बनी है, इन्हें सवारी की पड़ी है।"
"सोच लो, हम तो ठहरे बुद्धपरस्त काफिर, साथ चल पड़े तो कहीं तुम्हारा पाक जहन्नुम नापाक न हो जाए?" मैंने भी चुटकी ली।
"क्यों तुमने भी हिंदुत्वा ब्रिगेड ज्वाइन कल्ली क्या? मियाँ तुम तो सेकुलर थे कल तलक।"
"अरे कल ही तो तुम्हारे मौलवी साहेब कह रहे थे कि सारे सेकुलर काफिर होते हैं, तुम्हीं ने तो बताया था..." हमने याद दिलाया।
"अमाँ, काफिर भी निभ जाते हैं और ये निगोड़े सेकुलर भी चल जाते हैं। पिराबलम तो हिंदुत्वा से है। अब देखो न, ये हिंदुत्वा वाले सब मिलकर हमारे मोहम्मद जुबैर भाई को दाढी बढ़ाने से रोक रहे हैं।"
हमें कुछ समझ नहीं आया। सोचा कि किसी नई सेना ने कोई नया फड्डा कर दिया होगा। एक तो अपनी जनरल नालेज पहले से इतनी गरीब है दूसरे रोजाना ही दो चार नयी सेनायें बन जाती हैं - शिव सेना, अली सेना, निर्माण सेना, तकरार सेना, बिगाड़ सेना, और अब लड़कियों पर वीरता दिखाने वाली श्रीराम सेना ... किस-किस का हिसाब रखा जाए।
सैय्यद चाभीरामानी ठहरे इन सेनाओं के चलते-फिरते साइक्लोपीडिया, सोचा उन्हीं से पूछ लेते हैं, "किस हिंदुत्वा की बात कर रहे हैं आप? कोई नई रथयात्रा शुरू हुई है क्या या एक और जन्मभूमि मुक्त कराने का मीजान है?"
आपके मुल्क में मुसलमानों पर इतने जुलुम ढाए जा रहे हैं, "अब देखो शबाना आपा को किराए पर घर नहीं मिलता क्योंकि वे मुसलमान हैं।"
"अरे घर तो हमें भी नहीं मिलता था, क्योंकि हम कुँवारे थे - रात-बिरात मुहल्ले में आने-जाने का डर था, बाद में इसलिए नहीं मिलता था क्योंकि हमारा भरा-पूरा परिवार था - घर पर कब्ज़ा कर लेने का डर था। अरे भई, जिसने घर बनाने में लाखों रुपया, मेहनत और समय लगाया है, उसका डर भी कुछ मायने रखता है या नहीं? वैसे एक बात बताइये... अभी तक शबाना आपा क्या पाकिस्तान में रहती थीं या किसी पाइप में रहती थीं?"
हमारी बात न सैय्यद की समझ में आयी न शबाना आपा की। बस बोलते रहे, "... हेमा मालिनी, अस्मिता पाटिल, माधुरी सब को चांस मिला, शबाना आपा को कोई चांस भी न मिला जब तक शमीम बंगाली नहीं आए।"
"मियाँ, वह श्याम बेनेगल हैं, शमीम बंगाली नहीं, ... चलो अगर यह बेतुकी बात मान भी लें तो सलमान खान, आमिर खान, शाहरुख खान के महलनुमा बंगलों के बारे में क्या राय है आपकी?"
"अरे, लाहौल विला कुव्वत. वो तो सब के सब काफिर हैं, कोई दिवाली मनाता है और कोई राखी बंधाता है। एक सोहेल खान था असली मुसलमान, उसे करा दिया न फ्लॉप आप लोगों ने साजिश करके?" सैय्यद का गुस्सा कम होने पर ही नहीं आ रहा था, "... और वैसे भी, इस वखत हम तुम्हारे सरकारी हिंदुत्वा की बात कर रहे हैं!"
"सरकारी हिंदुत्वा जैसी कोई चीज़ नहीं होती। भारत सरकार सेकुलर है।"
"अरे तुम्हारी सरकार और फौज सेकुलर होती तो जुबैर भाई की दाढ़ी के पीछे क्यों पड़ती?" सैय्यद अभी भी ऐंठे हुए थे।
"चलो हम चलते हैं तुम्हारे साथ जुबैर भाई की दाढ़ी बचाने, कहाँ रहते हैं वह?"
