Saturday, January 10, 2009

पिट्सबर्ग का अनोखा परिवहन [इस्पात नगरी 7]

इस्पात नगरी पिट्सबर्ग पर यह नई कड़ी मेरे वर्तमान निवास स्थल से आपका परिचय कराने का एक प्रयास है। अब तक की कड़ियाँ यहाँ उपलब्ध हैं:
खंड 1; खंड 2; खंड 3; खंड 4; खंड 5; खंड 6
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा. हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है.]

A Pittsburgh bridge
पिट्सबर्ग का एक पुल

हमने पहले पढा कि पिट्सबर्ग नदियों, पुलों और कोयले के पहाडों का शहर है. लेकिन शायद मैं यह बताना भूल गया कि पिट्सबर्ग का नदी पत्तन अमेरिका का सबसे बड़ा नदी पत्तन रहा है। माउंट वाशिंगटन से नीचे नदी तक आने के लिए सड़क मार्ग का प्रयोग हो सकता था मगर वह बहुत ही लंबा रास्ता होता। ऊंचाई इतनी ज़्यादा थी कि सीढियां बनाना किसी काम में न आता। सो पिट्सबर्ग वालों ने एक अलग तरह के परिवहन साधन का प्रयोग किया। पहाड़ की ढलान पर ऊपर से नीचे तक रेल की पटरियों के दो जोड़े बिछाए गए और उन पर एक मोटे तार से तीन खंड में बंटी गाडी बांधकर उसे इस तरह जोड़ा कि जब एक गाडी पहाड़ के ऊपर हो तो दूसरी उसकी तली पर रहे ताकि कम से कम ऊर्जा लगाकर उनका परिवहन चलता रहे। इस तरह की सत्रह जोडियाँ लोगों, घोडों, वाहनों और अन्य सामान को पहाड़ की चोटी से नीचे नदी की सतह तक लाती थीं।


पिट्सबर्ग की एक इन्क्लाइन का एक दृश्य

चूंकि पटरियाँ लगभग 30-35 अंश के कोण पर बनी थीं इसलिए इन पर चलने वाली यह गाडियां भी सीढियों की तरह ऊंची-नीची बनी हुई थीं। इस परिवहन साधन का नाम था इन्क्लाइन। बदलते समय और तकनीकी प्रगति के साथ इन्क्लाइन का महत्त्व धीरे-धीरे कम हो गया तो इनकी संख्या घटने लगी। मगर बाद में सन १८७० में शुरू हुई मोनोंगाहेला इन्क्लाइन और सन १८७७ में शुरू हुई ड्यूकेन इन्क्लाइन नाम की दो इन्क्लाइन को बचा कर रखा गया और यह दोनों आज भी पर्यटकों और नियमित यात्रियों को स्टेशन स्क्वेयर और वॉशिंग्टन पर्वत के बीच की यात्रा कराती हैं।

पिट्सबर्ग इन्क्लाइन का एक और दृश्य

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना ने अपने तटों की रक्षा के लिए जनरल मोटर्स की सहायता से छः पहियों वाले ऐसे उभयचर वाहन का उत्पादन किया जो कि जल-थल दोनों में चल सके। इस वाहन को डक (या बत्तख) पुकारा गया हालांकि इसकी वर्तनी (DUKW) अलग सी थी।

पिट्सबर्ग की एक उभयचर डक

ज़मीन पर ५० मील और पानी में ८ मील की रफ़्तार से चलने वाले यह उभयचर वाहन अमेरिका के अलावा ब्रिटिश, ऑस्ट्रेलियाई और रूसी सेनाओं को भी दिए गए थे। उस समय से आज तक युद्ध कला और परिवहन तकनीक में इतना परिवर्तन हो चुका है कि युद्ध में इन वाहनों की उपयोगिता लगभग समाप्त ही हो गयी। मगर ये नाव-बसें पिट्सबर्ग में आज भी पर्यटकों को नगर की ऐतिहासिक इमारतों और नदियों की सैर बखूबी कराती हैं।


पिट्सबर्ग की एक नदी में एक क्रूज़ जहाज़


पिट्सबर्ग की एक नदी में खड़ी हुई निजी नावें

आपके सुझावों और टिप्पणियों का स्वागत है। कृपया मुझे यह अवश्य बताएं कि आपको पिट्सबर्ग से परिचित कराने का मेरा प्रयास कितना सफल हुआ है।

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इस्पात नगरी से - अन्य कड़ियाँ
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25 comments:

  1. आज आपने पिटसबर्ग के परिवहन के बारे मे जो जानकारी दी वो लाजवाब रही. खासकर ३५ डिग्री की रेल पटरियों का तो अजूबा ही लग रहा है. कितना आनन्द आता होगा इनमे बैठ कर. क्या ये कुछ २ वैसा नही होता होगा जब हवाईजहाज मूडने के लिये घुमता है तब यात्री भी पूरे एक तरफ़ झुक जाते हैं. इनमे भी जब ये पूरी ३५ डिग्री पर होती होगी तब कैसा अनुभव होता होगा? वाकई मजेदार जानकारी.

