पिछली पोस्ट में पाण्डेय जी ने उत्सुकता व्यक्त की थी कि शून्य से नीचे के तापक्रम पर रेल चलती है। बात तो सही है। रेल खूब चल रही है। और हाँ, डिग्री सेंटीग्रेड में इस समय पिट्सबर्ग का तापमान शून्य से १९ अंश नीचे है। आज दिन में थोडा सा पैदल चलना पडा। ज़रा देर के लिए हाथ दस्ताने से बाहर निकाला तो लगा कि कुछ देर अगर बाहर रहा तो शायद कट कर गिर ही जायेगा। मगर ट्रेन तो चल रही है. ज़िक्र आया है तो बताता चलूँ कि पिट्सबर्ग की स्थानीय ट्राम सेवा को टी (T) कहते हैं। बाद में कभी विस्तार से सचित्र जानकारी दूंगा।
पिछली बार आपने मेरे "चंद अश'आर" पसंद किए, इसका आभारी हूँ। आपकी हौसला-अफजाई का फायदा उठाते हुए कुछ और शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है आपको पसंद आयेंगे।
जब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
उसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं।
-x-X-x-
बरबाद ही होंगे मेरे जज़्बात,
यहाँ नहीं ठहरी कुछ सुनने की बात।
-x-X-x-
कितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
कहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
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शहर सुनसान सही, राह वीरान सही,
रात लम्बी ही सही, सहर तो होनी ही है।
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पिछली बार आपने मेरे "चंद अश'आर" पसंद किए, इसका आभारी हूँ। आपकी हौसला-अफजाई का फायदा उठाते हुए कुछ और शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है आपको पसंद आयेंगे।
जब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
उसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं।
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बरबाद ही होंगे मेरे जज़्बात,
यहाँ नहीं ठहरी कुछ सुनने की बात।
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कितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
कहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
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शहर सुनसान सही, राह वीरान सही,
रात लम्बी ही सही, सहर तो होनी ही है।
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ट्रेन ्के विवण का इन्तजार रहेगा.
ReplyDeleteशहर सुनसान सही, राह वीरान सही,
रात लम्बी ही सही, सहर तो होनी ही है।
आज के सारे शेर लाजवाब हैं और आखिरी वाले को गुनगुना रहा हूं.
रामराम.
Sundar rachana hai, bahut sundar....
ReplyDeleteVaha ki tram ko T kahate hai aur yaha Delhi me Metro kahate hai.....aage aasha hai aur jankari milti rahegi..
Regards...
उम्दा शेर अनुराग भाई. पिछली बार के शेर भी बहुत बढ़िया थे ..... यूं ही छोटे छोटे doses देते रहें ....
ReplyDeleteजब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
ReplyDeleteउसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं।
bahut acche sher hain...
pahle, teesre aur chauthe me bahut anand aaya.
ReplyDeleteशहर सुनसान सही, राह वीरान सही,
ReplyDeleteरात लम्बी ही सही, सहर तो होनी ही है।
बहुत उम्दा है जी वाह वाह वाह।
pahle, teesre aur chauthe me jyada anand aaya.
ReplyDeleteकितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
ReplyDeleteकहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
ये वाला शेर तो लाजवाब है... बहुत खूब.. बहुत ही उम्दा!
जब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
ReplyDeleteउसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं।
अनुराग जी
बेहतरीन शेर है सब के सब और ये दो कतल है
कितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
ReplyDeleteकहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
goya ki aap bhi ye shouk rakhte hai.
सहर तो होनी ही है. बहुत उम्दा.सभी शेर अच्छे लगे. ताऊ की तरह ही ट्रेन के विवरण के लिए हम प्रतीक्षा में हैं.
ReplyDeleteइरशाद -इरशाद !
ReplyDeleteजब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
ReplyDeleteउसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं। ye bahut acchha hai
आपका गद्य और आपके शेर, दोनों ही सुन्दर हैं।
ReplyDeleteआज के अशआर में यह शेर वेदनाभरा अनुभव हुआ-
कितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
कहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
शेर की बात बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर शेर,
ReplyDeleteधन्यवाद
कितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
ReplyDeleteकहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
sab se achcha sher yah laga...bahut sundar!
वाह,क्या बात है।
ReplyDeleteकितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
ReplyDeleteकहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
पिछले दिनों कुछ ऐसा ही मैं सोच रहा था, मगर कवि नही हूं इसलिये शब्दों में , बहर में गढ़ नही पाया .
मेरे एक और मित्र ने पाती लिखी है मुझको ,मुझसे गिले शिकवे ना करते हुए मुझसे नाराज़गी ज़ाहीर की है, इधर उधर के तानों से.
उसे प्रेम से ही बस में करने का मन है, क्योंकि तर्क में वह माहिर है. अब बस ये शेर ही काफ़ी है उसके खत के जवाब देने के लिये.
इसलिये आप से उधार ले रहा हूं ये कविता/शेर, और वादा है कि लौटाऊंगा.कैसे ये आप तय करें. शुक्रिया
जब भी मिलते हैं, नए ज़ख्म दिए जाते हैं,
ReplyDeleteउसपे शिकवा ये कि हम दूर हुए जाते हैं।
-बहुत पसंद आया.
टोरंटो में भी -३५ पर खुले में गो ट्रेन चलती रहती है. टेक्नोलॉजी कौन सी है, इसकी जानकारी तो नहीं है.
आपके टी ट्रेन वाले आलेख का इन्तजार रहेगा.
सुन्दर शेर। ट्रेन विवरण कब आयेगा?
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ReplyDeleteबड़े अच्छे अश-आर बन पड़े हैं,
कुछ नोस्टैल्ज़िआ की झलक भी देते हैं,
यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो !
रोचक! रेल के बारे में जिज्ञासा का कारण था कि पटरियां इतना तापक्रम डिफरेंशियल बिना टूटे कैसे झेल लेती हैं।
ReplyDeleteमेण्टिनेन्स प्रेक्टिस में कुछ अलग तरीका होगा।
एक सुंदर रचना सामने आई है, धन्यवाद।
ReplyDeleteआपके शेर हमारे जैसे ही बहुत से लोगों के अनुभवों और दु:खों को अभिव्यक्ति देते से लगते हैं इसलिए इनसे एक जुडाव सा महसूस होता है। लिखते रहिए ताकि यह जुडाव और प्रगाढ तथा स्थायी हो सके ।
ReplyDeleteकितना ढूँढा पर हाथ न आया, प्यार का एक मिसरा भी
ReplyDeleteकहने को उनके ख़त में, बहुत कुछ लिखा था।
हमेशा की तरह रोचक गंभीर सरस रचना
शहर सुनसान सही, राह वीरान सही,
ReplyDeleteरात लम्बी ही सही, सहर तो होनी ही है।
पंक्तियॉं कितनी प्रभावशाली तरीके से हमें नित नई इच्छा से जीवन जीने का जज्बा दे रही हैं । इस सुन्दर कृति के लिए बधाई एवं धन्यवाद ।
शेखर