"अरे भाई वो हियाँ पे नहीं रहते, वो हैं आपके हिन्दुस्तान की हवाई फौज में ... साथ चलेंगे? ... बात करते हैं!"
अब मामला कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। हमने कहा, "अगर सैनिक हैं तो सेना के नियमों को तो मानना पड़ेगा न?"
"अजी, यह कायदा क़ानून सब उन्हीं के लिए है क्या? आपके परधान मन्तरी ख़ुद भी तो दाढ़ी रखते हैं और जुबैर भाई पर हिंदुत्वा लगा रहे हैं।"
"अरे भैया, प्रधानमंत्री कोई सेना में थोड़े ही हैं। और फ़िर जुबैर भाई को दाढ़ी रखने से किसने रोका है? इस्तीफा देकर घर में बैठें और रखें 17 गज की दाढ़ी।"
"अरे जो ईमान के पक्के हैं, उलेमा का हर हुकम मानते हैं, वो कहीं भी रहें, दाढ़ी ज़रूर रखते हैं।" सैय्यद हमारी बात सुन थोड़े ही रहे थे।
"तो पाँच वक़्त की नमाज़ भी पढ़ते होंगे?" हमने पूछा।
"ज़रूर पढ़ते होंगे जब दाढी के इतने पक्के हैं तो" सैय्यद ने अपनी सफाचट काल्पनिक दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
"कल को जहाज़ उडाते समय नमाज़ का वक़्त होगा तो जुबैर भाई आँखे बंद करके, जहाज़ छोड़ के नमाज़ पढ़ने लगेंगे? चाहे मर जाएँ जहाज़ समेत?"
"नहीं ऐसा तो नहीं करेंगे शायद" सैय्यद चाभीरामानी ज़िंदगी में पहली दफा विचारमग्न दिखे।
"अच्छा, दाढ़ी इस्लामी है, नमाज़ नहीं? बेहतर हो आप उन्हें समझाएँ कि वे या तो पक्के मुसलमान हो जाएँ या फ़िर पक्के सैनिक ही बने रहें, दो नावों पे सवार होने के चक्कर में अपने दोनों जहाँ क्यों बरबाद कर रहे हैं? वैसे तुम्हारी इस्लामी जम्हूरियत की फौज में किस जनरल के दाढ़ी थी, मुशर्रफ़ के, जिया-उल-हक़ के या ढाका में सरेंडर करने वाले जनरल नियाज़ी के?"
शायद उनकी समझ में आ गया कि इस विषय पर उनकी दाल नहीं गलने वाली। तो उन्होंने फ़टाफ़ट दाल बदल दी, "अच्छा चलो मान लिया कि तुम्हारे परधान मन्तरी और विलायत से आयी मैडम हिंदुत्वा वाले नहीं है - तो फ़िर उनके होते हुए तुम्हारे मुल्क में अलग मुस्लिम पर्सनल कोड की मुखालफत क्यों होती है?"
"आजाद देश में लोग किसी भी बात की मुखालफत कर सकते हैं - जभी तो आपके सगे, वो जुबैर मियाँ फौजी नियमों की मुखालफत कर पा रहे है। जहाँ तक मुस्लिम पर्सनल ला की बात है, तो चलो हमारे साथ। हम लड़ेंगे आपके मुस्लिम पर्सनल कोड के लिए, आप कहेंगे, तो हम आपके लिए मुस्लिम क्रिमिनल कोड के लिए भी लडेंगे - कितने उलेमा हैं आपके साथ जो कहें कि मुस्लिम अपराधियों के लिए अलग से शरिया अदालतें हों जो उन्हें सऊदी अरब और तालेबान की तरह पत्थर मार-मारकर मौत की सज़ा, हाथ काटने या तलवार से चौराहे पर सर कलम करने जैसी सजाएँ तजवीज़ करें?"
"अब भई, ये हमने कब कहा? मज़हब भी उतना ही पालना चाहिए जितना अफ्फोर्ड कर सकें ..." सैय्यद खिसियाते हुए से बोले, "पूरी बोतल थोड़ी पी जांगे दवा के नाम पे? हैं? बोलो?"
