जान खतरे में डाले बिना हीरो बनने के नुस्खे के जादूगर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर जूते फेंकने वाले इराक़ी पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी जूताकार की तारीफ़ में काफी सतही पत्रकारिता पहले ही हो चुकी है। सद्दाम हुसैन और अरब जगत के अन्य तानाशाहों के ख़िलाफ़ कभी चूँ भी न कर सकने वाले इस पत्रकार को इस्लामी राष्ट्रों के सतही पत्रकारों ने रातों-रात जीरो से हीरो बना दिया। तानाशाहों के अत्याचारों से कमज़ोर पड़े दबे कुचले लोगों ने इस आदमी में अपना हीरो ढूंढा। क्या हुआ जो जूता किसी तानाशाह पर न चल सका, आख़िर चला तो सही।
मगर अब जब इस जूताकार पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी की अगली चाल का खुलासा हुआ है तो उसके अब तक के कई मुरीदों को बगलें झाँकने पड़ रही हैं। स्विट्ज़रलैंड के समाचार पत्र ट्रिब्यून डि जिनेवा ने मुंतज़र अल ज़ैदी के वकील माउरो पोगाया के हवाले से बताया कि ज़ैदी बग़दाद में नहीं रहना चाहता है उसे इराक ही नहीं, दुनिया के किसी दूसरे इस्लामी राष्ट्र पर भी इतना भरोसा नहीं है कि वह वहाँ रह सके। इन इस्लामी देशों में उसे अपनी सुरक्षा को लेकर इतना अविश्वास है कि अब उसने स्विट्जरलैंड में शरण माँगी है।
उसके स्विस वकील पोगाया ने बताया कि ज़ैदी के रिश्तेदार उनसे मिले थे और वे उसकी तरफ़ से स्विट्ज़रलैंड में राजनीतिक शरण मांग रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जैदी के अनुसार इराक में उसकी ज़िंदगी नरक के समान है और वह स्विट्जरलैंड में एक पत्रकार का काम इराक से अधिक बेहतर कर सकेगा। जैदी की इस दरख्वास्त से यह साफ़ हो गया है कि कल तक इस्लामी जगत का झंडा फहराने का नाटक करने वाले की असलियत के पीछे इराक या सद्दाम का प्रेम नहीं बल्कि आसानी से यूरोप में राजनैतिक शरण लेने का सपना छिपा हुआ था। यहाँ यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि जैदी पहले ही इराकी प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में जूता फेंकने की अपनी हरकत को शर्मनाक कहकर उनसे क्षमादान की अपील कर चुका है।
bilkul theek likh rahe hain, islami desho se log baahar aakar swatantra ka anubhav karte hain.
ReplyDeletebilkul sahi likha hai aapne....
ReplyDeleteह्म्म!! शायद यही वजह हो.
ReplyDeleteसच बात
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
"ओह तो क्या अपनी आजादी के लिए उसने ये रिस्क उठाया था ?????"
ReplyDeleteRegards
दो दिन पहले मेने यह खबर बी बी सी पर पढी थी, लेकिन इस खबर मे कोई सच्ची नजर नही आती, क्योकि उस बेचारे का तो बुरा हाल है उसे इतना मारा गया है कि... यह खबर भी मेने यही पढी थी. अब आगे भगवान जाने.
ReplyDeleteधन्यवाद
Sari to suni sunai hai,pata nahi asliyat kya hai.Waise midiya kab kise kya banaye.....kuchh nahi kaha ja sakta.
ReplyDeleteक्या कहे ?कुछ स्पष्ट नही है...श्रीलंका में हुई पत्रकार की हत्या देख लगता है शायद उन्हें भी अपना जीवन जीने की इच्छा जाग उठी हो.
ReplyDeleteअपके आलेख को पढने के पश्चात तो यही अनुभव हो रहा है कि शायद मुंतज़र अल ज़ैदी की ऎसी ही कोई मंशा हो.
ReplyDeleteये ऐसे सभी लोगो की पोल kholti है जो dogle बन कर रहते हैं
ReplyDelete'जाय दीं'......
ReplyDeleteकल तक इस्लामी जगत का झंडा फहराने का नाटक करने वाले की असलियत के पीछे इराक या सद्दाम का प्रेम नहीं बल्कि आसानी से यूरोप में राजनैतिक शरण लेने का सपना छिपा हुआ था।
ReplyDeleteये भी एक खोखली वतनपरस्ती का नाटक है. क्या कहा जा सकता है?
रामराम.
कल तक इस्लामी जगत का झंडा फहराने का नाटक करने वाले की असलियत के पीछे इराक या सद्दाम का प्रेम नहीं बल्कि आसानी से यूरोप में राजनैतिक शरण लेने का सपना छिपा हुआ था।
ReplyDeleteये भी एक खोखली वतनपरस्ती का नाटक है, क्या किया जा सकता है?
रामराम.
इस तरह की हरकतें या तो पागल करते हैं या तिकड़मी।
ReplyDeleteवाह, वाह मुंतजर हो हिन्दी में मू*ने लगा!
ReplyDeleteकटु यथार्थ और अन्वेषी आलेख धन्यबाद
ReplyDeleteमेरे नए ब्लॉग पर भी दस्तक दें
http://kundkundkahan.blogspot.com
किसी का कुछ पता नहीं चलता !
ReplyDeleteक्या सचमुच सबकुछ इतना योजनाबद्ध किया जा सकता है!?
ReplyDeleteआपका निष्कर्श्ष अपनी जगह किन्तु एक 'कोण' यह भी तो हो सकता है कि जैदी ने स्विटजरलैण्ड में शरण मांग कर 'एक बार फिर' जूता फेंक मारा है-वहीं, जहां आपने निशाना लगाया है।
ReplyDeletelogon kaa chritr samajh se pare hai
ReplyDeletelogon kaa charitr samajh se pare hai
ReplyDeleteपत्रकारों के एक नए नमूने के दर्शन हुए जिसका जिक्र मैंने अपनी पोस्ट में नहीं किया था.
ReplyDeleteअनुराग जी अपनी तो ताऊ से सहमति है
ReplyDeleteअनुराग जी अपनी तो ताऊ से सहमति है
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