दिल्ली में मेरी बालकनी पर सौ बोनसाई रहती थीं. यहाँ आया तो बहुत समय तक अपार्टमेन्ट में रहते कुछ किया नहीं,धीरे-धीरे फिर से हाथ आजमाना शुरू किया. मौसम अतिवादी होता है फिर भी कई पौधे कई-कई साल चले मगर एक छोटे से पाकड़ के अलावा अभी कुछ भी जीवित नहीं है. कुछ झलकियाँ:
ये पौधे भगवान को प्यारे हो गए!
केला
पाकड़
लीची
अकेला जीवित पाकड़
सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा
[Bonsai: Photos by Anurag Sharma]
ानुराग जी तस्वीरें बहुत सुन्दर हैं जब भी मै गमले मे लगे हुये इन पौधों को देखती हूँ तो लगता है कि हम ने इन्हें गमलों मे कैद कर के इन से इनका जीवन छीन लिया है जैसे चिडिया को पिंजरे मे कैद कर के उसकी उडान को सीमित कर देते है। लेकिन देखने मे मन को लुभाते हैं । कल हिन्द युग्म से आपकी पुस्तक प्राप्त हुई अभी पढ नही पाई मगर पुस्तक की साज सज्जा मन को छू गयी। आपका धन्यवाद एक दो दिन मे पढती हूँ।
ReplyDeleteनिर्मला जी,
ReplyDeleteज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया. आपका आशीर्वाद है!
पौधों और प्रकृति के आपका असीम प्रेम हैं..चित्र देख कर कुछ ऐसा ही लगता है बढ़िया सहेजे है...प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छा लगा बोनसाई की तस्वीरें देखना...
ReplyDeleteसुन्दर बोनसाई ।
ReplyDeleteTasviron ne man moh liya.shubkamnayen.
ReplyDeleteसुन्दर लगे.सभी बोनसाई.
ReplyDeleteपाकड़ तो धाकड़ निकला भाई!
ReplyDeleteबहुत अच्छी तस्वीरें बोनसाई की।
ReplyDeleteबोनसाई देख गले में एक गोला सा आकर अटक जाता है सदा से ही...
ReplyDeleteकरीब पच्चीस वर्ष पहले एक ओरिया फिल्म देखी थी,जो बोनसाई को केंद्रबिंदु में रखकर ही बनायीं गयी थी...फर्क केवल इतना था की वहां बोनसाई कोई वृक्ष नहीं एक मनुष्य था...कहीं भी बोनसाई का पढ़ सुन देख,उस फिल्म की स्मृति हो आती है और आँखें नम हो जाती है...
शायद लगता है आपने इसे इस एंगल से कभी देखा सोचा नहीं है....
बहुत बढ़िया तस्वीरें हैं अनुराग जी... बोनसाई मुझे बचपन से आकर्षित करता रहा है. इसके बार एमे पढना दिलचस्प है मेरे लिए. कभी भविष्य में खुद से इसकी देखभाल करना चाहूँगा.
ReplyDeleteसारे चित्र निस्सन्देह सुन्दर हैं, बिलकुल पेशेवर केमरामेन द्वारा खींचे गए।
ReplyDeleteare waah ye to aur bhi acchi baat ho gayi mujhe bhi bahut shuak hai...main chuttiyon mein kya gayi india mere saate bonsai..ab swargeey ho gaye hain...
ReplyDeletebahut khush ho gaye ham to saari tasveerein dekh kar..
haan nahi to..!!
कैसे बनाये जा सकते हैं, इस बारे में भी बतायें..
ReplyDeleteबोनसाई के बारे में तो हमारी सोच भी बहुत हद तक रंजना जी से मिलती जुलती है...इनके विकास को बाधित करने का ये कार्य..बस आत्मा नहीं मानती.कुछ गलत सा लगता है...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से सजाया है आपने इनको!
ReplyDeleteयह पाकड क्या है? आपका प्रयास अच्छा है।
ReplyDelete@भारतीय नागरिक said...
ReplyDeleteकैसे बनाये जा सकते हैं, इस बारे में भी बतायें..
अगली पोस्ट बोनसाई पर ही सही!
बहुत ही सुन्दर हैं। मैं भी शौक रखती हूँ, मेरे शायद सच्चे बोनसाई नहीं किन्तु गमले में पौधे पालना कहा जा सकता है।
ReplyDeleteअपने पौधों का स्वर्गवासी होना असह्य लगेगा मुझे!
यह पुस्तक कौन सी है, जिसकी बात निर्मला कपिला जी कर रही हैं?
घुघूती बासूती
@Mired Mirage said...
ReplyDeleteयह पुस्तक कौन सी है, जिसकी बात निर्मला कपिला जी कर रही हैं?
पतझड़ सावन वसंत बहार - दो महाद्वीप, चार मौसम और छः कवि.
अजित जी,
ReplyDeleteगूलर, पीपल आदि की जाति के इस वृक्ष को प्लक्ष, पर्करी, पाकड़, पकडिया के नाम से पुकारते हैं. उत्तर प्रदेश में अपने आप उग आता है. वानस्पतिक नाम फाइकस लेकर (Ficus lacor) है. जड़ें उथली होती हैं इसलिए आंधी वगैरह में जल्दी उखड जाता है. तना कुछ-कुछ पीपल जैसा होता है और लकड़ी काफी जल्दी गलने वाली होती है. (हमारे) बरेली में तो पकड़िया नाथ नामक पवित्र स्थान भी है.
अरे ये तो बोटानिकल गार्डेन में देखे थे ...आपके पास भी इतने सारे और दिल्ली में सौ सौ ....आप महान है जी
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