"अरे, किधर को खिसक लिए?" जब तक हम ढूंढ पाते, सैय्यद चाभीरामानी अपने चाभी के गुच्छे को दोनों हाथों से पकड़कर मुँह से ऐके-47 की तरह आवाजें निकालते हुए एक पतली गली में गुम हो गए।
बहुत सी बातें पूछने से रह गयीं। सोचता हूँ कि सैय्यद जब अगली बार मिलेंगे तब ज़रूर पूछूंगा जैसे कि -
- धर्म के नाम पर अपना अलग पर्सनल ला मांगने वाले अपना अलग क्रिमिनल ला क्यों नहीं मांगते?
- राखी बंधाने पर काफिर हो जाने वाले बैंक में पैसा रखकर सूद क्यों खाते हैं?
- जिहाद को धर्मसंगत ठहराने वाले ज़कात को पूरी तरह से क्यों भूल जाते हैं?
- पाकिस्तान इस्लामिक रिपब्लिक की एयरलाइन में शराब क्यों बाँटती है? क्या वह कुफ्र नहीं है?
- अपने को अल्पसंख्यक कहने वाला देश का दूसरे नंबर का बहुसंख्यक समुदाय असली अल्पसंख्यकों जैसे यहूदी, पारसी, कश्मीर में ब्राह्मण, और आदिवासी अंचलों में आदिवासियों के प्रति इतनी बेरुखी और ज़ुल्म कैसे देख पाता है?
जबरदस्त लिखा है आपने ! मगर बंद कानों तक क्या यह आवाज पहुंचेगी भी ?
ReplyDeleteसैय्यद चाभीरमानी तर्क संगत बात करने और शराफत से जीने के जीन्स रहित जीव हैं। और उनकी जमात बहुत बड़ी है। वे ऐसे ही रहेंगे, आप लाख बात कर लें उनसे।
ReplyDeleteआज कल के हालात पर आपकी पैनी नज़र दिखी. बहुत सुंदर लेख. बधाई हो. आभार.
ReplyDelete" सुंदर और सार्थक आलेख जो न जाने कितने प्रश्न सामने लाकर खडे कर देता है....लकिन क्या इनके जवाब हैं...कोई ऐसा जवाब जो संतुष्ट कर सके जिज्ञासा को .....ये प्रश्न जरुर पूछियेगा और कोई जवाब मिले तो हमे भी बताइयेगा ..."
ReplyDeleteधर्म के नाम पर अपना अलग पर्सनल ला मांगने वाले अपना अलग क्रिमिनल ला क्यों नहीं मांगते?
Regards
किसी भी प्रश्न का जबाब नहीं दे पायेंगे आपके. वो सब अपनी रौ में बह रहे हैं. आपका सजग आलेख पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteआभार.
भाई अनुराग जी
ReplyDeleteजबरदस्त फोड़ डाला है आपने तो। शब्द जब स्याही के माध्यम से कागज पर उतरते है तब वे बेआवाज लगते हैं लेकिन जब वे ही आँखों के माध्यम से दिलों पर छा जाते हैं तब तूफान बनकर क्रान्ति का सूत्रपात करते हैं। मुझे विवेकानन्द की शिकागो यात्रा का स्मरण होता है। उस समय ईसाइयत की मंशा थी धर्म संसद के बहाने स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना। लेकिन विवेकानन्द ने अपने सम्बोधन में ही भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता को प्रतिपादित कर दिया था और उन सबके मंसूबे धरे के धरे रह गए थे। ऐसे ही कितना ही जेहाद अपना रंग दिखाए लेकिन ये सब समय के साथ नेस्नाबूत होंगे और फिर से चराचर जगत को संरक्षण देने वाली भारतीय संस्कृति का सूर्य दैदिप्यमान होगा।
एकदम सटीक.. वाह..
ReplyDeleteबात पते की है, लेकिन जिनकी समझ में आनी चाहिये, वे आंखों पर पट्टी, कानों में तेल डालकर बैठते हैं, श्रद्धेय सुरेश चिपलूनकर जी ने बिलकुल ठीक कहा है कि कम से कम कुछ न करने से तो कुछ करना ही बेहतर है. क्या आप बरेली से हैं,उत्तर प्रदेश से.
ReplyDeleteएक ज्वलंत मुद्दे पर नायाब आलेख, जो अपनी ही एक रोचक और धारदार शैली मे लिखा गया है. बहुत बधाई और धन्यवाद आपको.
ReplyDeleteरामराम.