    एक सुझाव : आपके ब्लाग के बैक्ग्राऊंड पर सफ़ेद फ़ोंट इतने छोटे हैं कि मुझ जैसे उम्रदराज लोगो को पढने मे आंखो को बहुत जोर पडता है. आपने जब से ब्लाग का कलर बदला है तब से मैं आपकी पोस्ट को कापी करके दुसरी जगह पढता हूं. अगर फ़ोंट साईज थोडा बढाया जाये तो ठीक रहेगा. वैसे हो सकता है मेरी आंखों की समस्या ज्यादा हो. :)

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  2. इन्क्लाइन के बारे में तो आज पता चला! बहुत धन्यवाद।

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  3. @ताऊ
    पी सी भाई साहब, मैंने फॉण्ट का आकार थोडा सा बढ़ा दिया है, कृपया बताएं यदि यह अभी भी ठीक से नहीं पढा जा रहा है तो फ़िर मैं टेम्पलेट बदल दूंगा. यदि आप ही आराम से नहीं पढ़ सकें तो मेरा ब्लॉग लिखना ही बेकार है.

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  4. @पांडे जी,
    मुझे ऐसा याद पड़ता है की ब्रिटिश राज में भारत के धुर पश्चिमी कबायली अफगानिस्तान से सटे इलाकों में इन्क्लाइन का प्रयोग किया गया था. मालूम नहीं की वर्तमान पाकिस्तान में यह किस गति को प्राप्त हुईं.

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  5. इन्कलाइन के बारे में पहली बार जाना। मनुष्य हर परिस्थिति में राह बना लेता है।

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  6. अच्छा ज्ञान मिल गया ! धन्यवाद !

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  7. वाकई कुछ बातें बहुत ही रोचक लग रही है ..चित्र बहुत सुंदर है

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  8. पिटसबर्ग एक नजर में , बहुत अच्छा लगा . आपकी नजरो से हम धर बैठे पर्यटन कर ले रहे है
    शुभकामनाएं

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  9. रोचक जानकारी हेतु आभार.हमारे लिए यह सब नया था.बड़ा ही अच्छा लगा.

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  10. आपका आलेख और चित्र पिट्सबर्ग की सुन्दरता का अहसास करा रहा है.

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  11. अनुराग जी बहुत सुंदर लगा आप का सारा लेख, बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, ओर ताऊ जी यह जो इन्कलाइन है यह हमारे यहां भी स्वीट्र्जर्लेण्ड मै है ओर शायद ४५ डिग्री पर है, ओर बेठने मै कोई मुश्किल नही आप बेठे तो बिलकुल सीधे ही होगे, बाकी इस बारे अनुराग जी ने लिख दिया है.
    धन्यवाद

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  12. मुझे यकीन था कि
    अनुराग भाई जब लिखेँगेँ
    तब ऐसा ही रोचक विवरण पढने मिलेगा
    -बहुत अच्छी हैँ यह कडीयाँ
    -यही सच्चा ब्लोग लेखन है -
    -लावण्या

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  13. सुंदर चित्रावली रोचक जानकारी

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  14. इन्क्लाइन ke baare me jaan kar accha laga...
    acchi jaankaari de apne...

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  15. काश, ऐसा अपने शहर में भी देखने को मिलता।

    इस रोचक जानकारी हेतु आभार।

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  16. आनन्द आ गया, फोटो भी बहुत सुन्दर थे.

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  17. आनन्द आ गया, चित्र भी बहुत सुन्दर थे.

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  18. अमेरिका पहुच कर वहां की तड़क भड़क में खोकर अपनी असली पहचान भूल जाने वालों के लिए "स्मार्ट इंडियन" एक जबाब है. अपनी मातृ भाषा में अपने देशवासियों को अमेरिका के बारे में रोचक एवम ज्ञानवर्धक जानकारी देकर आप प्रशंसनीय कार्य कर रहे है. तकनीकी जानकारियों का भी कुछ समावेश हो तो और अच्छा.
    विनोद श्रीवास्तव

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  19. अरे वाह हमने तो स्विट्जरलैंड में देखा था ऐसी रेल... बहुत सजीव वर्णन चल रहा है.

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  20. बहुत रोचकता लिए हुए जानकारी दी है आपने...धन्यवाद...पिट्सबर्ग जा कर भी ये नहीं जान पाए थे हम...
    नीरज

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  21. आपके चित्र देखकर लगा दुनिया गोल नही चकोर है....बेहद खूबसूरत शहर है......मन ललचा गया

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  22. इन्क्लाइन की जानकारी पहली बार हुयी. इस बार चित्रों के साथ साथ जानकारी पढ़ना रोचक लगा, यूँ लगा जैसे कोई चल चित्र आँखों के सामने चल रहा हो.

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  23. सबसे प्रथम आप सभी को मकर संक्रांती की शुभकामनायें.

    मैं विनोद श्रीवास्तव जी की बात से सहमत हूं.आपकी आंखों से हम भी वो वतन वो चमन देख लेतें है.

    साथ साथ आपकी टिप्पणीयोंसे जो भावनाओं का आदान प्रदान होता है उससे ग्यान वर्धन भी होता है, रोचकता बनी रहती है.

    ताऊ अगर नहीं देख पाये तो फ़िर ब्लोग की पूरी व्यवस्था ही बेकार है, सही कहा.

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  24. आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

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