सब अपने अपने हिसाब से मजहब को अडजस्ट करके चल रहे है भाई ...जहाँ उनके हिसाब से मोल्ड हो जाये वहां खीच दो..सब का का यही हाल है....
ReplyDeleteसब अपने अपने हिसाब से मजहब को अडजस्ट करके चल रहे है भाई ...जहाँ उनके हिसाब से मोल्ड हो जाये वहां खीच दो..सब का का यही हाल है....
ReplyDeleteअनुराग भाई ये सवाल तो मैं भी बहुत दिनों से जानना चाह रहा था, लेकिन किसी से इस लिए नहीं पूछा क्योंकि वो बेचारे भी आपके सय्यद चाभिरामानी जैसे ही कम अक़ल या अनपढ़ मुसलमान थे. आपने भी गलत लोगों से सवाल किया. खैर...
ReplyDeleteएक विचारणीय पोस्ट।
ReplyDeleteसाधुवाद............ इतना बेहतरीन और बेबाक लिखने के लिए
ReplyDeleteऐसे ही बहुत से ज्वलंत प्रशों का उत्तर सब भारतीय मांगते हैं
सचमुच मैं भी यह पूछना चाहती हूँ........
ReplyDeleteधर्म के नाम पर अपना अलग पर्सनल ला मांगने वाले अपना अलग क्रिमिनल ला क्यों नहीं मांगते?
राखी बंधाने पर काफिर हो जाने वाले बैंक में पैसा रखकर सूद क्यों खाते हैं?
जिहाद को धर्मसंगत ठहराने वाले ज़कात को पूरी तरह से क्यों भूल जाते हैं?
पाकिस्तान इस्लामिक रिपब्लिक की एयरलाइन में शराब क्यों बाँटती है? क्या वह कुफ्र नहीं है?
अपने को अल्पसंख्यक कहने वाला देश का दूसरे नंबर का बहुसंख्यक समुदाय असली अल्पसंख्यकों जैसे यहूदी, पारसी, कश्मीर में ब्राह्मण, और आदिवासी अंचलों में आदिवासियों के प्रति इतनी बेरुखी और ज़ुल्म कैसे देख पाता है?
---पर इसका उत्तर हमें कोई नही देगा.......न ये सेकुलर सरकार ,न ही अपने को सही ठहराने वाला यह समुदाय.
बहुत सुंदर लेख. बधाई हो. आभार.
ReplyDelete@COMMON MAN जी,
ReplyDeleteबरेली में मैंने अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण वर्ष गुजारे हैं. आज मेरा जीवन जिस रूप में भी फलीभूत हुआ है उसकी जिम्मेदारी भी बहुत हद तक मेरे बरेली प्रवास में ही तय हुई थी - इस नाते आप मुझे बरेलवी कह सकते हैं.
@khamoshbol जी,
सैय्यद चाभीरामानी अनपढ़ बिल्कुल नहीं हैं. वे शबाना आज़मी अल्लामा इकबाल और मुहम्मद अली जिन्नाह की तरह एक पढ़े लिखे तरक्कीपसंद मुसलमान हैं और आजकल जूताकारिता के धंधे में हैं. अनपढ़ मुसलमान तो हमारे प्यारे "जावेद मामू" हैं जिनको मैं बचपन से जानता हूँ. उनके बारे में बहुत जल्दी लिखने वाला हूँ.
जो सवाल सदियों से अनुतरित्त हों उनका जवाब सैय्यद चाभीरमानी जैसे लोगों के पास कहां से मिलेगा। जो सवाल शबाना आपा के पास आकर अनुतरित्त रह जाते हैं उनका जवाब सैय्यद चाभीरमानी कहां से लाएगें। एक सैक्यूलर देश में जब लोग धर्म के नाम पर फायदे मांगने लगें और कर्तव्यों के नाम पर तोहमतें लगाने लगें तो जवाब कहां ढूंढेगें आप? जो लोग अपने देश में ही (कश्मीर से धकियाए हुए) अल्पसंख्यकों के लिए आवाज नहीं उठा पाते वह पाकिस्तान, बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के बारे में क्यों परेशान होंगे। उनके मसले और मसायल तो दाढी से शुरु होगें और अयोध्या या गोधरा पे समाप्त। बस्स। (और आपकी इस लिस्ट का जवाब तो सददाम मामू के पास ही हो सकता है, वह बेचारे लटके लटके जवाब भी साथ ले गए)
ReplyDeleteKya gazab likhte hain aap, kabhi kabhi aapki soch par danto tale ungali daba lete hain hum. Bahut khoob.Likhte rahiye.
ReplyDeleteअनुराग जी सच मै आप ने मेरे दिल की बात लिख दी, मेने भी कई बार ऎसे सवाल यहां अपने मुस्लिम दोस्तो से किये, ओर जबाब हमेशा गोल मटोल रहा या फ़िर चाकू निकाल लेते है, एक बार एक पाकिस्तान के सज्जन को जो हमारे साथ बेठते थे, ओर ताश भी खेलते थे, उन का नाम राणा या कुछ ऎसा ही था, एक दिन मेने कजाक मे उन्हे राणा सिंह कह दिया, थोडी देर बाद मुझे किसी ने कहा की वो पागल एक लम्बा सा चाकू लिये आप को ढुढ रहा है, मारने के लिये.
ReplyDeleteआप क धन्यवाद
किसी भी धर्म को पालने वाले जब अच्छे काम करते हैँ तब सारी दुनिया उन्हेँ याद कर माथा झुकाती है श्रध्धाँजली देती है - जैसा मेरी पोस्ट मेँ राजकुमारी नुर के लिये साफ साफ दीक रहा है अन्यथा, ऐसे ही लोग मिलते हैँ
ReplyDeleteजिनके लिये ..कहेँगेँ..
" यूँ ही कोई मिल गया था सरे राह, चाभी फेँकते "
;-)
- लावण्या
क्या लिखे हैं सर.....मगर कौन है हमारे अलावा इन्हें पढ़ने-गुनने वाला
ReplyDeleteबहुत विचारणीय लिखा है आपने... काश इन सवालों के उत्तर मिल पाते....
ReplyDeleteवैसे पढ़े-लिखे चाभिरामानी से तो अनपढ़ "जावेद मामू" कहीं ऊँचे हैं. (मैंने जावेद मामू के बारे में पढ़ा है, और भी पढ़ना चाहूंगी)
माफ़ कीजियेगा अनुराग भाई. सय्यद चाभीरमानी जैसे इंसान अनपढ़ ही हैं जो ये तो दावा करते हैं कि सारी दुनिया का मालिक एक है लेकिन सबको उसका बन्दा मानने से इनकार कर देते हैं. और चाभीरमानी तो हर एक गाँव, देश, धर्म, सम्प्रदाय में हैं. किसी में कम तो किसी में ज्यादा. लेकिन आप जैसे अच्छे इंसान या आपके जावेद मामू जैसे अच्छे इंसान अभी हैं...
ReplyDeleteजिन्हें इससे कुछ सीखना चाहिए वो तो पढ़े बिना निकल जायेंगे ! बहुत सुंदर लेखन.
ReplyDeleteहमें सय्यद चाभीरमानी और जावेद मामू में फ़र्क करना और समझना ज़रूरी है.
ReplyDeleteबात वहीं आकर अटक जाती है. जीयो और जीने दो. तुम्हारी भी जय जय , हमारी भी जय जय. I am OK, you are OK. वसुदैव कुटुम्बकम...
बहुत ही ज़बरदस्त व्यंग है !!!!
ReplyDeleteमैं समझ रहा था कि आप ऐसे ही मेरी पीठ ठोंकते रहते हैं। अब समझ में आया कि आप का भी 'वो वाला' दिमागी स्क्रू ढीला है। आप तो पक्के 'लंठ' हैं - गुरू जी नमन स्वीकार करें।
ReplyDeleteअब आप को शुरू से पढ़ना पड़ेगा। कम्पनी इतना चक्कर कटवा रही है कि दु:खी हो गया हूँ। लिखने पढ़ने को साँस ही नहीं मिल रहा।
vaah
ReplyDeleteहो न हो, आप भी शर्तिया हिंदुत्वावादी इंसान हैं।
ReplyDeleteकिसी सेकुलर सज्जन को ऐसे बेरहम सवाल पूछते देखा कभी?
चाभीरामानियों से आज तक ये असुविधाजनक सवाल नहीं किये गए।
अब तो साबित हो गया न,इस मुल्क में असहिष्णुता पूरे उफान पर है।